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ब्रिटिश राज में 1837 से 1838 के बीच आगरा में एक भयानक सूखा पड़ा था जिसमें करीब 8 लाख लोगों की जान गई थी। तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) के करों में भी भारी गिरावट आई थी। जिसके बाद से ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने नहरों के प्रस्तावों पर विचार करना शुरू कर दिया था। इस नहर की शुरुआत करने का श्रेय कर्नल प्रोबी कॉटली (Proby Cautley) को दिया जाता है। कई मुश्किलों के बाद वे आखिरकार 560 किलोमीटर लंबाई वाली मुख्यधारा का 8 अप्रैल 1854 को उद्घाटन करने में सफल रहे।
अन्य नहरों की तरह गंगा नहर की भी वार्षिक रूप से साफ सफाई होती है। इस नहर से उत्तर प्रदेश के 15 जिलों में पानी की आपूर्ति की जाती है। परंतु जिसकी सफाई वाले समय में जब यह आपूर्ति बंद हो जाती है तो 15 ज़िलों के लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ता है। गाज़ियाबाद और नोएडा जैसे बड़े शहरों में भूमिगत जल की गुणवत्ता खराब होने से उनमें गंगा का जल 90% या कहीं-कहीं 60 से 70% लाकर जलापूर्ति की जाती है। नहर के बंद होने के बाद इन जिलों में पीने के पानी का संकट और बड़ा हो सकता है क्योंकि इनके भूमिगत जल को आर ओ सिस्टम (R.O. System) के प्रयोग के बिना उपयोग करना संभव नहीं है।
नहरों के आसपास बसे शहरों में ऐसे संकट को कम करने के लिए सरकार को दूसरे आपातकालीन विकल्पों को तलाशना चाहिए। वर्षा जल संग्रहण एक अच्छा विकल्प है परंतु इसमें समय और लागत अधिक है। नहरों के जल को और अधिक क्षमता वाले बैराजों और तालाबों में भंडारण कर लेना चाहिए जिसका संकट के समय उपयोग हो सके।
वैश्विक महामारी के समय गंगा नदी तथा इसकी जल धाराओं की स्थिति काफी सुधर गई थी। उद्योगों के बंद होने से इसमें गिरने वाले औद्योगिक अपशिष्ट में काफी कमी आई थी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार कई निगरानी केंद्रों पर गंगा का पानी नहाने के लिए उपयुक्त माना गया। पहले उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश में पहुंचते ही नदी बेहद चिंताजनक रूप से प्रदूषित होती थी। जिससे कई जगह इसका जल नहाने के उपयोग में भी नहीं ला सकते थे। विशेषज्ञों का मानना है कि औद्योगिक जगहों पर भी लॉकडाउन के लगने से नदी के जल की स्थिति बेहद अच्छी हुई है।