मेरठ की गलियों से राष्ट्रीय मैदान तक: भारतीय फुटबॉल का संघर्ष और नई उम्मीदें

य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
04-07-2025 09:22 AM
मेरठ की गलियों से राष्ट्रीय मैदान तक: भारतीय फुटबॉल का संघर्ष और नई उम्मीदें

मेरठ—एक शहर जो अपनी वीरता, खेल-भावना और ऊर्जा के लिए पहचाना जाता है—यहाँ कबड्डी, हॉकी और एथलेटिक्स की तरह फुटबॉल भी युवाओं की रगों में दौड़ता है। स्कूलों के मैदान हों या कॉलेज के टूर्नामेंट, मेरठ की हर गली में फुटबॉल के लिए जुनून साफ देखा जा सकता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जिस खेल से मेरठ के बच्चे आज जुड़ रहे हैं, उसका भारत में सफर कितना पुराना और दिलचस्प रहा है? भारत में फुटबॉल का सफर लंबे समय से चला आ रहा है—एक ऐसा सफर जिसमें संघर्ष, गौरव, अवरोध और अब एक नई उम्मीद की लहर शामिल है। स्वतंत्रता के बाद भारतीय फुटबॉल ने धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय मंच पर कदम बढ़ाया। 1950 के दशक में भारत की टीम को ओलंपिक में खेलने का मौका मिला, और एक समय ऐसा भी था जब एशियाई स्तर पर भारत को फुटबॉल का 'पावरहाउस' माना जाता था। लेकिन आर्थिक संसाधनों की कमी, अव्यवस्थित प्रशासन और अधूरी योजनाओं ने इस उम्मीदों से भरे सफर को अधूरा छोड़ दिया।

मेरठ जैसे शहरों में तो यह संघर्ष और भी अधिक गहरा रहा। यहाँ प्रतिभा की कोई कमी नहीं—गली-कूचों में खेलते युवाओं में जुनून है, लेकिन संसाधन नहीं। न तो पर्याप्त मैदान, न सही कोचिंग और न ही वह समर्थन प्रणाली जो प्रतिभा को प्रोफेशनल खेल तक ले जाए। बहुत से खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने फुटबॉल से अपना जीवन जोड़ने का सपना देखा, लेकिन सुविधाओं की कमी ने उन्हें बीच रास्ते रोक दिया। फिर भी, अब वक्त बदल रहा है। इंडियन सुपर लीग (ISL) जैसी प्रतियोगिताओं ने देशभर में फुटबॉल को एक नई पहचान दी है। टीवी पर देखे गए मैचों, सोशल मीडिया पर बढ़ते फुटबॉल कंटेंट और महान खिलाड़ियों की कहानियों ने मेरठ जैसे शहरों में भी इस खेल को फिर से ज़िंदा किया है।

इस लेख में हम पहले भारतीय फुटबॉल के प्रारंभिक इतिहास और 1948 के लंदन ओलंपिक में उसके प्रदर्शन पर चर्चा करेंगे। फिर हम फुटबॉल के सामाजिक वर्गीकरण और भारत व ब्राजील के बीच समानताओं पर विचार करेंगे। उसके बाद भारतीय फुटबॉल के बुनियादी ढांचे की कमी और इसके प्रभावों पर ध्यान देंगे। फिर फुटबॉल प्रशासन की भूमिका और प्रचार-प्रसार में असफलता की बात करेंगे। उसके बाद इंडियन सुपर लीग के उदय और फुटबॉल के भविष्य की संभावना पर चर्चा होगी। अंत में हम भारत में फुटबॉल के समग्र विकास और वर्तमान चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे।

भारतीय फुटबॉल का प्रारंभिक इतिहास और 1948 लंदन ओलंपिक में प्रदर्शन
भारत ने 1948 के लंदन ओलंपिक में फुटबॉल के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण शुरुआत की, जो भारतीय फुटबॉल इतिहास का एक अहम पड़ाव था। इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने फ्रांस के खिलाफ बेहद ही उत्साहजनक और आत्मविश्वासपूर्ण प्रदर्शन किया, जहां वह केवल 1-2 के अंतर से हार गई। इस मुकाबले ने भारतीय फुटबॉल प्रेमियों के दिलों में खेल के प्रति एक नई ऊर्जा और उम्मीद जगाई। उस समय फुटबॉल भारत में सीमित संसाधनों और बुनियादी ढांचे के बावजूद बड़े पैमाने पर लोकप्रिय था, खासकर कोलकाता जैसे फुटबॉल केंद्रों में। भारतीय खिलाड़ियों ने नंगे पैर भी खेलते हुए अपनी तकनीक और कौशल से विदेशी टीमों को कड़ी टक्कर दी। यह प्रदर्शन भारतीय फुटबॉल के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण था, जिसने खेल के विकास को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रेरित किया। उस दौर में फुटबॉल मुख्य रूप से क्षेत्रीय क्लबों, स्कूलों और कॉलेजों के माध्यम से खेला जाता था, जिससे खेल धीरे-धीरे पूरे देश में लोकप्रिय होता गया।
साथ ही, 1948 के ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम के यह प्रदर्शन यह भी दर्शाते हैं कि उस समय भारतीय खिलाड़ियों के पास आधुनिक फुटबॉल उपकरणों की कमी थी, और वे नंगे पैर खेलने को प्राथमिकता देते थे, जो विदेशी टीमों के मुकाबले उनके कौशल और समर्पण को और भी अधिक सराहनीय बनाता है। इस अनुभव ने भारतीय फुटबॉल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आत्मविश्वास दिया और खिलाड़ियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया।

फुटबॉल का सामाजिक वर्गीकरण: भारत और ब्राजील में समानताएँ
भारत और ब्राजील में फुटबॉल की शुरुआत लगभग एक समान सामाजिक परिस्थिति में हुई। दोनों देशों में फुटबॉल शुरुआत में मध्य वर्गीय खेल था, लेकिन जल्दी ही यह श्रमिक और आम जनता के बीच लोकप्रिय हो गया। ब्राजील में 1920 और 1930 के दशकों में फुटबॉल ने पूरी जनता को आकर्षित किया, वहीं भारत के कोलकाता जैसे शहरों में भी यह खेल सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक मेलजोल का माध्यम बन गया। फुटबॉल ने दोनों देशों में सामाजिक दूरी को पाटने और लोगों को एकसाथ जोड़ने का काम किया। हालांकि यूरोप के विपरीत भारत और ब्राजील में खेल के लिए औपचारिक संरचना और आधुनिक बुनियादी ढांचे की कमी थी, फिर भी फुटबॉल ने सांस्कृतिक और सामाजिक बदलावों को जन्म दिया। यह खेल आर्थिक और सामाजिक वर्गों के बीच संवाद स्थापित करने का एक जरिया बन गया, जिसने दोनों देशों के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत किया।
भारत में फुटबॉल ने विशेष रूप से बंगाल, गोवा, केरल और सिक्किम जैसे क्षेत्रों में सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया। फुटबॉल मैदानों ने जाति, धर्म, और वर्ग के भेदभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्राजील की तरह ही, भारत में भी फुटबॉल ने सामाजिक चेतना को जगाने में सहायता की और युवाओं को सकारात्मक दिशा में प्रेरित किया। यह खेल पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं को चुनौती देने वाला माध्यम बना, जो समाज के हर वर्ग को जोड़ने वाला एक सांस्कृतिक पुल था।

भारत में फुटबॉल के बुनियादी ढांचे की कमी और उसका प्रभाव
भारत में फुटबॉल के विकास में सबसे बड़ी समस्या इसका कमजोर और अपर्याप्त बुनियादी ढांचा है। खेल के लिए उपयुक्त मैदान, प्रशिक्षण केंद्र, कोचिंग सुविधाएं, और खेल उपकरणों की कमी खिलाड़ियों के विकास को बाधित करती है। फुटबॉल को व्यापक स्तर पर लोकप्रिय बनाने और मजबूत करने के लिए संसाधनों की भारी आवश्यकता है, लेकिन कई बार प्रशासनिक ध्यान न देने और बजट की कमी के कारण यह संभव नहीं हो पाता। नतीजतन, कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी सही प्रशिक्षण और अवसर न मिलने के कारण अपनी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पाते। स्कूलों और कॉलेजों में खेल को प्रोत्साहित करने की व्यवस्था कमजोर होने के कारण फुटबॉल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। बुनियादी ढांचे में सुधार के बिना भारत का फुटबॉल विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करना कठिन होगा। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण इलाकों में फुटबॉल की पहुंच सीमित होना भी एक बड़ी समस्या है, जिससे देश भर में खेल का समतलीकरण नहीं हो पाया।
अधिकांश बड़े शहरों में तो सीमित सुविधाएं उपलब्ध हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में फुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त संसाधन और सरकारी योजनाएं न के बराबर हैं। मैदानों की खराब स्थिति, कोचों की कमी और खेल उपकरणों की उपलब्धता में बाधाएं खिलाड़ियों के करियर को प्रभावित करती हैं। इसके अलावा, फुटबॉल अकादमियों और युवा विकास कार्यक्रमों की कमी भी इस खेल की गुणवत्ता को सीमित करती है। उचित प्रशिक्षण और संरचना के अभाव में प्रतिभाएं खो जाती हैं, जो भविष्य में भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर बना सकता है।

फुटबॉल प्रशासन की भूमिका और प्रचार-प्रसार में असफलता
भारतीय फुटबॉल के विकास में प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, लेकिन इस क्षेत्र में कई बार कमी और लापरवाही देखी गई है। खेल के प्रचार-प्रसार और प्रबंधन के मामले में नीतिगत कमजोरियों ने फुटबॉल के विकास को बाधित किया है। क्रिकेट की भारी लोकप्रियता और मीडिया कवरेज के कारण फुटबॉल को उचित समय और संसाधन नहीं मिल पाते। फुटबॉल संघों की रणनीतियाँ अक्सर प्रभावहीन रही हैं, जिससे खेल की लोकप्रियता सीमित रही। स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल के लिए पर्याप्त योजनाएं और सुधार न होना खिलाड़ियों के प्रोत्साहन को कम करता है। प्रशासनिक सुधारों के अभाव में फुटबॉल की व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल पाती, जिससे खेल को वह आवश्यक बढ़ावा नहीं मिल पाता जो इसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना सके। बेहतर प्रबंधन और संगठित प्रचार-प्रसार ही भारतीय फुटबॉल को उसकी वास्तविक ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है।
फुटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया (AIFF) की कई बार आलोचना हुई है कि उसने खिलाड़ियों और क्लबों के हितों की अनदेखी की है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार और नीति निर्धारण में पारदर्शिता की कमी ने भी खेल के विकास में बाधा डाली है। मीडिया और प्रसार माध्यमों में फुटबॉल को अपेक्षित कवरेज न मिलने से यह खेल अपेक्षित लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर पाया। एक समर्पित और पारदर्शी प्रशासन ही फुटबॉल को उसके वास्तविक मुकाम तक पहुंचा सकता है।

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इंडियन सुपर लीग (ISL) का उदय और फुटबॉल का भविष्य
इंडियन सुपर लीग (ISL) ने भारतीय फुटबॉल के लिए नई उम्मीदें जगाई हैं। इस लीग ने खिलाड़ियों को एक पेशेवर मंच प्रदान किया है और दर्शकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की है। विश्वव्यापी प्रायोजकों और बड़े निवेशकों की भागीदारी से फुटबॉल ने एक व्यावसायिक रूप धारण किया है। ISL ने युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण, अवसर और अनुभव प्रदान कर उन्हें निखारने में मदद की है। इसके अलावा, इस लीग ने फुटबॉल को भारत के लोकप्रिय खेलों की सूची में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि क्रिकेट के उत्साह से मुकाबला अभी भी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ISL की निरंतरता और विस्तार से फुटबॉल के भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। यदि इस लीग को मजबूत आधार और बेहतर संसाधन मिले, तो यह भारत में फुटबॉल को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है।
इसके अलावा, ISL ने विदेशी खिलाड़ियों और कोचों को भी भारतीय फुटबॉल के साथ जोड़ा है, जिससे खिलाड़ियों का अनुभव बढ़ा है और खेल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। युवा प्रतिभाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा का अवसर मिलना भारतीय फुटबॉल के दीर्घकालिक विकास के लिए लाभकारी साबित हो रहा है। मीडिया कवरेज में वृद्धि और फुटबॉल के प्रति बढ़ती रुचि ने इसे भविष्य में और भी अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।

भारत में फुटबॉल का समग्र विकास और चुनौतियाँ
वर्तमान में फुटबॉल में क्षेत्रीय लीगों का विस्तार हुआ है, लेकिन बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण सुविधाओं, प्रशासनिक सुधारों और वित्तीय निवेश की कमी अभी भी बनी हुई है। क्रिकेट के दबाव और मीडिया कवरेज में कमी के कारण फुटबॉल को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाता। फिर भी युवा प्रतिभाओं का उदय और विभिन्न लीगों का विकास भारत में फुटबॉल के उज्जवल भविष्य का संकेत देते हैं। इन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए संगठित प्रयासों की जरूरत है ताकि फुटबॉल देश में व्यापक रूप से फल-फूल सके और भारत को विश्व फुटबॉल मानचित्र पर एक मजबूत स्थान दिला सके।
फुटबॉल के विकास के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और फुटबॉल संगठनों को मिलकर काम करना होगा। युवा स्तर पर फुटबॉल को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में बेहतर प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराना आवश्यक है। साथ ही, महिला फुटबॉल को भी बढ़ावा देना होगा ताकि खेल का दायरा और अधिक व्यापक हो। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए निरंतर अभ्यास, बेहतर कोचिंग, और वित्तीय निवेश की आवश्यकता है। यदि ये सभी पहलू ठीक से लागू होते हैं, तो भारत आने वाले वर्षों में फुटबॉल के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल कर सकता है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/5mnajw27 

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