बरगद के पेड़ की गहरी तथा व्यापक जड़ प्रणाली और इसकी भूमिका

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बरगद के पेड़ की गहरी तथा व्यापक जड़ प्रणाली और इसकी भूमिका

बरगद (Banyan) के पेड़ को भारत और दुनिया के कई हिस्सों में एक समृद्ध ऐतिहासिक और आध्यात्मिक संबंधों के साथ एक अर्थपूर्ण पेड़ माना जाता है। भारत में इसे "वात-वृक्ष" ("the Vata- vriksha") के नाम से भी जाना जाता है, यहां इसे मृत्यु के देवता, यम के साथ भी जोड़ा जाता है और श्मशान के पास गांवों के बाहर लगाया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान कृष्ण ने ज्योतिसर में एक बरगद के पेड़ के नीचे खड़े होकर पवित्र संस्कृत ग्रंथ भगवद गीता का उपदेश दिया था, 2500 साल पहले लिखे गए हिंदू ग्रंथ, एक ब्रह्मांडीय "विश्व वृक्ष" ("world tree") का वर्णन करते हैं, जो एक उल्टे और सीधे उगने वाले बरगद के पेड़ को संदर्भित करता है, ऐसा माना जाता है कि इसकी जड़ें स्वर्ग में होती हैं और तने तथा शाखाओं के माध्यम से आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी की ओर फैलाती हैं। इस पेड़ का सदियों से उर्वरता, जीवन और पुनरुत्थान के प्रतीक के रूप में महत्व रहा है, यह दवा और भोजन के स्रोत के रूप में भी काम करता रहा है, इसकी छाल और जड़ें आज भी विभिन्न प्रकार के विकारों के इलाज के लिए सक्षम हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि बरगद के पेड़ के जीवाणुरोधी गुण कई पाचन विकारों में भी मदद करते हैं, इससे प्राप्त दवाएं जठरांत्र संबंधी मार्ग के संक्रमण में सहायता करने में भी अत्यधिक प्रभावी होती हैं। बरगद के पेड़ भारत और पाकिस्तान में बहुतायत में पाए जाते हैं, ये वहां के मूल निवासी तथा राष्ट्रीय वृक्ष हैं। आज के बरगद केवल सुंदर और प्रतीकात्मक नहीं होते, ये आधुनिक उद्देश्यों के लिए भी काम आते हैं। एरिन अल्वारेज़ (Erin Alvarez) और बार्ट शुट्ज़मैन (Bart Schutzman) लिखते हैं, कि "फिकस की छोटी जड़ों में तने जैसी संरचना बनने की क्षमता का उपयोग, मेघालय, भारत के लोगों द्वारा मानसून के मौसम में उग्र नदियों वाली धाराओं के पार पैदल पुल बनाने के लिए किया जाता है।" वे रबर के पेड़ (rubber tree) की छोटी-छोटी जड़ों को एक साथ बुनकर धाराओं को पार करते हैं। वे जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं और अधिक मजबूत संरचनाएं बनाते हैं, जो 500 सालों या उससे अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं और तूफान के दौरान भी बहते नहीं हैं।" बरगद के पेड़ों में लंबी हवाई जड़ें पाई जाती हैं, जो असामान्य रूप से लंबी होती हैं, ये अपनी शाखाओं से जड़ें नीचे जमीन में भेजते हैं, जिससे वह लंबी दूरी तक बढ़ सके और फैल सके। विश्व का सबसे बड़ा और चौड़ा बरगद का पेड़ भारत में कोलकाता के पास एक वनस्पति उद्यान में है जो पांच एकड़ भूमि में फैला हुआ है और 250 से अधिक वर्षों से बढ़ रहा है। मेरठ कॉलेज का बरगद का पेड़, आज भी शहर से उठी क्रांति की लौ की याद दिलाता है। यह ऐतिहासिक बरगद का पेड़ गांधीजी के त्याग को संदर्भित करता है, जो मेरठ कॉलेज में स्थित मंगल पांडे हॉल के पीछे एक पार्क में है। गांधीजी के आंदोलन की सफलता के लिए लगाया गया था यहपेड़, जब महात्मा गांधी ने 1943 में 21 दिन का उपवास किया था, तब उसकी सफलता पर मेरठ कालेज में यह बरगद का पेड़ लगाया गया था, जिसे लगाते समय 194 घंटे का अखंड हवन भी किया गया था। इतिहासकारों के अनुसार, 326 ईसा पूर्व, अलेक्जेंडर (Alexander) और उसकी सेना, भारत आने पर बरगद का सामना करने वाले पहले यूरोपीय (Europeans) थे। बरगद के पार आने के बाद, उन्होंने अपने निष्कर्षों की सूचना ग्रीस (Greece's) के आधुनिक वनस्पति विज्ञान के संस्थापक थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) को दी। यह जानकारी कथित तौर पर 17 वीं शताब्दी के अंग्रेजी कवि जॉन मिल्टन (John Milton) को यह लिखने के लिए प्रेरित करती है कि एडम (Adam) और ईव (Eve) ने पुस्तक "पैराडाइज लॉस्ट" ("Paradise Lost") में बरगद के पत्तों से अपना पहला कपड़ा बनाया था। अल्वारेज़ और शुट्ज़मैन कहते हैं कि दक्षिण एशिया में निहित है बरगद का इतिहास। वे ईमेल के माध्यम से लिखते हैं कि, "भारत से केवल एक प्रजाति "फिकस बेंघालेंसिस" ("Ficus benghalensis") मूल बरगद थी, जिसका नाम हिंदू व्यापारियों या सौदागरों के नाम पर रखा गया था जो इन प्रजातियों की छाया में व्यापार करते थे।" "अब इस शब्द का प्रयोग फ़िकस की कई प्रजातियों के लिए किया जाता है, जिनका जीवन चक्र समान होता है और अंजीर प्रजातियों के एक समूह से संबंधित होते हैं।" अल्वारेज़ और शुट्ज़मैन लिखते हैं कि "बरगद के पेड़ों की जड़ें बाद में बाहर से बढ़ती हैं, इसकी शाखाओं का विस्तार होना और जमीन तक पहुँचना, तने की तरह बनना और पेड़ के पदचिह्न का विस्तार करना, आम बोलचाल में इसे "चलने वाला पेड़" ("walking tree") का नाम भी प्रदान करता है।"
पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग (Department of Earth and Planetary Sciences) तथा पर्यावरण विज्ञान विभाग (Department of Environmental Sciences) के प्रोफेसर, यिंग फैन रीनफेल्डर (Ying Fan Reinfelder) बताते हैं कि एक बार चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने लिखा था कि "पौधों की जड़ों की युक्तियाँ पौधों के दिमाग की तरह होती हैं, वे पर्यावरण को समझती हैं और पानी को महसूस करती हैं, जहां अधिक पोषक तत्व होते हैं वहां वे इन संसाधनों के लिए जाती हैं। जड़ें पौधे का सबसे चतुर भाग होती हैं।" कालाहारी रेगिस्तान के मूल निवासी शेफर्ड ट्री (Shepherd's tree) की जड़ें सबसे गहरी हैं, यह 70 मीटर या 230 फीट से भी अधिक गहरी हो सकती हैं। माना जाता है कि एक बार भूजल के कुओं के लिए ड्रिलर्स द्वारा खुदाई करते हुए गलती से उनकी गहराई का पता चला था। रटगर्स यूनिवर्सिटी-न्यू ब्रंसविक (Rutgers University-New Brunswick) के प्रोफेसर के नेतृत्व में किए गए एक नए अध्ययन के अनुसार, कुछ पेड़ की जड़ें पानी की तलाश में कई फीट गहरी जांच करती हैं और कई पेड़ तो चट्टानों में भी दरार के माध्यम से अपनी जड़ें भेजते हैं। रेनफेल्डर बताते हैं कि इसके अलावा पौधों की जड़ों की गहराई, जो प्रजातियों और मिट्टी की स्थिति के बीच अलग-अलग प्रकार की होती है, जलवायु परिवर्तन के लिए पौधों के अनुकूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। रेनफेल्डर और उनके सहयोगियों ने प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (Proceedings of the National Academy of Sciences) में अपने अध्ययन के निष्कर्ष ऑनलाइन प्रकाशित किए। इस अध्ययन ने पौधों की जड़ों और पानी की उपलब्धता के बीच संबंध का प्रदर्शित किया गया है। यह अवलोकन और प्रतिरूपण के माध्यम से दिखाता है कि मृदा जल विज्ञान जड़ की गहराई के स्थानीय और वैश्विक पैटर्न को चलाने वाली प्रमुख शक्ति है।
इस अध्ययन के निष्कर्षों से जड़ की गहराई, स्थानीय मिट्टी और पानी की स्थिति के बीच मजबूत संबंध का पता चलता है। अच्छी जल निकासी वाली ऊपरी भूमि में, जड़ें वर्षा जल के स्तर तक पहुंच जाती हैं और बर्फ पिघलने लगती है तथा जलभराव वाले तराई क्षेत्रों में जड़ें उथली रहती हैं। बीच में, उच्च विकास दर और सूखा भूजल स्तर के ठीक ऊपर संतृप्त क्षेत्र में कई मीटर नीचे अपनी जड़ें भेज सकता है। उन्होंने कहा कि पौधे प्रतिकूल वातावरण से नीचे की ओर बढ़ सकते हैं, जहां पानी अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3JkB3J9
https://bit.ly/3DQZIUA
https://bit.ly/3JiBFPz

चित्र संदर्भ
1. ग्रामीण कर्नाटक, भारत में एक बरगद के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. बरगद के पेड़ के नीचे शिवायत योगी को दर्शाता एक अन्य चित्रण (Look and Learn)
3. मेरठ कॉलेज प्रवेश द्वार को दर्शाता चित्रण (facebook)
4. बरगद के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कालाहारी रेगिस्तान के मूल निवासी शेफर्ड ट्री (Shepherd's tree) को दर्शाता एक अन्य चित्रण (wikimedia)