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उत्तर प्रदेश का कृषि क्षेत्र केवल राज्य की अर्थव्यवस्था की मज़बूत रीढ़ ही नहीं, बल्कि यह ग्रामीण जीवनशैली, व्यापक रोज़गार और खाद्य सुरक्षा का भी सबसे महत्वपूर्ण आधार है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख कृषि ज़िलों में शामिल मेरठ, गन्ना, गेहूं और सब्ज़ी उत्पादन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। यहां के खेत, नहरें और मेहनती किसान न केवल अपने परिवारों का पालन-पोषण करते हैं, बल्कि प्रदेश और देश की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश की सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में लाखों परिवार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेती से जुड़े हुए हैं, और मेरठ जैसे ज़िलों में यह निर्भरता और भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। धान, गेहूं, गन्ना, दालें और हरी सब्ज़ियाँ राज्य की कृषि पहचान हैं, जिनके बल पर उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय कृषि उत्पादन में अग्रणी स्थान बनाए हुए है।
आज के इस लेख में हम उत्तर प्रदेश की कृषि के महत्व, कृषि परिवारों की आर्थिक स्थिति, मौसमी फ़सल प्रणाली और सिंचाई की भूमिका को समझेंगे। इसके बाद हम कृषि संकट के कारणों, राज्य में उगाई जाने वाली प्रमुख श्रम-प्रधान फ़सलों, और अंत में यूपी-प्रगति (UP-PRAGATI) जैसे आधुनिक कृषि कार्यक्रमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि उत्तर प्रदेश की खेती किस दिशा में आगे बढ़ रही है।

उत्तर प्रदेश की कृषि का महत्व और राज्य की अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका
उत्तर प्रदेश भारत के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण कृषि राज्यों में से एक है। राज्य का कुल अनाज उत्पादन देश के कुल अनाज उत्पादन का लगभग 17-18 प्रतिशत है, जो इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में एक प्रमुख योगदानकर्ता बनाता है। यहां धान, गेहूं, गन्ना, दालें, जौ, आलू और विविध प्रकार की सब्ज़ियाँ बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं, जिनसे न केवल राज्य बल्कि पूरे देश की खाद्य ज़रूरतें पूरी होती हैं। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में कृषि केवल रोज़गार का साधन नहीं है, बल्कि यह लोगों की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली से गहराई से जुड़ी हुई है। खेती से जुड़े पर्व-त्योहार, बीज बोने और फ़सल काटने की सामूहिक परंपराएँ तथा पीढ़ियों से चला आ रहा पारंपरिक ज्ञान गांवों की सामाजिक संरचना को मज़बूती प्रदान करता है। राज्य की एक बड़ी आबादी प्रत्यक्ष रूप से खेतों में काम करती है, जबकि खाद्य प्रसंस्करण, परिवहन, भंडारण, मंडियों और कृषि आधारित उद्योगों से जुड़े लाखों लोग अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं। इस तरह कृषि, उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है।
2011 की जनगणना के अनुसार कृषि परिवारों की स्थिति और किसानों की आय
2011 की जनगणना और विभिन्न राष्ट्रीय सर्वेक्षणों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 1.8 करोड़ से अधिक कृषि परिवार निवास करते हैं। राज्य की लगभग 59 प्रतिशत आबादी अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, जो यह दर्शाता है कि खेती आज भी आम लोगों की ज़िंदगी का सबसे बड़ा आधार है। हालांकि, इतनी बड़ी भागीदारी के बावजूद किसानों की औसत मासिक आय लगभग ₹4,900 आँकी गई है, जो पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि-संपन्न राज्यों की तुलना में काफ़ी कम है। यह अंतर साफ़ तौर पर बताता है कि उत्पादन अधिक होने के बावजूद किसानों को उनके श्रम के अनुरूप आर्थिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। छोटे और सीमांत किसानों के पास कम ज़मीन, सीमित संसाधन और बढ़ती खेती लागत होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति और अधिक दबाव में रहती है। यही कारण है कि आय असमानता और आर्थिक असुरक्षा आज उत्तर प्रदेश के किसानों की एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

मौसमी फ़सल प्रणाली और उत्तर प्रदेश में सिंचाई की आवश्यकता
उत्तर प्रदेश में कृषि मुख्य रूप से ख़रीफ़ और रबी - इन दो मौसमी फ़सल प्रणालियों पर आधारित है।
ख़रीफ़ फ़सलें, जैसे धान और मक्का, मानसून की बारिश पर निर्भर होती हैं और जून से अक्टूबर के बीच उगाई जाती हैं। वहीं रबी फ़सलें, जैसे गेहूं, चना और सरसों, सर्दियों के मौसम में उगाई जाती हैं और इनके लिए नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। राज्य के कई क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं की कमी एक बड़ी चुनौती है। नहरों, ट्यूबवेल (tube well) और वर्षा जल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण मौसम में थोड़ी सी अनियमितता भी फ़सल को भारी नुकसान पहुँचा सकती है। सूखा, अनियमित बारिश या जल स्तर में गिरावट सीधे तौर पर किसानों की आय और उत्पादकता को प्रभावित करती है। इसलिए उत्तर प्रदेश में टिकाऊ कृषि के लिए जल प्रबंधन और सिंचाई सुधार बेहद आवश्यक हैं।

कृषि संकट के कारण और किसानों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ
उत्तर प्रदेश में कृषि संकट के पीछे कई गहरे और आपस में जुड़े कारण हैं। किसानों पर लगातार बढ़ता कर्ज़, बीज, खाद और डीज़ल जैसी चीज़ों की बढ़ती लागत, बार-बार फ़सल का खराब होना और पर्याप्त सिंचाई सुविधाओं का अभाव प्रमुख समस्याएँ हैं। विशेष रूप से गन्ना किसानों को चीनी मिलों से समय पर भुगतान न मिलना एक गंभीर और लंबे समय से चली आ रही समस्या है। इसके अलावा, बाज़ार में फ़सलों के दामों में उतार-चढ़ाव, बिचौलियों की भूमिका और आधुनिक तकनीकों तक सीमित पहुँच किसानों की परेशानियों को और बढ़ा देती है। इन सभी कारणों से खेती धीरे-धीरे एक लाभकारी व्यवसाय की बजाय एक जोखिमपूर्ण आजीविका बनती जा रही है, जिससे किसानों का मनोबल भी प्रभावित होता है।

उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली प्रमुख श्रम-प्रधान फ़सलें
उत्तर प्रदेश में कई ऐसी फ़सलें उगाई जाती हैं जिनमें अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती है। धान की खेती में रोपाई, निराई और कटाई जैसे कार्य बेहद श्रम-साध्य होते हैं। गन्ना की खेती में बीज बोने से लेकर कटाई और परिवहन तक लंबा और कठिन श्रम लगता है। गेहूं की कटाई और अनाज की सफ़ाई में भी बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा दलहन-तिलहन तथा सब्ज़ियाँ और फल उगाने में निरंतर देखभाल और मेहनत की ज़रूरत पड़ती है। इन फ़सलों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर तो पैदा होते हैं, लेकिन आधुनिक मशीनों की सीमित उपलब्धता और उचित मूल्य न मिलने के कारण मेहनत के अनुपात में किसानों की आय कम रह जाती है।

यूपी–प्रगति (UP-PRAGATI) कार्यक्रम और आधुनिक कृषि समाधान
यूपी-प्रगति (UP-PRAGATI) कार्यक्रम उत्तर प्रदेश सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य खेती में जल संरक्षण, कम कार्बन तकनीकों और आधुनिक कृषि तरीकों को बढ़ावा देना है। इस कार्यक्रम के तहत डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) जैसी तकनीकों को अपनाया जा रहा है, जिससे धान की खेती में पानी की खपत कम होती है और किसानों की लागत घटती है। आने वाले वर्षों में यह कार्यक्रम लाखों किसानों को बेहतर उत्पादन, संसाधनों के कुशल उपयोग और अधिक आय के अवसर प्रदान कर सकता है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो यह पहल उत्तर प्रदेश की कृषि को पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़ाकर आधुनिक, टिकाऊ और लाभकारी खेती की दिशा में ले जाने का एक मजबूत आधार बन सकती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/9wt7n48j
https://tinyurl.com/2ubm6es3
https://tinyurl.com/ynwm5586
https://tinyurl.com/2p4sdkep
https://tinyurl.com/4ujhryf7
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