जौनपुर की देसी गाय से वैश्विक दुग्धशक्ति तक: परंपरा, विज्ञान और सफलता की दास्तान

स्तनधारी
15-07-2025 09:22 AM
जौनपुर की देसी गाय से वैश्विक दुग्धशक्ति तक: परंपरा, विज्ञान और सफलता की दास्तान

भारत के गाँवों और कस्बों में दूध केवल पोषण का माध्यम नहीं, बल्कि एक संस्कृति है। सुबह की चाय से लेकर त्योहारों के पकवानों तक, हर रस्म-रिवाज़ में दूध की अहमियत झलकती है। खासकर उत्तर भारत में यह न सिर्फ स्वाद की पहचान है, बल्कि लाखों किसानों के जीवन का आर्थिक आधार भी है। जब हम कहते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, तो यह सिर्फ आँकड़ों की बात नहीं, एक संघर्ष और समर्पण की कहानी है। इसके पीछे है वैज्ञानिक शोध, पशु संकरण की रणनीति, और सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का सम्मिलित प्रयास। संकर नस्लों की उन्नति और देसी नस्लों के संरक्षण ने मिलकर दुग्ध क्षेत्र में क्रांति ला दी है। दूध अब केवल गाय से नहीं, आधुनिक तकनीकों और नीति निर्धारकों की समझ से भी निकलता है। यह बदलाव न केवल खेतों में, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था और पोषण नीति में भी गूंज रहा है। आइए, इस ‘दूध की क्रांति’ के पीछे की पूरी कहानी को विस्तार से समझते हैं। इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि भारत कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश और इसमें किस तरह से जनसंख्या और व्यावसायिक गाय पालन ने भूमिका निभाई। इसके बाद समझेंगे कि पशु संकरण ने कैसे दुधारू गायों की उत्पादकता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। फिर तुलना करेंगे देसी और संकर गायों की दूध देने की क्षमता की। चौथे भाग में चर्चा होगी राष्ट्रीय गोकुल मिशन की, जो देसी नस्लों के उत्थान का प्रयास है। अंत में जानेंगे भारत में पाली जाने वाली सबसे आम संकर नस्लों और उनकी लोकप्रियता के बारे में।

भारत: दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश कैसे बना?

एफएओस्टैट (FAOSTAT) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत आज पूरी दुनिया में सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला देश बन चुका है। भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में दूध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और लाखों परिवारों के लिए यह आय का प्रमुख साधन है। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई, वैसे-वैसे दूध की मांग भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी। इसके परिणामस्वरूप, पारंपरिक पशुपालन से हटकर व्यावसायिक डेयरी व्यवसाय का चलन शुरू हुआ।

वर्ष 2020-21 के दौरान भारत में रिकॉर्ड 209 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ, जिसमें से अधिकांश गायों द्वारा दिया गया था। यह पहली बार था जब दूध उत्पादन में गायों ने भैंसों को पीछे छोड़ दिया। इस बढ़ोतरी में पशु प्रजनन तकनीकों, सरकारी सहायता और किसानों के बढ़ते निवेश ने भी योगदान दिया। व्यावसायिक स्तर पर गाय पालन अब केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक मुनाफे वाला उद्योग बन गया है। कई राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र, इस विकास के केंद्र बन चुके हैं।
इसके अलावा डेयरी उत्पादों की वैश्विक मांग, सहकारी दुग्ध संघों की मजबूती, और कोल्ड चेन प्रणाली की उपलब्धता ने भी इस क्षेत्र को नई ऊँचाई दी है। अमूल जैसी ब्रांड्स ने किसान से उपभोक्ता तक सीधा संबंध स्थापित कर एक मजबूत बाजार व्यवस्था खड़ी की है। भारत का डेयरी क्षेत्र अब केवल घरेलू जरूरतों तक सीमित नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय निर्यात की ओर भी बढ़ रहा है।

पशु संकरण: दुधारू गायों की उत्पादकता में क्रांतिकारी वृद्धि

पशु संकरण (Crossbreeding) का अर्थ होता है दो अलग-अलग नस्लों के जानवरों का प्रजनन, जिससे नई पीढ़ी में दोनों की अच्छी विशेषताएँ हों। भारत में यह तकनीक विशेष रूप से दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए अपनाई गई है। देसी गायों में जहां रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, वहीं विदेशी नस्लों में दूध देने की क्षमता अधिक होती है। 2012 से 2019 के बीच भारत में संकर गायों की जनसंख्या में लगभग 26% की वृद्धि हुई, और इसके साथ-साथ दूध उत्पादन में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई। आज भारत के कुल दूध उत्पादन का लगभग 31% हिस्सा केवल विदेशी और संकर गायों से आता है, जबकि 2016-17 में यह आँकड़ा 26.5% था। इस तरह पशु संकरण ने न केवल उत्पादकता में वृद्धि की, बल्कि डेयरी किसानों के लिए नए अवसर भी खोल दिए हैं। आधुनिक कृत्रिम गर्भाधान तकनीकों और पशु स्वास्थ्य सेवाओं के चलते संकर नस्लें तेजी से फैल रही हैं। संकरण के माध्यम से पैदा होने वाली संकर गायें जैसे एफ1 पीढ़ी, एक समान रूप से दूध उत्पादन, रोग प्रतिरोध और मौसम सहनशीलता का बेहतरीन संतुलन देती हैं। संकरण कार्यक्रमों को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) का तकनीकी सहयोग प्राप्त है। यही कारण है कि छोटे और सीमांत किसान भी अब आधुनिक डेयरी व्यवसाय में शामिल हो रहे हैं।

देसी बनाम संकरित गायें: दुग्ध उत्पादन में तुलना और अंतर

भारत में दुधारू पशुओं की दो प्रमुख श्रेणियाँ हैं – स्वदेशी (देसी) और संकर/विदेशी नस्लें। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) के आंकड़ों के अनुसार, देश में विदेशी और संकरित गायें कुल मवेशी आबादी का मात्र 20.5% हैं, लेकिन वे कुल दूध उत्पादन में 28% योगदान देती हैं। दूसरी ओर, देसी गायों की आबादी 38% है, लेकिन उनका दूध उत्पादन मात्र 20% के आसपास है। इससे स्पष्ट होता है कि संकर गायों की प्रति गाय दूध उत्पादकता देसी गायों से अधिक है। हालांकि देसी नस्लों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता, जलवायु अनुकूलन और कम लागत पर पालन जैसे गुणों के कारण उनका संरक्षण भी अत्यंत आवश्यक है। आज कई किसान संकर गायों की ओर रुझान कर रहे हैं, जिससे देसी नस्लों की स्थिति कमजोर होती जा रही है। यह चिंता का विषय है जिसे दूर करने के लिए सरकार को संतुलित नीति बनानी होगी। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि देसी नस्लों में मौजूद A2 प्रकार का दूध, पाचन में आसान और अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसके विपरीत, कई संकर नस्लों का दूध A1 प्रकार का होता है, जिसे लेकर विभिन्न शोधों में मिश्रित निष्कर्ष सामने आए हैं। इसलिए देसी नस्लों के संरक्षण के साथ-साथ उनके दुग्ध उत्पादन में सुधार हेतु अनुसंधान और निवेश बढ़ाना जरूरी हो गया है।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन: देसी नस्लों की उत्पादकता बढ़ाने की पहल

भारत सरकार ने देसी गायों की नस्लों को संरक्षित करने और उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए 2014 में ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ शुरू किया। इस योजना के तहत इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF) जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर उच्च गुणवत्ता वाली देसी नस्लों की ब्रीडिंग की जाती है। इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन में मादा के शरीर से अंडाणु निकालकर, शरीर के बाहर शुक्राणु से निषेचन कर पुनः मादा में स्थापित किया जाता है। इस तकनीक के ज़रिए साहीवाल, थारपारकर, रेड सिंधी और गिर जैसी प्रमुख नस्लों में गुणवत्ता सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार किसानों को एक इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन प्रक्रिया पर ₹5000 की सब्सिडी भी दे रही है, जिससे वे इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रोत्साहित हों। यह मिशन देश में दुधारू मवेशियों की आनुवंशिक गुणवत्ता सुधारने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। इस योजना के अंतर्गत गोकुल ग्राम, राष्ट्रीय कामधेनु केंद्र और नस्ल सुधार ट्रैकिंग जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म की भी शुरुआत की गई है। इसके अलावा सरकार द्वारा देसी नस्लों के लिए बीमा सुविधा, पशु स्वास्थ्य शिविर और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य केवल दुग्ध उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि देश की जैव विविधता और ग्रामीण आजीविका को भी सुरक्षित करना है।

भारत में सबसे अधिक पाली जाने वाली संकर नस्लें

भारत में डेयरी उद्योग में दो प्रमुख संकर नस्लें अत्यधिक पाली जाती हैं – जर्सी (Jersey) और होल्स्टाइन फ्रीज़ियन (Holstein Friesian)। कुल संकर गायों में 55% जर्सी और 43% होल्स्टाइन फ्रीज़ियन पाई जाती हैं। इन नस्लों की खास बात यह है कि ये अत्यधिक दूध देती हैं, हालांकि इनका रखरखाव और देखभाल खर्चीला होता है। इसके अलावा भारत में 41 मान्यता प्राप्त स्वदेशी नस्लें भी हैं, जिनमें साहीवाल, गिर, लखीमी जैसी नस्लें किसानों में लोकप्रिय हैं। हालांकि इनकी दूध उत्पादन क्षमता कम है, लेकिन जलवायु सहनशीलता और स्थानीय रोगों से लड़ने की ताकत अधिक है। यह समझना जरूरी है कि भारत के भौगोलिक और पर्यावरणीय विविधता को देखते हुए नस्ल चयन क्षेत्र विशेष के अनुसार किया जाना चाहिए, ताकि अधिकतम लाभ मिल सके। कुछ क्षेत्रों में संकर नस्लें गर्मी और आर्द्रता के अनुकूल नहीं होतीं, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है और उत्पादन घट सकता है। ऐसे में संकरण और देसी नस्लों का संतुलित मिश्रण किसानों के लिए बेहतर विकल्प बन सकता है। वैज्ञानिक अब क्षेत्र आधारित नस्ल चयन पर जोर दे रहे हैं ताकि दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ पशु कल्याण और टिकाऊ खेती सुनिश्चित हो सके।

 

संदर्भ-

https://tinyurl.com/4x8jyzpr 

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