जौनपुर में प्रेम का विज्ञान: जैविक जुड़ाव से संस्कृति तक की यात्रा

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
31-07-2025 09:23 AM
जौनपुर में प्रेम का विज्ञान: जैविक जुड़ाव से संस्कृति तक की यात्रा

जौनपुरवासियों, हमारी तहज़ीब और रिश्तों की गर्माहट सिर्फ ऐतिहासिक इमारतों या शेरवानी के टांकों तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारी जुबान, पारिवारिक परंपराएं और आपसी व्यवहार भी प्रेम की गहराई को दर्शाते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि यह 'प्रेम' केवल एक भाव नहीं, बल्कि विज्ञान और विकास का भी हिस्सा है? जो कुछ हम महसूस करते हैं, माँ का दुलार, साथी का साथ, या किसी के लिए बलिदान की भावना—उसकी जड़ें हमारी जैविक और मनोवैज्ञानिक संरचना में छिपी हैं। इस लेख में हम प्रेम को सिर्फ भावना नहीं, एक विकासशास्त्रीय और सामाजिक व्यवहार के रूप में समझने की कोशिश करेंगे और जानेंगे कि कैसे यह हमारे जीवन और समाज की धुरी बन चुका है।

इस लेख में हम प्रेम के सबसे महत्वपूर्ण और वैज्ञानिक पहलुओं की चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम देखेंगे कि प्रेम की उत्पत्ति कैसे हुई और यह हमारे जैसे स्तनधारी प्राणियों में क्यों विकसित हुआ। फिर हम प्रेम के पीछे छिपे न्यूरोकेमिकल (neurochemical) तंत्र की बात करेंगे, जिसमें ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) और डोपामिन (Dopamine) जैसे रसायन शामिल हैं। इसके बाद हम जानेंगे कि ‘प्रेम’ कैसे विभिन्न घटकों जैसे जुनून, अंतरंगता और प्रतिबद्धता से बनता है। फिर हम कुछ जनजातीय अध्ययन के ज़रिये समझेंगे कि प्रेम की भूमिका प्रजनन और परिवार के निर्माण में कितनी अहम है। अंत में हम भाषा और प्रेम के रिश्ते की भी पड़ताल करेंगे।

स्तनधारी जीवों में प्रेम की उत्पत्ति और विकासवादी भूमिका

प्रेम की जड़ें हमारी जैविक संरचना में इतनी गहराई तक समाई हैं कि यह भावना किसी सांस्कृतिक या साहित्यिक कल्पना से कहीं पहले अस्तित्व में आई। जब लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर स्तनधारी जीव विकसित हुए, तब जीवित रहने की सबसे बड़ी चुनौती थी, अपनी संतान को बचाना, पालना और विकसित करना। यहीं से प्रेम की पहली छवि जन्म लेती है, माँ और संतान के बीच का संबंध। यह भावनात्मक नहीं, बल्कि गहराई से आवश्यक जैविक व्यवहार था। कयेंटाथेरियम (Kayentatherium) नामक प्राचीन जीवाश्म में एक माँ और उसके 38 बच्चों के अवशेष साथ मिले—यह प्रमाण है कि 'देखभाल' कोई मानवीय नैतिकता नहीं, बल्कि विकास की रणनीति थी। इस लगाव ने ही स्तनधारियों को सामाजिकता की ओर धकेला—जहाँ समूह में रहना, एक-दूसरे की चिंता करना और सहयोग करना अधिक सफल रणनीतियाँ बन गईं। इस तरह प्रेम ने केवल दिल को नहीं, समाज, सहयोग और संबंधों की पूरी संस्कृति को आकार दिया।

प्रेमकी न्यूरोकेमिकल प्रणाली और ऑक्सीटोसिन की भूमिका

प्रेम को अक्सर सिर्फ एक भावना कहा जाता है, लेकिन वास्तव में यह हमारे मस्तिष्क की एक जटिल जैव-रासायनिक प्रक्रिया है। जब हम किसी से जुड़ाव महसूस करते हैं, चाहे वह बच्चा हो, जीवनसाथी हो या मित्र, तो हमारे मस्तिष्क में कुछ विशेष रसायनों का प्रवाह शुरू हो जाता है। ऑक्सीटोसिन (oxytocin), जिसे 'लव हार्मोन' (Love Hormone) कहा जाता है, उस समय स्रावित होता है जब हम किसी को छूते हैं, गले लगाते हैं या सहानुभूति जताते हैं। यह हार्मोन हमें सुरक्षित, जुड़ा हुआ और अपनापन भरा महसूस कराता है। वहीं डोपामिन प्रेम को एक तरह का इनाम बना देता हैइससे मिलने वाला सुख अनुभव हमें उस जुड़ाव की ओर बार-बार खींचता है। सेरोटोनिन (Serotonin) हमारे मूड को स्थिर करता है, और वासोप्रेसिन (Vasopressin) दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और विश्वास को बढ़ावा देता है। इन सभी न्यूरोकेमिकल्स की सामूहिक प्रतिक्रिया ही वह है, जिसे हम 'प्रेम' कहते हैं। यह सिद्ध करता है कि प्रेम कोई 'अबूझ' या 'रहस्यमय' चीज नहीं, बल्कि एक गहराई से व्याख्यायित, वैज्ञानिक रूप से मापन योग्य अनुभव है, जो हमारे मस्तिष्क में ही रचा-बसा है।

त्रिकोणीयप्रेम सिद्धांत: अंतरंगता, जुनून और प्रतिबद्धता की भूमिका

प्रेम को समझने के लिए सिर्फ भावना या जैविक रसायन पर्याप्त नहीं हैं—यह एक मनोवैज्ञानिक संरचना भी है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट स्टर्नबर्ग (Robert Sternberg) के अनुसार प्रेम तीन मूलभूत तत्वों से मिलकर बना होता है:

  1. जुनून (Passion) – शारीरिक आकर्षण और तीव्र भावनाएँ,
  2. अंतरंगता (Intimacy) – गहरा भावनात्मक जुड़ाव और साझेदारी,
  3. प्रतिबद्धता (Commitment) – संबंधको बनाए रखने की दीर्घकालिक इच्छा।

एक रिश्ते में केवल जुनून हो तो वह क्षणिक आकर्षण बन जाता है। केवल अंतरंगता हो तो वह मित्रता जैसा हो सकता है। लेकिन जब ये तीनों तत्व संतुलित रूप से एक साथ आते हैं, तब ही वह संबंध 'पूर्ण प्रेम' कहलाता है, जो जीवनभर के लिए गहराई से जुड़े रह सकने की क्षमता रखता है। यह मॉडल (model) हमें यह समझने में मदद करता है कि क्यों कुछ रिश्ते आरंभ में तीव्र होते हैं पर टिकते नहीं, जबकि कुछ धीरे-धीरे परिपक्व होकर अत्यंत सशक्त बन जाते हैं। प्रेम को टिकाऊ और अर्थपूर्ण बनाने के लिए भावनात्मक समझ, शारीरिक लगाव और मानसिक प्रतिबद्धता तीनों की जरूरत होती है।

प्रजनन सफलता और प्रेम के बीच संबंध: हद्ज़ा समुदाय का अध्ययन

विकासवादी मनोविज्ञान के अनुसार, प्रेम केवल भावनाओं का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक प्रजनन रणनीति भी है। अफ्रीका की हद्ज़ा जनजाति पर किए गए एक प्रसिद्ध अध्ययन में यह पाया गया कि जिन जोड़ों के बीच प्रेम, परस्पर सम्मान और सहयोग था, उनकी संतानें अधिक स्वस्थ, सुरक्षित और सामाजिक रूप से सक्षम होती थीं। इस अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि प्रेम—विशेषतः दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और सहानुभूति—मनुष्य को सफल और स्थिर परिवार संरचना में जीने की संभावना प्रदान करता है। यह केवल साथी को पसंद करने की बात नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों को देखभाल, सुरक्षा और सामाजिक कौशल मिल सके। इस तरह प्रेम का विकास न केवल जोड़ों के लिए, बल्कि पूरी पीढ़ियों के स्वास्थ्य और विकास के लिए भी अत्यंत आवश्यक रहा है।

मानव भाषा और प्रेम: संभोग संकेत के रूप में संचार का विकास

भाषा का विकास केवल सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए नहीं हुआ। विकासवादी सिद्धांतों के अनुसार, मानव संचार की प्रारंभिक प्रेरणाओं में साथी को आकर्षित करना और प्रेम व्यक्त करना भी शामिल था। जब कोई गा-गाकर प्रेम प्रकट करता है, शेर-ओ-शायरी के ज़रिए भावनाएँ साझा करता है, या कहानियों में अपने रिश्ते को पिरोता है, तो यह केवल सांस्कृतिक क्रिया नहीं, एक जैविक और सामाजिक उपकरण है।
मानव जाति ने प्रेम को व्यक्त करने के लिए गीत, कविता, गंध, हाव-भाव, और शब्दों का उपयोग किया है। भाषा ने प्रेम को काल और स्थान से परे ले जाकर उसे स्मृति, साहित्य और संगीत में अमर कर दिया।
यह भी दिलचस्प है कि केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो प्रेम को इतनी विविध और गूढ़ भाषा में व्यक्त करता है, यह दर्शाता है कि प्रेम ने हमें न केवल सामाजिक प्राणी बनाया, बल्कि संवेदनशील और सृजनशील भी बनाया है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/mrbhbpva 

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