कैसे हवा में तैरते बैक्टीरिया बारिश, बादलों और मिट्टी की महक को नियंत्रित करते हैं?

बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ, क्रोमिस्टा और शैवाल
29-12-2025 09:30 AM
कैसे हवा में तैरते बैक्टीरिया बारिश, बादलों और मिट्टी की महक को नियंत्रित करते हैं?

जौनपुरवासियों, बारिश का मौसम आपके शहर की मिट्टी, खेतों और वातावरण से एक गहरी जुड़ाव वाली अनुभूति लेकर आता है - वह खास महक, वह ठंडक और वह नई ऊर्जा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बारिश, बादलों और मिट्टी की इस पूरी प्रक्रिया में बैक्टीरिया की एक चौंकाने वाली भूमिका होती है? हमारे ऊपर तैरते बादलों से लेकर नीचे खेतों में मौजूद मिट्टी तक, अनगिनत सूक्ष्मजीव ऐसे अद्भुत वैज्ञानिक कार्य करते रहते हैं जो मौसम को बदलने, बर्फ बनाने और यहां तक कि बारिश की सुगंध पैदा करने में भी शामिल हैं। इस लेख में हम इसी अनदेखी लेकिन रोमांचक जैविक-वातावरणीय दुनिया को समझेंगे।
आज हम जानेंगे कि वायुमंडल में मौजूद बैक्टीरिया कैसे “बायोलॉजिकल आइस न्यूक्लिएटर्स” (Biological Ice Nucleators) बनकर बादलों में बर्फ बनने की शुरुआत करते हैं। फिर, हम न्यूक्लियेशन प्रक्रिया को समझेंगे - यानी बादलों में बर्फ क्रिस्टल (Ice Crystal) कैसे बनते हैं। इसके बाद, हम 1970 के दशक में खोजी गई “जैविक वर्षा” और स्यूडोमोनास सिरिंगे (Pseudomonas syringae) बैक्टीरिया के महत्व को जानेंगे। अंत में, हम यह भी समझेंगे कि ये बैक्टीरिया बारिश चक्र का हिस्सा कैसे बनते हैं, और बारिश के बाद मिट्टी से आने वाली सुगंध ‘पेट्रिकोर’ (Petrichor) का असली वैज्ञानिक कारण क्या है।

वायुमंडल में मौजूद बैक्टीरिया और ‘बायोलॉजिकल आइस न्यूक्लिएटर्स’ की भूमिका
हमारी हवा में अनगिनत प्रकार के सूक्ष्मजीव मौजूद होते हैं, जो अपनी अदृश्य उपस्थिति के बावजूद पृथ्वी के वातावरण पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इनमें से स्यूडोमोनास सिरिंगे जैसे बैक्टीरिया बेहद खास हैं क्योंकि उनकी कोशिका सतह पर ऐसे प्रोटीन पाए जाते हैं, जो जल वाष्प को बहुत कम तापमान पर भी बर्फ में बदलने की क्षमता रखते हैं। इस गुण को बायोलॉजिकल आइस न्यूक्लिएशन कहा जाता है। जब ये बैक्टीरिया बादलों में पहुंचते हैं, तो ये “प्राकृतिक बीज” की तरह व्यवहार करते हैं - पानी के अणु इनसे चिपककर धीरे-धीरे ठोस बर्फ के क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। यह प्रक्रिया बादलों में वर्षा, हिमपात और ओलों के निर्माण का आधार बनती है। इससे पता चलता है कि हवा में तैरते ये सूक्ष्मजीव मौसम की पूरी संरचना में सक्रिय भूमिका निभाते हैं ।

न्यूक्लियेशन प्रक्रिया: बादलों में बर्फ बनने का विज्ञान
बादलों में उपस्थित पानी अक्सर -10°C से भी कम तापमान में द्रव अवस्था में बना रहता है। इस अवस्था को सुपरकूल्ड वॉटर (supercooled water) कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पानी के अणुओं को बर्फ बनाने के लिए एक ठोस सतह की आवश्यकता होती है। जब न्यूक्लियेटर्स - जैसे धूल के कण, समुद्री नमक, परागकण या बैक्टीरिया - बादलों में मौजूद होते हैं, तो वे पानी के अणुओं को संगठित कर क्रिस्टल बनने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। इसे न्यूक्लियेशन कहा जाता है और यह दो प्रकार का होता है - होमोजीनियस (homogeneous) और हेटेरोजीनियस (heterogeneous), जिसमें दूसरा प्रकार (धूल/बैक्टीरिया द्वारा संचालित) अधिक सामान्य है। जैसे-जैसे बर्फ क्रिस्टल बड़े होते जाते हैं, वे पास के पानी को आकर्षित करते हुए भारी बनते जाते हैं। अंततः ये कण वर्षा या हिम के रूप में गिरते हैं। यह सूक्ष्म स्तर पर होने वाली प्रक्रिया वैश्विक मौसम पैटर्न, मानसून की गतिविधियों और जल चक्र को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण आधार है।

1970 के दशक में जैविक वर्षा (Bioprecipitation) की खोज
1970 के दशक में वैज्ञानिक डेविड सैंड्स ने मौसम विज्ञान में एक क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किया कि वर्षा केवल भौतिक प्रक्रियाओं का परिणाम नहीं है, बल्कि इसमें जीवित सूक्ष्मजीव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने पौधों पर पाए जाने वाले स्यूडोमोनास सिरिंगे बैक्टीरिया का अध्ययन करते हुए पाया कि यह बैक्टीरिया अपनी सतह पर आइस-न्यूक्लिएटिंग प्रोटीन्स (Ice-Nucleating Proteins - INPs) के कारण बर्फ बनाने में अत्यधिक दक्ष है। जब यह बैक्टीरिया वायुमंडल में उठकर बादलों तक पहुँचता है, तो यह सुपरकूल्ड वाटर को बर्फ में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाता है। इस खोज से बायोप्रेसिपिटेशन थ्योरी (Bioprecipitation Theory) का जन्म हुआ, जो कहती है कि जैविक कारक बादलों में वर्षा के निर्माण को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। इस सिद्धांत ने विज्ञान के लिए एक बिल्कुल नई दिशा खोली और मौसम विज्ञान, कृषि विज्ञान व पर्यावरण विज्ञान में नई संभावनाएँ पैदा कीं।

बैक्टीरिया कैसे वर्षा चक्र का हिस्सा बनते हैं
पौधों की पत्तियों, फलों और मिट्टी पर कई प्रकार के बैक्टीरिया स्वाभाविक रूप से मौजूद रहते हैं। हवा के तेज़ झोंके, मिट्टी की हलचल, वर्षा की छींटें और पौधों पर होने वाली गतिविधियाँ इन बैक्टीरिया को हवा में भेज देती हैं। एक बार वातावरण में पहुँचने के बाद, ये सूक्ष्मजीव वायु धाराओं के साथ ऊँचाई पर जाकर बादलों तक मिल जाते हैं। वहां वे बर्फ के कण बनने में सहायक होते हैं, जिससे वर्षा शुरू होती है। वर्षा होने पर ये बैक्टीरिया जल बूंदों के साथ वापस धरती पर गिरते हैं, जहाँ से वे फिर से पौधों या मिट्टी में चले जाते हैं। इस तरह वे बार-बार घूमने वाले जैविक वर्षा-चक्र का हिस्सा बन जाते हैं।

बर्फ न्यूक्लिएटिंग बैक्टीरिया का जलवायु, कृषि और ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव
बर्फ बनाने वाले बैक्टीरिया का प्रभाव केवल बादलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पृथ्वी के जलवायु तंत्र पर गहरा असर डाल सकता है। यदि वातावरण में आइस-न्यूक्लिएटिंग बैक्टीरिया (Ice-Nucleating Bacteria) की मात्रा बढ़ती है, तो वर्षा तेजी से या बार-बार हो सकती है, जिससे कृषि पैटर्न बदल सकते हैं। इसके विपरीत, यदि उनका स्तर घटता है, तो कई क्षेत्रों में सूखा या अनियमित वर्षा बढ़ सकती है। ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण तापमान बढ़ने से इन बैक्टीरिया की सक्रियता और वितरण दोनों प्रभावित हो सकते हैं, जिससे भविष्य के मौसम पैटर्न में बड़े बदलाव संभव हैं। कृषि में, ये बैक्टीरिया कुछ फसलों के रोगों का कारण भी बनते हैं - जैसे फ्रॉस्ट चोट (Frost Injury) - क्योंकि उनकी बर्फ बनाने वाली क्षमता पौधों की कोशिकाओं में नुकसान पहुंचा सकती है।

बारिश के बाद आने वाली मिट्टी की सुगंध ‘पेट्रिकोर’ का वैज्ञानिक कारण
बारिश के बाद हवा में फैलने वाली मिट्टी की सुगंध - जिसे पेट्रिकोर कहा जाता है - प्रकृति की सबसे सुखद और अनोखी महक है। यह महक मिट्टी में मौजूद जैविक और रासायनिक यौगिकों के संयोजन से पैदा होती है। सबसे प्रमुख यौगिक जियोस्मिन (Geosmin) है, जिसकी गंध पृथ्वी जैसी मिट्टी की होती है। इसके साथ ही 2-मिथाइलिसोबोर्नियोल (2-methylisoborneol) जैसे अन्य यौगिक भी महक में योगदान देते हैं। जब पहली बारिश की बूंदें मिट्टी से टकराती हैं, तो यह छोटी-छोटी गैस की जेबों (air pockets) को हवा में छोड़ देती हैं, जिनमें ये सुगंधित अणु मौजूद होते हैं। जौनपुर जैसे कृषि प्रधान क्षेत्रों में यह महक और भी अधिक गहरी महसूस होती है, क्योंकि यहाँ की मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। 

एक्टिनोमाइसेट्स बैक्टीरिया और बारिश के बाद की महक का जैविक विज्ञान
मिट्टी में रहने वाले एक्टिनोमाइसेट्स (Actinomycetes) नामक बैक्टीरिया पेट्रिकोर की सुगंध के मुख्य निर्माता हैं। ये बैक्टीरिया धागे जैसे तंतु बनाकर मिट्टी में फैलते हैं और जैविक पदार्थों को विघटित करते हैं। सूखे मौसम में वे बड़ी मात्रा में स्पोर (बीजाणु) बनाते हैं, जो निष्क्रिय अवस्था में मिट्टी में टिके रहते हैं। जैसे ही बारिश होती है, पानी की बूंदें इन सूक्ष्म बीजाणुओं को झकझोरकर हवा में उठा देती हैं। हवा में आते ही ये स्पोर जियोस्मिन जैसे यौगिक छोड़ते हैं, जो पेट्रिकोर की विशिष्ट और दूर तक फैलने वाली महक पैदा करता है। शोध बताते हैं कि कई जानवर, जैसे ऊँट और कुछ कीट, जियोस्मिन की सूक्ष्म मात्रा को भी कई किलोमीटर दूर से पहचान सकते हैं। इस तरह एक्टिनोमाइसेट्स केवल मिट्टी की सेहत ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संकेतों और पारिस्थितिकी तंत्र के संचार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/56xxdm8y 
https://tinyurl.com/yttnacvd 
https://tinyurl.com/4mv359tn 
https://tinyurl.com/4tycjuy8 
https://tinyurl.com/zpzys4sd 
https://tinyurl.com/3ckk6jsr 
https://shorturl.at/NlQWh  

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