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लखनऊवासियों, क्या आपने कभी ठहरकर सोचा है कि जिन बीमारियों से हम आज लगभग सुरक्षित हैं, वे कभी हमारे समाज में भय का सबसे बड़ा कारण थीं? चेचक, खसरा और पोलियो जैसी बीमारियाँ एक समय लाखों जिंदगियाँ निगल चुकी थीं। परिवार टूट जाते थे, मोहल्ले सुनसान हो जाते थे, और लोग अपनों को खोने के डर में जीते थे। लेकिन विज्ञान और मानवता की कोशिशों ने इस डर को कमज़ोर किया। टीकों के विकास ने हमारी ज़िंदगी को नई दिशा दी। एक छोटा-सा टीका, जो कुछ सेकंड में लगाया जाता है, उसने पीढ़ियों को सुरक्षित बना दिया। अब न तो चेचक का डर है और न ही पोलियो से विकलांगता का खतरा। यह केवल विज्ञान की जीत नहीं, बल्कि हर उस माँ-बाप की जीत है जिन्होंने अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य दिया। आज आधुनिक तकनीक ने टीकों को और भी प्रभावी और आसान बना दिया है। mRNA जैसी नई वैक्सीन तकनीक ने कोविड-19 जैसी महामारी के समय पूरी दुनिया को उम्मीद दी। और यही वजह है कि लखनऊ जैसे शहरों में टीकाकरण केवल एक स्वास्थ्य कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक भरोसे का नाम बन गया है। जब परिवार सुबह-सुबह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कतार में लगते हैं, तो यह केवल एक इंजेक्शन लगवाने का इंतज़ार नहीं होता—यह अपने बच्चों और पूरे समाज के लिए सुरक्षित कल की गारंटी होती है।
आज के इस लेख में हम सबसे पहले टीकों के इतिहास और उनकी उत्पत्ति को समझेंगे। फिर जानेंगे कि पारंपरिक तरीक़ों से कैसे शुरुआती टीके बनाए जाते थे। इसके बाद हम आधुनिक टीकों की नई तकनीकों जैसे mRNA और DNA वैक्सीन पर चर्चा करेंगे। आगे हम देखेंगे कि टीकाकरण सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए क्यों ज़रूरी है और यह बीमारियों को फैलने से कैसे रोकता है। अंत में, हम स्वास्थ्य कर्मियों के लिए टीकाकरण की आवश्यकता और इससे जुड़ी चुनौतियों को समझेंगे।
टीकों का इतिहास और उनकी उत्पत्ति
टीकों का इतिहास विज्ञान और मानवता के संघर्ष की गाथा है। करीब 200 साल पहले, 1796 में एडवर्ड जेनर ने चेचक का पहला टीका विकसित किया, जिसने दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया। उस समय चेचक एक घातक बीमारी थी, जो लाखों जानें ले रही थी और समाज में डर का माहौल पैदा करती थी। उससे पहले लोग “वैरियोलेशन” नामक जोखिमपूर्ण विधि अपनाते थे, जिसमें चेचक के घावों से वायरस निकालकर त्वचा में डाला जाता था। यह तरीका कई बार सफल होता था, लेकिन उतना ही खतरनाक भी था क्योंकि इससे बीमारी फैलने का खतरा बना रहता था। जेनर के प्रयोग ने पहली बार मानवता को एक सुरक्षित विकल्प दिया और यह साबित किया कि विज्ञान बीमारियों पर विजय पा सकता है। बाद में, 20वीं सदी में जब वैश्विक टीकाकरण अभियान चलाया गया तो चेचक को 1980 तक पूरी तरह खत्म कर दिया गया। यह मानव इतिहास की पहली बीमारी है जिसे वैक्सीन की मदद से मिटाया गया, और आज यह विज्ञान की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक मानी जाती है।

पारंपरिक टीका निर्माण की विधियाँ
शुरुआती दौर में टीका बनाने की विधियाँ सरल होते हुए भी वैज्ञानिक दृष्टि से गहरी थीं। वैज्ञानिकों ने पाया कि यदि किसी वायरस को कमजोर कर दिया जाए, तो वह बीमारी तो नहीं फैलाएगा लेकिन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सतर्क कर देगा। इसी सिद्धांत पर जीवित और कमज़ोर (attenuated) टीकों का विकास हुआ। उदाहरण के लिए, खसरा और फ्लू जैसे टीके इसी तकनीक से बने। दूसरी विधि थीमृत (inactivated) वायरस या बैक्टीरिया के हिस्सों का उपयोग करना। यह बिल्कुल सुरक्षित था क्योंकि इनमें बीमारी फैलाने की क्षमता नहीं रहती, लेकिन फिर भी यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भविष्य के संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार कर देता। पोलियो और हेपेटाइटिस ए के टीके इसी श्रेणी में आते हैं। इन पारंपरिक तरीकों ने न केवल करोड़ों जिंदगियाँ बचाईं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आधुनिक टीकों के विकास की नींव भी रखी।
आधुनिक टीकों में उभरती तकनीकें
विज्ञान ने समय के साथ टीका निर्माण में क्रांति ला दी है। अब हम केवल कमजोर या मृत वायरस तक सीमित नहीं रहे। जीवित पुनः संयोजक टीके (live recombinant vaccines) एक सुरक्षित वायरस का उपयोग करके शरीर में किसी अन्य संक्रमणकारी एजेंट का प्रोटीन पहुँचाते हैं, जिससे प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अधिक मजबूत बनती है। इसके अलावा डीएनए टीके विकसित किए जा रहे हैं, जिनमें विशेष जीन को सीधे हमारी कोशिकाओं में पहुँचाया जाता है। यह कोशिकाएँ खुद एंटीजन बनाती हैं और शरीर को तैयार करती हैं। हालाँकि यह अभी प्रायोगिक स्तर पर हैं, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि भविष्य में ये मलेरिया जैसी जटिल बीमारियों से बचाव में अहम भूमिका निभाएँगे।
सबसे बड़ी क्रांति आई mRNA वैक्सीन के साथ। कोविड-19 महामारी के समय इन वैक्सीन ने पूरी दुनिया को उम्मीद दी। इनमें किसी भी वायरस का वास्तविक हिस्सा इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि mRNA के जरिए हमारी कोशिकाओं को वायरस जैसा प्रोटीन बनाने का निर्देश दिया जाता है। इससे शरीर बिना संक्रमित हुए सुरक्षा कवच तैयार कर लेता है। यह तकनीक तेज़, सुरक्षित और लचीली है, और आने वाले समय में कई नई बीमारियों के टीके इसी तकनीक से बनाए जाने की संभावना है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य में टीकाकरण का महत्व
टीकाकरण केवल एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सामूहिक सुरक्षा कवच है। जब कोई व्यक्ति टीका लगवाता है तो वह खुद को तो बचाता ही है, साथ ही अपने परिवार और पूरे समाज को भी संक्रमण से सुरक्षित रखता है। इसे ही हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity) कहा जाता है। भारत जैसे विशाल देश में, जहाँ जनसंख्या घनी है, टीकाकरण का महत्व और भी बढ़ जाता है। पोलियो का उन्मूलन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सरकारी अभियानों और जनसहयोग से आज भारत पोलियो-मुक्त है। शहरों में स्वास्थ्य केंद्रों, आंगनबाड़ियों और स्कूलों के सहयोग से छोटे बच्चों को जीवन के शुरुआती वर्षों में ही टीके उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यह न केवल बीमारियों की रोकथाम करता है, बल्कि समाज की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को भी सुनिश्चित करता है क्योंकि स्वस्थ नागरिक ही किसी भी राष्ट्र की असली पूंजी होते हैं।
स्वास्थ्य कर्मियों के लिए टीकाकरण की आवश्यकता
स्वास्थ्य कर्मी समाज की पहली रक्षा पंक्ति होते हैं। वे रोज़ाना रोगियों, संक्रमित सामग्रियों और वातावरण के सीधे संपर्क में आते हैं। यही कारण है कि उनका टीकाकरण बेहद जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization - WHO) और सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (Centers for Disease Control - CDC) की गाइडलाइनों के अनुसार, स्वास्थ्य कर्मियों को हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B), इन्फ्लुएंज़ा (Influenza), टीडैप (Tdap - टेटनस, डिप्थीरिया, पर्टुसिस), एमएमआर (MMR - खसरा, कण्ठमाला, रूबेला), कोविड-19 (COVID-19) और वैरीसेला (Varicella) जैसे टीके लगने चाहिए। यह न केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए आवश्यक है बल्कि मरीजों को भी संक्रमण से बचाता है। सोचिए, अगर स्वास्थ्य कर्मी ही असुरक्षित होंगे तो वे इलाज करने की बजाय संक्रमण फैलाने का खतरा बढ़ा सकते हैं। दुर्भाग्य से भारत जैसे देशों में अब भी कई स्वास्थ्य कर्मियों तक सभी अनुशंसित टीके नहीं पहुँच पा रहे हैं। यह स्थिति उनके लिए भी खतरनाक है और समाज के लिए भी।
टीकाकरण से जुड़ी चुनौतियाँ और समाधान
हालांकि टीकाकरण की उपलब्धियाँ असाधारण रही हैं, फिर भी कई चुनौतियाँ आज भी सामने हैं। विकासशील देशों में सबसे बड़ी समस्या है संसाधनों की कमी और जागरूकता का अभाव। कई ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी लोग टीकों के बारे में गलत धारणाएँ रखते हैं। कुछ लोग इन्हें असुरक्षित मानते हैं या धार्मिक और सामाजिक कारणों से टीका लगवाने से कतराते हैं। इसके अलावा, सीमित स्वास्थ्य ढाँचा और प्रशिक्षित स्टाफ की कमी भी एक बाधा है। इन चुनौतियों का समाधान सामूहिक प्रयास से ही संभव है। सरकार को मजबूत राष्ट्रीय टीकाकरण योजनाएँ लागू करनी होंगी, स्वास्थ्य संस्थाओं को अधिक सुलभ सेवाएँ प्रदान करनी होंगी और सबसे अहम - लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी। स्कूलों, मीडिया और स्थानीय समुदायों को मिलकर यह संदेश फैलाना होगा कि टीका केवल एक सुई नहीं, बल्कि जीवन की सुरक्षा का साधन है। तभी हम सभी के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज का निर्माण कर पाएंगे।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/28wxaq2u
https://tinyurl.com/22go6hkn
https://tinyurl.com/2y8yd9qz
https://tinyurl.com/mfyas9ze