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लखनऊवासियों, शायद आपने कभी अपनी बागवानी या रसोई में यह अद्भुत दृश्य देखा होगा कि स्ट्रॉबेरी (Strawberry) के बीज अपने मूल फल से जुड़े होने के बावजूद अंकुरित होने लगते हैं। कभी-कभी टमाटर की छोटी-छोटी लताएं फल के भीतर से ऊपर और बाहर की ओर बढ़ने लगती हैं, जैसे कि छोटे-छोटे हरे अंकुर फल की सतह पर उभर आए हों। यह दृश्य देखने में जितना चौंकाने वाला लगता है, उतना ही यह प्रकृति की अद्भुत योजना का हिस्सा है। इसे वैज्ञानिक भाषा में विविपैरी (Vivipary) कहा जाता है। पौधों में विविपैरी तब होती है, जब बीज या भ्रूण, अपने मूल पौधे से अलग होने से पहले ही विकसित होने लगता है। यानी, बीज पूरी तरह से फल या पौधे से अलग होने से पहले ही अंकुरित होने लगता है और नए जीवन की शुरुआत कर देता है। यह न केवल पौधों के जीवन चक्र का एक रोचक पहलू है, बल्कि यह नए पौधों को अपने पर्यावरण में तेजी से फैलने और जीवन स्थापित करने का एक अनोखा तरीका भी प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, मैंग्रोव की कुछ प्रजातियों में यह प्रक्रिया अत्यंत प्रभावी रूप से देखी जाती है। इनके बीज अपने मूल पौधे से जुड़े रहते हुए ही अंकुरित होते हैं और जैसे ही उन्हें उपयुक्त स्थान मिलता है, वे तेजी से बढ़कर नए पौधे के रूप में स्थापित हो जाते हैं।
आज हम विस्तार से जानेंगे कि विविपरी कैसे काम करती है और इसके पीछे क्या जैविक कारण होते हैं। हम समझेंगे कि पौधों में हार्मोन (Hormone) कैसे बीज के अंकुरण को नियंत्रित करते हैं और किस तरह मौसम, जलवायु और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ इस प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। इसके बाद, हम विविपरी के तीन मुख्य प्रकार - ट्रू विविपरी (True Vivipary), क्रिप्टोविविपरी (Cryptovivipary) और सूडोविविपरी (Pseudovivipary) - के बारे में विस्तार से जानेंगे और देखेंगे कि यह पौधों की प्रजनन रणनीति और जीवन चक्र में कैसे योगदान देती है। अंत में, हम कुछ आम और दुर्लभ विविपेरस पौधों (Viviparous plants) के उदाहरणों पर चर्चा करेंगे, और समझेंगे कि यह प्रक्रिया लखनऊ जैसे शहरों में बागवानी और जलवायु-अनुकूल खेती में किस तरह मददगार हो सकती है।

विविपैरी क्या है और इसका महत्व
विविपैरी का मूल अर्थ है “जीवित जन्म”, यानी बीज अपने निर्धारित समय से पहले ही अंकुरित होना। यह प्रकृति की एक अद्भुत प्रक्रिया है, जो पौधों के जीवन चक्र में विशेष महत्व रखती है। इसका मतलब है कि पौधे अपने नए जीवन को तभी शुरू कर देते हैं जब वे मूल पौधे से पूरी तरह अलग नहीं हुए होते। आपने शायद अपने बगीचों या रसोई में यह देखा होगा कि स्ट्रॉबेरी के फल में हरे अंकुर लाल सतह से बाहर निकलते हैं या टमाटर की छोटी-छोटी लताएं फल के भीतर से ऊपर की ओर बढ़ने लगती हैं। यही विविपैरी की प्रक्रिया है। विविपैरी पौधों के जीवन चक्र में सिर्फ एक विचित्र घटना नहीं है, बल्कि यह उन्हें अपने पर्यावरण में तेजी से फैलने और नए स्थानों पर जीवन स्थापित करने में मदद करती है। उदाहरण के लिए मैंग्रोव (mangrove) प्रजातियाँ, जो तटीय और दलदली क्षेत्रों में उगती हैं, अपने बीजों को मूल पौधे से जुड़े रहने के दौरान अंकुरित कर देती हैं। सीमित जल क्षेत्र या तालाबों में भी विविपैरस पौधों की समझ किसानों को जलवायु अनुकूल खेती, जल प्रबंधन और पौधों की तेज़ी से वृद्धि में मदद कर सकती है। यह प्रक्रिया बागवानी और कृषि के लिए भी उपयोगी साबित हो सकती है।
विविपैरी की जैविक प्रक्रिया और कारण
पौधों में विविपैरी की प्रक्रिया जैविक रूप से हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती है। अधिकांश बीज ऐसे हार्मोन का उत्पादन करते हैं, जो उनके अंकुरित होने की प्रक्रिया को रोकता है और उन्हें सुप्त अवस्था में बनाए रखता है। जब फल या मूल पौधा समय से पहले मर जाता है, या बीज किसी पशु आहार के माध्यम से मुक्त हो जाते हैं, तो हार्मोन का प्रभाव समाप्त हो जाता है। इसके बाद उपयुक्त परिस्थितियों में बीज अंकुरित होकर नया जीवन शुरू कर देता है। कुछ पौधों में यह हार्मोन कम मात्रा में होता है, जिससे अंकुरण जल्दी शुरू हो जाता है। उदाहरण के लिए मैंग्रोव प्रजातियाँ दलदली और ज्वारीय क्षेत्रों में अधिक प्रभावी ढंग से प्रजनन करती हैं। इनके अंकुरित बीज तुरंत पानी में गिरकर जड़ बनाना शुरू कर देते हैं, जिससे नए पौधे का जीवन सुरक्षित रहता है। इसके अलावा, मौसम, जलवायु, मिट्टी की नमी, तापमान और अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियाँ भी विविपैरी की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। इन कारकों को ध्यान में रखकर किसान बेहतर समय पर पौधारोपण और जल प्रबंधन कर सकते हैं।

विविपैरी के मुख्य प्रकार
विविपैरी को तीन प्रमुख प्रकारों में बाँटा गया है, जो पौधों के प्रजनन रणनीति और उनके वातावरण के अनुकूलन को दर्शाते हैं:
विविपैरस पौधों के उदाहरण
विविपैरी केवल दुर्लभ पौधों तक सीमित नहीं है। कई पौधों में यह प्रक्रिया देखी जा सकती है:
इन पौधों की विशेषता है कि उनके अंकुरित बीज या बल्बिल अपने नए स्थान पर जल्दी और सुरक्षित रूप से स्थापित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया से पौधों की प्रजनन सफलता और जीवित रहने की संभावना बढ़ती है।

विविपैरी का पर्यावरण और प्रजनन पर प्रभाव
विविपैरी न केवल पौधों के जीवन चक्र को तेज़ करती है, बल्कि उन्हें पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित होने में भी मदद करती है। बीज जल्दी अंकुरित होकर नए स्थान पर जड़ पकड़ लेते हैं। यह प्रक्रिया जलवायु, जलस्तर और ज्वारीय धाराओं के अनुसार फैलाव को नियंत्रित करती है। इस प्रक्रिया को समझकर किसान बेहतर पौधारोपण, जल प्रबंधन और बागवानी कर सकते हैं। विविपैरी पौधों की प्रजनन रणनीति को मजबूत बनाती है और उन्हें प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरणीय परिवर्तन के खिलाफ अधिक सक्षम बनाती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/yc5t3sw8
https://tinyurl.com/yfyj7fym
https://tinyurl.com/f37myhf7
https://tinyurl.com/3rvbhmmk
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