लखनऊवासियो, क्या आपने कभी ठहरकर यह महसूस किया है कि हमारे आस-पास के रंग और रोशनी किस तरह हमारे मन, मूड और जीवन की लय को प्रभावित करते हैं? “नवाबों का शहर” लखनऊ न केवल अपनी नफ़ासत और तहज़ीब के लिए जाना जाता है, बल्कि उसकी गलियों, हवेलियों और घरों की सजावट में एक अनोखी कलात्मक चमक बसी है। यहाँ की दीवारों पर सजे रंग, झरोखों से छनकर आती धूप, और शाम को जगमगाती रोशनियाँ - ये सब मिलकर शहर की रूह को ज़िंदा रखते हैं। लखनऊ की यही खूबी है कि यहाँ सौंदर्य सिर्फ़ दिखावे में नहीं, बल्कि संवेदना में बसता है। आज जब आधुनिक इंटीरियर डिज़ाइन (Interior Design), रंगों के मनोविज्ञान और वैज्ञानिक सोच का संगम हो रहा है, तब लखनऊ की परंपरा और सौंदर्यबोध इस विषय को और भी अर्थपूर्ण बना देते हैं। सूरज की सुनहरी किरणों से लेकर घर की दीवारों के हल्के या गहरे रंग तक, हर रंग और हर रोशनी हमारे भावनात्मक संतुलन, मानसिक शांति और जीवन की दिशा को आकार देती है।
आज हम जानेंगे कि कैसे सूर्य और उसकी रोशनी हमारे जीवन और भावनाओं को प्रभावित करती है, और क्यों रंगों का मनोविज्ञान हमारे व्यवहार और सोच में गहराई से जुड़ा हुआ है। इसके बाद हम समझेंगे कि क्रोमोथेरेपी (Chroma therapy) यानी रंग चिकित्सा कैसे हमारे शरीर और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है। फिर बात करेंगे कि इंटीरियर डिज़ाइन में रंगों और रोशनी का संतुलन घर के वातावरण को कैसे बदल देता है। अंत में, हम कोविड-19 (COVID-19) के संदर्भ में प्रकाश के वैज्ञानिक महत्व और आधुनिक तकनीक में रंगों की भूमिका पर भी चर्चा करेंगे।

सूर्य, प्रकाश और जीवन पर उसका प्रभाव
क्या आपने कभी सोचा है कि सूर्य जो हमसे लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है, वह हमारी ज़िंदगी के हर छोटे-बड़े पहलू को कैसे प्रभावित करता है? सूरज की रोशनी के बिना जीवन की कल्पना ही असंभव है - न पौधे उगते, न हवा में ऑक्सीजन (oxygen) होती और न ही हमारी दुनिया इतनी रंगीन दिखती। प्रकाश, वास्तव में ऊर्जा का वह रूप है, जो पृथ्वी के हर जीव में जीवन का संचार करता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के ज़रिए पौधे सूर्य की रोशनी को ऊर्जा में बदलते हैं और इसी से पूरे पर्यावरण की खाद्य श्रृंखला चलती है। परंतु इसका असर सिर्फ़ प्रकृति तक सीमित नहीं - मनुष्य के शरीर और मन पर भी प्रकाश गहराई से असर डालता है। जब सूरज की पहली किरण हमारे शरीर पर पड़ती है, तो विटामिन डी का निर्माण होता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है और मूड को स्थिर रखता है। यही कारण है कि जो लोग सुबह की धूप में नियमित रूप से बैठते हैं, उनमें अवसाद की संभावना कम देखी गई है। प्राकृतिक प्रकाश हमें केवल ऊर्जा ही नहीं देता, बल्कि भावनात्मक संतुलन भी बनाए रखता है। सूर्योदय की कोमल रोशनी से लेकर सूर्यास्त की सुनहरी आभा तक, हर रंग और छाया हमारे मनोभावों को दिशा देती है। यही कारण है कि वास्तुशास्त्र और आधुनिक आर्किटेक्चर दोनों में प्राकृतिक प्रकाश को घर के डिज़ाइन का केंद्र माना जाता है।

रंगों और मनोविज्ञान का संबंध
रंग केवल देखने की वस्तु नहीं हैं, वे हमारी सोच और भावनाओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यह सुनने में भले ही साधारण लगे, लेकिन रंग हमारे मूड, व्यवहार और यहां तक कि निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, लाल रंग ऊर्जा और जुनून का प्रतीक है, जबकि नीला रंग मन को शांत करता है और आत्मविश्वास बढ़ाता है। यही वजह है कि अस्पतालों की दीवारें अक्सर हल्के हरे या नीले रंग में रंगी होती हैं - ताकि मरीजों को मानसिक शांति मिले। वहीं, स्कूलों और ऑफिसों में पीले और नारंगी रंग का उपयोग रचनात्मकता और सक्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है। रंगों की यह मनोवैज्ञानिक शक्ति आज “कलर साइकोलॉजी” (Color Psychology) नामक एक विस्तृत क्षेत्र बन चुकी है, जिसे कलाकारों, डिजाइनरों और मनोवैज्ञानिकों ने गहराई से समझा है। रंग हमारे मस्तिष्क के उन हिस्सों को सक्रिय करते हैं जो भावनाओं और यादों से जुड़े होते हैं। इसलिए जब आप किसी कमरे में प्रवेश करते हैं, तो वहां का रंग संयोजन तुरंत आपके मूड को प्रभावित करता है - यही कारण है कि इंटीरियर डिजाइन में रंग चयन को केवल सुंदरता नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक संतुलन का माध्यम माना जाता है।

क्रोमोथेरेपी (Color Therapy) और स्वास्थ्य पर रंगों का प्रभाव
रंगों की चिकित्सा, या क्रोमोथेरेपी, कोई नया विचार नहीं है - यह प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक विज्ञान तक, स्वास्थ्य और उपचार की एक महत्वपूर्ण विधा रही है। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक रंग की अपनी ऊर्जा तरंग होती है जो हमारे शरीर की विशिष्ट ग्रंथियों और अंगों पर प्रभाव डालती है। 1876 में वैज्ञानिक ऑगस्ट प्लीसोंटन (Augustus Pleasonton) ने “द इन्फ़्लुएंस ऑफ़ द ब्लू रे ऑफ़ द सनलाइट ऐंड द ब्लू कलर ऑफ़ द स्काइ” (The Influence of the Blue Ray of the Sunlight and the Blue Color of the Sky) प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने बताया कि नीली रोशनी न केवल पौधों और जानवरों के विकास में सहायक होती है, बल्कि यह मानव शरीर में भी शांति और स्थिरता लाती है।
क्रोमोथेरेपी में रंगों का चयन बहुत सोच-समझकर किया जाता है —
आजकल कई स्पा, वेलनेस सेंटर (Wellness Center) और यहां तक कि अस्पताल भी कलर थेरेपी लाइट्स का उपयोग करते हैं, ताकि मरीजों की मानसिक स्थिति और उपचार की गति में सुधार हो सके।

रंग और रोशनी का इंटीरियर डिज़ाइन में महत्व
इंटीरियर डिज़ाइन केवल फर्नीचर या सजावट का नाम नहीं, बल्कि एक ऐसी कला है जो “महसूस करने” से जुड़ी होती है - और इसका केंद्र है रंग और रोशनी का संतुलन। गहरे रंग जैसे नेवी ब्लू या मरून कमरे को छोटा और घना महसूस कराते हैं, जबकि हल्के रंग जैसे सफेद, बेज़ या हल्का ग्रे कमरे को खुला और विशाल दिखाते हैं। इसलिए छोटे कमरों में हल्के रंगों और अधिक रोशनी का संयोजन एक संतुलित अनुभव देता है। प्रकाश व्यवस्था को भी “मूड डिजाइनिंग” (Mood Designing) का हिस्सा माना जाता है। जैसे —
प्राकृतिक रोशनी और कृत्रिम रोशनी के मिश्रण से एक घर न केवल सुंदर दिखता है, बल्कि उसमें रहने वालों का मन भी प्रसन्न रहता है। घर की दीवारों, फर्नीचर और रोशनी के रंगों का सही संयोजन हमारे मूड और ऊर्जा दोनों को सकारात्मक बनाता है।
कोविड-19 महामारी के संदर्भ में प्रकाश का वैज्ञानिक महत्व
कोविड-19 महामारी ने हमें यह सिखाया कि रोशनी केवल देखने का माध्यम नहीं, बल्कि सुरक्षा और स्वास्थ्य का भी साधन बन सकती है। वैज्ञानिक अध्ययनों ने यह साबित किया कि पराबैंगनी (UV) किरणें वायरस और बैक्टीरिया को निष्क्रिय कर सकती हैं। यूवी किरणों की तरंग दैर्ध्य 100 से 400 नैनोमीटर (nanometer) के बीच होती है - यह दृश्य प्रकाश के वायलेट भाग से परे होती है और मानव आंखों से दिखाई नहीं देती। वायुमंडल की ओज़ोन परत 300 नैनोमीटर से नीचे की किरणों को पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकती है, जिससे जीवन सुरक्षित रहता है। कोविड-19 के दौरान, कई अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में यूवी लाइट्स का उपयोग सतहों को कीटाणुरहित करने के लिए किया गया। हालांकि इसका उपयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि अत्यधिक यूवी एक्सपोज़र त्वचा और आंखों के लिए हानिकारक हो सकता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए, तो यह उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि प्रकाश केवल सौंदर्य का साधन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य रक्षा का भी एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

प्रकाश और रंगों की वैज्ञानिक समझ: एक आधुनिक दृष्टिकोण
प्रकाश वास्तव में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (Electromagnetic Radiation) का एक रूप है - उसी परिवार का हिस्सा जिसमें रेडियो तरंगें, एक्स-रे और माइक्रोवेव्स (Microwaves) शामिल हैं। दृश्य प्रकाश स्पेक्ट्रम (spectrum) में लाल से लेकर बैंगनी तक के रंग आते हैं, जिनकी तरंग दैर्ध्य लगभग 380 से 740 नैनोमीटर होती है। मानव आंख केवल इस सीमित दायरे के प्रकाश को देख पाती है, परंतु इसके परे की तरंगें भी हमारे पर्यावरण पर असर डालती हैं। आज विज्ञान ने प्रकाश और रंगों की इस समझ को तकनीक में बदल दिया है —
संदर्भ-
https://bit.ly/3nrQoQf
https://bit.ly/3IaeRS6
https://bit.ly/3rmUUAv
https://bit.ly/3nSXbmn
https://bit.ly/3tzkfdu
https://tinyurl.com/5c4f6tnk
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