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मेरठवासियों, शहर की तेज़ी से बढ़ती आबादी, नौकरीपेशा जीवनशैली और रोज़मर्रा के संघर्षों के बीच, एक ऐसा बदलाव दस्तक दे रहा है जो न केवल यात्रा को आसान बनाएगा बल्कि आपके जीवन की रफ्तार को भी बदल देगा — मेरठ मेट्रो (Metro) और रैपिड रेल (Rapid Rail) परियोजनाएं। दशकों तक दिल्ली और एनसीआर (NCR) की दूरी को रोज़ तय करने वाले हजारों मेरठवासियों के लिए अब राहत की उम्मीद बनकर यह परियोजनाएं सामने आई हैं। ट्रैफिक जाम (Traffic Jam), समय की बर्बादी और असुविधाजनक सफर को पीछे छोड़, मेरठ एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ रहा है जहाँ स्मार्ट (smart), सुरक्षित और तेज़ यात्रा संभव होगी।
इस लेख में हम जानेंगे कि मेरठ में मेट्रो और रैपिड रेल परियोजनाओं की वर्तमान स्थिति क्या है और यह कितनी दूर तक पहुँच चुकी हैं। साथ ही हम यह भी समझेंगे कि दिल्ली-एनसीआर आने-जाने वाले यात्रियों के लिए यह परियोजनाएं कितनी उपयोगी होंगी और कैसे यह प्रदूषण और यातायात की समस्याओं को कम करने में मदद करेंगी। इसके अतिरिक्त, मेरठ मेट्रो और रैपिड रेल के रोजगार और शहर की आंतरिक गतिशीलता पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी विचार करेंगे। अंत में, हम इन परियोजनाओं से जुड़ी सामाजिक, पर्यावरणीय और तकनीकी चुनौतियों पर भी एक समग्र दृष्टिकोण डालेंगे।
मेरठ में मेट्रो व रैपिड रेल परियोजनाओं की पृष्ठभूमि और निर्माण स्थिति
मेरठ में मेट्रो और रैपिड रेल दोनों ही परियोजनाएं उत्तर प्रदेश की शहरी परिवहन नीति के तहत विकसित की जा रही हैं। मेट्रो परियोजना को सबसे पहले जून 2015 में RITES द्वारा व्यवहार्यता अध्ययन के बाद प्रस्तावित किया गया था। बाद में इसे दिल्ली–गाज़ियाबाद–मेरठ रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) के साथ जोड़ा गया। यह परियोजना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (NCRTC) के अंतर्गत चल रही है और इसका पहला चरण 2025 तक पूरा होने की संभावना है। यह रैपिड रेल कॉरिडोर (Corridor) लगभग 82 किलोमीटर लंबा होगा जिसमें मेरठ शहर के लिए 22 किलोमीटर का अलग मेट्रो कॉरिडोर भी शामिल है। इससे दिल्ली से मेरठ की दूरी मात्र 55 मिनट में पूरी हो सकेगी। यह प्रणाली आधुनिक तकनीकों से लैस है, जैसे एयरोडायनामिक कोच (Aerodynamic Coach), टाइम टेबल (Time Table) आधारित संचालन और ग्रीन बिल्डिंग स्टेशन (Green Building Station)। निर्माण कार्य तेजी से प्रगति पर है और मेरठ शहर के अलग-अलग हिस्सों में स्टेशन, पिलर (pillar) और ट्रैक (track) का ढांचा तैयार किया जा रहा है।
दिल्ली-NCR में कार्यरत मेरठवासियों के लिए परिवहन विकल्प और समय की बचत
हर दिन मेरठ से दिल्ली, नोएडा और गुड़गांव की ओर काम के लिए जाने वाले हजारों लोग समय, धन और ऊर्जा की भारी खपत के साथ यात्रा करते हैं। परंपरागत बस, ट्रेन या निजी वाहनों के माध्यम से यह सफर न केवल थकाऊ होता है बल्कि ट्रैफिक जाम, असुरक्षा और मौसम की मार भी झेलनी पड़ती है। रैपिड रेल इन समस्याओं का समाधान बनकर सामने आ रही है। इसका औसत स्पीड 160 किमी/घंटा तक होगा, जिससे मेरठ से दिल्ली की दूरी 1 घंटे से भी कम समय में तय हो सकेगी। यह न केवल समय की बचत करेगा बल्कि शारीरिक और मानसिक तनाव को भी कम करेगा। इस सुविधा के माध्यम से शहर के युवा पेशेवरों और छात्रों को अब पलायन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। वे मेरठ में रहकर ही दिल्ली स्तर के अवसरों का लाभ उठा सकेंगे। एक तरह से यह परियोजना मेरठवासियों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने का एक मजबूत आधार बन रही है।
मेट्रो और रैपिड रेल द्वारा शहर में ट्रैफिक व प्रदूषण नियंत्रण में योगदान
सड़क पर बढ़ती गाड़ियों की संख्या, ट्रैफिक जाम और बढ़ता प्रदूषण मेरठ जैसे शहरों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन चुका है। मेट्रो और रैपिड रेल एक पर्यावरण–अनुकूल समाधान प्रदान करती हैं। इससे निजी वाहनों पर निर्भरता कम होगी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट (public transport) की ओर रुझान बढ़ेगा। मेट्रो रेल विद्युत से संचालित होती है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों (greenhouse gases) का उत्सर्जन न्यूनतम होता है। इसके अलावा, भीड़-भाड़ वाले घंटों में यात्रियों को भीड़ से बचने और तेज़, सुगम यात्रा का विकल्प मिलता है। शहर की सड़कें खाली होंगी, वायु गुणवत्ता में सुधार होगा और ईंधन की खपत भी घटेगी। शहरी नियोजन और सतत विकास की दृष्टि से यह परियोजनाएं मेरठ को स्मार्ट सिटी (Smart City) की दिशा में आगे ले जा रही हैं।
मेरठ मेट्रो बनाम रैपिड रेल: रोजगार व आंतरिक गतिशीलता पर संभावित प्रभाव
जहाँ मेट्रो परियोजना मेरठ शहर के आंतरिक इलाकों को जोड़ने में सहायक होगी, वहीं रैपिड रेल क्षेत्रीय कनेक्टिविटी (connectivity) को बढ़ावा देगी। मेट्रो से स्थानीय व्यापार, कॉलेज, अस्पताल और बाजार क्षेत्रों तक पहुंच आसान होगी जिससे छोटे व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी ओर, रैपिड रेल मेरठ और दिल्ली के बीच कार्यरत कर्मचारियों के लिए अधिक लाभकारी होगी। इससे शहरी–ग्रामीण क्षेत्र के बीच आवागमन भी आसान होगा और आवासीय निर्णयों पर भी प्रभाव पड़ेगा, जैसे लोग मेरठ में रहकर भी दिल्ली में काम कर सकेंगे। दोनों परियोजनाएं मिलकर न केवल रोजगार के नए अवसर खोलेंगी, बल्कि रोजगार की संरचना में भी बदलाव लाएंगी — यानी अब मेरठ में ही दिल्ली सरीखे अवसर मिलने लगेंगे।
मेट्रो सिस्टम के सामाजिक, पर्यावरणीय और तकनीकी जोखिम
हालांकि इन परियोजनाओं से अनेक लाभ मिलते हैं, लेकिन इनके साथ कुछ जटिलताएँ और जोखिम भी जुड़े हैं। मेट्रो निर्माण के दौरान बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाते हैं, जिससे शहरी हरियाली को नुकसान होता है। निर्माण कार्य से पैदा होने वाली धूल, शोर और ट्रैफिक में व्यवधान भी नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं। भूमिगत मेट्रो सिस्टम (metro system) की खुदाई से आस-पास की इमारतों में कंपन और संरचनात्मक क्षति की आशंका रहती है। इसके अलावा, कोविड-19 जैसे महामारी के समय में बंद स्थानों में यात्रा संक्रमण का केंद्र बन सकती है। सुरक्षा की दृष्टि से स्टाफ (staff) की कमी और निगरानी की प्रणाली का अभाव अपराध की संभावना को भी बढ़ाता है। इन चुनौतियों का समाधान परियोजना के दीर्घकालिक प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
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