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मेरठ समेत देश के कई शहरों में आवारा मवेशियों की समस्या अब एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक चुनौती बन चुकी है। सड़कों पर बेखौफ घूमते और बीच सड़क बैठने वाले गाय-बैल न केवल यातायात बाधित करते हैं, बल्कि कई बार जानलेवा हादसों का कारण भी बन जाते हैं। यह समस्या केवल शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी किसान इनसे भारी नुकसान झेल रहे हैं। हाल की कुछ दर्दनाक घटनाओं ने इस खतरे को और उजागर कर दिया है, जिससे आम जनता और प्रशासन दोनों की चिंता बढ़ गई है। आवारा मवेशियों की बढ़ती संख्या के पीछे आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक कारणों का जटिल मेल है। खेतों में मशीनीकरण के चलते बैलों की जरूरत कम हो गई है, और जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो उसका पालन-पोषण किसानों के लिए बोझ बन जाता है। गौहत्या पर प्रतिबंध और गो रक्षकों की हिंसा के डर से अनुत्पादक मवेशियों का व्यापार लगभग ठप हो गया है, जिसके चलते इन्हें आवारा छोड़ने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। नतीजतन, ये मवेशी सड़कों और खेतों में पहुंचकर न केवल दुर्घटनाओं और यातायात अवरोध का कारण बनते हैं, बल्कि किसानों की मेहनत से उगाई गई फसलों को भी नष्ट कर देते हैं।
इस लेख में हम सबसे पहले मेरठ में आवारा मवेशियों का बढ़ता खतरा और हालिया घटनाएं समझेंगे, जिससे समस्या की गंभीरता साफ़ होगी। इसके बाद, हम आवारा मवेशियों के कारण और पृष्ठभूमि पर नज़र डालेंगे, जिसमें आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक पहलू शामिल होंगे। फिर, हम देखेंगे कि सड़क दुर्घटनाएं और यातायात अवरोध किस तरह से इन जानवरों के कारण बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही, हम कृषि पर इनके प्रभाव और किसानों की परेशानी का विश्लेषण करेंगे। अंत में, हम कानूनी व सामाजिक पहलू और सरकारी प्रयास व नीतिगत समाधान पर चर्चा करेंगे, जिससे इस बढ़ती समस्या के संभावित हल सामने आ सकें।
मेरठ में आवारा मवेशियों का बढ़ता खतरा - हालिया घटनाएं और मौत के मामले
मेरठ की सड़कों और गलियों में आवारा मवेशियों का खतरा अब एक गंभीर और लगातार बढ़ती हुई समस्या बन गया है। हाल के महीनों में घटी कुछ दर्दनाक घटनाओं ने इस खतरे को और स्पष्ट कर दिया है। मीरापुर गांव में हुई एक घटना में, एक महिला को आवारा सांड ने अचानक हमला कर सींगों से उठा लिया और जमीन पर पटक दिया, जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई और अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। दूसरी घटना में, एक 25 वर्षीय युवक की बाइक एक सांड से टकरा गई, जिसके बाद वह पूरी रात सड़क पर घायल अवस्था में पड़ा रहा, लेकिन समय पर मदद न मिलने से उसकी भी जान चली गई। ये घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि यह समस्या अब केवल असुविधा तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह लोगों की जान लेने वाली त्रासदी का रूप ले चुकी है।
आवारा मवेशियों के कारण और पृष्ठभूमि - आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक कारण
आवारा मवेशियों की समस्या का संबंध कई गहरे और परस्पर जुड़े कारकों से है। आर्थिक दृष्टि से देखें तो, जब गाय दूध देना बंद कर देती है या बैल खेतों में काम करने लायक नहीं रहता, तो उनका पालन-पोषण करना किसानों के लिए भारी आर्थिक बोझ बन जाता है। पहले, ऐसे मवेशियों को बूचड़खानों में बेचकर किसान अपने खर्च का कुछ हिस्सा निकाल लेते थे, लेकिन 2014 के बाद उत्तर प्रदेश सहित देश के 18 राज्यों में गौहत्या पर सख्त प्रतिबंध लगने के कारण यह रास्ता बंद हो गया। सामाजिक और धार्मिक कारण भी इस समस्या को बढ़ाते हैं - गाय को पवित्र मानने के कारण लोग उन्हें मारना तो दूर, कई बार बांधकर रखने में भी लापरवाही बरतते हैं, जिससे वे सड़कों और खेतों में घूमने लगते हैं। मशीनीकरण ने बैलों की खेतों में जरूरत को लगभग खत्म कर दिया है, जिससे इनका आर्थिक महत्व घटा और परित्याग के मामले बढ़े।
सड़क दुर्घटनाएं और यातायात अवरोध – शहरी क्षेत्रों में आवारा जानवरों की समस्या
शहरों में आवारा मवेशियों की मौजूदगी सिर्फ दृश्य प्रदूषण नहीं, बल्कि एक गंभीर यातायात समस्या भी है। ये मवेशी सड़क के बीच, किनारे या डिवाइडर (divider) पर आराम से बैठ जाते हैं। तेज गति से गुजरते वाहनों के कारण मक्खियां और कीड़े अपने आप दूर हो जाते हैं, जिससे इन्हें सड़क पर बैठना और भी आसान और आरामदायक लगता है। यह "आदत" कई बार जानलेवा साबित होती है, क्योंकि ड्राइवर (driver) अचानक सामने आ गए मवेशी को देखकर गाड़ी संभाल नहीं पाते, खासकर रात में जब रोशनी कम होती है। इसके कारण न केवल वाहन चालकों की जान खतरे में पड़ती है, बल्कि आम राहगीरों के लिए भी यह खतरा बना रहता है।
कृषि पर प्रभाव और किसानों की परेशानी - फसलों को होने वाला नुकसान
ग्रामीण इलाकों में, जहां खेती ही किसानों की आजीविका का मुख्य साधन है, आवारा मवेशी एक बड़ी चुनौती बन चुके हैं। ये मवेशी खेतों में घुसकर पूरी फसल चर जाते हैं या रौंद देते हैं, जिससे महीनों की मेहनत बर्बाद हो जाती है। कई बार किसान अपनी फसल बचाने के लिए रातभर खेतों में पहरा देते हैं, जिससे उनका शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति दोनों प्रभावित होती हैं। यह समस्या विशेष रूप से फसल कटाई के समय गंभीर हो जाती है, जब खेतों में पकी हुई फसल मवेशियों के लिए आसान शिकार बन जाती है।
कानूनी और सामाजिक पहलू - गौहत्या पर प्रतिबंध और गो रक्षक मुद्दा
भारत में गाय को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है, जिसके चलते कई राज्यों में गौहत्या पर सख्त प्रतिबंध लागू है। हालांकि, इस कानून ने अनुत्पादक मवेशियों की समस्या को अनजाने में और गंभीर बना दिया है। पहले किसान बूढ़ी गायों को बेच देते थे, जिससे उनकी देखभाल का बोझ कम हो जाता था, लेकिन अब यह विकल्प बंद हो गया है। इसके अलावा, कुछ स्थानों पर गो रक्षक दलों द्वारा हिंसा, उत्पीड़न और लिंचिंग (lynching) की घटनाओं ने पशु व्यापार को लगभग ठप कर दिया है। इससे किसान मजबूरी में अपने मवेशियों को आवारा छोड़ने लगे हैं, जिससे समस्या का दायरा बढ़ता जा रहा है।
सरकारी प्रयास और नीतिगत समाधान - पशु आश्रय और अन्य विकल्प
सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर पशु आश्रय गृह (गौशालाओं) के निर्माण की योजना बनाई है, जहां इन मवेशियों को सुरक्षित रखा जा सके। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक अस्थायी समाधान है, क्योंकि आश्रय गृहों की क्षमता सीमित होती है और उनका रखरखाव भी महंगा है। स्थायी समाधान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर "आवारा पशु बोर्ड" का गठन जरूरी है, जो न केवल इन मवेशियों के पुनर्वास की योजना बनाए, बल्कि किसानों और आम जनता को भी इनके खतरों से बचाने के उपाय करे। इसके साथ ही, प्रजनन नियंत्रण, मवेशियों के लिए चिकित्सा सुविधाएं, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इनके उपयोग के नए तरीके खोजने पर भी जोर देना होगा।
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