मेरठवासियों, हैदरपुर आर्द्रभूमि में प्रवासी पक्षियों की आवास और संरक्षण कहानी

पक्षी
30-10-2025 09:15 AM
मेरठवासियों, हैदरपुर आर्द्रभूमि में प्रवासी पक्षियों की आवास और संरक्षण कहानी

मेरठवासियों, जब ठंडी हवा सुबह की ख़ामोशी को छूती है और सूरज की पहली किरण खेतों को सोने जैसा चमकाने लगती है, क्या आपने कभी आसमान की ओर नज़र उठाकर देखा है? उस नीले विस्तार में कहीं दूर से एक परिंदा उड़ता हुआ आपके शहर की ओर आ रहा होता है। लंबी और थकाऊ यात्रा के बाद ये मेहमान पक्षी जब हैदरपुर वेटलैंड (Haiderpur Wetland) की शांत जलराशियों पर उतरते हैं, तो लगता है जैसे कुदरत ने फिर से सांस ली हो। मेरठ के करीब बसे इस वेटलैंड में हर साल हजारों प्रवासी पक्षी अपनी सुरक्षित जगह तलाशने आते हैं, और साथ ही हमारे जीवन में चहचहाहट, रंग और एक नई ऊर्जा लेकर आते हैं। ये पक्षी सिर्फ़ प्रकृति की खूबसूरत तस्वीर नहीं हैं, बल्कि एक जिंदा, धड़कती हुई दुनिया का हिस्सा हैं, जो हमारी हवा, पानी और मौसम की सेहत से सीधा जुड़ी है। इनका आना इस बात का संकेत है कि हमारे पर्यावरण में अब भी जीवन बचा है, लेकिन साथ ही यह एक सवाल भी खड़ा करता है कि क्या हम इन अतिथियों का स्वागत उसी स्नेह और सुरक्षा से कर पा रहे हैं जिसकी उन्हें ज़रूरत है? अब वक्त आ गया है कि हम इन पंखों वाली आवाज़ों को सिर्फ़ देखकर नहीं, बल्कि समझकर, सहेजकर और बचाकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाएं।
इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे हैदरपुर आर्द्रभूमि हर साल हज़ारों प्रवासी पक्षियों की शरणस्थली बनती है और वहाँ की जैव विविधता क्यों विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण मानी जाती है। हम यह भी समझेंगे कि जल स्तर में गिरावट और दलदल के सूखने जैसी समस्याएँ इस तंत्र को कैसे प्रभावित कर रही हैं। साथ ही, खेती, भूमि स्वामित्व और स्थानीय समुदाय की भूमिका पर भी बात होगी। अंत में हम संरक्षण प्रयासों और भारत में पक्षियों की घटती संख्या को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में समझेंगे।

पक्षियों की जैव विविधता और प्रवासी पक्षियों का वार्षिक चक्र
हैदरपुर वेटलैंड केवल पानी और पेड़ों का क्षेत्र नहीं, बल्कि यह एक जीवित दस्तावेज़ है, जहाँ हर साल हजारों पंखों की सरसराहट इतिहास रचती है। नवंबर की ठंड के साथ ही यहां पक्षियों का आगमन शुरू हो जाता है। मध्य एशिया और यूरोप से हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके ये प्रवासी पक्षी मेरठ और बिजनौर के बीच स्थित इस शांत आर्द्रभूमि को अपना अस्थायी घर बना लेते हैं। यह केवल एक जैविक घटना नहीं, बल्कि प्रकृति के विश्वास और अनुकूलन की अद्भुत मिसाल है। यहाँ 300 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं, जिनमें से कई अत्यंत दुर्लभ और संकटग्रस्त हैं। ग्रेलैग गीज़ (Greylag Geese), बार-हेडेड गीज़ (Bar-Headed Geese), स्टेपी ईगल (Steppe Eagle), इंडियन स्कीमर (Indian Skimmer), ब्लैक-बेलीड टर्न (Black-bellied Tern) जैसे पक्षी न केवल पक्षी प्रेमियों के लिए सौंदर्य का स्रोत हैं, बल्कि पारिस्थितिकी के लिए संतुलनकारी भूमिका निभाते हैं। हर वर्ष करीब 25,000 जलपक्षी यहाँ अंडे देते हैं, प्रजनन करते हैं और फिर मार्च में लौट जाते हैं। यह आव्रजन चक्र हमारे लिए चेतावनी भी है - कि यदि हम इनका स्वागत करने में विफल रहे, तो ये परिंदे फिर कभी लौटकर नहीं आएँगे।

आर्द्रभूमि में पाए जाने वाले अन्य जीव-जंतु और संकटग्रस्त प्रजातियाँ
पक्षियों के अलावा, हैदरपुर वेटलैंड एक जैविक संग्रहालय के समान है, जहाँ जीवों की विविधता मनुष्य को उसकी पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी का एहसास कराती है। यहाँ केवल पंख वाले मेहमान नहीं, बल्कि ज़मीन, जल और हवा के सभी स्तरों पर जीवन मौजूद है। विशेष रूप से यह आर्द्रभूमि 15 से अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों का आश्रय स्थल बन चुकी है। घड़ियाल (गैवियलिस गैंगेटिकस - Gavialis gangeticus) - जो आज गंभीर रूप से लुप्तप्राय श्रेणी में है - यहाँ के जल निकायों में अब भी अपनी अंतिम पीढ़ी को जन्म देता है। हॉग हिरण (Hog Deer), गोल्डन महासीर (Golden Mahseer), और इंडियन स्कीमर जैसे प्राणी भी इसी वेटलैंड में अपनी अंतिम आशाएँ संजोए हुए हैं। इसके अतिरिक्त, यहाँ 40 से अधिक मछलियाँ, 10+ स्तनधारी, और असंख्य सरीसृप, जैसे भारतीय कोबरा, अजगर, वाइपर (Viper), मॉनिटर लिज़र्ड (Monitor Lizard), और तेंदुआ, भेड़िया, नीलगाय, बारासिंघा, आदि रहते हैं। यह विविधता केवल नंबर नहीं, बल्कि हमारी धरती की सेहत का पैमाना है। हर प्रजाति जो यहाँ बची है, वह हमें यह याद दिलाने आई है कि यदि हमने प्रकृति की आवाज़ को नजरअंदाज किया, तो इन जीवों के साथ-साथ हमारी अपनी विरासत भी मिट जाएगी।

जल स्तर की समस्या और दलदल के सूखने का संकट
साल दर साल, जल संकट की गंभीरता केवल शहरी नलों तक सीमित नहीं रही - अब यह वेटलैंड की रगों तक पहुँच चुकी है। हैदरपुर वेटलैंड, जो पहले पक्षियों और जीवों की चहचहाहट से भरा रहता था, अब धीरे-धीरे सूखते दलदलों और दरकती मिट्टी में तब्दील होता जा रहा है। इस साल, प्रवासी पक्षियों के आगमन से पहले ही अधिकांश जल निकाय सूख चुके हैं, जिससे इनके लिए भोजन और प्रजनन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं रह गई है। इस संकट के पीछे मुख्य कारण है - कृषि भूमि की अत्यधिक जल निकासी, जिससे वेटलैंड का प्राकृतिक चक्र बाधित हो गया है। पिछले वर्ष यहाँ लगभग 20,000 पक्षी दर्ज किए गए थे, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो इस वर्ष उनकी संख्या में गंभीर गिरावट हो सकती है। एकमात्र आशा है - यदि वन विभाग समय रहते मैन्युअल (manual) जल प्रबंधन कर सके और जलधाराओं को पुनर्जीवित कर पाए। लेकिन यह एक अस्थायी समाधान है, जब तक स्थायी जल स्रोतों और भूमि संरक्षण की ठोस योजना नहीं बनाई जाती।

स्थानीय समुदाय, खेती और भूमि स्वामित्व की भूमिका
हैदरपुर वेटलैंड की सबसे जटिल समस्या यह है कि इसका लगभग 99.9% हिस्सा निजी किसानों के स्वामित्व में है। यह वह भूमि है जो कानूनी रूप से खेती के लिए दी गई है, लेकिन पारिस्थितिकी की दृष्टि से यह अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। किसानों का कीटनाशकों का उपयोग और जल निकासी प्रक्रियाएँ वेटलैंड के प्राकृतिक जीवन-चक्र को नष्ट कर रही हैं। प्रशासन द्वारा किसानों को संवेदनशील बनाने और प्राकृतिक कृषि तकनीकों को अपनानेकी अपील (appeal) की गई है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर जागरूकता और सहयोग की कमी अब भी महसूस की जाती है। इस संकट का स्थायी समाधान भूमि अधिग्रहण हो सकता है, जिससे सरकार इस क्षेत्र को संरक्षित श्रेणी में लाकर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत लाए। यह एक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक निर्णय है, लेकिन इसके बिना वेटलैंड को दीर्घकालिक रूप से सुरक्षित नहीं किया जा सकता। समुदाय को साथ जोड़ना इस प्रयास की रीढ़ होगा।

संरक्षण प्रयास और अवैध शिकार पर नियंत्रण की रणनीतियाँ
जहाँ एक ओर प्रकृति मेहमानों को बुला रही है, वहीं दूसरी ओर मानव लोभ और लापरवाही इनकी जान के लिए खतरा बन चुके हैं। प्रवासी पक्षियों और अन्य जीवों के लिए अवैध शिकार एक गंभीर समस्या है। इसे रोकने के लिए वन विभाग ने तटीय क्षेत्रों में मुखबिरों की नियुक्ति की है और जल निकायों की नियमित निगरानी शुरू की है। हैदरपुर वेटलैंड को यूनेस्को की रामसर साइट घोषित किया गया है, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय संरक्षण प्रतिबद्धताओं के अंतर्गत आता है। लेकिन केवल कागज़ी घोषणाएं पर्याप्त नहीं हैं। ज़मीनी स्तर पर स्थानीय वनकर्मियों की संख्या, संसाधन, गश्त वाहन और तकनीकी निगरानी (जैसे ड्रोन (drone) और कैमरे) की कमी आज भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। साथ ही, स्थानीय समुदायों को संरक्षण के साझेदार के रूप में जोड़ना ज़रूरी है, ताकि वे स्वयं इस जैविक धरोहर को बचाने का संकल्प लें, न कि केवल श्रोता बने रहें।

भारत में पक्षी प्रजातियों की गिरती संख्या: राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
यह संकट केवल मेरठ या बिजनौर तक सीमित नहीं है। पूरी दुनिया में पक्षियों की संख्या घट रही है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। स्टेट ऑफ इंडियन बर्ड्स (State of Indian Birds 2023) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 60% पक्षी प्रजातियों की संख्या में दीर्घकालिक गिरावट आ चुकी है। 178 पक्षी प्रजातियों को "उच्च संरक्षण प्राथमिकता" में रखा गया है। सबसे चिंताजनक आँकड़ा यह है कि लंबी दूरी तय करने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में 50% गिरावट देखी गई है। यह केवल पक्षियों की समस्या नहीं, बल्कि एक पारिस्थितिकीय चेतावनी है। पक्षियों की गिरती संख्या का सीधा असर परागण, बीज वितरण, खाद्य श्रृंखला और यहाँ तक कि हमारी कृषि पर पड़ सकता है। यह समय है जब हमें नियमित पक्षी गणना, डेटा निगरानी, और जन भागीदारी के माध्यम से इन प्रजातियों को संरक्षित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। वरना वो दिन दूर नहीं जब बच्चों को प्रवासी पक्षी सिर्फ़ किताबों और डॉक्यूमेंट्री (documentary) में दिखेंगे।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/3j5sze7x 
https://tinyurl.com/2fw4m727  
https://tinyurl.com/27m489ey 
https://tinyurl.com/bde5y57y 
https://tinyurl.com/mdvxbe8w