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हमारा शहर न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह शिक्षा और बौद्धिक परंपरा का भी एक प्रमुख केंद्र रहा है। भारत की महान गणितीय परंपरा, जिसने पूरे विश्व को नई दिशाएँ दिखाई, रामपुर के विद्वानों और शिक्षाविदों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत रही है। भारतीय गणित में कई महान हस्तियों ने अभूतपूर्व योगदान दिया है। आर्यभट्ट ने शून्य की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसने गणित और खगोल विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव लाए। ब्रह्मगुप्त ने ऋणात्मक संख्याओं और अंकगणित के नियमों को स्पष्ट किया, जिससे गणित अधिक व्यवस्थित और सुगम बना। वहीँ भास्कर द्वितीय ने बीजगणित और कलन (Calculus) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए।
आधुनिक काल में, श्रीनिवास रामानुजन ने अपने असाधारण गणितीय सूत्रों और प्रमेयों से पूरी दुनिया को चकित कर दिया। उनके शोध ने संख्या सिद्धांत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। आज के इस लेख में हम भारतीय गणित के इन महान विद्वानों के योगदान को विस्तार से जानेंगे। सबसे पहले, हम आर्यभट्ट और उनके गणितीय नवाचारों पर चर्चा करेंगे। इसके बाद, भास्कर I के योगदान और उनकी गणनाओं को समझेंगे। फिर, हम भास्कर II (भास्कराचार्य) द्वारा विकसित गणितीय सिद्धांतों का अध्ययन करेंगे, जिनमें न्यूटन से पहले ही विकसित की गई कलन अवधारणाएँ शामिल हैं। अंत में, हम श्रीनिवास रामानुजन के अद्भुत गणितीय कार्यों पर चर्चा करेंगे, जिन्होंने संख्या सिद्धांत और उन्नत गणित में क्रांति ला दी।
आइए लेख की शुरुआत वैश्विक गणित में आर्यभट्ट के योगदान को समझने के साथ करते हैं:
आर्यभट्ट (476-550 ई.) प्राचीन भारत के महानतम गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों में से एक थे। उनके कार्यों ने गणित और खगोल विज्ञान में कई क्रांतिकारी बदलाव किए। उनके दो प्रमुख ग्रंथ—"आर्यभटीय" और "आर्य सिद्धांत"—आज भी विद्वानों के लिए बेहद मूल्यवान माने जाते हैं।
गणित और खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट का योगदान
🔹 पाई (𝜋) का सटीक मान: आर्यभट्ट ने गणना करके 𝜋 (π) का मान 62,832/20,000 (= 3.1416) निकाला, जो आधुनिक मान (3.14159) के अत्यंत क़रीब था।
🔹 चंद्रमा और ग्रहों की प्रकृति: उन्होंने सबसे पहले यह स्पष्ट किया कि चंद्रमा और ग्रह स्वयं नहीं चमकते, बल्कि वे सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं।
🔹 दशमलव स्थान प्रणाली और शून्य: आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया और पहली बार शून्य को प्लेसहोल्डर (placeholder) के रूप में उपयोग किया। यह आधुनिक गणितीय गणनाओं की नींव बना।
🔹 त्रिभुज और वृत्त की गणना: उन्होंने त्रिभुज और वृत्त के क्षेत्रफल की गणना के सटीक तरीके बताए, जिससे ज्यामिति की समझ को नई दिशा मिली।
🔹 त्रिकोणमिति में योगदान: उन्होंने पाइथागोरस प्रमेय (Pythagorean theorem) का उपयोग करते हुए ज्या तालिका (Sine Table) तैयार की, जो आज भी गणित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इन सभी के अलावा उन्होंने गणितीय श्रृंखला, द्विघात समीकरण, चक्रवृद्धि ब्याज, अनुपात और रैखिक समीकरणों के हल निकालने की विधियाँ भी विकसित कीं। आर्यभट्ट की खोजों ने गणित और खगोल विज्ञान में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए। उनका योगदान न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में वैज्ञानिकों और गणितज्ञों को प्रेरणा देता है।
आइए अब प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ भास्कर I की उपलब्धियों को समझते हैं:
भास्कर I, 7वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ थे। उनका जन्म लगभग 600 ईस्वी में हुआ था और 680 ईस्वी में उनका निधन हुआ। गणित और खगोल विज्ञान में उनके योगदान के कारण वे प्राचीन भारत के महान गणितज्ञों में गिने जाते हैं। ख़ासतौर पर, वे हिंदू दशमलव प्रणाली के विकास के लिए प्रसिद्ध हैं। भास्कर I, महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के अनुयायी थे। उन्होंने 629 ईस्वी में 'आर्यभटीयभाष्य' नामक एक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा। इसे संस्कृत में लिखा गया सबसे पुराना ज्ञात गणितीय और खगोलीय ग्रंथ माना जाता है। इसके अलावा, उनके अन्य प्रमुख कार्य 'महाभास्करीय' और 'लघुभास्करीय' हैं।
महाभास्करीय में कुल 8 अध्याय हैं, जो गणितीय खगोल विज्ञान पर आधारित हैं। इसमें कोसाइन (cosine) और साइन (sine) (त्रिकोणमिति) के बीच संबंधों को समझाया गया है। इस ग्रंथ में साइन x (sin x) के सन्निकटन सूत्र भी दिए गए हैं। इसके अलावा, यह पुस्तक ग्रहों के देशांतर, ग्रहों की युति (संयोग), सूर्य और चंद्र ग्रहण, चमकते सितारों, चंद्र अर्धचंद्र, और ग्रहों के उदय-अस्त जैसी खगोलीय घटनाओं की भी व्याख्या करती है।
इस ग्रंथ में एक महत्वपूर्ण गणितीय सिद्धांत भी दिया गया है। इसमें >90°, >180° और >270° कोणों के साइन तथा <90° कोण के साइन के बीच संबंध को समझाया गया है। पेल समीकरण (Pell's equation) (8x² + 1 = y²) भी सबसे पहले भास्कर I ने प्रस्तुत किया था।
आइए अब महान भारतीय गणितज्ञ भास्कर द्वितीय के गणितीय योगदान को समझते हैं:
भास्कर द्वितीय का जन्म कर्नाटक के बिज्जादा बीडा (आज का बीजापुर जिला) में हुआ था। उनके पिता महेश्वर एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थे। भास्कराचार्य पहले गणितज्ञ थे, जिन्होंने दशमलव संख्या प्रणाली का पूर्ण और व्यवस्थित उपयोग किया। उज्जैन उस समय भारत का सबसे प्रतिष्ठित गणितीय केंद्र था। भास्कराचार्य वहां की खगोलीय वेधशाला के प्रमुख बने। वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त जैसे महान गणितज्ञ भी उज्जैन में काम कर चुके थे। भास्कर को संख्या प्रणालियों को समझने और समीकरण हल करने में अग्रणी माना जाता है।
भास्कर ने कलन, संख्या प्रणालियों और समीकरणों को हल करने की कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी जैसी खोज करना उस समय दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से में संभव नहीं था। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना "सिद्धांत शिरोमणि" है, जिसे उन्होंने 36 वर्ष की उम्र में 1150 ईस्वी में लिखा। यह ग्रंथ 1450 श्लोकों में विभाजित है और चार खंडों में बंटा हुआ है।
लीलावती – अंकगणित, ज्यामिति और अनिर्धारित समीकरणों पर आधारित ग्रंथ।
बीजगणित – बीजगणित के गहरे सिद्धांतों पर केंद्रित ग्रंथ।
गोलाध्याय – गोलाकार ज्यामिति को समझाने वाला ग्रंथ।
ग्रहगणित – ग्रहों की गति और खगोलशास्त्र से संबंधित अध्ययन ग्रंथ।
भास्कर द्वितीय का योगदान गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य है। उनके सिद्धांत और गणनाएं आज भी प्रासंगिक हैं।
आइए अब आख़िर में भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की विलक्षण प्रतिभा को समझते हैं:
श्रीनिवास रामानुजन (1887-1920) भारत के उन महान गणितज्ञों में से एक थे, जिनकी खोजें आज भी गणित की दुनिया में गूंज रही हैं। उन्होंने संख्या सिद्धांत और गणितीय विश्लेषण में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए! ख़ासतौर पर अनंत श्रृंखला और मॉड्यूलर रूपों में उनके कार्य को बेहद अहम माना जाता है। रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को इरोड, तमिलनाडु में हुआ था। वह एक साधारण परिवार से आते थे, जहाँ उनके पिता एक क्लर्क (clerk) थे और माँ गृहिणी थी। रामानुजन का बचपन से ही गणित के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने औपचारिक शिक्षा तो ज़्यादा नहीं ली, लेकिन उनका गणितीय ज्ञान असाधारण था।
महान गणितीय योगदान: रामानुजन ने अनंत श्रृंखलाओं, निरंतर भिन्नों, संख्या सिद्धांत और गणितीय विश्लेषण में कई महत्वपूर्ण खोजें कीं। ख़ासतौर पर संख्याओं के विभाजन (Partition Theory) में उनकी नई अवधारणाएँ गणित में क्रांतिकारी साबित हुईं। यह गणित की वह शाखा है, जो यह बताती है कि किसी संख्या को कितने तरीकों से छोटे भागों में विभाजित किया जा सकता है। उनका शोध मॉड्यूलर फॉर्म (Modular form) और हाइपरजियोमेट्रिक श्रृंखला (Hypergeometric Series) पर भी प्रभावशाली रहा। ब्रिटिश गणितज्ञ जी. एच. हार्डी (G.H. Hardy) के साथ मिलकर उन्होंने अभाज्य संख्याओं और रीमैन जीटा फंक्शन (Riemann zeta function) पर महत्वपूर्ण कार्य किया। उनकी खोजों में सबसे चर्चित उनकी अनंत पाई श्रृंखला (Infinite Pi Series) है, जिससे π (पाई) की गणना के नए तरीके विकसित हुए।
हालांकि रामानुजन को कभी औपचारिक गणितीय प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी उन्होंने ऐसे प्रमेय (Theorems) खोजे, जो आज भी गणित के शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। उनके नाम से कई गणितीय पहचान दर्ज हैं, और उनकी खोजों ने आधुनिक गणित की नींव को और मज़बूत किया। उनकी खोजों पर आज भी शोध हो रहा है, और उनका योगदान गणित की दुनिया में सदा मशहूऱ रहेगा।
संदर्भ
मुख्य चित्र में आर्यभट्ट, भास्कराचार्य द्वितीय और रामानुजन का स्रोत : wikimedia
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