समय - सीमा 271
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1064
मानव और उनके आविष्कार 823
भूगोल 268
जीव-जंतु 321
मानव ने अपनी दुनिया का विस्तार करने हेतु अंधाधुंध वनों का दोहन किया, जिसने वन्य जीव जन्तुओं की दुनिया उजाड़ कर रख दी है। आज अक्सर हमें वन्य जीवों के मानव पर हमले की घटनाएं सुनाई देती हैं, जिसके लिए स्वयं मानव ही उत्तरदायी है, किंतु इसकी सजा भी वन्य जीवों को ही भुगतनी पड़ती है अर्थात उनका शिकार कर लिया जाता है।
वन पृथ्वी के 31% भूमि क्षेत्र को आवृत्त करते हैं तथा हमारी जीवनदायिनी ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। साथ ही यह वन्य जीव जन्तुओं का घर भी होते हैं लेकिन तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु वनों का कटान किया जा रहा है। जो पर्यावरण के लिए भी विकट समस्या बनती जा रही है। यह लोगों की आजीविका को भी प्रभावित कर रहा है और पौधों और जानवरों की प्रजातियों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए खतरा बन रहा है। हम प्रत्येक वर्ष 18.7 मिलियन एकड़ जंगल खो रहे हैं जो लगभग 27 फुटबॉल के मैदानों के बराबर हैं।
प्राकृतिक और मानव निर्मित कारकों के संयोजन के कारण कुछ जानवर विलुप्त होने की स्थिति में है। जैसे पश्चिम भारतीय समुद्री गाय (वेस्ट इंडियन मैनेट) एक विलुप्तप्रायः जलीय स्तनपायी है जो नदियों, मुहन्नों, नहरों और खारे पानी की खाड़ी में रहता है। मैनेट गर्म पानी में रहते हैं और सर्दियों में गर्म जगहों में स्थानांतरण करते हैं और गर्मियों में वापस उसी जगह लौट आते हैं। लेकिन मानव गतिविधियों के कारण वर्तमान में फ्लोरिडा में 2,000 से कम मैनेट हैं, जिनमें से लगभग हर साल 150 की मृत्यु हो जाती हैं।
तेंदुओं द्वारा मनुष्यों पर हमला करने की भयावह घटनाएं अक्सर सुनने में आती है। ऐसी ही एक भयावह घटना कई वर्षों पहले उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में घटी थी। रुद्रप्रयाग के इस आदमखोर तेंदुए का पहला शिकार बेनजी गांव का था और उसे 1918 में मारा गया था। उसके बाद से वहाँ अगले आठ सालों तक केदारनाथ और बद्रीनाथ के मार्ग पर लोग अकेले नहीं जाते थे। साथ ही ऐसा कहा जाता है कि वहाँ तेंदुए द्वारा शिकार की लालसा में दरवाजे तोड़कर और खिड़कियों से छलांग लगाकर घरों में घुसकर शिकार किया गया। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, तेंदुए ने 125 से अधिक लोगों को मारा था। हालांकि, कॉर्बेट के अनुसार मृत लोगों की संख्या इससे कई अधिक थी।
इस तेँदुए को मारने के लिए गोरखा सैनिकों और ब्रिटिश सैनिकों के समुह द्वारा तेंदुए को मारने की कई कोशिशे की गई थी, लेकिन वे इसमें नाकाम रहे। उच्च शक्ति वाले जाल और जहर के साथ भी तेंदुए को मारने का प्रयास भी विफल रहा था। ब्रिटिश सरकार द्वारा तेंदुए को मारने के लिए पुरस्कार की पेशकश भी की गई थी और कई प्रसिद्ध शिकारियों ने तेंदुए को पकड़ने की कोशिश की लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। 1925 की शरद ऋतु में, जिम कॉर्बेट ने तेंदुए को मारने की जिम्मेदारी ली और दस सप्ताह पश्चात शिकार के विभिन्न प्रयासों के बाद उसने 2 मई 1926 को सफलतापूर्वक तेंदुए को मार डाला।
इस तेंदुए के आदमखोर बनने के पीछे के कारण के बारे में कॉर्बेट ने अपनी पुस्तक में बताया कि तेंदुआ अतिवृद्ध हो चुका था और स्वस्थ अवस्था में था। तेंदुए ने लोगों का शिकार करना आठ साल पहले शुरु किया था, जब वह युवा था, तो संभवत: उसके आदमखोर बनने के पीछे का कारण वृद्धअव्स्था नहीं थी। कॉर्बेट के अनुसार रुद्रप्रयाग में रोग महामारियों के दौरान लोगों द्वारा लोगों के मृत शरीर को बिना दबाए छोड़ दिया जाता था, जो तेंदुए के आदमखोर बनने का मुख्य कारण भी हो सकता है।
उत्तराखण्ड में दुबारा तेंदुओं द्वारा मानव पर हमला करने की घटनाएं सामने आ रहीं है। राजाजी नेशनल पार्क में तेंदुओं ने पिछले एक साल में एक दर्जन से अधिक लोगों को मार डाला। वर्तमान में ये तेंदुएं नरभक्षी होते जा रहे हैं। राजाजी नेशनल पार्क के मोतीचूर रेंज में वन अधिकारियों ने बताया कि 3 मई को उन्हें राजाजी नेशनल पार्क में राष्ट्रीय राजमार्ग 58 के बगल में कुछ धार्मिक पुस्तकों के साथ एक बैग मिला। जांच के बाद उन्होंने पाया कि ये सामान एक यात्री का था, जिसे तेंदुए ने मार दिया था। हालांकि वन विभाग ने केवल पाँच महीनों में इस नरभक्षी तेंदुओं को पकड़ लिया था परंतु दस दिन बाद, एक अन्य तेंदुए ने वन रेंज के अनुभाग अधिकारी आनंद सिंह को मार डाला।
बीते साल में, मोतीचूर रेंज में तेंदुओं ने एक दर्जन से अधिक लोगों को मार डाला है। परंतु वन अधिकारियों का कहना है कि यह आंकड़ा 11 का है जबकि स्थानीय निवासियों का दावा है कि तेंदुए द्वारा 14 लोगों का शिकार किया जा चुका है। रेंज के अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर हमले राजमार्ग के संकरे क्षेत्रों में होते हैं। अक्सर लोग राजमार्ग पर संकीर्ण हिस्सों में फंस जाते हैं, जहां तेंदुए इनका शिकार आसानी से कर लेते हैं। इतना ही नहीं इस क्षेत्र के आस पास के इलाकों में भी तेंदुओं का खौफ फैला हुआ है। मोतीचूर रेंज के बाहर स्थित रायवाला गांव में, हाल ही में शाम को लगभग 4 बजे एक छत पर एक तेंदुए को देखा गया। इस कारण यहां के निवासी शाम को चार या पाँच के बाद अपने बच्चों को बाहर नहीं जाने देते हैं।
तेंदुओं द्वारा इंसानों के बढ़ते शिकार से यह प्रश्न उठता है कि ये तेंदुए आदम खोर क्यों बनते जा रहे हैं? कुछ मान्यताओं के अनुसार जब तेंदुए बूढ़े हो जाते हैं तो वे आसान शिकार खोजते हैं और इंसान उनके लिये एक आसान शिकार है जिस वजह से वे इन पर हमला कर देते हैं। परंतु मैसूर के प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन वैज्ञानिक एम डी मधुसूदन का कहना है कि एक शिकारी परिवेश से बहुत कुछ सीखता है। वो खुद को सुरक्षित रखने और शिकार करने के हर गुण को सीखता है। ज्यादातर शावक अपनी मां से ये गुण सीखते हैं। इसलिए अगर उनकी माँ किसी चोट के कारण या अन्य कारण वश इंसानों पर हमला करना शुरू कर देती है, तो शावक के इंसानों पर हमला करने की संभावना भी बढ़ जाती है।
कुछ वन अधिकारियों का यह भी मानना है की 2013 के बाढ़ के बाद क्षेत्र में आदमखोर तेंदुओं द्वारा इंसानों के शिकार की घटनाएं शुरू हुई। मोतीचूर के पास एक बैराज में जमा गंगा में डूबे लोगों के शवों को खाकर ये तेंदुएं आदमखोर बन गये। शवों के सेवन से, तेंदुएं समझ जाते है कि मानव मांस खाने योग्य है। हालांकि ये पक्के दौर पर नहीं कहा जा सकता है कि तेंदुओं द्वारा इंसानों के शिकार का यही एकमात्र कारण है।
वहीं जब तेंदुए आदमखोर बन जाते हैं तो वे शेरों से भी ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। कई जगहों पर तेंदुओं द्वारा घरों में घुस कर मानव बच्चों और लोगों को ले जाते हुए पाया गया है। इन तेंदुओं की रफ्तार इतनी तेज होती है कि इन्हें पकड़ पाना काफी मुश्किल होता है। ये तेंदुए घर की छत्तों पर से और यहां तक की दरवाजे तोड़ कर लोगों पर हमला करते हैं।
रामपुर के महाराजाओं द्वारा शेरों, बाघों, तेंदुओं और पैंथरों का शिकार करने के लिए रामपुर ग्रेहाउंड को पाला जाता था। यह कुत्ता अपने मुलायम बालों से जाना जाता है। यह अकेले ही गोल्डन जेकल का शिकार करने में सक्षम होता है। रामपुर ग्रेहाउंड उच्च गति पर एक लंबी दूरी तय कर सकता है।
संदर्भ:
1.https://www.worldwildlife.org/threats/deforestation
2.https://nhpbs.org/natureworks/nwep16b.htm
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Leopard_of_Rudraprayag
4.https://www.downtoearth.org.in/news/wildlife-biodiversity/highway-killer-58192
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Rampur_Greyhound
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.