समय के साथ शव-परीक्षण पद्धतियों में क्या परिवर्तन आये?

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
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समय के साथ शव-परीक्षण पद्धतियों में क्या परिवर्तन आये?

आपने कई बार सुना होगा कि “पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम (post mortem) के लिए भेज दिया है।” यह सुनकर आपके मन में भी यह सवाल आता होगा कि, पोस्टमार्टम क्या होता है, इसे क्यों और कैसे किया जाता है? क्या पोस्टमार्टम और ऑटोप्सी (Autopsy) एक ही प्रक्रिया के दो अलग-अलग नाम हैं? चलिए आज इन्हीं सब सवालों के जवाब तलाशते हैं, और सबसे पहले जानते हैं कि: ऑटोप्सी क्या है?
ऑटोप्सी या शव परीक्षण, मृत्यु के कारण का पता लगाने के लिए की गई शरीर की गहन जांच को संदर्भित करता है। यह किसी आपराधिक जांच का हिस्सा हो सकता है या ऐसा किसी मृतक के परिवार के अनुरोध पर किया जा सकता है। 460 ईसा पूर्व से 370 ईसा पूर्व तक माना जाता था, कि बीमारियाँ या मृत्यु केवल दैवीय कारणों से होती है। इससे पहले कोई शव-परीक्षा भी नहीं होती थी। लेकिन इस अवधि के दौरान, एक यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) का मानना था कि “बीमारियाँ अलौकिक कारणों से नहीं बल्कि प्राकृतिक कारकों के कारण होती हैं।” वह अपना हास्य सिद्धांत (humoral theory) लेकर आए, जिसमें कहा गया कि मानव शरीर चार पदार्थों ( काला पित्त, पीला पित्त, कफ और रक्त) से मिलकर बना है। उनके अनुसार कोई भी बीमारी या विकलांगता इन पदार्थों में असंतुलन के कारण ही होती थी। 367 से 282 ईसा पूर्व तक, मिस्र के राजा टॉलेमी प्रथम सोटर (Egyptian king Ptolemy I Soter) ने पैथोलॉजिकल अनैटिमी (pathological anatomy) का समर्थन किया। उन्होंने अलेक्जेंड्रिया (Alexandria) में एक विश्वविद्यालय और पुस्तकालय की स्थापना की और चिकित्सा अधिकारियों के सीखने के उद्देश्यों के लिए शवों को विच्छेदित (dissect) करने की अनुमति दी। इनमें से अधिकांश आरंभिक विच्छेदन फाँसी पर लटकाए गए अपराधियों पर किए गए थे। 335 और 280 ईसा पूर्व के बीच, चाल्सीडॉन (chalcedon) में जन्मे हेरोफिलस (Herophilus), जिन्हें पहला शरीर रचना विज्ञानी माना जाता था, नियमित रूप से अलेक्जेंड्रिया में मनुष्यों और जानवरों का शव परीक्षण करते थी। उन्होंने कई वैज्ञानिक शब्दों का परिचय दिया, जिनका उपयोग आज भी किया जाता है। साथ ही उन्होंने धमनियों और शिराओं तथा मोटर (motor) और संवेदी तंत्रिकाओं के बीच अंतर की खोज की। इस संदर्भ में मोटर प्रणाली, तंत्रिका तंत्र में केंद्रीय और परिधीय संरचनाओं के समूह को कहा गया है। 310 से 250 ईसा पूर्व तक, यूनानी शरीर रचनाविद् और शाही चिकित्सक एरासिस्ट्रेटस (Erasistratus) ने प्रचलित "हास्य" सिद्धांत को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि रोग अंगों में परिवर्तन के कारण होते हैं। हालाँकि उन्होंने रक्त परिसंचरण का गलत वर्णन किया। 44 ईसा पूर्व में, पहली ज्ञात शव परीक्षा, रोमन चिकित्सक एंटिस्टियस (Antistius) द्वारा जूलियस सीज़र (Julius Caesar) पर की गई थी। 131 और 201 ई. के बीच, रोमन और यूनानी चिकित्सक, सर्जन और दार्शनिक गैलेन (Galen) पहले व्यक्ति बने जिन्होंने किसी मरीज के लक्षणों को मृतक के प्रभावित क्षेत्र की जांच के निष्कर्षों से जोड़ा। उन्होंने मानव शरीर के बारे में विस्तार से लिखा। 1091 से 1161 तक, इब्न ज़ुहर (Ibn Zuhr), जिन्हें प्रायोगिक सर्जरी (experimental surgery) के जनक के रूप में जाना जाता है, ने मनुष्यों के ऑपरेशन (operation) करने से पहले जानवरों पर परीक्षण करने की प्रथा की शुरुआत की। उन्होंने ट्रेकियोटॉमी प्रक्रिया (tracheotomy procedure) का आविष्कार किया और ऐसे समय में भी विच्छेदन और शव परीक्षण किए जब वे काफी हद तक वर्जित थे। उनके शव परीक्षण के निष्कर्षों ने उन्हें यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित किया कि स्केबीज़ (scabies) नामक त्वचा रोग, एक परजीवी के कारण होता था, जिसने चार हास्य सिद्धांत को चुनौती दी थी। शव परीक्षण में हृदय या मस्तिष्क जैसे किसी एक अंग की विस्तृत से लेकर व्यापक जांच तक हो सकती है।
शव परीक्षण तीन प्रकार के होते हैं:
पूर्ण: इसमें शरीर की सभी गुहाओं की जांच की जाती है।
सीमित: यह हृदय या मस्तिष्क जैसे एक ही अंग पर केंद्रित होता है।
चयनात्मक: इसमें छाती, पेट और मस्तिष्क की जांच की जाती है।
शव परीक्षण और पोस्टमार्टम में यही एक छोटा अंतर होता है, कि "शव-परीक्षण" मृत्यु के चिकित्सीय कारण पर केंद्रित होता है, जबकि "पोस्ट-मॉर्टम" का दायरा व्यापक होता है जिसमें कानूनी और जांच संबंधी पहलू शामिल हो सकते हैं। सभी पोस्टमॉर्टम में सर्जरी शामिल नहीं होती, और न ही सार्वजनिक रूप से की जाती है। दूसरी ओर, शव परीक्षण में मृत्यु के कारणों का पता लगाने के लिए शरीर और उसके महत्वपूर्ण अंगों को विच्छेदित किया जाता है। शव परीक्षण करने वाले डॉक्टर को मृतक के मेडिकल रिकॉर्ड (medical record) देखने का अधिकार होता है, इसलिए उन्हें मृत्यु का कारण पता चलने की संभावना अधिक होती है। आधुनिक समय में पारंपरिक शव-परीक्षा की जगह पर वर्टोप्सी (Vertopsy) अधिक प्रचलित हो रही है। दरअसल वर्टोप्सी ऐसी तकनीक है, जिसके तहत मृत शरीर की जांच के लिए सीटी स्कैन और एमआरआई (CT scan and MRI) जैसे आधुनिक इमेजिंग उपकरणों (modern imaging equipment) का उपयोग किया जाता है। इसे पारंपरिक शव-परीक्षा से अधिक संवेदनशील, विशिष्ट और सटीक माना जाता है। वर्टोप्सी ऊतकों में मेटाबोलाइट्स (Metabolites) की एकाग्रता को मापने के लिए चुंबकीय अनुनाद स्पेक्ट्रोस्कोपी (Magnetic Resonance Spectroscopy (MRS) का भी उपयोग करती है, जो मृत्यु के समय का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है। वर्चुअल ऑटोप्सी (virtual autopsy) उन संस्कृतियों में विशेष रूप से उपयोगी हैं, जहां आज भी पारंपरिक ऑटोप्सी स्वीकार नहीं की जाती हैं।

संदर्भ
http://tinyurl.com/4ertrxk8
http://tinyurl.com/3xvt529w
http://tinyurl.com/yzhrhyh2
http://tinyurl.com/yps3va4n

चित्र संदर्भ
1. शव-परीक्षण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. डॉ. निकोलस टुल्प के एनाटॉमी पाठ के प्रदर्शन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मिस्र के राजा टॉलेमी प्रथम सोटर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 335 और 280 ईसा पूर्व के बीच, चाल्सीडॉन में जन्मे हेरोफिलस, जिन्हें पहला शरीर रचना विज्ञानी माना जाता था, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. जूलियस सीज़र की मृत्यु को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. पोस्टमार्टम को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
7. वर्टोप्सी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)