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जौनपुरवासियो, छठ पूजा हमारी भारतीय संस्कृति के सबसे प्राचीन और पवित्र पर्वों में से एक है, जिसे आस्था, अनुशासन और प्रकृति के प्रति गहरी कृतज्ञता का अद्भुत संगम माना जाता है। यह पर्व केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के संतुलन, सकारात्मक ऊर्जा और सामूहिक एकता का प्रतीक भी है। सूर्य देव और छठी मैया की उपासना से जुड़ा यह पर्व हमें यह सिखाता है कि मानव जीवन और प्रकृति का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है और हर गतिविधि में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। इसकी उत्पत्ति बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से हुई, लेकिन आज इसकी गूंज पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक सुनाई देती है। छठ व्रत को हिन्दू धर्म में सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है, फिर भी लाखों श्रद्धालु इसे पूरे समर्पण, श्रद्धा और कठोर अनुशासन के साथ निभाते हैं। व्रत के दौरान 36 घंटे तक निर्जल उपवास, नहाय-खाय, खरना और अर्घ्य जैसी अनुष्ठानिक क्रियाएं श्रद्धालुओं के जीवन में धैर्य, संयम और आध्यात्मिक चेतना का संचार करती हैं। यही समर्पण और अनुशासन छठ पूजा को केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर और भारतीय लोकजीवन की अमूल्य पहचान बना देता है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि छठ पूजा की उत्पत्ति और पौराणिक आधार क्या है। फिर हम देखेंगे कि सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का महत्व क्यों विशेष माना जाता है। इसके बाद हम छठ व्रत की शुद्धता और कठोर अनुशासन को समझेंगे, और आगे यह भी जानेंगे कि अर्पण सामग्रियों का प्रतीकवाद और उनका धार्मिक महत्व क्या है। अंत में, हम इस पर्व के सांस्कृतिक वैभव और भारत के प्रमुख स्थलों पर इसके आयोजन पर नज़र डालेंगे।
छठ पूजा की उत्पत्ति और पौराणिक आधार
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीन और अद्वितीय पर्व माना जाता है। इसका उल्लेख वेदों, विशेषकर ऋग्वेद में मिलता है, जहाँ सूर्य उपासना और प्रकृति के प्रति आभार की परंपरा को प्रमुख स्थान दिया गया है। महाभारत के प्रसंग में द्रौपदी द्वारा इस व्रत का पालन करके कठिनाइयों से मुक्ति पाना, और रामायण में भगवान राम व माता सीता द्वारा रावण वध के पश्चात इस व्रत का पालन करने का उल्लेख, इसकी ऐतिहासिक गहराई और आस्था को और मजबूत बनाता है। इसके अलावा, राजा प्रियव्रत और सत्यानुसूया जैसे चरित्रों की कथाएँ भी छठ व्रत के महत्व को दर्शाती हैं। यह पर्व केवल पूजा-पाठ का आयोजन नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों की भारतीय आध्यात्मिकता, लोकजीवन और सांस्कृतिक निरंतरता का जीवंत प्रतीक है।
छठी मैया और सूर्य देव की उपासना
छठ पूजा का सबसे बड़ा आकर्षण सूर्य देव और उनकी सहचरी छठी मैया की पूजा-अर्चना है। छठी मैया को संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। लोकमान्यताओं के अनुसार, वे ब्रह्मा की पुत्री और सूर्य देव की पत्नी हैं। भक्तों का विश्वास है कि सूर्य देव की उपासना से जीवन में ऊर्जा, शक्ति और नवचेतना का संचार होता है। डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि जीवनदायिनी शक्तियों का आभार व्यक्त करने का एक माध्यम भी है, जो हमें याद दिलाता है कि हमारी समृद्धि और अस्तित्व का आधार प्रकृति ही है।
व्रत, शुद्धता और कठोर अनुशासन
छठ पूजा को हिंदू धर्म का सबसे कठिन व्रत कहा जाता है, क्योंकि इसमें अनुशासन, शुद्धता और आत्मसंयम का विशेष महत्व है। यह व्रत चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसमें व्रती पवित्र स्नान के बाद सात्विक भोजन करते हैं। दूसरे दिन खरना का आयोजन होता है, जिसमें गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद बनता है, जिसे परिवार और पड़ोसियों में बांटा जाता है। इसके बाद लगभग 36 घंटे का निर्जल उपवास रखा जाता है, जो शारीरिक सहनशक्ति और आत्मसंयम की परीक्षा लेता है। इस व्रत में लहसुन, प्याज और नमक रहित भोजन बनता है और भोजन पकाने से लेकर भक्ति-संगीत तक हर कार्य में पवित्रता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कठोर अनुशासन न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मनियंत्रण की मिसाल भी है।
छठ पूजा की प्रमुख अर्पण सामग्रियां और प्रतीकवाद
छठ पूजा की सबसे खास बात है कि इसमें प्रयोग होने वाली सभी सामग्री प्रकृति से सीधे जुड़ी होती है और सादगी तथा पवित्रता का संदेश देती है। प्रमुख अर्पण सामग्रियों में ठेकुआ, गन्ना, नारियल, केला, सेब, अमरूद, नींबू, अदरक और हल्दी जैसी वस्तुएँ शामिल होती हैं। ठेकुआ इस पर्व की सबसे प्रिय मिठाई है, जो गेहूँ, गुड़ और घी से बनती है और श्रम व सादगी का प्रतीक है। गन्ना और फल जीवन में मिठास और समृद्धि का संकेत देते हैं। बाँस से बनी सूप या डाला में इन सामग्रियों को सजाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। यह अर्पण न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि हमें प्रकृति से जुड़ने और उसकी देन को स्वीकार करने का संदेश भी देता है।
सांस्कृतिक वैभव और अनुष्ठानिक माहौल
छठ पूजा केवल एक धार्मिक व्रत ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव का भी जीवंत रूप है। घाटों और नदियों के तटों पर हजारों की संख्या में लोग एकत्र होते हैं और भक्ति तथा श्रद्धा का अद्भुत वातावरण निर्मित करते हैं। दीपों की रोशनी, लोकगीतों की गूंज और पारंपरिक वेशभूषा में सजे श्रद्धालु इस पर्व को और भव्य बना देते हैं। महिलाएँ छठ गीत गाती हैं, पुरुष ढोलक और मंजीरे बजाते हैं, और पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। सांझ का अर्घ्य जब नदी के जल में दीपों की लौ के साथ प्रतिबिंबित होता है तो दृश्य अलौकिक और दिव्य प्रतीत होता है। यह पर्व केवल आस्था का नहीं, बल्कि सामूहिकता, एकता और सांस्कृतिक गौरव का भी प्रतीक है।
भारत में छठ पूजा के प्रमुख स्थल
हालाँकि छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का पर्व माना जाता है, लेकिन आज यह पूरे भारत और विदेशों तक फैल चुका है। पटना, वाराणसी, रांची और कोलकाता जैसे शहरों में इसका आयोजन भव्यता के साथ होता है। गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों के घाटों पर लाखों श्रद्धालु एक साथ डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। विदेशों में बसे भारतीय समुदायों ने भी इसे अपने नए परिवेश में जीवित रखा है, जिससे यह पर्व वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति का दूत बन गया है। यह विस्तार दर्शाता है कि छठ पूजा केवल एक क्षेत्रीय परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और कृतज्ञता का सार्वभौमिक संदेश है, जो सीमाओं से परे जाकर लोगों को जोड़ता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/32ytrsfu
https://tinyurl.com/32ytrsfu
https://tinyurl.com/2s6phah7