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खुशबू, जो हमारी इंद्रियों को तुरंत आकर्षित करती है, का मानव इतिहास से गहरा नाता है। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही विभिन्न संस्कृतियों में इत्र का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। आज के आधुनिक बाज़ारों में भी अनगिनत प्रकार के इत्र हमारी पसंद को चुनौती देते हैं। भारत में, जौनपुर विशेष रूप से अपने गुलाब-आधारित इत्र के लिए विश्वभर में जाना जाता है, जहाँ सदियों से इसकी खेती और उत्पादन पारंपरिक रूप से होता आया है।इस लेख में हम जौनपुर के गुलाब की इत्र उद्योग में ऐतिहासिक भूमिका को समझेंगे, जानेंगे कि कैसे यहाँ का गुलाब विश्व प्रसिद्ध है। इसके बाद, हम गुलाब के तेल के निष्कर्षण की जटिल प्रक्रिया और इसके महत्व पर प्रकाश डालेंगे। फिर, हम गुलाब की विभिन्न प्रजातियों और इत्र में उनकी विशिष्ट सुगंधों के बारे में जानेंगे। अंत में, हम भारत के उभरते हुए इत्र बाज़ार में जौनपुर के गुलाब की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं पर विचार करेंगे।
जौनपुर के गुलाब की इत्र उद्योग में ऐतिहासिक भूमिका
जौनपुर सदियों से अपने इत्र उत्पादों के लिए प्रसिद्ध रहा है, और इसका गुलाब-आधारित इत्र दुनिया भर में निर्यात किया जाता है। यहाँ इत्र बनाने के लिए बड़े पैमाने पर गुलाब की खेती की जाती है, और यहाँ उत्पादित गुलाब उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों के साथ-साथ पूरे भारत में भेजे जाते हैं। जौनपुर में देशी और संकर सहित विभिन्न प्रकार के गुलाब उगाए जाते हैं। यह दिलचस्प है कि गुलाब की 100 से अधिक ज्ञात प्रजातियों में से अधिकांश एशिया की मूल निवासी हैं। पुरातात्विक प्रमाण बताते हैं कि गुलाब लाखों वर्षों से मौजूद है, जिसके प्राचीनतम अवशेष लगभग 35 से 32 मिलियन वर्ष पुराने हैं, जो कोलोराडो में पाए गए हैं। कला के क्षेत्र में, एशिया में गुलाब के पत्तों का पहला कलात्मक उपयोग 3000 ईसा पूर्व में देखा गया था। प्राचीन सभ्यताओं जैसे ग्रीक और रोमन में भी गुलाब का महत्वपूर्ण स्थान था, जहाँ इसे सौंदर्य और जुनून का प्रतीक माना जाता था। मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा का गुलाबों से विशेष प्रेम जगजाहिर है। मूल अमेरिकी निवासियों ने भी औषधीय उद्देश्यों के लिए गुलाब के विभिन्न भागों का उपयोग किया।
गुलाब के तेल के निष्कर्षण की जटिल प्रक्रिया और इसके महत्व
गुलाब के इत्र का सबसे महत्वपूर्ण घटक गुलाब का तेल है। इसे प्राप्त करने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल है और इसके लिए भाप आसवन विधि का उपयोग किया जाता है। एक बूंद गुलाब का तेल निकालने के लिए लगभग 60 गुलाबों की आवश्यकता होती है, और लगभग 100 किलो गुलाब की पंखुड़ियों से केवल 28 ग्राम तेल प्राप्त होता है। इस कारण गुलाब का तेल बहुत महंगा होता है। इत्र में गुलाब के तेल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसके लिए मुख्य रूप से दो प्रजातियों के गुलाबों का उपयोग होता है: रोजा डेमसेना (जो भारत में पाई जाती है) और रोजा सेंटीफोलिया। इन प्रजातियों से प्राप्त तेल में बीटा-डेमस्केनोन और बीटा आयनोन जैसे रासायनिक घटक होते हैं, जो इसकी गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। इसके अतिरिक्त, गुलाब में नेरोल, फिनाइल एथिल अल्कोहल, बेंजाइल अल्कोहल और रोज ऑक्साइड जैसे रसायन भी पाए जाते हैं, जो इसकी विशिष्ट और तीव्र सुगंध में योगदान करते हैं। आज जौनपुर गुलाब के तेल और इसके उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार के लिए महत्वपूर्ण है।
गुलाब की विभिन्न प्रजातियों और इत्र में उनकी विशिष्ट सुगंधें
विश्व भर में गुलाब को सुंदरता और सुगंध का प्रतीक माना जाता है। जौनपुर में इत्र बनाने के लिए मुख्य रूप से देशी और संकर नस्लों के गुलाब उगाए जाते हैं। गुलाब की विभिन्न प्रजातियों में अलग-अलग सुगंधें पाई जाती हैं। गहरे रंग के गुलाब, जिनकी पंखुड़ियाँ मोटी और मखमली होती हैं, उनमें सबसे गहरी सुगंध होती है। लाल और गुलाबी गुलाब को गुलाब की "असली" खुशबू के लिए जाना जाता है, जबकि सफेद और पीले रंग के गुलाब में वायलेट, नास्टर्टियम और नींबू जैसी सुगंधें हो सकती हैं। नारंगी गुलाब में अक्सर फल, वायलेट, नास्टर्टियम और लौंग की गंध आती है। गुलाब से न केवल इत्र बल्कि गुलाब का तेल भी बनाया जाता है, जिसे रोज ऑयल के नाम से जाना जाता है। यह तेल एंटीऑक्सीडेंट, जीवाणुरोधी, कसैले, अवसादरोधी और सूजनरोधी गुणों से भरपूर होता है। गुलाब के तेल के दो मुख्य प्रकार हैं: रोज ओटो और रोज एब्सोल्यूट, दोनों ही डेमसेना गुलाब की पंखुड़ियों से प्राप्त होते हैं और इत्र तथा अरोमाथेरेपी में अत्यधिक मूल्यवान हैं। इन्हें हाइड्रो-डिस्टिलेशन और सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन जैसी विभिन्न विधियों से प्राप्त किया जाता है।
नए दौर में जौनपुर के गुलाब की महक: चुनौतियाँ और संभावनाएँ
भारत का इत्र बाजार निश्चित रूप से बढ़ रहा है, और इसमें जौनपुर के गुलाब की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हालाँकि, 1980 के दशक में चंदन के तेल की कमी जैसी चुनौतियों ने इस उद्योग को प्रभावित किया। फिर भी, आज इत्र की बढ़ती मांग को देखते हुए जौनपुर के उद्यमियों के लिए नई उम्मीदें हैं। बुनियादी सुविधाओं और कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार से जौनपुर का इत्र उद्योग एक बार फिर प्रगति कर सकता है। भारत सरकार के कौशल विकास कार्यक्रमों से भी इस क्षेत्र को नई प्रतिभाएं मिल रही हैं। जौनपुर के इत्र उद्योग को अपनी पुरानी पहचान बनाए रखने और भारत के आधुनिक इत्र बाजार में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने के लिए नवाचार और गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा।
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