
समयसीमा 255
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 1003
मानव व उसके आविष्कार 782
भूगोल 254
जीव - जन्तु 294
जौनपुरवासियों, हमारे शहर की पहचान भले ही समतल ज़मीन, खेतों की हरियाली और गोमती नदी की शांति से जुड़ी हो, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे जीवन को आकार देने वाले कई प्राकृतिक संसाधनों की शुरुआत दूर-दराज़ के पर्वतों से होती है? हमारे खेतों तक बहकर आने वाला मीठा पानी, हवा में ठंडक का एहसास, और यहाँ तक कि कुछ मौसमीय बदलाव भी — सब कुछ कहीं न कहीं पर्वतीय क्षेत्रों की देन है। ऐसे ही पर्वतों में एक है काराकोरम पर्वत श्रृंखला, जो हिमालय की सबसे ऊँची और कठोर पर्वतमालाओं में गिनी जाती है। यह श्रृंखला भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाओं तक फैली है, और अपने विस्तार में अफ़ग़ानिस्तान व ताजिकिस्तान को भी समेटे हुए है। जौनपुर से हज़ारों किलोमीटर दूर होने के बावजूद, काराकोरम की बर्फ़ीली चोटियाँ हमारे शहर के मौसम और जलचक्र को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
आज हम जानेंगे कि काराकोरम पर्वतमाला की विस्तार, “काराकोरम विसंगति” के रहस्यों और उसके पीछे के संभावित कारणों आदि को समझेंगे। फिर, हम विश्व के कुछ प्रसिद्ध पर्वतों की विशेषताओं—जैसे माउंट डेनाली, माउंट फ़ूजी, जबल मूसा, एटलस और टेबल माउंटेन—का विश्लेषण करेंगे, ताकि इनकी भौगोलिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता हमारे सामने आए। अंत में हम गहराई से जानेंगे कि पामीर पर्वत और उसका काराकोरम से क्या संबंध है, और क्यों यह क्षेत्र विश्वभर में ‘पर्वतीय अभिसरण का केंद्र’ कहलाता है।
काराकोरम पर्वत श्रृंखला: स्थिति, विस्तार और भौगोलिक महत्त्व
काराकोरम पर्वतमाला हिमालय की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित वह विशाल पर्वत श्रृंखला है जिसे विश्व का “तीसरा ध्रुव” भी कहा जाता है। यह न केवल भूगोल की दृष्टि से, बल्कि रणनीतिक, सांस्कृतिक और जलवायविक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। काराकोरम भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाओं को एक प्राकृतिक दीवार की तरह जोड़ती है, जिससे यह भू-राजनीतिक दृष्टि से भी संवेदनशील बनती है। इसका विस्तार अफ़ग़ानिस्तान और ताजिकिस्तान तक होता है और इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 2,07,000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसे "कृष्णगिरि" भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी काली चट्टानें प्राचीन ज्वालामुखीय संरचनाओं की याद दिलाती हैं। यह पर्वत माला पामीर पठार से जुड़कर और भी अधिक ऊँचाई और विस्तार प्राप्त करती है। औसतन इसकी चौड़ाई 120–140 किलोमीटर तक होती है और अधिकांश चोटियाँ 5,500 मीटर से ऊँची हैं। यहाँ स्थित है के2 (8,611 मीटर), जिसे 'सावाग माउंटेन' भी कहा जाता है क्योंकि इसकी चढ़ाई अत्यंत कठिन और खतरनाक मानी जाती है। यह चोटी विश्व की दूसरी सबसे ऊँची लेकिन तकनीकी रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण मानी जाती है। काराकोरम की चोटियाँ साल भर बर्फ से ढकी रहती हैं और इसके ग्लेशियर भारतीय उपमहाद्वीप की बड़ी नदियों — जैसे सिंधु — का स्रोत बनते हैं। इस प्रकार, जौनपुर जैसे गंगा-घाटी क्षेत्रों की समृद्धि भी इन ऊँचाईयों से निकलने वाली नदियों की देन है। हम भले ही इन पर्वतों से हजारों किलोमीटर दूर हों, परंतु हमारी धरती, हमारी खेती और हमारा मौसम इन्हीं बर्फीले पहाड़ों की छाया में फलते-फूलते हैं।
काराकोरम विसंगति क्या है और इसके संभावित कारण
दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग के कारण पर्वतीय हिमनद तेजी से सिकुड़ रहे हैं — यह विज्ञान की एक सर्वमान्य सच्चाई बन चुकी है। लेकिन इस वैश्विक प्रवृत्ति से विपरीत, काराकोरम क्षेत्र में एक अनोखी भौगोलिक घटना देखी गई है, जिसे वैज्ञानिकों ने “काराकोरम विसंगति” का नाम दिया है। यहाँ के कुछ हिमनद या तो स्थिर हैं या आश्चर्यजनक रूप से विस्तार भी कर रहे हैं। इसका पहला कारण है हिमनदों पर पड़ी मोटे मलबे की परत, जो सूरज की ऊष्मा को बर्फ़ तक नहीं पहुँचने देती। जबकि स्वच्छ बर्फ़ सूर्य की 90% रोशनी परावर्तित करती है और शीघ्र पिघल सकती है, वहीं मलबे से ढकी बर्फ़ सूर्य की गर्मी को अवशोषित होने से रोकती है, जिससे हिमनद अपेक्षाकृत स्थिर बने रहते हैं। दूसरा प्रमुख कारण है पश्चिमी विक्षोभों का प्रभाव। भूमध्यसागर और कैस्पियन सागर से आने वाली ठंडी, आर्द्र हवाएँ इस क्षेत्र में वर्षभर हल्की बर्फ़बारी करती रहती हैं, विशेषकर सर्दियों में। इससे हिमनदों में लगातार नयी बर्फ़ जुड़ती जाती है और पिघलने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। इसके अतिरिक्त, यहाँ की ऊँचाई, तापमान और स्थानीय जलवायु की अनिश्चितता भी इस विसंगति में भूमिका निभाती है। यह विसंगति वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिए वैज्ञानिकों के लिए शोध का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुकी है। यह हमें याद दिलाती है कि पृथ्वी की हर जगह एक-सी प्रतिक्रिया नहीं देती; कभी-कभी प्रकृति अपने ही नियम बदलकर हमें सोचने पर मजबूर कर देती है।
विश्व के कुछ प्रसिद्ध पर्वत और उनकी विशेषताएं
पर्वत पृथ्वी की वह ऊँचाई हैं जहाँ प्रकृति, अध्यात्म, रोमांच और संस्कृति आपस में मिलते हैं। दुनिया भर में कई पर्वत अपनी विशिष्ट भौगोलिक बनावट और ऐतिहासिक या धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध हैं। उदाहरणस्वरूप, माउंट डेनाली (6,190 मीटर), जिसे पहले माउंट मैकिनली कहा जाता था, अमेरिका की सबसे ऊँची चोटी है। यह आर्कटिक के नज़दीक स्थित होने के कारण कठोर जलवायु के लिए जाना जाता है। फिर आता है जबल मूसा, मिस्र का वह पवित्र पर्वत जहाँ बाइबिल के अनुसार पैगंबर मूसा को ईश्वर से दस आज्ञाएँ प्राप्त हुईं — यह धार्मिक तीर्थयात्रियों का प्रमुख स्थल है। अफ्रीका में फैला एटलस पर्वत लगभग 2,500 किलोमीटर लंबा है और इसकी सबसे ऊँची चोटी ट्यूबकल (4,167 मीटर) मोरक्को में स्थित है। यह पर्वतमाला बर्बर संस्कृति की परंपराओं से भरी हुई है। जापान का माउंट फ़ूजी, 3,776 मीटर ऊँचा एक सक्रिय ज्वालामुखी है, जो जापानी कला, कविता और लोककथाओं का अभिन्न हिस्सा है। यह पर्वत अपने सौंदर्य और स्थिर आकार के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है और इसके चारों ओर स्थित ‘फ़ूजी फाइव लेक्स’ पर्यटन और आध्यात्मिक ध्यान केंद्र हैं। अंत में, टेबल माउंटेन — दक्षिण अफ़्रीका का वह पर्वत जिसकी सपाट चोटी इसे विश्व के सबसे अनोखे पर्वतों में शामिल करती है। यह पर्वत जैव विविधता का खजाना है और इसके ऊपर से केप टाउन का नज़ारा देखने लायक होता है। ये सभी पर्वत हमें यह सिखाते हैं कि प्रकृति की हर ऊँचाई अपने साथ ज्ञान, संघर्ष और सौंदर्य की एक नई कहानी लेकर आती है — जैसे जौनपुर की ऐतिहासिकता हमारे गौरव की कहानी कहती है।
पामीर पर्वत: काराकोरम से संबंध और पर्वतीय अभिसरण का वैश्विक केंद्र
पामीर पर्वतों को दुनिया का "पर्वतीय चौराहा" कहा जाता है, क्योंकि यह वह क्षेत्र है जहाँ से एशिया की कई प्रमुख पर्वतमालाएँ — जैसे हिंदू कुश, तियान शान, कालाकुनलुन, सुलेमान और हिमालय — मिलती हैं। यह पर्वतीय अभिसरण ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और चीन की सीमाओं पर फैला हुआ है और लगभग 1,00,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र की ऊँचाइयाँ इतनी अधिक हैं कि यहाँ 1,530 से भी अधिक हिमनद फैले हुए हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 2,361.4 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि विश्व के आठ सबसे लंबे (>50 किमी) हिमनदों में से छह यहीं स्थित हैं — विशेषकर काराकोरम क्षेत्र में। यह क्षेत्र वैज्ञानिकों के लिए जलवायु अध्ययन, ग्लेशियर विज्ञान (Glaciology) और पर्वतीय पारिस्थितिकी के अध्ययन का जीवंत प्रयोगशाला बन चुका है। पामीर और काराकोरम का सीधा संबंध इनकी भूगोलिक स्थिति से जुड़ा है, जिससे यह क्षेत्र एशिया के जलवायु इंजन की तरह कार्य करता है। भारत के मानसून, उत्तर भारत की नदियाँ और यहाँ तक कि जौनपुर की ज़मीन में नमी का बड़ा हिस्सा इसी पर्वतीय संरचना से आता है। इन पर्वतों के बिना हमारी खेती, हमारी नदियाँ और यहाँ तक कि हमारे मौसम की नियमितता की कल्पना अधूरी है। इस प्रकार, पामीर और काराकोरम न केवल भौगोलिक, बल्कि हमारे अस्तित्व के लिए आधारस्तंभ हैं।
संदर्भ-
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.