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जौनपुरवासियो, आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में जहाँ हम दिन भर की थकान और व्यस्तता से घिरे रहते हैं, वहीं स्वास्थ्य को समय देना एक चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे समय में "चलना" — यह सबसे सरल, सुलभ और प्राकृतिक व्यायाम — हमारे लिए वरदान साबित हो सकता है। खासकर जब मधुमेह जैसी बीमारियाँ हमारे समाज में बढ़ रही हैं, तो पैदल चलना और उसकी निगरानी करना और भी ज़रूरी हो जाता है। इसी ज़रूरत को पूरा करने में पैडोमीटर और स्मार्ट फिटनेस डिवाइस हमारी मदद करते हैं, जो हमें हमारे कदमों की सही जानकारी देकर सेहत के प्रति जागरूक बनाते हैं।
इस लेख में हम सबसे पहले यह समझेंगे कि कैसे नियमित रूप से चलना हमारे स्वास्थ्य में सुधार लाता है, विशेषकर मधुमेह जैसी बीमारियों में इसकी भूमिका क्या है। फिर हम जानेंगे कि पैडोमीटर वास्तव में कैसे काम करता है — उसकी यांत्रिक बनावट से लेकर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक रूप तक। इसके बाद हम बात करेंगे स्मार्टफोन और जीपीएस (GPS) जैसी तकनीकों की, जो आज हमारे कदमों की गिनती को बेहद आसान और सटीक बना चुकी हैं। हम पैडोमीटर के इतिहास को भी छुएंगे — लियोनार्डो दा विंची से लेकर आज के फिटबिट जैसे उपकरणों तक की यात्रा। और अंत में, कोविड-19 के बाद भारत में स्मार्टवॉच और फिटनेस डिवाइसेज़ के बढ़ते बाज़ार को देखेंगे, जो अब हर स्वास्थ्य-प्रेमी की ज़रूरत बन चुके हैं।

दैनिक चलने का स्वास्थ्य पर प्रभाव और मधुमेह में इसकी भूमिका
चलना एक बेहद सरल लेकिन अत्यंत प्रभावी व्यायाम है, जिसका हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है। वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का मानना है कि दिन में कम से कम 30 मिनट तेज़ गति से चलना हृदय, फेफड़ों, पाचन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। विशेष रूप से मधुमेह के रोगियों के लिए यह जीवनशैली में बदलाव लाने का सबसे आसान उपाय माना जाता है।
2016–18 के दौरान कोयंबटूर में किए गए एक अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि नियमित चलने से पूर्व-मधुमेह और मधुमेह दोनों ही स्थितियों में सुधार आता है। अध्ययन ने यह भी दर्शाया कि चलना दुनियाभर में बढ़ती चिरकालिक बीमारियों को कम करने की क्षमता रखता है। जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच सीमित हो सकती है, वहाँ चलना एक सस्ता, सरल और कारगर समाधान है। यह न केवल शरीर को चुस्त बनाता है बल्कि मानसिक तनाव को भी कम करता है। बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक, सभी के लिए यह व्यायाम उपयुक्त है — और यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है।
पैडोमीटर कैसे काम करता है: यांत्रिक से लेकर इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया तक
पैडोमीटर (Pedometer) एक ऐसा यंत्र है जो हमारे द्वारा उठाए गए कदमों की गिनती करता है। इसकी कार्यप्रणाली सरल लगती है, लेकिन इसके पीछे की तकनीक काफ़ी दिलचस्प है। पारंपरिक पैडोमीटर में एक छोटा पेंडुलम या लेड गेंद होती थी, जो चलने पर हिलती थी और प्रत्येक झटका एक कदम के रूप में गिना जाता था।
हालाँकि इस यांत्रिक प्रणाली में कई त्रुटियाँ होती थीं, विशेषकर ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते समय। आधुनिक पैडोमीटर अब इलेक्ट्रॉनिक हो चुके हैं, जिनमें एक पतली स्प्रिंग, इलेक्ट्रॉनिक सर्किट और सेंसर होते हैं। जब व्यक्ति कदम बढ़ाता है, तो यह स्प्रिंग संचालित हथौड़ा सर्किट को पूरा करता है, जिससे विद्युत प्रवाह होता है और वह कदम दर्ज हो जाता है। इस तकनीक से कदमों की गणना ज़्यादा सटीक हो गई है।
आजकल पहनने योग्य डिवाइसेज़ (devices) में यह तकनीक और अधिक परिष्कृत हो गई है, जो हर एक कदम को मापने में सक्षम हैं — चाहे आप कहीं भी हों, जौनपुर की गलियों में टहल रहे हों या अपने घर की छत पर।

स्मार्टफोन और जीपीएस (GPS) आधारित कदम मापने की आधुनिक तकनीकें
जब हमारे पास स्मार्टफोन (Smartphone) है, तो कदम गिनने के लिए अलग डिवाइस की ज़रूरत भी नहीं। आधुनिक स्मार्टफोन में इनबिल्ट एक्सेलेरोमीटर होते हैं, जो हमारे पैरों की गति का सूक्ष्मता से विश्लेषण करके हर कदम को गिन सकते हैं। कई पेडोमीटर ऐप्स अब बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे गूगल फिट (Google Fit), सैमसंग हेल्थ (Samsung Health), आदि, जो आपकी गतिविधि को ट्रैक कर सकते हैं। इनमें से कुछ ऐप्स जीपीएस का भी प्रयोग करते हैं, जिससे आपकी कुल दूरी और रूट को भी ट्रैक किया जा सकता है।
जीपीएस आधारित ट्रैकिंग में उपग्रह संकेतों की मदद से दूरी मापी जाती है, और यह उन गतिविधियों के लिए उपयोगी होती है जहाँ पैरों की गति से ज़्यादा स्थान परिवर्तन महत्वपूर्ण होता है, जैसे दौड़ना या साइकिलिंग। जौनपुर जैसे शहर में, जहाँ लोग सुबह टहलने के लिए घाटों, बागों और सड़कों का इस्तेमाल करते हैं, इन तकनीकों से जुड़े ऐप्स (apps) उन्हें न केवल जागरूक बनाते हैं बल्कि नियमितता बनाए रखने में भी सहायक होते हैं।
पेडोमीटर का इतिहास: लियोनार्डो दा विंची (Leonardo Da Vinci) से लेकर फिटबिट तक
पैडोमीटर कोई नया आविष्कार नहीं है। इसकी कल्पना 15वीं शताब्दी में लियोनार्डो दा विंची ने की थी, जिन्होंने रोमन सैनिकों की दूरी मापने के लिए इस यंत्र की योजना बनाई थी। इसके बाद स्विस घड़ी निर्माताओं ने स्व-घुमावदार घड़ियों से प्रेरित होकर कदम गिनने की तकनीक विकसित की।
थॉमस जेफरसन के बारे में भी यह कहा जाता है कि उन्होंने फ्रांसीसी डिज़ाइन को आधार बनाकर पहला आधुनिक पैडोमीटर तैयार किया।
समय के साथ यह यंत्र यांत्रिक से इलेक्ट्रॉनिक होता चला गया, और आज हम फिटबिट, गार्मिन, अमेज़फिट जैसी कंपनियों के पहनने योग्य उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं, जो न केवल कदमों को गिनते हैं, बल्कि हृदय गति, नींद की गुणवत्ता और कैलोरी बर्न तक की जानकारी भी देते हैं।
यह तकनीकी यात्रा दर्शाती है कि कैसे एक साधारण विचार आधुनिक स्वास्थ्य की दिशा में क्रांतिकारी साबित हो सकता है — और अब जौनपुर के लोग भी इस डिजिटल यात्रा का हिस्सा बन चुके हैं।

कोविड-19 के बाद भारत में स्मार्टवॉच और फिटनेस डिवाइस का बढ़ता बाज़ार
कोविड-19 महामारी ने न केवल हमारी जीवनशैली बदल दी, बल्कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को भी बहुत अधिक बढ़ाया। ऐसे समय में जब जिम और सार्वजनिक स्थान बंद थे, तब लोगों ने घर पर फिट रहने के लिए फिटनेस डिवाइस और ऐप्स का सहारा लिया।
आईडीसी (IDC)की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2023 की तीसरी तिमाही में 23.8 मिलियन पहनने योग्य डिवाइस बिके। इनमें स्मार्टवॉच सबसे अधिक लोकप्रिय रही, जो अब सिर्फ समय दिखाने का यंत्र नहीं रह गई, बल्कि एक स्वास्थ्य साथी बन गई है। कान के उपकरण (Earwear), रिस्टबैंड (wristband) और ऐप्स ने भी बाज़ार में अपनी जगह बना ली है। जौनपुर जैसे शहरों में भी युवाओं और मध्यम वर्ग में फिटनेस डिवाइसेज़ (fitness device) की मांग तेजी से बढ़ी है। लोग अब अपने स्वास्थ्य डेटा को ट्रैक करने में रुचि ले रहे हैं और यह बदलाव भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नई क्रांति को दर्शाता है।
संदर्भ-