| Post Viewership from Post Date to 04- Sep-2025 (31st) Day | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2244 | 110 | 2 | 2356 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
जौनपुरवासियो, अगर आप भी अपनी सुबह की चाय चहचहाहट से सजाना चाहते हैं या अपने बगीचे को रंग-बिरंगी, सुरीली चिरैयों से भर देना चाहते हैं, तो आज का लेख आपके लिए ही है। गोधूलि की शांत लहरों के बीच, जब जौनपुर की हवाएं धीमे-धीमे बहती हैं, तो उस समय इन हल्के हरे और चमकीले वार्बलर (Warbler) पक्षियों की मधुर आवाज़ें एक अलग ही सुकून देती हैं। ये चटक चिरैयाँ हमारे बगीचों में कीट नियंत्रण से लेकर वातावरण को सुंदर बनाने तक, कई तरह से लाभकारी हैं। लेकिन इन्हें अपने बगीचे में आमंत्रित करने के लिए आपको कुछ खास बातें जाननी होंगी।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि वार्बलर पक्षियों की पहचान कैसे की जाती है और ये सामान्य चिड़ियों से कैसे अलग होते हैं। फिर हम देखेंगे कि हरी गवैया और हल्की हरी गवैया के बीच क्या अंतर है और ये कैसे भारत में लंबी दूरी तय कर के हमारे पास आती हैं। इसके बाद, हम विस्तार से जानेंगे कि आप अपने बगीचे को इन चटक चिरैयों के लिए कैसे आकर्षक बना सकते हैं – भोजन, पानी, आश्रय और घोंसले की सुविधाओं द्वारा। हम कुछ अतिरिक्त तकनीकों पर भी चर्चा करेंगे जो वार्बलरों को सुरक्षित और नियमित आगंतुक बनाने में सहायक हैं। और अंत में, हम इस बात पर विचार करेंगे कि कैसे बढ़ती गर्मी और जल संकट इन पक्षियों के अस्तित्व के लिए खतरा बनते जा रहे हैं, और हमें क्या करना चाहिए।
भारतीय वार्बलर पक्षियों की पहचान और उनकी मुख्य विशेषताएँ
भारत में पाए जाने वाले वार्बलर, जिन्हें स्थानीय बोली में 'चटक चिरैयां' कहा जाता है, देखने में भले ही छोटे हों, लेकिन इनके रंग, चहचहाहट और व्यवहार में गजब की विविधता पाई जाती है। इनकी पहचान तीन आगे और एक पीछे की ओर मुड़ी हुई उंगलियों से होती है, जो इन्हें पेड़ों की शाखाओं पर सहजता से बैठने की सुविधा देती है। इनके गीत कई बार त्रिसिलाबिक (trisyllabic) या द्विसिलाबिक (bisyllabic) होते हैं, यानी तीन या दो अक्षरों वाले स्वर जिनका उपयोग ये अपने क्षेत्र की रक्षा और घुसपैठियों को चेतावनी देने में करते हैं। वार्बलर मुख्यतः कीटभक्षी होते हैं, और प्राकृतिक कीट नियंत्रण में इनकी भूमिका बगीचों और खेतों के लिए अत्यंत लाभदायक है।
प्रजनन काल के दौरान नर और मादा एक साथ रहते हैं और मिलकर बच्चों का पालन करते हैं, लेकिन जैसे ही प्रवास का समय आता है, वे अपने-अपने इलाकों में बंट जाते हैं और आक्रामक प्रादेशिक व्यवहार अपनाते हैं। जौनपुर जैसे हरियाली और जल स्रोतों से युक्त क्षेत्रों में, यदि कोई व्यक्ति इन्हें आकर्षित करना चाहता है, तो उनके व्यवहार और जीवनशैली की सूक्ष्म समझ आवश्यक हो जाती है। यह न केवल प्रकृति प्रेम को प्रोत्साहित करता है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने की दिशा में भी एक प्रेरक कदम है।

हरी गवैया और हल्की हरी गवैया: पहचान में सूक्ष्म अंतर और प्रवासी व्यवहार
भारत में पाए जाने वाले वार्बलर पक्षियों में हरी गवैया (Phylloscopus nitidus) और हल्की हरी गवैया (Phylloscopus trochiloides) दो प्रमुख प्रजातियाँ हैं जिन्हें पहचानना शुरुआती पक्षी प्रेमियों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हरी गवैया आम तौर पर अधिक चमकीले हरे रंग की होती है, जिसमें दो पंख पट्टियाँ होती हैं और निचला हिस्सा पीले रंग का दिखाई देता है। दूसरी ओर, हल्की हरी गवैया का रंग थोड़ा फीका, भूरे-हरे मिश्रण वाला होता है और इसमें केवल एक पंख पट्टी पाई जाती है। ये दोनों ही प्रजातियाँ ठंडी ऋतु में अपने प्रजनन स्थलों – जैसे मध्य एशिया या हिमालय की तलहटी – से निकलकर भारत के मैदानी और दक्षिणी क्षेत्रों की ओर प्रवास करती हैं। जौनपुर जैसे क्षेत्रों में, जहां सर्दियों के दौरान जलवायु सुखद और कीटों की भरमार रहती है, ये पक्षी अनुकूल आवास पाकर रुकते हैं। ऐसे में इनके रंगों की सूक्ष्मता, आवाजों की लय और उनके फुर्तीले व्यवहार को पहचान कर किसी भी प्रकृति प्रेमी के लिए वार्बलर पहचानने का रोमांच बेहद आनंददायक बन जाता है।
भारत में वार्बलर पक्षियों का वार्षिक प्रवासन: हजारों किलोमीटर की उड़ान यात्रा
वार्बलर जैसे छोटे पक्षियों की वार्षिक प्रवास यात्रा, वास्तव में प्रकृति के अद्भुत चमत्कारों में से एक है। जैसे ही हिमालय या काकेशस जैसे क्षेत्रों में सर्दियाँ दस्तक देती हैं, ये पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्रा पर निकल पड़ते हैं, उत्तर से दक्षिण भारत तक। अगस्त-सितंबर में दक्षिण की ओर उड़ान और अप्रैल-मई में वापसी की यह यात्रा ना केवल इनकी प्रवासी प्रवृत्ति को दर्शाती है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि भारत जैव विविधता के लिए कितना समृद्ध स्थल है। जौनपुर जैसे इलाकों में, जहाँ जलवायु संतुलित होती है और शहरीकरण की गति अपेक्षाकृत धीमी है, वहां वार्बलर रुकने और विश्राम के लिए उपयुक्त स्थान पा सकते हैं। ऐसे में यदि आप सुबह-सुबह अपने बगीचे में किसी चहचहाहट को सुनें, तो हो सकता है कि वह किसी प्रवासी वार्बलर की ही आवाज़ हो, एक ऐसा अनुभव जिसे सहेज कर रखा जा सकता है। इस प्रवासी व्यवहार को समझकर हम बर्डवॉचिंग (birdwatching) को बढ़ावा दे सकते हैं और जौनपुर को एक ‘बर्ड-फ्रेंडली ज़ोन’ (Bird Friendly Zone) के रूप में विकसित कर सकते हैं।

बगीचे में वार्बलर को आकर्षित करने के चार स्तंभ: भोजन, पानी, आश्रय और घोंसले
वार्बलर को अपने बगीचे में बुलाने के लिए आपको उनके चार मुख्य ज़रूरतों – भोजन, पानी, आश्रय और घोंसले – को पूरा करना होगा।
भोजन: वार्बलर मुख्यतः कीटभक्षी होते हैं, अतः बगीचे में कीटनाशकों का प्रयोग सीमित करना ज़रूरी है ताकि कीटों की उपलब्धता बनी रहे। साथ ही, बेरी झाड़ियाँ, छोटे फल देने वाले पौधे जैसे अमरूद, जामुन या करोंदा लगाए जा सकते हैं, जो प्राकृतिक रूप से इन्हें आकर्षित करते हैं।
पानी: चलते हुए पानी का स्रोत – जैसे फव्वारा (fountain), बबलर (bubbler) या ड्रिपर (dripper) – उन्हें अधिक आकर्षित करता है। पानी की हलचल और आवाज़ इनके लिए सुरक्षा और ताजगी का प्रतीक होती है।
आश्रय: घनी झाड़ियों, पत्तेदार पौधों और बहुस्तरीय पौध व्यवस्था से उन्हें वह सुरक्षित स्थान मिलता है जहाँ वे आराम कर सकते हैं।
घोंसले: वार्बलर अधिकतर झाड़ियों या पत्तेदार पेड़ों में घोंसला बनाते हैं। उन्हें घोंसले के लिए काई, सूखी घास, पत्ते और टहनियाँ जैसी सामग्री उपलब्ध कराकर आप उन्हें प्रजनन के लिए प्रेरित कर सकते हैं। जौनपुर के परंपरागत पौधे जैसे अमलतास, गुलर या बेल भी इन उद्देश्यों के लिए आदर्श हैं।

वार्बलर को आकर्षित करने की अतिरिक्त तकनीकें और व्यवहार संबंधी समझ
वार्बलर स्वभाव से अत्यंत शर्मीले और सतर्क पक्षी होते हैं। इसलिए यदि आपने उनके लिए एक सुंदर बगीचा तैयार कर भी लिया है, तो उनकी उपस्थिति का एहसास तुरंत नहीं हो सकता। बिल्लियों और अन्य शिकारियों से बगीचे को सुरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि ये पक्षी ज़रा सी हलचल से भी दूर हो जाते हैं। बगीचे में शांत कोने बनाना, जहाँ मानवीय गतिविधियाँ कम हों, उनकी वापसी की संभावना को बढ़ा देता है। इसके अलावा, यदि आप जौनपुर में रहते हैं, तो आपको यह जानना चाहिए कि यहाँ कौन-कौन सी वार्बलर प्रजातियाँ सामान्यतः देखी जाती हैं, और उनके आवास की ज़रूरतें क्या हैं। धैर्य इस प्रक्रिया की सबसे बड़ी कुंजी है। कई बार ये पक्षी बगीचे में होते हैं लेकिन इतनी शांति से रहते हैं कि हमें उनकी उपस्थिति का पता ही नहीं चलता। यदि हम लगातार अपने बगीचे को प्राकृतिक, शांत और सुरक्षित बनाए रखें, तो ये खूबसूरत चिरैयां जल्द ही हमारे नज़दीक अपना घर बना लेंगी और उनके साथ एक जुड़ाव जो सिर्फ आंखों से नहीं, दिल से महसूस होता है।
संदर्भ-