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जौनपुर के नागरिकों, क्या आपने कभी इस पर विचार किया है कि हम, जो आज स्मार्टफोन (smartphone) और इंटरनेट (internet) की दुनिया में जी रहे हैं, हमारी सभ्यता की जड़ें कितनी पुरानी और गहराई तक फैली हैं? हजारों साल पहले, जब न भाषा थी, न लिपि, तब हमारे पूर्वजों ने गुफाओं की दीवारों को कैनवास (canvas) बना लिया था, और रंगों, आकृतियों और प्रतीकों के ज़रिए अपनी दुनिया को व्यक्त करना शुरू किया। यह सिर्फ चित्र नहीं थे, बल्कि डर, आस्था, उत्सव और जीवन की कहानियाँ थीं। आज भी भारत के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे शिला-चित्र स्थल मौजूद हैं, जो उस आदिम चेतना, सामाजिक जीवन और धार्मिक आस्थाओं के जीवंत दस्तावेज़ हैं। आइए, इन चित्रों की भाषा को समझने की कोशिश करें, क्योंकि जब हम अपने अतीत की छवियों को देखना सीखते हैं, तभी हम वास्तव में अपने वर्तमान और भविष्य को बेहतर समझ पाते हैं।
तो आइए, इस लेख आज हम इस लेख में मिलकर समझते हैं कि ऊपरी पुरापाषाण युग में जब भाषा नहीं थी, तब चित्र कैसे अभिव्यक्ति का माध्यम बने। हम चर्चा करेंगे उन गुफाओं की, जहाँ भारत की सबसे पुरानी चित्रकला, जैसे भीमबेटका और पंचमढ़ी, आज भी हमारे इतिहास की झलकियाँ देती हैं। फिर हम जानेंगे हरियाणा की मंगर बानी में मिले रहस्यमयी चित्रों और औज़ारों के बारे में, जो संभवतः भारत की सबसे प्राचीन कलाओं में से हैं। इसके साथ-साथ हम यह भी समझेंगे कि इन चित्रों को बनाने की तकनीकें क्या थीं, रंग कैसे तैयार किए जाते थे, और इन सभी चित्रों में उस समय के सामाजिक और धार्मिक जीवन की कैसी झलक मिलती है।
ऊपरी पुरापाषाण युग की चित्रकला: शुरुआती मानव की रचनात्मकता की झलक
लगभग 40,000 साल पहले की इस कालावधि को "ऊपरी पुरापाषाण युग" कहा जाता है। इस समय के चित्रों में सबसे प्रमुख बात यह थी कि मानव अब केवल अस्तित्व के लिए संघर्ष नहीं कर रहा था, बल्कि अब वह अपने अनुभवों को चित्र के माध्यम से व्यक्त करने लगा था। गेरू (हेमेटाइट - hematite), चूना, पेड़ की राख और पत्तियों से बनाए गए रंगों से गुफाओं की दीवारों पर बनाए गए इन चित्रों में न केवल जानवरों का चित्रण मिलता है, बल्कि शिकार, नृत्य और सामूहिक गतिविधियाँ भी दिखाई देती हैं। इन चित्रों में दृश्य केवल बाहरी दुनिया का प्रतिबिंब नहीं थे, बल्कि उनमें आदिम मानव की भीतरी सोच, डर, आस्था और उल्लास की परछाइयाँ भी उभरती थीं। इससे यह स्पष्ट होता है कि रचनात्मकता मानव चेतना की एक मूलभूत अभिव्यक्ति रही है।
भीमबेटका गुफ़ाएँ: भारत में गुफा चित्रण की सबसे प्राचीन गाथा
भीमबेटका की गुफाएँ, मध्य प्रदेश की विंध्याचल पर्वतमाला में स्थित हैं, और यहाँ लगभग 500 से अधिक चित्रयुक्त शिला-आश्रय मौजूद हैं। ये चित्र तीन प्रमुख कालखंडों, मध्यपाषाण, ताम्रपाषाण और ऐतिहासिक काल, में विभाजित किए गए हैं। प्रारंभिक चित्रों में जानवरों के समूह, शिकार करते पुरुष, नृत्य करती महिलाएँ और धार्मिक प्रतीकों का चित्रण प्रमुख है। कुछ चित्र इतने पुराने हैं कि वैज्ञानिक इन्हें 40,000 ईसा-पूर्व या उससे भी पहले का मानते हैं। इन चित्रों में समय के साथ सामाजिक ढांचे में बदलाव, तकनीकी नवाचार और धार्मिक विश्वासों के परिपक्व होने की झलक मिलती है। भीमबेटका की गुफाएँ सिर्फ कला का संग्रह नहीं, बल्कि आदिम जीवन की जीवंत पाठशाला हैं।
पंचमढ़ी की शिला-चित्रकला: शिकार से संस्कृति तक की कथा
मध्य भारत की सतपुड़ा पहाड़ियों में स्थित पंचमढ़ी क्षेत्र, शिला-चित्रों की एक और समृद्ध परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ के चित्र मुख्यतः मध्यपाषाण काल से प्रारंभ होकर ऐतिहासिक युग तक फैले हैं। चित्रों में जानवरों जैसे हाथी, बायसन, हिरण, जंगली सूअर के साथ-साथ मानव आकृतियाँ हैं, जो भाले, धनुष-बाण या डंडे लिए शिकार करते दिखाई देते हैं। इन चित्रों में सामाजिक संरचना, समूह में शिकार करना, पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाएँ, तथा सामूहिक अनुष्ठानों की झलक मिलती है। पंचमढ़ी की शिला-चित्रकला केवल दृश्यात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि एक चलती-फिरती कहानी है, जो समय के साथ संस्कृति के बदलते रूप को दिखाती है।
मंगर बानी: भारत का सबसे पुराना शिला-चित्र स्थल?
हरियाणा की अरावली पर्वतमाला में स्थित मंगर बानी, अब एक चर्चित पुरातात्विक स्थल बन चुका है। यहाँ मिले चित्र और औज़ार लगभग 1,00,000 साल पुराने माने जा रहे हैं। इन गुफाओं की दीवारों और छतों पर चित्रित मानव आकृतियाँ, पशु, पत्तियाँ और ज्यामितीय डिज़ाइन (geometric design), न केवल प्राचीनतम हैं, बल्कि भारत में मानव चेतना के प्रारंभिक प्रमाण भी माने जाते हैं। इन चित्रों में धार्मिक प्रतीकों, अनुष्ठानों और सामूहिक गतिविधियों के संकेत मिलते हैं, जो स्पष्ट करते हैं कि यह स्थल केवल आवासीय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व भी रखता था। मंगर बानी भारत की सबसे पुरानी दृश्य-भाषा की गूंज है, जो आज भी हमें आदिम मानव की सोच से जोड़ती है।
शिला-चित्रों की तकनीकें: प्राकृतिक रंग, औज़ार और शिल्प कौशल
इन चित्रों को केवल सौंदर्य से नहीं देखा जा सकता; इन्हें बनाने की तकनीकें भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। आदिम मानव ने पत्थरों को रगड़कर पाउडर (rubbing powder) बनाया, फिर उसे पानी, तेल, और चूने के साथ मिलाकर रंग तैयार किए। चित्र बनाने के लिए उंगलियाँ, पंख, टहनियों से बने ब्रश (brush) या जानवरों के बालों का प्रयोग होता था। रंगों के प्रतीकात्मक उपयोग से भावनाएँ व्यक्त की जाती थीं, जैसे लाल से क्रियाशीलता, हरे से जीवन, और सफेद से आध्यात्मिकता। यह तकनीकी दक्षता केवल प्रयोग की बात नहीं, बल्कि उस समय के सौंदर्यबोध और व्याख्यात्मक क्षमता का प्रमाण है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/57zypmmd
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