जौनपुर में मशरूम: वैज्ञानिक पहचान, पारिस्थितिक योगदान और खेती का बढ़ता चलन

स्वाद - भोजन का इतिहास
26-08-2025 09:10 AM
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जौनपुर में मशरूम: वैज्ञानिक पहचान, पारिस्थितिक योगदान और खेती का बढ़ता चलन

जौनपुरवासियो, क्या आप जानते हैं कि आपकी थाली में शामिल होने वाला यह स्वादिष्ट मशरूम दरअसल एक जीवित जीव है, जो वैज्ञानिक रूप से कवक (Fungi) समुदाय का हिस्सा होता है? उत्तर भारत के अन्य हिस्सों की तरह, जौनपुर में भी मशरूम को लेकर लोगों की रुचि लगातार बढ़ रही है, चाहे वह इसके स्वादिष्ट व्यंजनों के रूप में हो या खेती के एक नए विकल्प के तौर पर। लेकिन मशरूम सिर्फ स्वाद और पोषण तक सीमित नहीं है; इसके भीतर छिपी है एक रोमांचक जैविक संरचना, एक संतुलित पारिस्थितिक तंत्र में इसकी अहम भूमिका, और कृषि जगत में नई संभावनाओं की एक पूरी दुनिया, जो जानना हर जौनपुरवासी के लिए दिलचस्प भी है और उपयोगी भी।
आज के इस लेख में हम मशरूम की दुनिया को करीब से जानने की कोशिश करेंगे। हम सबसे पहले देखेंगे कि मशरूम क्या होते हैं और इनका वैज्ञानिक वर्गीकरण कैसे किया जाता है। फिर हम समझेंगे कि ये पर्यावरण में कैसे अहम भूमिका निभाते हैं, चाहे वह जंगलों की मिट्टी को उपजाऊ बनाना हो या पेड़ों के साथ सहजीव संबंध निभाना। इसके बाद, हम नज़र डालेंगे भारत में उगाई जाने वाली कुछ प्रमुख और स्वादिष्ट मशरूम किस्मों पर, और अंत में जानेंगे कि देश में खासकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी खेती क्यों इतनी तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है।

मशरूम क्या होते हैं और इनका वैज्ञानिक वर्गीकरण क्या है?
मशरूम प्रकृति के सबसे अनोखे जीवों में से एक हैं। ये न तो पौधे होते हैं, न ही जानवर, बल्कि एक अलग जैविक समूह, फफूंद (Fungus), से संबंधित होते हैं। इनमें हरित लवक (Chlorophyll) नहीं होता, इसलिए ये प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) नहीं कर पाते। मशरूम मुख्य रूप से बेसिडीयल कवक (Basidiomycota) नामक संघ के अंतर्गत आते हैं। इस समूह की विशेषता यह है कि इनमें यौन प्रजनन बेसिडिया (Basidia) नामक सूक्ष्म संरचनाओं द्वारा होता है, जिनसे बेसिडियोस्पोर (Basidiospores) या बीजाणु (Spores) बनते हैं। मशरूम का वास्तविक शरीर ज़मीन के नीचे छिपा होता है, जो हाइफी (Hyphae) नामक महीन तंतुओं से बना होता है। इन तंतुओं का जाल मायसीलियम (Mycelium) कहलाता है, जो मिट्टी या सड़ी-गली लकड़ी जैसी सतहों से पोषक तत्वों को सोखता है। जो भाग हमें ज़मीन के ऊपर दिखाई देता है, वह दरअसल मशरूम का फलन अंग (Reproductive Structure) होता है, जिसे बेसिडियोकार्प (Basidiocarp) कहा जाता है। यही भाग हमारी थाली में पहुंचता है और आम बोलचाल में 'मशरूम' कहलाता है। 
बेसिडियोकार्प प्रायः एक छतरीनुमा (Umbrella-like) या गुंबदनुमा (Dome-like) संरचना होती है। इसके नीचे गिल्स (Gills) या पोर (Pores) होते हैं, जिनमें बीजाणु उत्पन्न होते हैं। ये बीजाणु अत्यंत सूक्ष्म होते हैं, किंतु इनकी संख्या अत्यधिक होती है, एक अकेला मशरूम लाखों बीजाणु उत्पन्न कर सकता है। ये बीजाणु हवा, पानी या कीटों की मदद से फैलते हैं और यदि उन्हें उपयुक्त वातावरण मिल जाए, तो वहीं एक नया मायसीलियम विकसित होकर अगली पीढ़ी का मशरूम बना देता है।

मशरूम का पारिस्थितिक महत्व: सहजीवन, अपघटन और परजीविता की भूमिकाएँ
मशरूम केवल खाने के लिए ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  1. सहजीवन (Symbiosis): मशरूम और पेड़ों की जड़ों के बीच होने वाले संबंध को मायकोराइज़ा (Mycorrhiza) कहते हैं। इसमें मशरूम पेड़ को पानी और खनिज प्रदान करता है, जबकि पेड़ इसे कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) देता है। यह संबंध पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में अहम होता है।
  2. अपघटन (Saprophytism): कुछ मशरूम मृत पौधों, लकड़ी या मल पर उगते हैं। वे इन्हें विघटित करके मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं।
  3. परजीविता (Parasitism): कुछ मशरूम स्वस्थ या अस्वस्थ पौधों और पेड़ों पर निर्भर रहते हैं, और कभी-कभी उन्हें नुकसान भी पहुंचाते हैं।
  4. प्राकृतिक सफाईकर्ता: मशरूम जैविक कचरे को विघटित कर पर्यावरण को साफ रखते हैं और पोषक तत्वों का चक्र बनाए रखते हैं।

भारत में उगने वाली प्रमुख खाद्य मशरूम किस्में और उनकी विशेषताएँ
भारत में मशरूम की कई किस्में उगाई जाती हैं जो स्वाद के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर होती हैं:

  1. बटन मशरूम (Agaricus bisporus):
    यह भारत में सबसे अधिक उगाई जाने वाली किस्म है। इसकी बनावट नरम और स्वाद हल्का होता है। यह व्यंजनों में आसानी से घुल जाता है।
  2. ऑयस्टर मशरूम (Pleurotus spp.):
    इसे "ढिंगरी" भी कहते हैं। इसका आकार सीप जैसा होता है और यह कई रंगों में पाया जाता है। इसमें मखमली बनावट और एक विशेष सुगंध होती है।
  3. शिटाके मशरूम (Lentinula edodes):
    यह एक विदेशी मशरूम है, जो सड़े हुए ओक वृक्षों पर उगता है। इसका स्वाद गाढ़ा और बनावट मांसल होती है। यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
  4. एनोकी मशरूम (Flammulina filiformis):
    इसे "गोल्डन निडल" (Golden Needle) भी कहा जाता है। इसकी लंबी और पतली संरचना इसे आकर्षक बनाती है। यह हल्के स्वाद और कुरकुरी बनावट के लिए जाना जाता है।
  5. रीशी मशरूम (Ganoderma lucidum):
    इसे "अमरता का मशरूम" भी कहा जाता है। यह खासतौर पर औषधीय उपयोग के लिए प्रसिद्ध है। इसकी बनावट पंखे के आकार की होती है और यह लाल-भूरे रंग का होता है।

मशरूम की खेती: भारत में खेती की बढ़ती प्रवृत्ति और प्रमुख राज्य
भारत में मशरूम की खेती धीरे-धीरे एक लाभदायक और लोकप्रिय विकल्प बनती जा रही है, विशेष रूप से उन किसानों के लिए जिनके पास सीमित भूमि और संसाधन हैं। यह खेती कम निवेश में शुरू की जा सकती है, ज़्यादा जगह की आवश्यकता नहीं होती, और नियंत्रित जलवायु में कम मेहनत के साथ अच्छा उत्पादन देती है। यही वजह है कि आज कई युवा, महिलाएँ और शहरी उद्यमी भी मशरूम उत्पादन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, सरकार भी मशरूम किसानों को प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और अनुदान देकर इस व्यवसाय को बढ़ावा दे रही है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ वैज्ञानिक ज्ञान, पर्यावरणीय संतुलन और आर्थिक लाभ, तीनों का सुंदर संगम देखने को मिलता है।

संदर्भ- 

https://short-link.me/1amLn 
https://short-link.me/1amLr