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मूंग (विग्ना रेडिएटा - Vigna radiata) भारत की सबसे प्राचीन, पौष्टिक और बहुउपयोगी दलहनी फसलों में से एक है, जिसकी खेती और उपयोग का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। इसका उद्गम भारतीय उपमहाद्वीप में माना जाता है, जहाँ से यह धीरे-धीरे दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, अफ्रीका और विश्व के अन्य हिस्सों में फैल गई। प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में मूंग को “सात्त्विक आहार” के रूप में वर्णित किया गया है, एक ऐसा भोजन जो पचने में आसान, शरीर को हल्का, ऊर्जावान और रोग-मुक्त रखने में सहायक होता है। मूंग का स्थान केवल भोजन में ही नहीं, बल्कि हमारी कृषि परंपरा में भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि यह कम पानी और अपेक्षाकृत कम उर्वर मिट्टी में भी अच्छी उपज देती है। आज के समय में राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल क्षेत्र, जिसमें जौनपुर भी शामिल है, मूंग की खेती के लिए जाना जाता है। जौनपुर की दोमट और बलुई मिट्टियाँ तथा गंगा-गोमती के मैदानी क्षेत्र की जलवायु, खरीफ और जायद दोनों मौसम में मूंग उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यहाँ के किसान पारंपरिक खेती पद्धतियों के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों का भी उपयोग करते हैं, जिससे उपज और गुणवत्ता दोनों में सुधार हो रहा है। इस प्रकार, मूंग न केवल भारत की खाद्य सुरक्षा में योगदान देती है, बल्कि जौनपुर जैसे जिलों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करती है।
इस लेख में हम मूंग के विभिन्न पहलुओं को क्रमबद्ध तरीके से समझेंगे। सबसे पहले हम जानेंगे मूंग का परिचय और उत्पत्ति, जिसमें इसके ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा होगी। इसके बाद हम विस्तार से देखेंगे मूंग का पोषण मूल्य, जिसमें इसके प्रोटीन (protein), विटामिन (vitamin), खनिज और फाइबर (fiber) संबंधी जानकारी शामिल होगी। फिर हम समझेंगे स्वास्थ्य लाभ और रोग-निवारण गुण, जैसे कि यह कैसे रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल (cholestrol), पाचन और मधुमेह में सहायक है। आगे हम चर्चा करेंगे इसके एंटीऑक्सिडेंट (antioxidants) और सूजन-रोधी गुणों पर, जो शरीर को कोशिका-क्षति और सूजन से बचाते हैं। अंत में, हम मूंग की खेती, किस्में और आर्थिक महत्व पर प्रकाश डालेंगे, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह फसल न केवल सेहत बल्कि कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए भी कितनी अहम है।
मूंग का परिचय और उत्पत्ति
मूंग एक अत्यंत महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जो हजारों वर्षों से एशियाई सभ्यताओं के भोजन और कृषि संस्कृति का हिस्सा रही है। इसका उद्गम भारत उपमहाद्वीप में माना जाता है, जहां से यह समय के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, अफ्रीका और पश्चिमी एशिया तक फैल गई। प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में मूंग को पौष्टिक, पचने में आसान और औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है। भारत में यह विशेष रूप से राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। मूंग एक ऐसी फसल है जो कम पानी और अल्प अवधि (60–70 दिन) में तैयार हो जाती है, जिससे यह अल्प संसाधन वाले किसानों के लिए भी लाभकारी विकल्प बनती है।
मूंग का पोषण मूल्य
मूंग के दानों में लगभग 24% उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन पाया जाता है, जो शरीर के ऊतकों की मरम्मत और मांसपेशियों के विकास के लिए आवश्यक है। इसमें विटामिन B1 (थायमिन - thiamine), B2 (राइबोफ्लेविन - riboflavin), B6, फोलेट (folate) और विटामिन C (विशेष रूप से अंकुरण के बाद) भरपूर मात्रा में होते हैं। खनिजों में आयरन (iron), मैग्नीशियम (magnesium), पोटैशियम (potassium), जिंक (zinc), फॉस्फोरस (phosphorus) और कैल्शियम (calcium) शामिल हैं। इसमें पाए जाने वाले आवश्यक अमीनो एसिड (amino acid) - जैसे लाइसिन (Lysine), ल्यूसीन (Leucine) और थ्रियोनीन (Threonine) - संतुलित पोषण में योगदान करते हैं। मूंग का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (glycemic index) कम होने के कारण यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करता है। अंकुरण प्रक्रिया से इसके एंटीऑक्सिडेंटऔर विटामिन का स्तर कई गुना बढ़ जाता है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए और भी फायदेमंद बन जाती है।
स्वास्थ्य लाभ और रोग-निवारण गुण
मूंग का नियमित सेवन हृदय स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। इसमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम रक्त वाहिकाओं को शिथिल करते हैं, जिससे उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है। मूंग में पाया जाने वाला घुलनशील फाइबर रक्त में खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल - LDL) को घटाने में मदद करता है और हृदय रोग के खतरे को कम करता है। गर्मियों में मूंग की ठंडी दाल या मूंग का शर्बत शरीर को ठंडक प्रदान कर हीट स्ट्रोक (heat stroke) से बचाता है। इसका उच्च प्रोटीन और कम कैलोरी (calorie) संयोजन वजन घटाने के इच्छुक लोगों के लिए आदर्श है, जबकि जटिल कार्बोहाइड्रेट (carbohyderate) पाचन क्रिया को संतुलित रखते हैं। मूंग में सूजन-रोधी और रोग-प्रतिरोधक गुण होते हैं, जो मधुमेह, गठिया, थकान और पाचन संबंधी समस्याओं में राहत प्रदान करते हैं।
एंटीऑक्सिडेंट और सूजन-रोधी गुण
मूंग के दानों, छिलकों और अंकुरों में विटेक्सिन (vitexin), आइसोविटेक्सिन (isovitexin), फिनोलिक एसिड (phenolic acid) और फ्लेवोनॉइड्स (flavonoids) जैसे शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं। ये यौगिक शरीर में मुक्त कणों को निष्क्रिय करके कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (oxidative stress) से बचाते हैं, जिससे हृदय रोग, कैंसर (cancer), तंत्रिका विकार और समय से पहले बुढ़ापा आने का खतरा कम होता है। मूंग के बायोएक्टिव कंपाउंड्स (bioactive compounds) में सूजन-रोधी गुण होते हैं, जो जोड़ों के दर्द, गठिया, त्वचा की सूजन और एलर्जी (allergy) प्रतिक्रियाओं में राहत देते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह भी पता चला है कि मूंग का अर्क प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करता है और शरीर की प्राकृतिक आरोग्य प्रक्रिया को तेज करता है।
खेती और किस्में
मूंग एक गर्म और शुष्क जलवायु की अल्प अवधि वाली फसल है, जिसकी खेती खरीफ में जून-जुलाई तथा जायद में मार्च-अप्रैल में की जाती है। हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो, मूंग की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। पौधे की ऊंचाई 30-100 सेमी होती है, जिन पर पीले रंग के फूल और 6-15 सेमी लंबी फलियां लगती हैं, जिनमें 8–15 हरे या पीले रंग के दाने होते हैं। इसकी जड़ें राइजोबियम (Rhizobium) जीवाणुओं के साथ सहजीवी संबंध बनाकर मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण (nitrogen fixation) करती हैं, जिससे अगली फसलों की पैदावार बढ़ती है। प्रमुख किस्मों में ‘पूसा विशाल’, ‘पूसा 9531’, ‘मूंग सम्राट’, ‘एमएच-421’ और ‘एमएच-318’ शामिल हैं, जो उच्च उत्पादकता, जल्दी पकने और रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती हैं।
उपयोग और आर्थिक महत्व
मूंग का उपयोग भारतीय आहार में दाल, खिचड़ी, चिल्ला, सूप (soup), मिठाई (जैसे मूंग दाल हलवा) और अंकुरित सलाद के रूप में किया जाता है। अंकुरित मूंग स्वास्थ्यवर्धक नाश्ते और पोषण आहार में विशेष स्थान रखता है, जो खिलाड़ियों और स्वास्थ्य-जागरूक लोगों के बीच लोकप्रिय है। ग्रामीण क्षेत्रों में मूंग का पौधा हरे चारे के रूप में पशुधन के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि इसके पौधे की जड़ें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाकर स्थायी कृषि में योगदान देती हैं। आर्थिक दृष्टि से, मूंग की खेती किसानों को कम समय में नकदी फसल का लाभ देती है, और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग सालभर बनी रहती है। खाद्य उद्योग में मूंग आधारित स्नैक्स (snacks), आटा और इंस्टेंट सूप (instant soup) की बढ़ती लोकप्रियता इसके आर्थिक मूल्य को और मजबूत कर रही है।
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