भारत के मोंटेन वन: वितरण, प्रकार, जैव विविधता और संरक्षण की चुनौतियाँ

जंगल
15-09-2025 09:25 AM
भारत के मोंटेन वन: वितरण, प्रकार, जैव विविधता और संरक्षण की चुनौतियाँ

भारत की भौगोलिक विविधता में पर्वत सदैव विशेष स्थान रखते हैं। इन्हीं ऊँचाइयों पर फैले मोंटेन वन (Montane Forests), जिन्हें पर्वतीय वन भी कहा जाता है, प्रकृति की अद्भुत धरोहर हैं। यहाँ की ठंडी और नम जलवायु, हरियाली से ढकी घाटियाँ और अनोखी वनस्पति एवं जीव-जंतु न केवल पर्यावरण को संतुलित करते हैं बल्कि मनुष्य के जीवन को भी अनेक प्रकार से सहारा देते हैं। हिमालय और पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में पाए जाने वाले ये वन वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट (hotspot) माने जाते हैं। इस लेख में हम भारत में मोंटेन वनों का वितरण और विशेषताओं से लेकर इनके प्रकार, जैव विविधता, पारिस्थितिक महत्व और संरक्षण की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। पर्वतीय वनों का महत्व केवल उनकी हरियाली या सुंदरता तक सीमित नहीं है, बल्कि वे जीवन के हर आयाम से जुड़े हैं। ये वन नदियों के स्रोतों की रक्षा करते हैं, बादलों से टपकती बूँदों को मिट्टी में संजोते हैं और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाते हैं। यही कारण है कि इन्हें ‘पर्वतों की जीवनरेखा’ भी कहा जाता है। इन वनों में पाए जाने वाले अनोखे वृक्ष और दुर्लभ जीव-जंतु न केवल वैज्ञानिक अध्ययन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और आजीविका से भी गहराई से जुड़े हैं। मोंटेन वन दरअसल प्रकृति और मानव के बीच एक ऐसा जीवंत पुल हैं, जो अतीत की धरोहर और भविष्य की सुरक्षा दोनों को सँभाले हुए हैं।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि भारत में मोंटेन वनों का वितरण कहाँ-कहाँ होता है और उनकी विशिष्ट जलवायु व भौगोलिक विशेषताएँ क्या हैं। इसके बाद, हम विस्तार से पढ़ेंगे कि पर्वतीय वनों के प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं और ऊँचाई के आधार पर इनमें किस तरह की विविधता दिखाई देती है। फिर, हम समझेंगे कि इन वनों की जैव विविधता कितनी समृद्ध है और पारिस्थितिकी तंत्र में इनकी क्या भूमिका है। आगे, हम मोंटेन वनों की वनस्पति और जीव-जंतुओं की अद्वितीय विविधता का अध्ययन करेंगे। अंत में, हम उन चुनौतियों और संरक्षण प्रयासों पर चर्चा करेंगे जो इन वनों को बचाने के लिए आज सबसे अहम हैं।

भारत में मोंटेन वनों का वितरण और विशेषताएँ
भारत की भौगोलिक रचना इतनी विविध है कि यहाँ मैदान, मरुस्थल, तटीय क्षेत्र और घने वन सब कुछ देखने को मिलता है। इसी विविधता के बीच ऊँचे पर्वतीय इलाकों में फैले मोंटेन वन प्रकृति का अनोखा उपहार हैं। इन्हें पर्वतीय वन भी कहा जाता है क्योंकि ये समुद्र तल से काफी ऊँचाई पर स्थित होते हैं। इन वनों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ की जलवायु निचले क्षेत्रों की तुलना में अधिक ठंडी और नम होती है। दिन और रात के तापमान में अंतर, ऊँचाई पर बदलती हवा की नमी और बादलों की लगातार आवाजाही इन वनों को अद्वितीय बनाती है। भारत में हिमालय और पश्चिमी घाट इन वनों के सबसे बड़े केंद्र हैं। हिमालय में ये उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में फैले हुए हैं, जबकि पश्चिमी घाट केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में इनकी सुंदर झलक मिलती है। यही कारण है कि इन दोनों क्षेत्रों को जैव विविधता हॉटस्पॉट माना गया है।

पर्वतीय वनों के प्रमुख प्रकार
मोंटेन वनों की खूबसूरती यह है कि इनकी वनस्पति और जीव-जंतु ऊँचाई के साथ बदलते रहते हैं। जैसे-जैसे हम पहाड़ों पर चढ़ते हैं, हमें अलग-अलग तरह के वन देखने को मिलते हैं।

  • उपोष्णकटिबंधीय मोंटेन वन (1000–2000 मीटर ऊँचाई): यहाँ का मौसम न ज्यादा ठंडा होता है और न बहुत गर्म। इस कारण ओक (Oak), चेस्टनट (Chestnut), मेपल (Maple), देवदार (Cedar) और साल (Sal) जैसे वृक्ष खूब पनपते हैं। इन वनों की हरियाली गाँवों और कस्बों को पानी, लकड़ी और औषधियाँ उपलब्ध कराती है।
  • शीतोष्ण मोंटेन वन (2000–3000 मीटर ऊँचाई): जैसे ही ऊँचाई बढ़ती है, तापमान गिरने लगता है। इन वनों में शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़, फर, देवदार और चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष मिलकर गहरे हरे रंग की छटा बिखेरते हैं। ये वन अनेक जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित घर हैं।
  • अल्पाइन वन (3000 मीटर से ऊपर): जब हम और ऊपर पहुँचते हैं, तो पेड़ों की ऊँचाई घटती जाती है। यहाँ बर्फ से ढके इलाके और ठंडी हवाएँ होती हैं। इन वनों में बौनी झाड़ियाँ, छोटी-छोटी घासें और जड़ी-बूटियाँ उगती हैं। यही क्षेत्र कस्तूरी मृग और बर्फीले तेंदुए जैसे अद्भुत जीवों का घर है।

जैव विविधता और पारिस्थितिक महत्व
मोंटेन वन केवल पहाड़ों की शोभा ही नहीं बढ़ाते, बल्कि पूरे पर्यावरण और मानव जीवन को सहारा देते हैं। ये वन वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन के असर को कम करते हैं। साथ ही, इनकी गहरी जड़ें मिट्टी को बाँधकर भूस्खलन और कटाव से बचाती हैं। जब बारिश होती है, तो यही वन जल को रोककर धीरे-धीरे नदियों और झरनों को पानी देते हैं, जिससे मैदानों में खेती संभव हो पाती है। इन वनों को “पृथ्वी के फेफड़े” भी कहा जा सकता है क्योंकि ये वायु को शुद्ध रखते हैं और असंख्य जीवों का जीवन संजोते हैं। यहाँ पाए जाने वाले औषधीय पौधे न सिर्फ़ स्थानीय जनजातियों बल्कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए भी अमूल्य हैं।

वनस्पति और जीव-जंतु की विविधता
मोंटेन वनों की जैव विविधता किसी ख़ज़ाने से कम नहीं है। इनकी वनस्पति परत-दर-परत फैली होती है। ऊँचे वृक्ष ऊपर छतरी की तरह खड़े रहते हैं, नीचे झाड़ियाँ और बेलें लिपटी रहती हैं, और ज़मीन पर फर्न (fern), काई और कुसुमित जड़ी-बूटियाँ बिछी रहती हैं। हिमालयी क्षेत्रों में देवदार, भोजपत्र, ओक और रोडोडेंड्रोन (Rhododendron) अपने रंग और सुगंध से वातावरण को जीवंत बनाते हैं। जीव-जंतुओं की बात करें तो हिमालयी काला भालू, लाल पांडा, बर्फीला तेंदुआ और कस्तूरी मृग जैसे दुर्लभ जानवर यहाँ मिलते हैं। पश्चिमी घाट में लायन-टेल्ड मकाक (Lion-tailed Macaque), नीलगिरि तहर और कई रंग-बिरंगे पक्षी मिलते हैं। इनकी उपस्थिति से पता चलता है कि यह क्षेत्र कितनी समृद्ध और संवेदनशील पारिस्थितिकी का हिस्सा है।

संरक्षण की चुनौतियाँ और प्रयास
आज मोंटेन वनों के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी हैं। लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण वनों की अंधाधुंध कटाई, सड़कों और पर्यटन परियोजनाओं का विस्तार, जलवायु परिवर्तन और अवैध शिकार इन वनों की शांति को तोड़ रहे हैं। इन वनों का अस्तित्व केवल पहाड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश की नदियों, खेती और मौसम पर असर डालता है। सरकार और स्थानीय समुदाय इनकी सुरक्षा के लिए कदम उठा रहे हैं। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (Great Himalayan National Park) (हिमाचल प्रदेश) और साइलेंट वैली नेशनल पार्क (Silent Valley National Park) (केरल) जैसे संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता के संरक्षण के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। साथ ही, स्थानीय लोगों को वन संरक्षण में भागीदार बनाना, पुनर्वनीकरण करना और स्कूल स्तर से पर्यावरण शिक्षा देना बेहद ज़रूरी है। अगर हम आज इन वनों को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास नहीं करेंगे, तो भविष्य की पीढ़ियाँ इस समृद्ध धरोहर से वंचित रह जाएँगी।

संदर्भ-

https://shorturl.at/AZ3uF 

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