जौनपुर की संस्कृति और दशहरा: धर्म, साहस और विजय की अनूठी परंपरा

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
02-10-2025 09:05 AM
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जौनपुर की संस्कृति और दशहरा: धर्म, साहस और विजय की अनूठी परंपरा

जौनपुरवासियो, हमारी भारतीय संस्कृति की जड़ें सदियों से त्योहारों, परंपराओं और आस्थाओं से पोषित होती रही हैं। यही त्योहार हमारी सामाजिक एकता, धार्मिक चेतना और सांस्कृतिक विविधता को जीवंत बनाए रखते हैं। इन्हीं में से एक महान पर्व है दशहरा या विजयादशमी, जिसे हर वर्ष नवरात्रि की साधना और उत्सवपूर्ण नौ रातों के बाद अत्यंत उल्लास, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व केवल अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन का गहन दर्शन कराता है - जहाँ अच्छाई अंततः हर बार बुराई पर विजय पाती है। जौनपुर की ऐतिहासिक धरती, जिसने ज्ञान, संगीत, स्थापत्य और संस्कृति की अनुपम धरोहरों को संजोकर रखा है, आज भी ऐसे पर्वों से प्रेरणा पाती है। जिस प्रकार शर्की शासकों के समय से यहाँ की धरती ने धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक समन्वय का संदेश दिया, उसी प्रकार दशहरे का संदेश भी हमें यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और अन्याय सामने हों, अंततः सत्य, धर्म और साहस ही विजयी होते हैं। विजयादशमी का पर्व हमें यह याद दिलाता है कि यह केवल राम-रावण की कथा या देवी दुर्गा की विजय का स्मरण मात्र नहीं है, बल्कि यह समाज और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में निरंतर चलने वाले नैतिक संघर्षों की ओर संकेत करता है। यही कारण है कि यह पर्व आस्था, प्रेरणा और आत्मबल का स्रोत बनकर हर वर्ष हमारे जीवन को नई ऊर्जा प्रदान करता है। 
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि दशहरा और विजयादशमी का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व क्या है और यह हमारे जीवन में क्यों विशेष स्थान रखता है। इसके बाद हम जानेंगे कि भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा मनाने की परंपराएं कैसी-कैसी हैं और वे किस तरह हमारी विविधता में एकता को दर्शाती हैं। फिर हम रामायण से जुड़ी कथाओं और रावण पर भगवान राम की विजय की कथा को दोबारा याद करेंगे और देखेंगे कि इसका क्या संदेश है। साथ ही, हम यह भी जानेंगे कि महाभारत और विजयादशमी का संबंध किस प्रकार इस पर्व की गहराई को और बढ़ाता है। अंत में, हम इस पर्व का मूल संदेश - बुराई पर अच्छाई की जीत - को समझेंगे और देखेंगे कि यह आज की जिंदगी में हमें कौन-सी प्रेरणा देता है।

दशहरा और विजयादशमी का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व
दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में न केवल एक त्योहार है बल्कि धर्म, साहस और सत्य की जीवंत परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व हर साल नवरात्रि के नौ दिनों की साधना, व्रत और देवी दुर्गा की आराधना के पश्चात मनाया जाता है। “विजया” शब्द का अर्थ है विजय और “दशमी” का तात्पर्य चंद्र मास की दसवीं तिथि से है। इस प्रकार विजयादशमी वह दिन है जब बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है। पौराणिक दृष्टि से देखें तो इस दिन दो महत्त्वपूर्ण घटनाओं की स्मृति जुड़ी हुई है - पहली, माता दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध और दूसरी, भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध। यही कारण है कि विजयादशमी को शक्ति, धर्म और साहस का पर्व माना जाता है। यह त्योहार केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक जीवन में भी हमें प्रेरित करता है कि हर कठिन परिस्थिति में सत्य का साथ न छोड़ें और साहस के साथ आगे बढ़ें। इस दिन का संदेश यह है कि चाहे अंधकार कितना ही गहरा क्यों न हो, प्रकाश और सत्य अंततः विजयी होते हैं।

भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा मनाने की परंपराएं
भारत की सांस्कृतिक विविधता में दशहरा एक ऐसा त्योहार है जो अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है, परंतु इसका सार एक ही रहता है - बुराई पर अच्छाई की विजय। उत्तर भारत में, विशेषकर दिल्ली, वाराणसी और जौनपुर जैसे शहरों में रामलीला का मंचन नौ दिनों तक चलता है, और दशमी के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है। यह आयोजन केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक शिक्षा का साधन भी है। पश्चिम भारत में, विशेषकर गुजरात और महाराष्ट्र में, गरबा और डांडिया के उत्सव पूरे वातावरण को उल्लास और ऊर्जा से भर देते हैं। इस दौरान मंदिरों और चौकों में भक्ति संगीत गूंजता है और लोग सामूहिक रूप से नृत्य करके देवी की आराधना करते हैं। दक्षिण भारत में दशहरा शक्ति पूजा के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ देवी चामुंडेश्वरी की आराधना होती है और मैसूर का दशहरा तो पूरे विश्व में विख्यात है, जहाँ भव्य झांकी और शोभायात्रा निकलती है। पूर्वी भारत में, खासकर बंगाल, ओडिशा और असम में, दुर्गा पूजा के विशाल पंडाल सजते हैं और माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन विजयादशमी के दिन किया जाता है। इन सब परंपराओं से यह स्पष्ट झलकता है कि भारत की आत्मा विविधता में एकता से ओतप्रोत है।

रामायण से जुड़ी कथाएं और रावण पर भगवान राम की विजय
दशहरे की सबसे लोकप्रिय कथा रामायण से जुड़ी है, जो हर भारतीय के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। कथा के अनुसार, जब लंका के राजा रावण ने माता सीता का हरण किया, तब भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण और वानरराज सुग्रीव की सेना के साथ उसका सामना किया। यह युद्ध केवल दो शासकों के बीच का संघर्ष नहीं था, बल्कि यह धर्म और अधर्म का निर्णायक संग्राम था। दस दिनों तक चले इस भीषण युद्ध में अनेक योद्धाओं ने शौर्य और बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया। अंततः दशमी के दिन भगवान राम ने रावण का वध किया और सीता जी को वापस लाकर धर्म की पुनः स्थापना की। इस विजय का प्रतीक आज भी हम रामलीला के मंचन और रावण दहन के माध्यम से जीवित रखते हैं। रावण दहन केवल एक प्रथा नहीं है, बल्कि यह एक गहरा संदेश देता है - कि बुराई चाहे कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः उसका पतन अवश्य होता है। इस कथा का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन के संघर्षों में साहस, धैर्य और धर्म के मार्ग पर टिके रहने की प्रेरणा भी देती है।

महाभारत और विजयादशमी का संबंध
विजयादशमी का संबंध केवल रामायण से ही नहीं, बल्कि महाभारत की महाकथा से भी गहराई से जुड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव अज्ञातवास के लिए जाने वाले थे, तब अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्र शमी वृक्ष में छिपा दिए। बारह वर्षों के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद जब वे वापस लौटे, तो अर्जुन ने उसी वृक्ष से अपने अस्त्र-शस्त्र पुनः प्राप्त किए। इन अस्त्रों का सुरक्षित मिलना विजय और शुभ संकेत माना गया। इसके पश्चात अर्जुन ने उन्हीं अस्त्रों का प्रयोग करके कुरुक्षेत्र के युद्ध में विजयी होने का मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रसंग के कारण विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजन की परंपरा प्रचलित हुई। लोग शमी वृक्ष की पूजा करते हैं और उसके पत्तों का आदान-प्रदान करते हैं, जिसे ‘सोनपत्ती’ कहा जाता है, जो धन, सफलता और विजय का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा हमें यह भी बताती है कि इस दिन किया गया कोई भी कार्य, विशेषकर युद्ध या नए आरंभ, सफलता की ओर अग्रसर होता है।

त्योहार का मूल संदेश: बुराई पर अच्छाई की जीत
दशहरा केवल पौराणिक कथाओं और धार्मिक अनुष्ठानों का स्मरण भर नहीं है, बल्कि यह एक गहन जीवन-दर्शन भी है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि बाहरी रावण का वध जितना आवश्यक है, उतना ही जरूरी है कि हम अपने भीतर छिपी बुराइयों - जैसे क्रोध, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या और मोह - को भी समाप्त करें। रावण का पुतला जलाना केवल प्रतीक है, असली विजय तब होती है जब हम अपने अंदर के नकारात्मक विचारों और प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करें। दशहरा हमें साहस, नि:स्वार्थ सेवा, सदाचार और न्याय का मार्ग अपनाने की प्रेरणा देता है। यह दिन यह भी याद दिलाता है कि जीवन के हर संघर्ष में यदि हम सत्य और धर्म का साथ दें, तो अंततः सफलता और विजय हमारी होगी। इसलिए दशहरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह जीवनभर के लिए एक मार्गदर्शन है - एक संदेश कि चाहे अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, प्रकाश और सत्य की जीत अवश्य होती है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/f7yyy644 



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