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सुबह की पहली किरण के साथ जब हम दिन की शुरुआत करते हैं, तो अक्सर एक गरमागरम कप कॉफ़ी (coffee) हमारी थकान और सुस्ती को दूर कर देता है। उसकी सोंधी ख़ुशबू मानो नींद को चुरा लेती है और हमारे भीतर ऊर्जा की एक नई लहर दौड़ जाती है। कॉफ़ी सिर्फ़ एक पेय नहीं, बल्कि वह साथी है जो हमें लंबे दिन की चुनौतियों के लिए तैयार करता है। शोध बताते हैं कि कॉफ़ी ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाती है, स्मरण शक्ति को मज़बूत बनाती है और शरीर को एंटीऑक्सिडेंट्स (Antioxidants) की शक्ति से रोगों से लड़ने की क्षमता भी देती है। यही कारण है कि विद्यार्थी पढ़ाई में जागे रहने के लिए, और कामकाजी लोग थकान के बाद ऊर्जा पाने के लिए कॉफ़ी का सहारा लेते हैं। लेकिन कॉफ़ी का रिश्ता केवल शरीर या दिमाग़ तक सीमित नहीं है, यह हमारी भावनाओं और जीवनशैली से भी गहराई से जुड़ गया है। सोचिए, बरसात की ठंडी शाम हो और हाथ में एक गरम कप कॉफ़ी - उस घड़ी की ख़ुशी का कोई मोल नहीं। या फिर ठिठुरती सुबह में, जब ठंडी हवा हड्डियों तक सिहरन पहुँचा दे, तब कॉफ़ी की गरमाहट भीतर तक सुकून भर देती है। यही नहीं, दोस्तों की महफ़िलों में गपशप का मज़ा भी बिना कॉफ़ी के अधूरा लगता है, और अकेलेपन के पलों में भी यह हमें एक अनकहा साथ देती है।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि कॉफ़ी की उत्पत्ति कहाँ हुई और इसके पीछे कौन-सी दिलचस्प लोककथाएँ प्रचलित हैं। फिर, हम देखेंगे कि खेत से लेकर आपके कप तक कॉफ़ी पहुँचने की यात्रा कितने चरणों से गुज़रती है। इसके बाद, हम पढ़ेंगे कि दुनिया के कौन-कौन से देश कॉफ़ी उत्पादन में अग्रणी हैं। आगे, हम चर्चा करेंगे कि भारत में किन राज्यों में कॉफ़ी उगाई जाती है और यहाँ किस प्रकार की कॉफ़ी अधिक होती है। अंत में, हम समझेंगे कि भारतीय कॉफ़ी उद्योग का आर्थिक महत्व क्या है और आने वाले समय में इसके भविष्य की क्या संभावनाएँ हैं।
कॉफ़ी की उत्पत्ति और लोककथाएँ
कॉफ़ी का इतिहास उतना ही पुराना है जितना रहस्यमयी और आकर्षक। इसकी शुरुआत से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा एथियोपिया (Ethiopia) के चरवाहे काल्दी की है, जिसने देखा कि जब उसकी बकरियाँ लाल फलों को खाती हैं तो वे असामान्य रूप से चंचल और जागृत रहती हैं। बकरियों की इस ऊर्जा ने काल्दी का ध्यान खींचा और उसने भी उन फलों को चखा। स्वाद और प्रभाव ने उसे हैरान कर दिया क्योंकि उसने महसूस किया कि उनमें अद्भुत ऊर्जा छिपी हुई है। धीरे-धीरे यह रहस्य लोगों तक पहुँचा और इन फलों से बना पेय कॉफ़ी कहलाने लगा। दूसरी ओर, यमन (Yemen) के सूफ़ी संतों से जुड़ी कथाएँ भी कम दिलचस्प नहीं हैं। वे लंबी इबादत और रातभर जागरण के दौरान थकान मिटाने के लिए इन बीजों का उपयोग करते थे। इन कथाओं से यह साफ़ झलकता है कि कॉफ़ी केवल एक स्वादिष्ट पेय नहीं, बल्कि यह संस्कृति, अध्यात्म और मानवीय जीवन की गहराइयों से जुड़ा हुआ एक अनुभव है।
कॉफ़ी उत्पादन की पूरी यात्रा: खेत से कप तक
कॉफ़ी आपके कप तक पहुँचने से पहले खेतों से होकर गुजरती हुई कई चरणों की एक लंबी और जटिल यात्रा पूरी करती है। इस यात्रा की शुरुआत होती है उपयुक्त मौसम और मिट्टी में पौधों को लगाने से। जब पौधे फल देते हैं और फल पक जाते हैं, तो किसानों द्वारा बड़ी सावधानी से उनकी कटाई की जाती है। इसके बाद फलों से गूदा निकालने की प्रक्रिया होती है जिसे पल्पिंग (pulping) कहते हैं। पल्पिंग के बाद बीजों को प्राकृतिक तरीके से या जल के सहारे किण्वित किया जाता है ताकि उनमें से अतिरिक्त परतें हट जाएँ और उनका स्वाद निखर सके। इसके बाद बीजों को धूप में सुखाया जाता है या फिर मशीनों की मदद से सुखाया जाता है, जिससे वे भंडारण और आगे की प्रक्रिया के लिए तैयार हो जाते हैं। फिर आता है रोस्टिंग (roasting) का चरण, जहाँ बीजों को हल्का, मध्यम या गहरा भुना जाता है। हर स्तर की रोस्टिंग कॉफ़ी को अलग स्वाद और ख़ुशबू देती है। रोस्टिंग के बाद बीजों को पीसा जाता है, पैक किया जाता है और अंततः ब्रूइंग (brewing) की प्रक्रिया से कॉफ़ी का प्याला तैयार होता है। इस पूरी यात्रा में मेहनत, तकनीक और कला तीनों का सुंदर मेल दिखाई देता है, तभी यह साधारण फल हमारी ऊर्जा और ताज़गी का स्रोत बन जाता है।
दुनिया के प्रमुख कॉफ़ी उत्पादक देश
कॉफ़ी का नाम आते ही कई देशों की छवियाँ हमारे सामने उभरती हैं। इनमें सबसे प्रमुख है ब्राज़ील (Brazil), जिसने कई दशकों से कॉफ़ी उत्पादन में अपना वर्चस्व बनाए रखा है। ब्राज़ील की उपजाऊ ज़मीन और अनुकूल जलवायु वहाँ की कॉफ़ी को एक विशिष्ट स्वाद और सुगंध प्रदान करती है। इसके बाद वियतनाम का स्थान आता है, जो रोबस्टा (Robusta) किस्म के लिए प्रसिद्ध है और बड़े पैमाने पर निर्यात करता है। कोलम्बिया (Colombia) की कॉफ़ी अपने संतुलित स्वाद और मुलायमपन के लिए जानी जाती है, जबकि इंडोनेशिया (Indonesia) की कॉफ़ी मिट्टी और जलवायु की विशेषताओं को अपने अंदर समेटे हुए है। इथियोपिया, जहाँ से कॉफ़ी की उत्पत्ति मानी जाती है, वहाँ की कॉफ़ी अपने सुगंधित और गहरे स्वाद के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। हर देश की कॉफ़ी उस क्षेत्र के वातावरण और प्राकृतिक परिस्थितियों की छाप लिए होती है, और यही विविधता कॉफ़ी प्रेमियों को अलग-अलग अनुभव और स्वाद प्रदान करती है।
भारत में कॉफ़ी का उत्पादन
भारत भले ही दुनिया के सबसे बड़े कॉफ़ी उत्पादक देशों में शामिल न हो, लेकिन यहाँ की कॉफ़ी अपनी विशेषताओं के लिए दुनिया भर में पहचानी जाती है। देश में मुख्य रूप से दक्षिण भारत में कॉफ़ी की खेती होती है। कर्नाटक सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है और यहाँ लगभग आधे से अधिक हिस्से में कॉफ़ी की खेती होती है। इसके बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान आता है। हाल के वर्षों में आंध्रप्रदेश और ओडिशा में भी कॉफ़ी की खेती को बढ़ावा मिला है, जिससे उत्पादन में विविधता आई है। भारत में दो प्रमुख किस्में उगाई जाती हैं - रोबस्टा और अरेबिका (Arabica)। रोबस्टा का उत्पादन अधिक है क्योंकि यह पौधा कठिन परिस्थितियों में भी आसानी से उग जाता है, जबकि अरेबिका अपने ख़ास स्वाद और सुगंध के कारण अधिक मूल्यवान मानी जाती है। भारतीय कॉफ़ी की विशेषता यह भी है कि इसे अक्सर मसालों जैसे काली मिर्च और इलायची के साथ उगाया जाता है। इससे इसमें एक अलग ही स्वाद और सुगंध आ जाती है। यही कारण है कि भारतीय कॉफ़ी धीरे-धीरे वैश्विक बाज़ार में अपनी अलग पहचान बना रही है।
भारतीय कॉफ़ी उद्योग का आर्थिक महत्व और भविष्य
भारत आज दुनिया का सातवाँ सबसे बड़ा कॉफ़ी उत्पादक देश है और अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रीमियम पहचान बनाए हुए है। यहाँ मुख्य रूप से दो किस्में – अरेबिका और रोबस्टा – उगाई जाती हैं। अरेबिका का स्वाद हल्का, सुगंधित और अधिक मूल्यवान माना जाता है, जबकि रोबस्टा का स्वाद गाढ़ा और कड़वा होता है, जिसका उपयोग अक्सर विभिन्न ब्लेंड्स बनाने में किया जाता है। भारत में कुल कॉफ़ी उत्पादन का लगभग 72% हिस्सा रोबस्टा का है, इसी वजह से भारत को विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा रोबस्टा उत्पादक भी माना जाता है। यह उद्योग केवल निर्यात पर आधारित नहीं है, बल्कि देश में दो मिलियन (million) से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार भी देता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि चूँकि कॉफ़ी का अधिकांश हिस्सा निर्यात होता है, इसलिए घरेलू खपत और मांग का इसके दामों पर ज़्यादा असर नहीं पड़ता। आने वाले वर्षों में इसका महत्व और बढ़ने की उम्मीद है। अनुमान है कि 2028 तक भारतीय कॉफ़ी बाज़ार 8.9% की वार्षिक दर (CAGR) से बढ़ेगा। इसके साथ ही, आउट-ऑफ़-होम कॉफ़ी मार्केट (Out of Home Coffee Market) भी तेज़ी से बढ़कर सालाना 15–20% की दर से 2.6 से 3.2 बिलियन (billion) अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है। कॉफ़ी बोर्ड ऑफ़ इंडिया (Coffee Board of India) ने भविष्य के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं। वित्त वर्ष 2025 तक उत्पादन 3.633 लाख टन तक पहुँचने का अनुमान है, जबकि 2047 तक इसे 9 लाख टन तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें अरेबिका के उत्पादन को 1 लाख टन से बढ़ाकर 1.13 लाख टन और रोबस्टा के उत्पादन को 2.52 लाख टन से बढ़ाकर 2.61 लाख टन तक ले जाने की योजना है। भौगोलिक दृष्टि से देखें तो भारत के दक्षिणी राज्य कॉफ़ी उत्पादन के केंद्र हैं। कर्नाटक कुल उत्पादन का 71%, केरल लगभग 20% और तमिलनाडु करीब 5% योगदान देते हैं। तमिलनाडु के नीलगिरि क्षेत्र में विशेष रूप से अरेबिका उगाई जाती है, जबकि ओडिशा और उत्तर-पूर्वी राज्यों का योगदान अपेक्षाकृत कम है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/ms8s59nn
https://tinyurl.com/5ecjbfhx
https://tinyurl.com/yeyuh3ak
https://tinyurl.com/35th4zfs
https://tinyurl.com/ykxekd5p
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