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जौनपुरवासियो, हमारी संस्कृति में पेड़-पौधे केवल हरियाली या छाया देने वाले साधन नहीं हैं, बल्कि इन्हें जीवन का आधार और दैवीय शक्ति का स्वरूप माना जाता है। बचपन से ही आपने देखा होगा कि मोहल्लों में लोग पीपल, तुलसी या नीम के पेड़ की पूजा करते हैं, उनकी परिक्रमा करते हैं और उनसे मनोकामनाएँ पूरी होने की प्रार्थना करते हैं। बरगद के नीचे बैठकर लोग बातें करते हैं, वहीं तुलसी के चौरे पर हर घर की सुबह और शाम दीपक जलाकर भक्ति का वातावरण बनता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन वृक्षों को हमारे धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं में इतना महत्व क्यों दिया गया है? क्यों इन्हें केवल पेड़ नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिकता का जीवित प्रतीक माना गया है? यही सवाल हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं और बताते हैं कि प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता कितना गहरा है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि भारतीय संस्कृति में वृक्षों का धार्मिक महत्व क्या है और लोग इन्हें देवतुल्य क्यों मानते हैं। फिर हम पढ़ेंगे कि वेदों और पुराणों में वृक्षों का उल्लेख किस रूप में मिलता है। इसके बाद, हम देखेंगे कि पीपल के वृक्ष का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है और आयुर्वेद में इसके औषधीय गुण किस तरह जीवन को लाभ पहुँचाते हैं। अंत में, हम समझेंगे कि आम का पेड़ हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों में क्यों पूजनीय है और यह हमारे सामाजिक व धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा कैसे बन गया।
भारतीय संस्कृति और वृक्षों का धार्मिक महत्व
भारतीय समाज में वृक्षों को केवल हरे-भरे पौधे नहीं, बल्कि जीवनदाता और दैवीय शक्ति का अवतार माना गया है। हमारी परंपराओं में बरगद के पेड़ को दीर्घायु और उर्वरता का प्रतीक समझा जाता है, वहीं पीपल को भगवान विष्णु और शनि का निवास स्थल माना जाता है। नीम और तुलसी जैसे वृक्ष पवित्रता, स्वास्थ्य और शुद्धता के प्रतीक हैं, जो हर घर के आंगन में पूजे जाते हैं। लोग आज भी वृक्षों की पूजा कर उनसे आशीर्वाद और मनोकामना की पूर्ति की कामना करते हैं। उनके चारों ओर धागा लपेटकर परिक्रमा करना भक्ति और आस्था का जीवंत हिस्सा है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है और समाज में एक गहरी सांस्कृतिक जड़ बनाए हुए है।
धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में वृक्षों का उल्लेख
हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी वृक्षों का महत्व बार-बार दर्शाया गया है। ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वृक्षों को कभी नष्ट नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे जीव-जंतुओं और मानव जीवन के रक्षक हैं। पुराणों में वृक्षों को देवताओं के समान दर्जा दिया गया है, जो उनके आध्यात्मिक मूल्य को और भी बढ़ा देता है। अग्नि पुराण में विशेष रूप से उल्लेख मिलता है कि बरगद का पेड़ उर्वरता का प्रतीक है और इसकी पूजा करने से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। यही नहीं, धार्मिक मान्यता यह भी कहती है कि जो व्यक्ति वृक्ष लगाता है या दान करता है, वह देवताओं को प्रसन्न करता है और उसे पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस तरह वृक्ष न केवल पर्यावरण का आधार हैं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अमूल्य हैं।
पीपल का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
पीपल का वृक्ष भारतीय संस्कृति और धर्म में सबसे पवित्र वृक्षों में गिना जाता है। भगवद गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है कि वे पीपल के वृक्ष में निवास करते हैं। यही वह वृक्ष है, जिसके नीचे बैठकर गौतम बुद्ध ने तपस्या की और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके बाद यह वृक्ष ‘बोधि वृक्ष’ के नाम से विख्यात हुआ। धार्मिक मान्यता यह भी है कि शुक्रवार की शाम से शनिवार की सुबह तक भगवान नारायण अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ पीपल में निवास करते हैं, और उस समय यदि कोई सच्चे मन से उनकी पूजा करता है, तो उसकी सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी पीपल का महत्व अद्वितीय है। यह वृक्ष दिन और रात दोनों समय ऑक्सीजन (Oxygen) उत्सर्जित करता है, जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और जीव-जंतुओं को जीवनदायी ऊर्जा मिलती है।
पीपल के स्वास्थ्य और औषधीय लाभ
आयुर्वेद में पीपल को चमत्कारी वृक्ष बताया गया है, जिसका उपयोग अनेक बीमारियों के उपचार में किया जाता है। इसकी जड़ों और पत्तियों में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) पाए जाते हैं, जो बुढ़ापे की गति को धीमा करते हैं और शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखते हैं। दांतों की समस्याओं को दूर करने के लिए इसका प्रयोग प्राचीन काल से किया जाता रहा है। अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी में भी पीपल के विभिन्न अंग उपयोगी माने जाते हैं। इसके अलावा घाव, जलन और सर्दी-जुकाम जैसे रोगों के उपचार में भी पीपल बेहद लाभकारी है। इसकी जीवाणुरोधी शक्ति शरीर को संक्रमण से बचाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यही कारण है कि इसे औषधीय दृष्टि से एक वरदान माना जाता है।
आम का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
आम का पेड़ केवल स्वादिष्ट फलों के कारण ‘फलों का राजा’ नहीं कहलाता, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी इसे अत्यंत पवित्र माना गया है। रामायण, महाभारत और पुराणों में आम के पेड़ और उसके फलों का विशेष उल्लेख मिलता है। धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ अवसरों पर आम के पत्तों का उपयोग अनिवार्य माना जाता है। घरों के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना तोरण लगाना सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है। कलश स्थापना में भी आम के पत्ते विशेष स्थान रखते हैं - कलश धरती का प्रतीक, उसमें भरा जल जीवन का प्रतीक, नारियल दिव्य चेतना का और आम के पत्ते जीवन का प्रतीक माने जाते हैं। धार्मिक यज्ञ और हवन में आम की लकड़ी का उपयोग किया जाता है, वहीं बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की पूजा में आम के बौर अर्पित किए जाते हैं। इस प्रकार, आम का वृक्ष धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में गहराई से जुड़ा हुआ है।
बौद्ध धर्म में आम का महत्व
हिंदू धर्म की तरह बौद्ध धर्म में भी वृक्षों को पवित्र और पूजनीय माना गया है। बौद्ध परंपरा में यह मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने श्रावस्ती नामक स्थान पर अपने चमत्कार से एक आम के वृक्ष की उत्पत्ति की थी। यह वृक्ष न केवल उनके अनुयायियों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बना, बल्कि बौद्ध धर्म में वृक्षों की विशेष भूमिका को भी स्थापित करता है। यही कारण है कि बौद्ध अनुयायी पीपल और आम दोनों वृक्षों को विशेष सम्मान और पूजा अर्पित करते हैं। ये वृक्ष आज भी बौद्ध स्थलों पर आस्था का केंद्र बने हुए हैं और उनके जीवन दर्शन से गहराई से जुड़े हैं।
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