जौनपुरवासियों जानिए, जलीय फफूंद कैसे फसलों के लिए चुनौती और इंसानों के लिए वरदान हैं

फफूंदी और मशरूम
22-10-2025 09:09 AM
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जौनपुरवासियों जानिए, जलीय फफूंद कैसे फसलों के लिए चुनौती और इंसानों के लिए वरदान हैं

जौनपुरवासियो, क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी मेहनत से उगाई गई फसलें, खेतों में पसीने की बूंदों से सींचे गए पौधे और भंडारगृहों में सुरक्षित रखे गए अनाज अचानक क्यों सड़ने और नष्ट होने लगते हैं? इसके पीछे एक अदृश्य कारण छिपा है - जलीय फफूंद। ये छोटे-छोटे सूक्ष्म जीव नमी वाले वातावरण में तेजी से पनपते हैं और फलों, सब्ज़ियों व अनाज को धीरे-धीरे बर्बाद कर देते हैं। खेतों में जब बारिश का पानी रुक जाता है, या जब भंडारण की जगह हवादार और साफ़-सुथरी नहीं होती, तब ये फफूंद और भी तेजी से फैलते हैं। इसका असर केवल किसानों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे जौनपुर के बाज़ारों और घरों तक पहुँचता है, जहाँ खराब हुई फसलें और कमज़ोर अनाज लोगों की थालियों तक नहीं पहुँच पाते। लेकिन कहानी का दूसरा पहलू भी उतना ही रोचक है। यही जलीय फफूंद और अन्य प्रकार के कवक, जो एक ओर हमारे भोजन के दुश्मन हैं, दूसरी ओर जीवन के साथी भी हैं। इन्हीं की मदद से हमें जीवन रक्षक दवाएँ मिलती हैं, स्वादिष्ट चीज़ (cheese), ब्रेड, बीयर (beer) और चॉकलेट जैसी चीज़ें संभव होती हैं, और यही हमारे खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाने में भी योगदान देते हैं। यानी, फफूंद केवल हानि का कारण नहीं, बल्कि प्रकृति का संतुलन बनाए रखने वाले महत्वपूर्ण घटक भी हैं। इसलिए, जौनपुरवासियो, इन्हें समझना और इनसे सही तरीके से निपटना हमारे लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि अपनी फसलों को सुरक्षित रखना।
आज हम सबसे पहले समझेंगे कि जलीय फफूंद क्या होते हैं और ये फलों, सब्ज़ियों और अनाज को कैसे प्रभावित करते हैं। इसके बाद हम किट्रिड कवक (Chytrids) की विशेषताओं और उनकी पहचान के बारे में जानेंगे। फिर, हम देखेंगे कि जलीय फफूंद पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में कैसे योगदान देते हैं और साथ ही, यह उभयचरों तथा पौधों में कौन-कौन से रोग फैलाते हैं। इसके आगे, हम किसानों के लिए इनसे बचाव के उपायों पर चर्चा करेंगे, जिनमें आनुवंशिक, सांस्कृतिक और रासायनिक नियंत्रण शामिल हैं। अंत में, हम कवक के औषधीय और खाद्य लाभों को जानेंगे और देखेंगे कि कैसे ये हमारी दवाओं, भोजन और पौधों की वृद्धि में सहायक भूमिका निभाते हैं।

जलीय फफूंद (Water Molds) और उनका प्रभाव
जलीय फफूंद नमी वाले वातावरण में पनपने वाले सूक्ष्म जीव हैं, जो फलों, सब्ज़ियों और अनाज जैसी कृषि उपज को गंभीर नुकसान पहुँचाते हैं। ये फफूंद विशेषकर छोटे फलों और सब्ज़ियों को तेजी से संक्रमित कर देते हैं, जिससे फसलें जल्दी सड़ने लगती हैं और उनका उपयोग असंभव हो जाता है। हर वर्ष कृषि उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा इन जलीय फफूंद के कारण नष्ट हो जाता है, जिससे किसानों को आर्थिक हानि के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ता है। इनका खतरा केवल खेतों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि भंडारण और परिवहन के दौरान भी यह सक्रिय रहते हैं और उपज को प्रभावित करते हैं। नमी, जलभराव और अनुचित भंडारण परिस्थितियाँ इनके फैलाव को और तेज़ कर देती हैं।

किट्रिड कवक की विशेषताएँ और पहचान
किट्रिड कवक कवक जगत के सबसे आदिम समूहों में माने जाते हैं। ये प्रायः गीली मिट्टी और जलमय वातावरण में पाए जाते हैं और आकार में इतने सूक्ष्म होते हैं कि अक्सर इन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ही देखा जा सकता है। इनकी कोशिका भित्ति चिटिन (Chitin) से बनी होती है और यह साइटोसोल (Cytosol) में ग्लाइकोजन (Glycogen) के रूप में कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate) संग्रहीत करते हैं। अन्य कवकों की तुलना में किट्रिड की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये कशाभिका (Flagella) युक्त गतिशील बीजाणु, जिन्हें ज़ूस्पोर्स (Zoospores) कहा जाता है, का उत्पादन करते हैं। यह गुण केवल इसी समूह में पाया जाता है और अन्य किसी कवक समूह में नहीं। अधिकांश किट्रिड मृत या सड़ते हुए कार्बनिक पदार्थों पर जीवित रहते हैं और इन्हें सैप्रोट्रॉफ़िक (Saprotrophic) जीवन शैली वाला कहा जाता है। इनका प्रजनन प्रायः अलैंगिक होता है, जिसमें ज़ूस्पोर्स (Zoospores) के माध्यम से ये तेजी से फैलते हैं।

जलीय फफूंद की पर्यावरणीय भूमिका
जलीय फफूंद केवल रोग फैलाने वाले ही नहीं हैं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इनकी एक खास भूमिका पराग कणों के उपभोग से जुड़ी है। कई आवासों में पराग प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते हैं और किट्रिड उन्हें विघटित कर प्राकृतिक चक्र को संतुलित बनाए रखते हैं। इनका छोटा आकार और जलीय प्रकृति इन्हें मिट्टी में मौजूद पानी में भी पनपने की क्षमता प्रदान करती है। लेकिन इनका नकारात्मक पहलू यह है कि कई बार ये जीव-जंतुओं और पौधों में गंभीर बीमारियों का कारण बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, उभयचरों में पाई जाने वाली चिट्रिडिओमाइकोसिस (Chytridiomycosis) नामक बीमारी ने विश्वभर में मेंढक और टोड (toad) की आबादी को काफी हद तक प्रभावित किया है और कुछ प्रजातियाँ तो विलुप्ति के कगार तक पहुँच गईं। इसके अलावा, कई किट्रिड प्रजातियाँ मछलियों, पौधों और शैवाल में भी संक्रमण फैलाती हैं, जिससे प्राकृतिक पारिस्थितिकी और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

कृषि में फफूंद से सुरक्षा के उपाय
कृषि उत्पादन में जलीय फफूंद से बचाव बेहद जरूरी है क्योंकि इनके कारण फसलों में व्यापक स्तर पर सड़न और हानि होती है। सबसे पहला कदम आनुवंशिक और सांस्कृतिक नियंत्रण है, जिसके अंतर्गत ऊँची क्यारियों का उपयोग करके खेतों में जड़ों के आसपास पानी जमा होने से बचाया जाता है। इससे जड़ संक्रमण फैलाने वाले फाइटोफ्थोरा (Phytophthora) और पाइथियम (Pythium) जैसे रोगजनक कवकों की संभावना कम हो जाती है। इसके अलावा, प्रतिरोधी या सहनशील किस्मों का चयन भी कारगर उपाय है। मल्चिंग (Mulching) तकनीक का प्रयोग करके पौधों के बीच भूसा या घास बिछाई जाती है, जिससे मिट्टी के छींटे पौधों तक नहीं पहुँचते और संक्रमण का खतरा घट जाता है। रासायनिक नियंत्रण भी एक उपाय है, लेकिन यह तभी प्रभावी होता है जब संक्रमण के शुरुआती चरण में इस्तेमाल किया जाए। देर से उपयोग करने पर इनका खास असर नहीं होता और लगातार उपयोग से कवक रसायनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। इसलिए रासायनिक नियंत्रण का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए और इसे आपातकालीन उपाय मानना बेहतर है।

File:Penicillium sps.jpg
पेनिसिलियम

कवक के औषधीय और खाद्य लाभ
कवक केवल हानि पहुँचाने वाले जीव नहीं हैं, बल्कि मानव जीवन में कई महत्वपूर्ण लाभ भी प्रदान करते हैं। दवा निर्माण में कवक का योगदान सबसे उल्लेखनीय है। उदाहरण के लिए, पेनिसिलियम रूबेन्स (Penicillium rubens) से बनी एंटीबायोटिक पेनिसिलिन (Antibiotic penicillin) ने जीवाणु संक्रमण के इलाज में क्रांति ला दी। इसी तरह, टॉलीपोक्लेडियम इनफ्लैटम (Tolypocladium inflatum) से बनने वाला साइक्लोस्पोरिन (Cyclosporine) अंग प्रत्यारोपण में जीवन रक्षक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। भोजन की दृष्टि से भी कवक का महत्व बहुत अधिक है। खाने योग्य मशरूम हमारे आहार को स्वादिष्ट और पौष्टिक बनाते हैं। पेनिसिलियम (Penicillium) की कुछ प्रजातियाँ चीज़ (रोक्फोर्ट (Roquefort) और कैमेम्बर्ट (Camembert)) को परिपक्व करने में प्रयोग होती हैं, जिससे उनका स्वाद और सुगंध विशिष्ट बनती है। इसी प्रकार, खमीर (Yeast) ब्रेड, बीयर और वाइन (wine) बनाने में अहम भूमिका निभाता है। यहाँ तक कि चॉकलेट के बीज भी एक किण्वन प्रक्रिया से गुज़रते हैं, जिसमें कवक और बैक्टीरिया मिलकर चॉकलेट का विशिष्ट स्वाद विकसित करते हैं।

मिट्टी और पौधों में सहायक कवक
कवक केवल रोगजनक ही नहीं, बल्कि पौधों के लिए सहयोगी भी होते हैं। माइकोरिज़ल (Mycorrhizal) कवक पौधों की जड़ों से जुड़कर उन्हें पानी और आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता में मदद करते हैं। अनुमान है कि पृथ्वी पर लगभग 90% पौधों की जड़ों में माइकोरिज़ल कवक का सहयोग मौजूद है। यह कवक पौधों को कीटों और सूखे से भी बचाते हैं और बदले में पौधों से शर्करा प्राप्त करते हैं, जिसे वे ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं। इसके अलावा, एंडोफाइटिक (Endophytic) कवक पौधों के भीतर जड़ों, तनों और पत्तियों में रहते हैं और पौधों की वृद्धि तथा प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। ये कवक पौधों को रोग और तनाव से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं और बदले में उन्हें पौधों से आश्रय और भोजन मिलता है। इस प्रकार, मिट्टी और पौधों के स्वास्थ्य में कवकों की भूमिका उतनी ही सकारात्मक है जितनी नकारात्मक।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/26f7n39y