कैसे रीसाइकल्ड रेशम, परंपरा और टिकाऊ भविष्य के बीच एक सुनहरी कड़ी बन रहा है?

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
24-11-2025 09:20 AM
कैसे रीसाइकल्ड रेशम, परंपरा और टिकाऊ भविष्य के बीच एक सुनहरी कड़ी बन रहा है?

रेशम सदियों से भारतीय संस्कृति, फैशन और कला का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसकी चमक, कोमलता और गरिमा ने हर युग में लोगों का दिल जीता है - चाहे वह शाही दरबार हों या लोकपरिधान। जौनपुर जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध नगर में, जहाँ बुनाई और पारंपरिक शिल्प का गहरा इतिहास रहा है, रेशम हमेशा से सौंदर्य और शालीनता का प्रतीक माना गया है। लेकिन आधुनिक समय में रेशम उद्योग के सामने पर्यावरणीय और नैतिक चुनौतियाँ तेज़ी से बढ़ रही हैं - अत्यधिक जल उपयोग, रासायनिक रंगों का प्रयोग और कोकून उत्पादन की परंपरागत पद्धतियाँ प्रकृति पर भारी पड़ रही हैं। ऐसे में रीसाइकल्ड (recycled) रेशम, यानी पुनः उपयोग किया गया रेशम, एक नई दिशा दिखा रहा है। यह न केवल पुराने रेशमी कपड़ों और धागों को नया जीवन देता है, बल्कि कचरे को कम कर पर्यावरण की रक्षा में भी अहम भूमिका निभा रहा है।
आज हम जानेंगे कि रीसाइकल्ड रेशम किस तरह पर्यावरण की रक्षा करता है, इसके उत्पादन की प्रक्रिया में क्या-क्या चरण शामिल हैं, और यह फ़ैशन उद्योग में कैसे एक नई पहचान बना रहा है। साथ ही, हम यह भी समझेंगे कि सिल्क वेस्ट क्या होता है और इसे पुनः प्रयोग में लाना क्यों आवश्यक है।

रीसाइकल्ड रेशम का बढ़ता महत्व
रीसाइकल्ड रेशम आज के दौर में एक क्रांतिकारी बदलाव की तरह सामने आया है, जो फैशन और पर्यावरण - दोनों को एक साथ जोड़ता है। यह रेशम, पुराने कपड़ों, धागों, या त्यागे गए कोकून से प्राप्त रेशमी तंतुओं को पुनः संसाधित कर तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में न केवल पुराने कचरे का सदुपयोग होता है, बल्कि पारंपरिक रेशम उत्पादन की तुलना में लागत भी काफी कम आती है। इस पुनर्चक्रण के ज़रिए कपड़ा उद्योग को नई दिशा मिल रही है। पुराने रेशमी टुकड़ों से सुंदर स्कार्फ़, दुपट्टे, कुशन कवर, हैंडबैग (handbag) और यहाँ तक कि आधुनिक परिधान तक तैयार किए जा रहे हैं। यह न केवल कारीगरों को नया रोज़गार देता है, बल्कि उनके कौशल को वैश्विक मंच पर पहचान भी दिलाता है। सबसे अहम बात यह है कि रीसाइकल्ड रेशम पर्यावरण के लिए एक संवेदनशील विकल्प है। यह उत्पादन में कम पानी, ऊर्जा और रसायनों की आवश्यकता रखता है, जिससे कार्बन फुटप्रिंट (carbon footprint) घटता है। आज की पीढ़ी, जो “सस्टेनेबल फ़ैशन” (sustainable fashion) की ओर झुकाव रखती है, उसके लिए रीसाइकल्ड रेशम सौंदर्य और ज़िम्मेदारी - दोनों का प्रतीक बन गया है।

पर्यावरण संरक्षण में रीसाइकल्ड रेशम की भूमिका
रीसाइकल्ड रेशम पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में एक अनदेखा नायक साबित हो रहा है। पारंपरिक रेशम उत्पादन में बड़ी मात्रा में पानी, रसायन और बिजली की खपत होती है, साथ ही कीटनाशकों और मल्बरी खेती से मिट्टी की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, रीसाइकल्ड रेशम में पहले से मौजूद रेशमी अवशेषों को फिर से उपयोग में लाया जाता है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों की मांग घटती है। इससे न केवल जल और ऊर्जा की बचत होती है, बल्कि रासायनिक अपशिष्ट में भी भारी कमी आती है। रीसाइकलिंग प्रक्रिया स्थानीय स्तर पर छोटे पैमाने के उद्योगों और हस्तशिल्पियों को भी सशक्त बनाती है, क्योंकि इसमें भारी मशीनों या नए संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती। इसके अतिरिक्त, रीसाइकल्ड रेशम कार्बन उत्सर्जन को भी कम करता है, क्योंकि नए कोकून उत्पादन की ज़रूरत नहीं पड़ती। यही वजह है कि यह न केवल टिकाऊ उत्पादन का उदाहरण है, बल्कि पर्यावरण-हितैषी उद्योगों के भविष्य की कुंजी भी है।

फ़ैशन ब्रांड्स द्वारा रीसाइकल्ड रेशम का प्रयोग
आज के समय में, जब उपभोक्ता केवल सुंदरता ही नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी की भी तलाश में हैं, तब विश्व के कई प्रसिद्ध फ़ैशन ब्रांड रीसाइकल्ड रेशम को अपनाने लगे हैं।

  • एलीन (Eileen Fisher) जैसे ब्रांड ने “रीन्यू कलेक्शन” (Renew Collection) के माध्यम से पुराने रेशमी परिधानों को पुनः डिज़ाइन कर नया रूप दिया है। ये वस्त्र न केवल आकर्षक हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि पर्यावरण-जागरूकता भी फ़ैशन का हिस्सा बन सकती है।
  • पेटागोनिया (Patagonia) ने अपने सिल्कवेट कैपिलीन (Silk Weight Capilene) श्रृंखला में रीसाइकल्ड रेशम को शामिल कर टिकाऊपन और आराम दोनों को एक साथ जोड़ा है। 
  • वहीं  रेफर्मेशन (Reformation) ने अपने हर कलेक्शन में रीसाइकल्ड रेशम के प्रयोग से “Eco-friendly Glamour” की नई पहचान बनाई है।
  • स्टेला मेकार्टनी (Stella McCartney), जो क्रूएल्टी-फ़्री फ़ैशन (Cruelty-Free Fashion) की अग्रणी हैं, ने पशु उत्पादों के स्थान पर रीसाइकल्ड रेशम को अपनाकर यह दिखाया है कि सौंदर्य और नैतिकता एक साथ चल सकते हैं।

रेशम उत्पादन की पारंपरिक प्रक्रिया और उसमें सुधार
रेशम निर्माण एक प्राचीन और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें प्रकृति, धैर्य और कौशल तीनों का अनोखा मेल होता है। यह यात्रा रेशम के कीड़ों (Silkworms) से शुरू होती है, जिन्हें मुलबेरी (शहतूत) के पत्तों पर पाला जाता है। कुछ सप्ताहों के भीतर ये कीड़े अपने चारों ओर कोकून बुन लेते हैं, जिनसे रेशम का धागा निकाला जाता है। इसके बाद यह कोकून भाप या गर्म पानी में उबालकर मुलायम किए जाते हैं, ताकि उनसे महीन धागे निकाले जा सकें। फिर रीलिंग (reeling), डीफ़्लॉसिंग (Deflosing), डाईंग (dyeing), स्पिनिंग (Spining) और बुनाई जैसे कई चरणों से गुजरकर यह सुंदर रेशमी कपड़ों में बदल जाता है। अब इस पारंपरिक प्रक्रिया में आधुनिक बदलाव भी आए हैं। कई उत्पादन इकाइयाँ अब पर्यावरण अनुकूल रंगाई, जल पुनर्चक्रण प्रणाली और सौर ऊर्जा चालित मशीनरी का उपयोग कर रही हैं। वहीं रीसाइकल्ड रेशम इस सुधार को और आगे बढ़ाता है, क्योंकि यह पहले से मौजूद रेशमी सामग्री को दोबारा उपयोग में लाता है, जिससे नई खेती और ऊर्जा की आवश्यकता घटती है।

सिल्क वेस्ट (Silk Waste) क्या है और इसका पुनः उपयोग क्यों ज़रूरी है
सिल्क वेस्ट, जिसे स्थानीय भाषा में “कता रेशम” भी कहा जाता है, रेशम उत्पादन का वह हिस्सा है जिसे अक्सर अनुपयोगी मान लिया जाता है। इसमें अधूरे कोकून, कटे हुए रेशमी धागे, रंगाई के दौरान बचे अवशेष और टूटे तंतु शामिल होते हैं। असल में, यही “कचरा” रीसाइकल्ड रेशम का मुख्य स्रोत है। इन अवशिष्ट तंतुओं को दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जाता है -

  1. गम वेस्ट (Gum Waste) – यह रीलिंग प्रक्रिया के दौरान निकलता है जब कोकून से रेशम के धागे निकाले जाते हैं।
  2. थ्रोस्टर वेस्ट (Throwster Waste) – यह बुनाई, स्पिनिंग और फिनिशिंग के चरणों में उत्पन्न होता है।

इन अपशिष्ट तंतुओं को विशेष तकनीक से साफ़ कर, संसाधित कर, फिर से धागों और कपड़ों में बदला जाता है। इससे न केवल उत्पादन लागत घटती है बल्कि पर्यावरणीय बोझ भी कम होता है। सिल्क वेस्ट के पुनः उपयोग से स्थानीय उद्योगों को नया जीवन मिलता है और ग्रामीण क्षेत्रों में कारीगरों के लिए रोज़गार के अवसर भी पैदा होते हैं। इस प्रकार, “कचरे से कारीगरी” की यह यात्रा न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है, बल्कि प्रकृति के साथ संतुलन का सुंदर उदाहरण भी प्रस्तुत करती है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/bdcnrmra 
https://tinyurl.com/ybb26p55 
https://tinyurl.com/bdtp3w4n 
https://tinyurl.com/ydh9rnpz  



Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.