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उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में पीढ़ियों से सजीव रही ऐपन कला (Aipan Art) केवल एक सजावटी परंपरा नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और सौंदर्य का प्रतीक है। ‘ऐपन’ शब्द संस्कृत के ‘अर्पण’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है समर्पण या अर्पण करना। यही इस कला की आत्मा है - हर आकृति, हर रेखा में देवताओं के प्रति भक्ति और घर की मंगलकामना समाई होती है। पूजा, व्रत, शादी-ब्याह या नामकरण जैसे हर शुभ अवसर पर कुमाऊँनी महिलाएँ अपने आँगन, चौखट और पूजा स्थलों को लाल और सफेद रंगों से बनी ऐपन आकृतियों से सजाती हैं, ताकि घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का वास हो।
ऐपन कला में दो प्रमुख रंग होते हैं - लाल गेरू (लाल मिट्टी) और सफेद बिस्वार (पके चावलों से बना पेस्ट)। पहले गोबर और पानी से सतह को शुद्ध किया जाता है, फिर गेरू का आधार लगाया जाता है, और अंत में बिस्वार से देवी-देवताओं, ज्यामितीय आकृतियों और शुभ प्रतीकों को उकेरा जाता है। यह प्रक्रिया न केवल कलात्मक होती है बल्कि धार्मिक और मानसिक शुद्धि का माध्यम भी मानी जाती है। कुमाऊँनी महिलाएँ उंगलियों से ही ये रचनाएँ बनाती हैं। हर डिज़ाइन का अपना अर्थ होता है - केंद्र में बना बिंदु ब्रह्मांड के मूल का प्रतीक है, जबकि ऊर्ध्व रेखाएँ वासुधारा कहलाती हैं, जो निरंतर समृद्धि का प्रतीक हैं। अलग-अलग अवसरों पर विशेष चौकियाँ बनाई जाती हैं - जैसे सरस्वती चौकी विद्या आरंभ के लिए, नवदुर्गा चौकी देवी पूजा के लिए, शिवार्चन पीठ भगवान शिव की आराधना के लिए, और लक्ष्मी यंत्र दीपावली के अवसर पर धन-समृद्धि के स्वागत के लिए।
पहले ऐपन कला केवल दीवारों और फर्श तक सीमित थी, लेकिन आज यह आधुनिक रूप लेकर नए माध्यमों में ढल चुकी है। अब यह कला लकड़ी के बॉक्स (box), ट्रे (tray), कोस्टर (costar), गिफ्ट टैग (gift tag), और कपड़ों पर भी दिखने लगी है। इससे न केवल इसकी पहचान बढ़ी है बल्कि स्थानीय महिलाओं को आजीविका के नए अवसर भी मिले हैं। इस पारंपरिक कला को नया जीवन देने में नैनीताल की मीनाक्षी खाती और रूचि नैणवाल जैसी कलाकारों ने अहम भूमिका निभाई है। मीनाक्षी ने 2019 में द ऐपन प्रोजेक्ट शुरू किया, जिससे ग्रामीण महिलाओं को घर बैठे रोजगार और आत्मनिर्भरता का अवसर मिला। वहीं, रूचि नैणवाल ने 15 वर्षों से इस कला को सिखाने और इसे व्यावसायिक पहचान दिलाने में योगदान दिया है।
उत्तराखंड सरकार और हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट काउंसिल (UHHDC) भी ऐपन कलाकारों को प्रशिक्षण, विपणन और सहायता प्रदान कर रही है। 2015 में राज्य सरकार ने सरकारी भवनों में ऐपन कला को स्थान देने और “चेली ऐपन योजना” जैसी पहल शुरू कर इस परंपरा को संरक्षित करने का प्रयास किया। सितंबर 2021 में ऐपन कला को भौगोलिक संकेत (जीआई टैग - GI Tag) प्राप्त हुआ, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान और स्थानीय कलाकारों को आर्थिक सुरक्षा मिली। आज ऐपन केवल एक कला नहीं, बल्कि कुमाऊँ की सांस्कृतिक आत्मा है - जो दिखाती है कि परंपरा यदि संवेदनाओं से जुड़ी हो, तो समय के साथ और भी सुंदर रूप में खिल उठती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/yzrr963c
https://tinyurl.com/ykhhxc9x
https://tinyurl.com/nhsk3ajp
https://tinyurl.com/ymm7bu4j
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