कैसे हिमालय, दुनिया का ‘तीसरा ध्रुव’ बनकर, हम जौनपुरवासियों के जीवन को प्रभावित करता है?

जलवायु और मौसम
27-11-2025 09:22 AM
कैसे हिमालय, दुनिया का ‘तीसरा ध्रुव’ बनकर, हम जौनपुरवासियों के जीवन को प्रभावित करता है?

जौनपुरवासियो, क्या आपने कभी सोचा है कि सैकड़ों किलोमीटर दूर हिमालय की बर्फ़ और चोटियाँ हमारे जीवन पर कितना गहरा असर डालती हैं? यह वही पर्वत श्रृंखला है जो न केवल भारत, बल्कि पूरे एशिया के जल, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखती है। उत्तर और दक्षिण ध्रुव के बाद, हिमालय को “दुनिया का तीसरा ध्रुव” कहा जाता है, क्योंकि इसमें पृथ्वी के सबसे बड़े जमे हुए जल भंडार मौजूद हैं। इन बर्फ़ीले पहाड़ों से निकलने वाली नदियाँ जैसे गंगा और ब्रह्मपुत्र, जौनपुर जैसे मैदानी इलाकों की जीवनरेखा हैं - जो हमारी खेती, पेयजल और मौसम के स्वरूप को निर्धारित करती हैं। इसलिए जब हिमालय की बर्फ़ पिघलती है या वहाँ का तापमान बदलता है, तो इसका असर हमारे खेतों, नदियों और यहाँ तक कि हमारी साँसों तक पहुँचता है।
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि “तीसरा ध्रुव” - यानी हिंदू कुश - कराकोरम - हिमालय क्षेत्र - क्या है और यह हमारे जीवन से इतना गहराई से क्यों जुड़ा हुआ है। पहले हम समझेंगे कि इसे “तीसरा ध्रुव” कहे जाने का कारण और इसका भौगोलिक महत्व क्या है। इसके बाद जानेंगे कि इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ कैसे एशिया के जल संसाधनों और करोड़ों लोगों के जीवन का आधार बनती हैं। आगे चलकर, हम देखेंगे कि यह हिमालयी क्षेत्र वैश्विक जलवायु और मानसून प्रणाली को किस प्रकार प्रभावित करता है, और अंत में, ग्लेशियरों (glaciers) के पिघलने से उत्पन्न खतरों व उनके संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों पर चर्चा करेंगे।

दुनिया के तीसरे ध्रुव का परिचय और महत्व
हिंदू कुश-कराकोरम-हिमालय (HKKH) क्षेत्र लगभग 3,500 किलोमीटर में फैला हुआ है और यह दुनिया की सबसे भव्य पर्वत प्रणालियों में से एक है। यह अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश - इन आठ देशों में फैला है। इस क्षेत्र में 7,000 मीटर से ऊँची सैकड़ों चोटियाँ हैं, जिनमें माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) (8,848 मीटर) जैसी विश्व की सर्वोच्च चोटी भी शामिल है। इस क्षेत्र में बर्फ़ और हिम का इतना विशाल भंडार है कि इसे आर्कटिक (Arctic) और अंटार्कटिका (Antarctic) के बाद तीसरा सबसे बड़ा हिमीय क्षेत्र माना जाता है। यही कारण है कि वैज्ञानिक इसे “दुनिया का तीसरा ध्रुव (Third Pole)” कहते हैं। इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र को “एशिया का वॉटर टॉवर (Water Tower)” भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ से निकलने वाली नदियाँ करोड़ों लोगों के जीवन और कृषि का प्रमुख आधार हैं। वास्तव में, यह पर्वतीय क्षेत्र जल, ऊर्जा, जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन का केंद्र है, जो पूरे एशिया के लिए जीवनदायिनी भूमिका निभाता है।

तीसरे ध्रुव की नदियाँ और एशिया के जल संसाधन
हिंदू कुश-कराकोरम-हिमालय क्षेत्र 10 प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है - अमू दरिया, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेकांग, यांग्त्से, साल्विन, यैलो, तारिम और इरावडी। ये नदियाँ एशिया के 16 देशों से होकर बहती हैं और लगभग 2 अरब लोगों को मीठे पानी की सुविधा प्रदान करती हैं। इन नदियों के माध्यम से करोड़ों किसान अपनी फसलों की सिंचाई करते हैं, उद्योगों को ऊर्जा मिलती है, और शहरों को जलापूर्ति होती है। गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ भारतीय उपमहाद्वीप की सभ्यता की आत्मा हैं - जो जीवन, संस्कृति और आस्था को जोड़ती हैं। यदि हिमालय के ग्लेशियर और हिम क्षेत्र समाप्त हो जाएँ, तो इन नदियों का जलस्तर और प्रवाह दोनों प्रभावित होंगे, जिससे पीने के पानी, कृषि और ऊर्जा उत्पादन में गंभीर संकट आ सकता है। इसलिए कहा जाता है कि - “हिमालय का स्वास्थ्य, एशिया का भविष्य तय करता है।”

तीसरा ध्रुव और वैश्विक जलवायु पर उसका प्रभाव
तीसरा ध्रुव केवल जल का स्रोत नहीं, बल्कि वैश्विक जलवायु प्रणाली का संतुलनकर्ता भी है। यह क्षेत्र एशियाई मानसून के स्वरूप, वर्षा वितरण और तापमान पर सीधा प्रभाव डालता है। जब हिमालय की बर्फ़ सूर्य की किरणों को परावर्तित करती है, तो यह पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित रखने में मदद करती है। लेकिन जब यही बर्फ़ तेज़ी से पिघलने लगती है, तो यह वैश्विक ऊष्मीकरण (Global Warming) को और बढ़ा देती है। तीसरे ध्रुव का पारिस्थितिकी तंत्र - जैसे कि इसके ग्लेशियर, बर्फ़ीली झीलें, घास के मैदान और जंगल - एक-दूसरे पर निर्भर हैं। तापमान में हल्का-सा परिवर्तन भी न केवल स्थानीय मौसम को, बल्कि पूरे एशिया के वर्षा चक्र को प्रभावित कर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि हिमालय में तापमान बढ़ता रहा, तो भारत, चीन और नेपाल जैसे देशों में मानसूनी वर्षा का संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे बाढ़ और सूखे दोनों की संभावना बढ़ जाएगी।

हिमालयी ग्लेशियरों का पिघलना और दक्षिण एशिया पर खतरा
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर चिंताजनक गति से पिघल रहे हैं। अध्ययनों के अनुसार, पिछले कुछ शताब्दियों में हिमालय के लगभग 40% ग्लेशियर सिकुड़ चुके हैं। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले दशकों में सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों का जलप्रवाह असंतुलित हो जाएगा। गर्मियों में अचानक बाढ़ और सर्दियों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस पिघलाव के कारण भूस्खलन, ग्लेशियर झील उफान बाढ़ (GLOF) और जलाशयों के टूटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का ख़तरा बढ़ रहा है। लगभग एक अरब लोग, जो इन नदियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं, इन परिवर्तनों से प्रभावित हो सकते हैं। कृषि उत्पादन, जलविद्युत परियोजनाएँ और शहरी जलापूर्ति - तीनों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। यह सिर्फ़ पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व के लिए चेतावनी है।

ग्लेशियरों के संरक्षण हेतु वैश्विक और क्षेत्रीय प्रयास
तीसरे ध्रुव की सुरक्षा को लेकर विश्व स्तर पर कई प्रयास किए जा रहे हैं। “थर्ड पोल एनवायरनमेंट” (Third Pole Environment) नामक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक कार्यक्रम, 2014 से हिमालय और तिब्बती पठार में 11 स्थायी शोध स्टेशनों के माध्यम से मौसम और बर्फ़ के पैटर्न का अध्ययन कर रहा है। इसके अलावा, ग्रीन क्लाइमेट फ़ंड (GCF) द्वारा समर्थित “क्लाइमेट रेजिलिएंस इन द थर्ड पोल” (Climate Resilience in the Third Pole) परियोजना इस क्षेत्र में जलवायु अनुकूलन और चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने पर केंद्रित है। इन प्रयासों के तहत वैज्ञानिक समुदाय स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम कर रहा है - ताकि खेती, जल प्रबंधन और आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली को सशक्त बनाया जा सके। हिमालयी राज्यों जैसे सिक्किम, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में भी कई इको-रिस्टोरेशन (Eco Restoration) परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, जिनका उद्देश्य पेड़-पौधों की बहाली और मृदा संरक्षण के माध्यम से बर्फ़ के नुकसान को कम करना है। इन सबका अंतिम लक्ष्य एक ही है - तीसरे ध्रुव की ठंडक को बनाए रखना, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी जीवनदायिनी नदियों और वनों से लाभान्वित हो सकें।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/mwuh9uk7
https://tinyurl.com/bdzb4ybj
https://tinyurl.com/2tp7eard
https://tinyurl.com/bdfyp3ae
https://tinyurl.com/u3nswnky 



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