क्यों जौनपुर की खुशबू, आज भी दुनिया के इत्र बाज़ारों में अपनी पहचान बनाए हुए है?

गंध - सुगंध/परफ्यूम
12-12-2025 09:26 AM
क्यों जौनपुर की खुशबू, आज भी दुनिया के इत्र बाज़ारों में अपनी पहचान बनाए हुए है?

जौनपुरवासियों, जब बात आती है सुगंध, परंपरा और शिल्प की, तो आपका शहर किसी परिचय का मोहताज नहीं। सदियों पुरानी यह धरती उस ख़ास खुशबू के लिए जानी जाती है, जो सिर्फ़ फूलों से नहीं, बल्कि जौनपुर की मिट्टी, मेहनत और रूह से निकलती है। यहाँ की गलियों में इत्र की महक सिर्फ़ हवा में नहीं, बल्कि लोगों की यादों, किस्सों और इतिहास में बसती है। कभी नवाब यूसुफ रोड, कोतवाली क्षेत्र और शाही पुल के आसपास इत्र की दुकानों में मिट्टी के कूँडों से उठती महक पूरे शहर को महका देती थी। गुलाब, चमेली, केवड़ा, खस - हर खुशबू में एक कहानी थी, जो इस शहर की पहचान बन गई। जौनपुर का इत्र न केवल भारत के राजमहलों और दरबारों में पसंद किया गया, बल्कि इसकी सुगंध फारस, अरब और यूरोप तक पहुँची। आज भी जब कोई इत्र की शीशी खोलता है, तो उसमें जौनपुर के इतिहास की झलक और उसकी परंपरा की गरिमा महसूस होती है। यह सिर्फ़ एक व्यापार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत है - जिसने जौनपुर को सच्चे मायनों में “खुशबू का शहर” बना दिया।
इस लेख में हम जानेंगे कि जौनपुर का इत्र उद्योग कैसे शुरू हुआ और कैसे उसने विश्वभर में अपनी पहचान बनाई। इसके बाद, हम समझेंगे कि इत्र बनाने की प्रक्रिया में प्राकृतिक तेलों, मद्यसार और सुगंध के विज्ञान का क्या योगदान है। फिर, हम इत्र की विभिन्न श्रेणियों और उनमें मौजूद तेल की एकाग्रता के स्तर को जानेंगे, ताकि यह समझ सकें कि कौन-सा इत्र कितनी देर तक टिकता है। अंत में, हम यह भी सीखेंगे कि इत्र खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ।

जौनपुर का इत्र उद्योग — इतिहास और वैश्विक प्रसिद्धि
जौनपुर का इत्र उद्योग भारत की पारंपरिक सुगंध कला का जीवंत प्रतीक है। यह कोई आधुनिक प्रयोग नहीं, बल्कि एक विरासत है जो मुगलकाल, नवाबी शासन और औपनिवेशिक युग तक फैली हुई है। पुराने जमाने में जब शाही दरबारों में शानो-शौकत का दौर था, तब इत्र वहाँ की शिष्टता का अभिन्न हिस्सा हुआ करता था - और जौनपुर के इत्र ने उस महक में अपनी जगह बना ली थी। नवाब यूसुफ रोड, कोतवाली क्षेत्र और शाही पुल के आसपास इत्र की छोटी-छोटी कच्ची दुकानें और कारखाने हुआ करते थे। कच्ची मिट्टी के बर्तनों में महीनों तक फूलों से तेल निकालने की प्रक्रिया चलती थी। उस समय के कारीगर अपने नुस्खों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते रहे, जिससे जौनपुर का इत्र “देसी परफ्यूम” के रूप में मशहूर हुआ। जौनपुर का इत्र सिर्फ़ भारत तक सीमित नहीं रहा - यह अरब, ईरान, तुर्की, मिस्र और यूरोप तक निर्यात किया जाता था। फारसी कवियों और विद्यापति जैसे भारतीय साहित्यकारों की रचनाओं में इसकी महक का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार, जौनपुर केवल एक व्यापारिक केंद्र नहीं, बल्कि सुगंध के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में जाना जाने लगा।

इत्र कैसे बनता है — प्राकृतिक तेल, मद्यसार और सुगंध का विज्ञान
इत्र बनाना वास्तव में एक सूक्ष्म कला और रासायनिक विज्ञान का सुंदर संयोजन है। इसमें प्रकृति और मानव कौशल दोनों की भूमिका होती है। सबसे पहले, फूलों (जैसे गुलाब, चमेली, केवड़ा, खस, चंपा, रजनीगंधा आदि) से तेल निकाला जाता है - इसे अत्तर कहा जाता है। यह प्रक्रिया परंपरागत रूप से “देग-भाप” विधि से की जाती है, जिसमें मिट्टी के पात्रों में फूलों को उबाला जाता है और उनकी भाप को ठंडा कर तेल के साथ मिलाया जाता है। यही वह चरण होता है जहाँ से इत्र की आत्मा जन्म लेती है। इसके बाद, इन तेलों को मद्यसार (alcohol) के साथ एक सटीक अनुपात में मिलाया जाता है। मद्यसार इत्र के अणुओं को स्थिर करता है और उसे त्वचा पर लंबे समय तक टिकने में मदद करता है। यह वही तत्व है जो इत्र को “टॉप नोट्स” (Top Notes), “मिडिल नोट्स” (Middle Notes) और “बेस नोट्स” (Base Notes) में विभाजित करता है। टॉप नोट्स वह महक होती है जो आपको तुरंत महसूस होती है; मिडिल नोट्स वे हैं जो कुछ समय बाद उभरती हैं; और बेस नोट्स वही गहरी सुगंध होती है जो कई घंटों तक बनी रहती है। यही संतुलन तय करता है कि कोई इत्र हल्का, मध्यम या गहरा महसूस होगा।

इत्र की प्रमुख श्रेणियाँ और उनकी एकाग्रता का स्तर
हर इत्र की अपनी पहचान होती है - कुछ तेज़ और प्रभावशाली, तो कुछ हल्के और नाजुक। यह भिन्नता इत्र में मौजूद सुगंधित तेलों की मात्रा या सांद्रता (concentration) पर निर्भर करती है।

  • परफ्यूम (Perfume) सबसे सघन और लंबे समय तक टिकने वाला होता है। इसमें लगभग 20% से 30% तक सुगंधित तेल मिलाए जाते हैं। इसकी एक बूँद पूरे दिन की महक के लिए पर्याप्त होती है। यह अक्सर विशेष मौकों पर या रात के समय के लिए उपयुक्त माना जाता है।
  • यू डी परफम (Eau de Parfum) में तेल की मात्रा थोड़ी कम (15-20%) होती है, लेकिन इसकी लोकप्रियता सबसे अधिक है। यह रोज़मर्रा के उपयोग के लिए आदर्श माना जाता है क्योंकि इसकी खुशबू गहरी होते हुए भी अत्यधिक नहीं लगती।
  • यू डी ट्वालेट (Eau de Toilette) हल्की महक वाला इत्र है, जिसमें 5-15% तक सुगंधित तेल होता है। यह दिनभर की सामान्य दिनचर्या या दफ्तर के माहौल के लिए उपयुक्त रहता है।
  • यू डी कोलोन (Eau de Cologne) 2-4% तेल के साथ सबसे हल्की श्रेणी में आता है। यह कुछ घंटों तक ही टिकता है और मुख्य रूप से गर्मियों में ताज़गी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  • यू फ़्राइचे (Eau Fraiche) और भी हल्का होता है, लगभग 1-3% तेल के साथ। यह अधिकतर पानी आधारित होता है और गर्मियों या यात्रा के दौरान हल्के स्प्रे की तरह प्रयोग में लाया जाता है।

कौन सा इत्र कितनी देर तक टिकता है — सही चयन का विज्ञान
सुगंध का टिकाव सिर्फ़ इत्र की गुणवत्ता पर नहीं, बल्कि आपके शरीर के तापमान, त्वचा के प्रकार और मौसम पर भी निर्भर करता है। अगर आपकी त्वचा शुष्क है, तो इत्र जल्दी उड़ जाता है, जबकि तैलीय त्वचा पर यह अधिक देर तक बना रहता है। भारी और गहरी सुगंध वाले परफ्यूम ठंडे मौसम के लिए अच्छे माने जाते हैं क्योंकि वे शरीर की गर्मी से धीरे-धीरे महकते हैं। वहीं, हल्के यू डी ट्वालेट या कोलोन गर्मियों में उपयुक्त रहते हैं ताकि महक ताज़ा और सुकूनभरी लगे। दिनभर के उपयोग के लिए यू डी परफम एक संतुलित विकल्प है - न बहुत तेज़, न बहुत हल्का। रात की पार्टियों या औपचारिक आयोजनों के लिए परफ्यूम का चयन आपके व्यक्तित्व को और आकर्षक बना देता है। अंततः, सही इत्र वही है जो आपके मूड, मौसम और अवसर के अनुरूप हो - क्योंकि इत्र केवल महक नहीं, बल्कि एक भावनात्मक छवि भी है जो दूसरों पर आपकी छाप छोड़ती है।

इत्र खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें — ब्रांड, लेबल और परीक्षण विधि
इत्र खरीदना केवल पसंद की बात नहीं, बल्कि समझदारी का फैसला भी है। बाजार में सैकड़ों ब्रांड और हजारों सुगंध उपलब्ध हैं, पर सही चुनाव वही है जो आपकी त्वचा और व्यक्तित्व दोनों से मेल खाए।
सबसे पहले, बोतल पर लिखे शब्द ध्यान से पढ़ें - जैसे यू डी परफम, यू डी ट्वालेट आदि, क्योंकि ये बताते हैं कि इत्र कितना सघन है और कितनी देर टिकेगा। कभी भी इत्र को सीधे बोतल से सूंघकर फैसला न करें। उसे अपनी कलाई या गर्दन के पास हल्का-सा स्प्रे करें और कुछ मिनट इंतजार करें। शरीर की गर्मी और रासायनिक प्रकृति के अनुसार ही असली खुशबू सामने आती है। महंगे ब्रांड का मतलब हमेशा बेहतर गुणवत्ता नहीं होता। कई स्थानीय या हस्तनिर्मित इत्र उतने ही प्रभावी और लंबे समय तक टिकने वाले होते हैं। जौनपुर के कारीगर आज भी पारंपरिक तरीकों से इत्र तैयार करते हैं, और यही उनकी असली ताकत है। इत्र खरीदते समय एक बात हमेशा याद रखें - सही इत्र वह नहीं जो दूसरों को अच्छा लगे, बल्कि वह है जो आपकी पहचान को परिभाषित करे।

संदर्भ- 
https://nyti.ms/3GYfdvK 
https://bit.ly/3MdGona  
https://bit.ly/3NB1CwZ 
https://tinyurl.com/3tubk8mp 



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