जौनपुर में कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा और पोश (PoSH) अधिनियम की भूमिका

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15-12-2025 09:24 AM
जौनपुर में कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा और पोश (PoSH) अधिनियम की भूमिका

जौनपुर की महिलाएँ आज शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय और सरकारी संस्थानों सहित विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी से काम कर रही हैं। चाहे वह स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षण हो, अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ हों, सरकारी कार्यालय या व्यापारिक संस्थान, महिलाएँ हर क्षेत्र में अपनी मेहनत और क्षमता साबित कर रही हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न आज भी एक गंभीर और संवेदनशील समस्या बनी हुई है। कामकाजी महिलाओं के लिए यह आवश्यक है कि उनका कार्यस्थल सुरक्षित, सहयोगी और सम्मानजनक वातावरण प्रदान करे। इसी संदर्भ में, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम (Prevention of Sexual Harassment - PoSH), 2013 या पोश अधिनियम उनकी सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा करता है।
इस लेख में हम जानेंगे कि कामकाजी महिलाओं के लिए पोश अधिनियम कैसे काम करता है। हम विस्तार से समझेंगे इसके ऐतिहासिक और कानूनी संदर्भ, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा और निवारण प्रक्रिया, आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee) और स्थानीय समिति (Local Committee) की भूमिका, कानूनी जिम्मेदारियाँ और रिपोर्टिंग प्रणाली, साथ ही चुनौतियाँ और उनके व्यवहारिक समाधान।

पोश अधिनियम का ऐतिहासिक और कानूनी संदर्भ
कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए पोश (PoSH) अधिनियम का निर्माण 2013 में हुआ। इसके पीछे 1992 में राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी के साथ हुई दुखद घटना ने प्रेरित किया। उन्होंने बाल विवाह को रोकने का प्रयास किया था, जिसके चलते उनके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। इस घटना और उसके बाद की याचिकाओं ने सुप्रीम कोर्ट को कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर विचार करने के लिए प्रेरित किया। सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में “विशाखा दिशा निर्देश”(Vishakha Guidelines) जारी किए, जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों में दिशा-निर्देश और सुरक्षा उपाय प्रस्तुत करते थे। इन दिशा निर्देशों को भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों जैसे सीईडीएडब्ल्यू (CEDAW) के प्रावधानों द्वारा मजबूती मिली। इसके बाद 2013 में पूर्ण रूप से पोश अधिनियम लागू हुआ, जिसने महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने के लिए कानूनी आधार प्रदान किया।कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा और अधिकार
पोश अधिनियम में यौन उत्पीड़न को किसी भी अवांछित यौन व्यवहार के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें बिना सहमति के छूना, यौन संबंधों के लिए पूछना, अनुचित टिप्पणियाँ करना, वयस्क सामग्री दिखाना, या कोई अन्य आपत्तिजनक यौन व्यवहार शामिल है। उदाहरण के लिए, किसी से न चाहने पर डेट या यौन संबंध के लिए पूछना, रूप-रंग या शरीर के बारे में टिप्पणी करना, लिंग या यौन रुझान के आधार पर अपमान करना, और आपत्तिजनक संदेश भेजना उत्पीड़न के रूप में माना जाता है। यह कानून हर उस महिला कर्मचारी पर लागू होता है, जो नियमित, अस्थायी, संविदात्मक या किसी अन्य रूप में काम कर रही हो। 10 या अधिक कर्मचारियों वाले कार्यस्थलों पर नियोक्ता के लिए आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee) का गठन करना अनिवार्य है, जबकि 10 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए स्थानीय समिति (Local Committee) बनाई जाती है। इन समितियों का उद्देश्य यौन उत्पीड़न की शिकायतों का निवारण करना और महिला कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना है।

आईसीसी (ICC) और  एलसी(LC) की भूमिका और शिकायत प्रक्रिया
जौनपुर में सभी संगठनों में आईसीसी (ICC) या एलसी (LC) की स्थापना यह सुनिश्चित करती है कि महिलाएँ सुरक्षित और प्रभावी तरीके से अपनी शिकायत दर्ज कर सकें। महिला कर्मचारी किसी भी घटना को घटित होने के तीन महीने के भीतर लिखित रूप से रिपोर्ट कर सकती है। समिति दो तरीकों से कार्य कर सकती है: शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच चर्चा के माध्यम से समाधान निकालना, या मामले की जांच कर उचित कार्रवाई करना। शिकायत मिलने के 90 दिनों के भीतर समिति जांच पूरी करती है और 10 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है। नियोक्ता को 60 दिनों के भीतर इन सिफारिशों पर कार्यवाही करनी होती है। आरोप सिद्ध होने पर कार्रवाई कंपनी के नियमों और कानूनी प्रावधानों के अनुसार होती है, जबकि यदि आरोप गलत साबित होता है तो कंपनी द्वारा उचित कदम उठाए जाते हैं।कानूनी जिम्मेदारियाँ और जागरूकता
पोश अधिनियम न केवल शिकायत निवारण सुनिश्चित करता है, बल्कि नियोक्ताओं की जिम्मेदारियाँ भी तय करता है। उन्हें कर्मचारियों को अधिनियम के बारे में शिक्षित करना, आईसीसी (ICC) सदस्यों का प्रशिक्षण कराना, और नियमित कार्यशालाओं और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना अनिवार्य है। यदि कोई कार्यस्थल इस कानून का पालन नहीं करता, तो जुर्माना और अन्य कानूनी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। जौनपुर में इस कानून का प्रभाव यह है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकार सुरक्षित रहते हैं और उन्हें उत्पीड़न के खिलाफ स्पष्ट मार्गदर्शन मिलता है। इसके अलावा, यह महिलाओं को अपने काम में सुरक्षित और आत्मविश्वासी महसूस करने में मदद करता है, जिससे उनका पेशेवर जीवन सुचारु रूप से चलता रहे।चुनौतियाँ और सुधार की दिशा    
हालांकि पोश अधिनियम महिलाओं के लिए सुरक्षा प्रदान करता है, इसके कार्यान्वयन में कुछ चुनौतियाँ सामने आती हैं। कई बार अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की शिकायतों तक पहुँच नहीं होती। ठोस सबूत की कमी और शिकायतों के सही तरीके से निपटान में देरी भी एक समस्या है। इन चुनौतियों का समाधान लचीले उपाय, नियोक्ता और महिला कर्मचारी के बीच समझौते, और बेहतर प्रशिक्षण से किया जा सकता है। कार्यस्थल पर सहायक वातावरण और उचित समय प्रबंधन सुनिश्चित करने से महिलाएँ अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बनाए रखना आसान बना सकती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/bdfv5wy2
https://tinyurl.com/yhkpbu5r



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