जौनपुरवासियों, हमारा जिला भले ही वन-रहित भूमि के रूप में जाना जाता हो, लेकिन प्रकृति ने यहाँ एक अनोखा उपहार दिया है - ऐसा पक्षी-जगत, जो बिना घने जंगलों के भी आश्चर्यजनक रूप से समृद्ध है। खेतों की मेड़ों पर बैठे पक्षी, तालाबों और पोखरों के किनारे दिखने वाले जल - पक्षी, और गर्मियों में गूंजती कोयल की कूक - ये सब इस बात का प्रमाण हैं कि जौनपुर की पारिस्थितिकी अपने आप में एक अलग पहचान रखती है। खास बात यह है कि यहाँ दो ऐसी रोचक प्रजातियाँ भी दिखाई देती हैं - एशियन ओपनबिल (Asian Openbill) और एशियाई कोयल - जो आमतौर पर विविध जल - परिदृश्यों और व्यापक हरियाली वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं। आज हम समझेंगे कि जौनपुर, जंगल न होने के बावजूद, पक्षियों के लिए इतना आकर्षक क्षेत्र कैसे बना हुआ है।
आज के इस लेख में हम जौनपुर और उत्तर प्रदेश की जैव-विविधता से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों को क्रमबद्ध रूप से समझेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि पूरे उत्तर प्रदेश में कुल वन - आवरण कितना है और जौनपुर जैसे जिलों में वन क्षेत्र न होने के बावजूद यहाँ वन्य-जीव विविधता कैसे बनी रहती है। इसके बाद, हम समझेंगे कि जौनपुर में पक्षियों की उपस्थिति वन की कमी के बावजूद कैसे संभव है और कौन से स्थानीय पर्यावरणीय तत्व उन्हें समर्थन देते हैं। फिर, हम राज्य में पाई जाने वाली कुछ विशेष और दुर्लभ पक्षी प्रजातियों के बारे में जानेंगे। इसके बाद, जौनपुर में दिखने वाले दो महत्वपूर्ण पक्षियों - एशियन ओपनबिल और एशियाई कोयल - की उत्पत्ति, स्वरूप और उनकी पारिस्थितिक भूमिका को विस्तार से समझेंगे। अंत में, हम उत्तर प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों और चल रहे प्रयासों पर नज़र डालेंगे, जिससे यह समझ आए कि इन प्रजातियों की सुरक्षा क्यों आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश और जौनपुर में वन क्षेत्र की कमी और वन्य–जीव विविधता
उत्तर प्रदेश भारत के सबसे बड़े और जनसंख्या-बहुल राज्यों में से एक है, लेकिन वन-आवरण के मामले में यह अपेक्षाकृत कमजोर स्थिति में है। पूरे प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र का केवल 6.88% हिस्सा वन क्षेत्र के रूप में दर्ज है, और यदि हम वृक्ष-आवरण को भी जोड़ दें तो कुल हरित क्षेत्र 9.01% तक पहुँचता है। यह आँकड़ा देश के औसत से काफी कम है। वन मुख्यतः तराई, भाबर और विंध्य पहाड़ियों में केंद्रित हैं, जहाँ प्राकृतिक पारिस्थितिकी अपेक्षाकृत स्थिर है; लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश, विशेषकर जौनपुर, गाज़ीपुर और बलिया जैसे जिलों में वनभूमि लगभग शून्य है। इसके बावजूद राज्य में पशु-पक्षियों की विविधता आश्चर्यजनक रूप से समृद्ध है। बाघ, तेंदुआ, भालू, सांभर, जंगली बिल्ली, मॉनिटर लिज़र्ड (monitor lizard) और खरगोश जैसे वन्य जीवों से लेकर कबूतर, गौरैया, मैना, तोता, नीलकंठ, बुलबुल, मोर और काला तीतर जैसी पक्षी प्रजातियाँ यहाँ आसानी से देखी जा सकती हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश - और विशेषकर जौनपुर - की जलवायु, नदी-तंत्र, कृषि-भूमि और मानव-निर्मित हरियाली मिलकर ऐसी अनुकूल परिस्थितियाँ बनाते हैं, जिनकी वजह से वन क्षेत्र कम होने के बावजूद जैव विविधता यहाँ जीवित और सक्रिय रहती है।
जौनपुर में पक्षी प्रजातियों की उपस्थिति: वन रहित क्षेत्र में पक्षियों की अनुकूलन क्षमता
जौनपुर का विशिष्ट भू-परिदृश्य यह साबित करता है कि पक्षियों के अस्तित्व के लिए हमेशा घने जंगलों की आवश्यकता नहीं होती। यह जिला भले ही वन-रहित है, लेकिन यहाँ की जलवायु, नदियाँ, कृषि-फसलें, पोखरे, तालाब और गाँवों के आसपास मिलने वाली हरियाली पक्षियों को पर्याप्त भोजन और सुरक्षित बसेरा प्रदान करती है। यही कारण है कि यहाँ गौरैया, नीलकंठ, बुलबुल, मैना, चील, तोता, बटेर और सबसे महत्वपूर्ण - कोयल - जैसी प्रजातियाँ बड़ी संख्या में पाई जाती हैं। जौनपुर का खुला कृषि-परिदृश्य और नदी-कछार पक्षियों को घोंसले बनाने, भोजन खोजने और प्रवास के दौरान विश्राम करने के लिए आदर्श वातावरण प्रदान करता है। यह अनुकूलन क्षमता बताती है कि प्रकृति, कम संसाधन वाले क्षेत्रों में भी अपने जीवों को जीवित रहने का मार्ग प्रदान कर देती है। इसी वजह से जौनपुर को “वन रहित होकर भी समृद्ध पक्षी आवास” के दुर्लभ उदाहरणों में गिना जाता है।
उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली विशेष और दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ
उत्तर प्रदेश अपनी विशालता और विविध जलवायु के कारण कई विशिष्ट और दुर्लभ पक्षियों का प्राकृतिक घर है। शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाला सैंडग्राउज़ (sandgrouse), दलदली स्थानों पर पनपने वाले कॉटन टील (Cotton Teal), व्हिसलिंग टील (Whistling Teal) और ग्रे डक (Gray Duck), तथा जल-कछारों में रहने वाले स्नाइप (Snipe) और कॉम्ब डक (Comb Duck) इस राज्य की समृद्ध पक्षी-दुनिया का प्रमाण हैं। हालाँकि, दुख की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में कुछ प्रजातियाँ इतिहास के पन्नों में ही रह गई हैं। गंगा के मैदानों का शेर और तराई का गैंडा आज पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुके हैं। वहीं कई प्रजातियाँ - जैसे बाघ, काला हिरण, दलदली हिरण, भित्ति तीतर और कुछ बत्तख प्रजातियाँ - अब “गंभीर रूप से संकटग्रस्त” (Critically Endangered) श्रेणी में पहुँच गई हैं। यह स्थिति बताती है कि राज्य के पारिस्थितिक तंत्र पर मानव दबाव लगातार बढ़ रहा है और संरक्षण के प्रयासों को और मज़बूत करने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस प्राकृतिक विविधता का आनंद ले सकें।
एशियन ओपनबिल: जौनपुर में पाई जाने वाली अनोखी सारस प्रजाति
एशियन ओपनबिल सारस (Asian Openbill Stork) जौनपुर की पारिस्थितिकी का एक विशिष्ट और अत्यंत आकर्षक पक्षी है। सिकोनीडे परिवार (Ciconiidae Family) से संबंधित यह पक्षी लगभग 70-80 सेंटीमीटर लंबा होता है और अपने भूरे-सफेद शरीर तथा चमकदार काले परों की वजह से दूर से ही पहचान में आ जाता है। इसकी सबसे अनोखी विशेषता है इसकी आधी खुली चोंच-जिसके बीच हल्की दरार पूरे जीवन भर बनी रहती है। यह प्राकृतिक संरचना इसे घोंघों और जलीय जीवों को आसानी से पकड़ने में मदद करती है। यह प्रजाति भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड (Thailand) तक फैली हुई है। जौनपुर में इसकी उपस्थिति यह दर्शाती है कि जिले में तालाब, पोखरे और धीमे बहाव वाली नदियाँ इस पक्षी के भोजन और आवास के लिए पर्याप्त हैं। एशियन ओपनबिल का जौनपुर में दिखना इस बात का सूचक है कि चाहे वन क्षेत्र न हो, लेकिन यहाँ के जल-स्थल और कृषि-क्षेत्र प्राकृतिक रूप से अभी भी इतने स्वस्थ हैं कि जल-पक्षियों को आकर्षित कर सकते हैं।
एशियाई कोयल: जौनपुर की सबसे पहचानने योग्य आवाज़ वाली प्रजाति
एशियाई कोयल (Asian Koel) जौनपुर की पहचान का हिस्सा है। इसकी मधुर आवाज़ - “कूऊऊ… कूऊऊ…” - गर्मी और बरसात के मौसम में पूरे शहर में गूँजती रहती है। यह पक्षी कुकुलिफोर्मेस ऑर्डर (Cuculiformes Order) और कूकू परिवार से संबंधित है, और इसका व्यवहार अत्यंत विशिष्ट है। यह “ब्रूड पैरासाइट” (Brood parasite) है - यानी अपने अंडे दूसरे पक्षियों, विशेषकर कौवे, के घोंसलों में देती है और वही पक्षी इसके बच्चों को पालते हैं। एशियाई कोयल भारतीय परंपरा, लोकगीतों और शास्त्रीय साहित्य में प्रेम, विरह और प्रकृति की सुंदरता के प्रतीक के रूप में विशेष स्थान रखती है। इसका विस्तार भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, दक्षिण - पूर्व एशिया और इंडोनेशिया (Indonesia) के कई द्वीपों तक है। यहां तक कि क्राकाटोआ जैसे ज्वालामुखीय द्वीप पर भी यह सबसे पहले बसने वाले पक्षियों में से एक थी, जो इसकी अद्भुत अनुकूलन क्षमता का प्रमाण है। जौनपुर में इसकी निरंतर उपस्थिति यह दर्शाती है कि यहाँ की जलवायु, पेड़-पौधे और शहरी-ग्रामीण मिश्रित पर्यावरण इस मधुर-स्वर वाली प्रजाति के लिए अत्यंत अनुकूल है।
उत्तर प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण की चुनौतियाँ और संरक्षण प्रयास
आज उत्तर प्रदेश अपने वन्य-जीवों और पक्षियों के संरक्षण को लेकर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। बढ़ता शहरीकरण, अवैध शिकार, प्राकृतिक आवासों का क्षरण, कृषि-विस्तार और जलवायु परिवर्तन कई प्रजातियों को खतरे की कगार पर ले आए हैं। कई जल-स्थल जो कभी प्रवासी पक्षियों का आश्रय थे, अब सुख चुके हैं या उनमें निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। इसके बावजूद राज्य वन विभाग और सरकार ने संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं - एक राष्ट्रीय उद्यान, 12 वन्यजीव अभयारण्य और कई संरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं। ये स्थान राज्य की जैव - विविधता को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भविष्य में यह अत्यंत आवश्यक है कि वन - रहित जिलों - जैसे जौनपुर - में भी तालाबों, नदियों और हरित क्षेत्रों को संरक्षित किया जाए, ताकि पक्षियों के प्राकृतिक आवास सुरक्षित रहें और पर्यावरण का संतुलन बना रहे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4zsuppkr
https://tinyurl.com/4sjh2dvc
https://tinyurl.com/mpkram3w
https://tinyurl.com/3r9ffjmb
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