जौनपुर में मशरूम की आधुनिक खेती: इतिहास, प्रकार, लाभ और सरकारी सहायता

फफूंदी और मशरूम
19-12-2025 09:25 AM
जौनपुर में मशरूम की आधुनिक खेती: इतिहास, प्रकार, लाभ और सरकारी सहायता

जौनपुरवासियों, आज का हमारा विषय उन सभी किसानों, युवाओं और नए उद्यमियों के लिए बेहद उपयोगी है जो कम जगह, कम लागत और कम जोखिम में एक भरोसेमंद आय का स्रोत बनाना चाहते हैं। पूरे देश में तेज़ी से लोकप्रिय हो रही मशरूम की खेती अब जौनपुर के कई परिवारों के लिए भी रोज़गार और आत्मनिर्भरता का माध्यम बन रही है। पौष्टिकता, स्वाद और बाज़ार में इसकी लगातार बढ़ती मांग ने इसे एक उभरता हुआ उद्योग बना दिया है। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि दुनिया में मशरूम उद्योग कैसे विकसित हुआ, भारत और उत्तर प्रदेश में इसकी स्थिति क्या है, और जौनपुर के किसान इसे अपनाकर कैसे निश्चित व स्थिर आय कमा सकते हैं।
आज हम सबसे पहले जानेंगे कि मशरूम की खेती का इतिहास दुनिया में कैसे शुरू हुआ और किन-किन तकनीकी बदलावों ने इसे एक बड़े उद्योग का रूप दिया। इसके बाद, हम भारत और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में मशरूम उत्पादन की वर्तमान स्थिति को समझेंगे। फिर, हम बटन (button), पैडी स्ट्रॉ (paddy straw) और ऑयस्टर (oyster) जैसे प्रमुख मशरूमों की विशेषताओं और उनके पोषण मूल्य पर बात करेंगे। अंत में, हम खेती की लागत, संभावित आय, सरकारी सब्सिडी-लोन (subsidy-loan) योजनाएँ और बढ़ते बाज़ार के अवसरों को समझेंगे, जिससे आप जान पाएंगे कि मशरूम खेती कैसे एक मजबूत और आकर्षक व्यवसाय बन सकती है।

मशरूम की खेती का विश्व इतिहास और विकास यात्रा
मशरूम की खेती का इतिहास हजारों वर्ष पुराना और अत्यंत रोचक है। सबसे पहला प्रमाण लगभग 1,000 वर्ष पूर्व चीन में मिलता है, जहाँ किसानों ने शिटाके मशरूम को पेड़ों के तनों पर उगाने की पारंपरिक विधि विकसित की थी। इसके बाद 17वीं शताब्दी में फ्रांस के किसानों ने इसे भूमिगत स्थानों, जैसे - गुफाओं और तहखानों में उगाना शुरू किया, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। यूरोप के अन्य देशों में भी धीरे-धीरे मशरूम की खेती का प्रसार हुआ और इसे व्यावसायिक संभावनाओं के रूप में देखा जाने लगा। 20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका में पहली बार वैज्ञानिक ढंग से मशरूम उत्पादन की विधियाँ विकसित हुईं, जिसमें तापमान नियंत्रण, कंपोस्ट तकनीक, रोग प्रबंधन और बड़े पैमाने पर उत्पादन शामिल था। 20वीं सदी के मध्य में पर्यावरण नियंत्रित तकनीक, ह्यूमिडिटी कंट्रोल (humidity control) और उन्नत कंपोस्टिंग (composting) ने मशरूम उद्योग को एक विशाल वैश्विक बिज़नेस में बदल दिया। आज दुनिया में हर साल लाखों टन मशरूम का उत्पादन होता है और यह उद्योग लगातार नई वैज्ञानिक विधियों के साथ बढ़ रहा है।

भारत और उत्तर प्रदेश में मशरूम उत्पादन की वर्तमान स्थिति
भारत में मशरूम की लोकप्रियता पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है, क्योंकि इसे अब एक कम निवेश-उच्च मुनाफा वाला व्यवसाय समझा जाने लगा है। पहले मशरूम केवल कुछ चुनिंदा राज्यों में उगाए जाते थे, लेकिन अब लगभग पूरे देश में इसकी खेती की जा रही है। भारत के भीतर उत्तर प्रदेश इस समय मशरूम उत्पादन में शीर्ष पर है। कुछ वर्ष पहले जहाँ केवल 15-20 उत्पादक ही इस क्षेत्र में थे, वहीं आज उनकी संख्या बढ़कर 2,000 से अधिक हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है-सरकारी सहायता, प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार, उचित जलवायु तथा किसानों की बढ़ती जागरूकता। राज्य के कई जिलों में बटन, ऑयस्टर और मिल्की मशरूम का व्यावसायिक उत्पादन हो रहा है। युवा उद्यमी भी इसे एक स्टार्टअप (startup) अवसर की तरह अपना रहे हैं, क्योंकि इसमें कम जगह, कम जोखिम और निरंतर मांग के कारण स्थिर आर्थिक आय संभावित है।

स्ट्रॉ मशरूम

मशरूम के प्रमुख प्रकार और उनकी विशेषताएँ
भारत में मशरूम मुख्य रूप से तीन प्रमुख किस्मों में उगाए जाते हैं, और हर एक के अपने अलग फायदे और बाजार मूल्य हैं।

  1. बटन मशरूम – यह विश्व और भारत दोनों में सबसे लोकप्रिय किस्म है, जिसका लगभग 85% उत्पादन इसी का होता है। इसका सफेद रंग, मखमली बनावट और हल्का स्वाद इसे सलाद, सूप, पिज्जा और स्नैक्स में अत्यंत लोकप्रिय बनाता है। यह तापमान नियंत्रित वातावरण में उगाया जाता है और इसकी शेल्फ लाइफ भी अपेक्षाकृत अच्छी होती है।
  2. पैडी स्ट्रॉ मशरूम – यह धान के भूसे पर उगाया जाने वाला मशरूम है, जिसे बनाने में कम लागत लगती है और यह तेजी से तैयार हो जाता है। दक्षिण-पूर्व एशिया में यह सबसे ज्यादा खाया जाता है। इसकी खेती ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत आसानी से की जा सकती है, क्योंकि इसमें भारी संरचनाओं की जरूरत नहीं होती।
  3. ऑयस्टर मशरूम – भारत में सबसे आसानी से उगने वाला मशरूम माना जाता है। इसे विशेष तापमान नियंत्रण की जरूरत नहीं होती और यह कई माध्यमों पर उगाया जा सकता है। इसका स्वाद उम्दा होता है और इसे डॉक्टर मधुमेह, उच्च रक्तचाप और मोटापे वाले मरीजों के लिए उपयुक्त मानते हैं, क्योंकि इसमें कम वसा, उच्च फाइबर और महत्वपूर्ण खनिज तत्व पाए जाते हैं।

इन तीनों मशरूमों में प्रोटीन (protein), पोटेशियम (potassium), विटामिन B (Vitamin B) समूह, एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं, जिससे इनका पोषण मूल्य काफी अधिक हो जाता है।

ऑयस्टर मशरूम

मशरूम खेती का लाभ, लागत और आय की संभावनाएँ
मशरूम खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे बहुत कम जगह में, जैसे - एक कमरे या 20×20 फीट क्षेत्र में भी आसानी से शुरू किया जा सकता है। उत्पादन लागत काफी कम है - औसतन ₹100 - 120 प्रति किलो, जबकि बाजार में यह ₹150-300 प्रति किलो तक आसानी से बिक जाता है। एक बैग से लगभग 500-800 ग्राम तक उत्पादन हो जाता है, और यदि किसान 1,000 बैग का मॉडल अपनाएँ तो लगभग ₹50,000 से ₹1,00,000 तक वार्षिक शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है। यदि कोई उद्यमी केवल 100-500 वर्ग फुट क्षेत्र में उत्पादन शुरू करता है, तो वह सालाना ₹1 लाख से ₹5 लाख तक कमा सकता है। कई किसान सर्दियों में बटन मशरूम और गर्मियों में ऑयस्टर या मिल्की मशरूम उगाकर पूरे साल आय प्राप्त करते हैं। लगातार मांग, जल्दी उत्पादन, कम श्रम और उच्च लाभ इस व्यवसाय को अत्यंत आकर्षक बनाते हैं।

सरकारी योजनाएँ, सब्सिडी और वित्तीय सहायता
मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई योजनाएँ चला रही हैं, जिनसे नए किसानों और उद्यमियों को वित्तीय सहायता मिलती है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड मशरूम इकाई स्थापित करने पर परियोजना लागत का 50% तक सब्सिडी देता है। नाबार्ड (NABARD) मशरूम यूनिट, उपकरण, कंपोस्टिंग इकाइयों और कार्यशील पूंजी के लिए ऋण उपलब्ध कराता है, जिसकी पुनर्भुगतान अवधि लगभग 7 वर्ष तक होती है। इसके अलावा लघु किसान कृषि व्यवसाय संघ (SFAC) कृषि - आधारित स्टार्टअप को सब्सिडी आधारित ऋण प्रदान करता है। कृषि वित्त निगम (AFC) भी प्रशिक्षण, स्पॉन उत्पादन और यूनिट स्थापना में मदद करता है। मुद्रा (MUDRA) लोन छोटे उद्यमियों को बिना गारंटी के ₹10 लाख तक की राशि उपलब्ध कराता है, जिससे नए लोग भी आसानी से मशरूम व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। इन योजनाओं के कारण मशरूम खेती अब बड़े किसानों के साथ-साथ छोटे किसानों और युवाओं के लिए भी एक व्यवहारिक और लाभदायक विकल्प बन चुकी है।

बटन मशरूम

मार्केटिंग और बिक्री-किसानों के लिए अवसर और बढ़ता बाज़ार
भारत में मशरूम की मांग लगातार बढ़ रही है, जबकि उत्पादन अभी भी पूरी तरह मांग के अनुरूप नहीं है। इस कारण कीमतें स्थिर रहती हैं और किसानों को अच्छा लाभ मिलता है। किसान अपने उत्पाद को स्थानीय बाजार, कृषि मंडियों, सुपरमार्केट, होटल-रेस्टोरेंट और हेल्थ-फूड स्टोर्स (health-food stores) में आसानी से बेच सकते हैं। शहरों में हेल्दी और हाई-प्रोटीन फूड (high-protein food) की बढ़ती मांग ने मशरूम को एक लोकप्रिय सुपरफूड बना दिया है। कई उद्यमी अब ऑनलाइन स्टोर (online store), इंस्टाग्राम (Instagram)/व्हाट्सएप (WhatsApp) मार्केटिंग, और होम डिलीवरी मॉडल अपनाकर सीधे ग्राहकों तक पहुंच रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में मशरूम उत्पादकों की संख्या कई गुना बढ़ी है, जिससे एक मजबूत बाजार नेटवर्क तैयार हो रहा है। कुल मिलाकर, मार्केटिंग की संभावनाएँ बड़ी हैं और सही रणनीति अपनाकर किसान व उद्यमी नियमित और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।


संदर्भ
https://tinyurl.com/4xebn22d 
https://tinyurl.com/24pdw5dw 
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