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हिमालय केवल बर्फ़ से ढकी पर्वत-श्रृंखला नहीं, बल्कि पृथ्वी के इतिहास, मानव सभ्यता और प्राकृतिक संतुलन का गहरा प्रतीक है। अपनी विशाल ऊँचाइयों, कठोर जलवायु और अनोखी जैव-विविधता के कारण यह पर्वतमाला न सिर्फ़ भारत, बल्कि सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के लिए जीवनरेखा मानी जाती है। इसके पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और आर्थिक निहितार्थ इतने व्यापक हैं कि हिमालय आज भी दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण भू-आकृतिक क्षेत्रों में गिना जाता है। इसी महत्त्व को ध्यान में रखते हुए, आज हम हिमालय की उत्पत्ति, उसके विकास की यात्रा, भारतीय कला एवं संस्कृति पर उसके प्रभाव, फिर प्राकृतिक संसाधनों में उसके योगदान और अंत में उससे जुड़ी चुनौतियों को क्रमबद्ध रूप से समझेंगे।
आज हम हिमालय के महत्वपूर्ण पहलुओं को सरल रूप में समझेंगे। पहले, जानेंगे कि लाखों वर्षों में इसका भू-वैज्ञानिक निर्माण कैसे हुआ। फिर देखेंगे कि भारतीय कला, संस्कृति और धर्म में हिमालय की क्या अहम भूमिका रही है। इसके बाद, समझेंगे कि जल, ऊर्जा और जलवायु संतुलन जैसे प्राकृतिक संसाधनों में यह पर्वतमाला कितना बड़ा योगदान देती है। अंत में, उन चुनौतियों पर नज़र डालेंगे जिनका हिमालय आज सामना कर रहा है। इन सभी बिंदुओं को देखकर स्पष्ट होता है कि हिमालय सिर्फ़ पर्वत नहीं, बल्कि हमारी पर्यावरणीय सुरक्षा का बेहद संवेदनशील आधार है।

हिमालय का भू-वैज्ञानिक निर्माण और उसकी विकास यात्रा
हिमालय का निर्माण पृथ्वी की टेक्टॉनिक (tectonic) गतिविधियों का सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली परिणाम है। लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले जब भारतीय महाद्वीपीय प्लेट उत्तर की ओर बढ़कर यूरेशियन प्लेट (Eurasian Plate) से टकराई, तभी इस पर्वत श्रृंखला के उत्थान की शुरुआत हुई। यह टकराव आज भी जारी है, हालांकि अब भारतीय प्लेट की गति धीमी होकर 4-6 सेंटीमीटर प्रति वर्ष रह गई है। चूंकि भारतीय और यूरेशियन दोनों प्लेटें महाद्वीपीय हैं - कम घनत्व और अधिक उछाल वाली - इसलिए इनमें से कोई भी प्लेट नीचे धंस नहीं सकी। परिणामस्वरूप वलन, भ्रंश और संपीड़न शक्तियों ने हिमालय को ऊपर उठाया, जिससे यहाँ की महाद्वीपीय परत सामान्य मोटाई से लगभग दुगनी हो गई - करीब 75 किलोमीटर। यही कारण है कि इस क्षेत्र में ज्वालामुखीय गतिविधियाँ नहीं पाई जातीं।
हिमालय का विकास कुल चार प्रमुख भू-वैज्ञानिक चरणों में पूरा हुआ—
इन चरणों ने मिलकर हिमालय को आज की विशाल, जटिल और भव्य पर्वत-श्रृंखला का रूप दिया।

भारत की कला, संस्कृति और धर्म पर हिमालय का प्रभाव
हिमालय भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक और कलात्मक इतिहास का अद्भुत केंद्र रहा है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों में इसे देवताओं का निवास माना गया है। अनेक प्राचीन तीर्थयात्राएँ, तपोवन, आश्रम और मठ इसी क्षेत्र में स्थित हैं, जो इसके आध्यात्मिक प्रभाव को और गहरा बनाते हैं। हिमालय ने भारतीय कला के कई रूपों को प्रेरित किया है। कांगड़ा और पहाड़ी शैली के लघुचित्रों में हिमालयी घाटियों की रहस्यमयी सुंदरता दिखाई देती है। अजंता की भित्ति-चित्र श्रृंखला में भगवान बुद्ध के जीवन प्रसंगों में हिमालय का विशेष उल्लेख मिलता है। समकालीन कलाकार - एस. एच. रज़ा, अर्पणा कौर और अंजलि इला मेनन - भी हिमालय को अपनी चित्रकला में रूपक के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं। इसके अलावा, हिमालय भारत और मध्य एशिया के बीच सांस्कृतिक पुल भी रहा है। भारत से तिब्बत और नेपाल तक बौद्ध धर्म का प्रसार, वास्तुकला, कला और दर्शन के आदान-प्रदान का प्रमाण है। यहाँ की विविध जनजातियाँ अपनी विशिष्ट भाषाओं, रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ इस सांस्कृतिक धरोहर को और समृद्ध करती हैं।

भारत के प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी में हिमालय का योगदान
हिमालय भारत की जल-वायु, कृषि और ऊर्जा सुरक्षा का प्रमुख स्तंभ है। यह विशाल पर्वत श्रृंखला अनेक नदियों - जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र - का उद्गम स्थल है। हिमालय से लाया गया जलोढ़ मिट्टी के रूप में उत्तर भारतीय मैदानों को दुनिया की सबसे उपजाऊ भूमि में बदल देता है। देश की लगभग 52% जलविद्युत उत्पादन और लगभग एक-तिहाई तापीय बिजली, हिमालयी नदियों के पानी पर आधारित है, जिससे यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, हिमालय मानसून को नियंत्रित करने में भी मदद करता है - यह पर्वतमाला दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाओं को रोककर वर्षा करवाती है, और मध्य एशिया की ठंडी हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकती है। हिमालय की वन-संपदा अत्यंत समृद्ध है - उष्णकटिबंधीय से लेकर अल्पाइन तक की विविध वनस्पतियाँ यहाँ पाई जाती हैं, जो औषधीय पौधों, ईंधन और कच्चे माल का बड़ा स्रोत हैं। साथ ही, इसकी प्राकृतिक सुंदरता ने इसे दुनिया के प्रमुख पर्यटन क्षेत्रों में शामिल किया है।

हिमालय क्षेत्र से जुड़ी वर्तमान चुनौतियाँ और जोखिम
हिमालय जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही संवेदनशील भी है। जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से पिघलती बर्फ़ नई हिमनद झीलों को जन्म दे रही है, जिससे “हिमनद-झील विस्फोट बाढ़” का खतरा बढ़ रहा है। 200 से अधिक हिमनद झीलों को जोखिमपूर्ण माना गया है। अपशिष्ट प्रबंधन की कमी भी बड़ी चुनौती है - कचरा, प्लास्टिक, मल-जल और अनियोजित शहरीकरण, पर्वतीय पारिस्थितिकी को असंतुलित कर रहा है। अस्थिर पर्यटन और दोषपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ प्राकृतिक पर्वतीय ढलानों को कमजोर कर रही हैं, जिससे भूस्खलन, बाढ़ और पारिस्थितिक विनाश के जोखिम बढ़ जाते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3ssz3xe7
https://tinyurl.com/3chjtusc
https://tinyurl.com/33jym9ds
https://tinyurl.com/4wxp9zue
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