 
                                            समय - सीमा 268
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                                            कुदरत ने विभिन्न खूबसूरत फूल, पत्ति, पौधों से पृथ्वी को सजाया, जिसमें से मानव ने कुछ खूबसूरत फूलों का चयन कर अपने दैनिक जीवन को आकर्षक बनाया। फूलों का उपयोग मात्र घरों और कमरों को सजाने के लिए नहीं वरन विभिन्न खूबसूरत गुलदस्तों के माध्यम से एक दूसरे को सम्मानित करने के लिए भी किया गया। हमारे जौनपुर में भी फूल व्यवसाय काफी प्रसिद्ध है। भारत में गुलदस्ते बनाने की पारम्परिक कला की तुलना में जापान की पारम्परिक इकेबाना कला अत्यंत रमणिक है।
इसमें फूल, पत्तियों, बीज, टहनी और उसके तने को मर्तबान, फूलदान, गमले आदि में इस प्रकार सजाया जाता है कि वो देखने में आकर्षक लगें। ये आकाश, पृथ्वी और मानवजाति के तीन तत्वों का एक संतुलित ढंग से प्रतिनिधित्व करती है। इसे चीनी बौद्ध धर्म के प्रचारकों के द्वारा छठी शताब्दी में जापान में लाया गया था, क्योंकि उस समय उन्होंने बुद्ध को फूल चढ़ाने की प्रथा को औपचारिक रूप दिया था। क्योंकि फूल व्यवस्था चीन से बौद्ध धर्म के साथ जापान में प्रवेश करती है, इसलिए यह स्वाभाविक रूप से चीनी और बौद्ध दर्शन के साथ प्रभावित हुई थी।
पहली फूलों की व्यवस्था शिन-नो-हाना (जिसका अर्थ है "केंद्रीय फूल व्यवस्था") के रूप में जानी जाती थी। जिसमें पाइन (Pine) की एक विशाल शाखा मध्य में रखी गयी थी और उसके चारों ओर तीन या पांच मौसमी के फूल लगाए गये थे। कृत्रिम वक्रों को किए बिना इन शाखाओं और तने को ग़ुलदान में रखा गया। यह व्यवस्थाएं 14वीं शताब्दी के जापानी धार्मिक चित्रों में भी देखने को मिलती हैं।
समय बीतने के साथ इकेबाना केवल भागवान को चढ़ाने और घर सजाने के मात्र ही नहीं रहा, इसने एक कला का रूप ले लिया, यह देश-विदेश में इतना प्रसिद्ध होने लगा है कि इसको सीखने के लिए लोग काफी इच्छुक होने लगे। और आज दुनिया भर में इकेबाना के 1000 से अधिक विभिन्न प्रकार के स्कूल हैं।
इकेबाना की कई शैलियाँ देखने को मिलते हैं। पहला मोमोयामा अवधि (1560-1600) के दौरान भव्य महलों के निर्माण के समय महल की सजावट के लिए। इसमें बड़ी सजावटी रिक्का पुष्प व्यवस्था का इस्तेमाल किया गया। जिसे बौद्ध की सुंदरता को अभिव्यक्त करते हुए बनाया गया। इस शैली की मुख्यता नौ शाखाएं हैं, जो प्रकृति के तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
वहीं चाय समारोह के लिए बनाए गए चबाना नामक चाय समारोह कक्षों के लिए एक और शैली शुरू की गई। वह थी नागेरेबाना शैली, जिसने सेिका या शोका शैली के विकास को जन्म दिया। इसमें फूलों और पौधों को कस के एक लंबे आकार के मर्तबान में रखा जाता है, जिसमें मुख्य रूप से तीन टहनियां होती हैं, जिससे इसे त्रिकोणीय आकार दिया जाता है।
मोरिबाना में फूलों को उथले फूलदान, मुरब्बे के बरतन या टोकरी में व्यवस्थित किया जाता है, और एक केनजन या सुई धारकों से सहारा दिया जाता है। जियुका एक फ्री स्टाइल (Freestyle) की रचनात्मक शैली है। इसमें फूलों के अतिरिक्त हर सामग्री का उपयोग किया जा सकता है।
ओहारा स्कूल ऑफ इकेबाना की सुनीता नेवातिया कहती हैं कि इकेबाना हमें सिखाती है कि प्रकृति में हर चीज़ के लिए जगह है, यहाँ अच्छे, बुरे और खूबसूरत-बदसूरत के मध्य किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा देखने को नहीं मिलती है। यहाँ हर चीज़ का अपना विशेष महत्तव है।
संदर्भ :
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Ikebana
2.https://timesofindia.indiatimes.com/city/nagpur/Ikebana-teaches-us-that-nature-has-a-place-for-everything/articleshow/50858285.cms
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        