 
                                            समय - सीमा 268
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                                            हमारी आंखे एक अत्यंत महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रिय है। हमारी आंखे ही है जो हमें अपने चारों ओर फैले रंग बिरंगे संसार को देखने के योग्य बनाती है। ये एक कैमरे की तरह होती है, जो हमारे आसपास की छवियों को कैप्चर(Capture) कर लेती है। बल्कि ये कहना ज्यादा उचित होगा कि कैमरा हमारी आंखों की तरह होता है ना कि हमारी आंखे। परंतु आज कल की जीवन शैली में दृष्टि कमजोर होना, आंख की मांसपेशियों में तनाव, आंखों से धुंधला दिखना, दूर-दृष्टि दोष, निकट-दृष्टि दोष, आंखों में जलन आंखों में पानी आना आदि एक आम समस्या बन गई है। आज कल हर आयु के वर्ग के लोगों को कमजोर आंखों के कारण चश्मे का उपयोग करते देखा जा सकता है। तो आइये समझते है तीन सामान्य दृष्टि दोषों के बारे में जिसको दूर करने के लिये विभिन्न प्रकार के लेंसों की आवश्यकता होती है।
 
दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन
कभी कभी आँखे किसी कारणवश धीरे धीरे अपनी समंजन क्षमता (नेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस (Focus) दूरी को समायोजित कर लेता है) खो देती हैं, जिसके कारण व्यक्ति वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता है या उसकी दृष्टि धुँधली हो जाती है, इसे नेत्र दोष कहते हैं। नेत्र दोष मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं। ये दोष हैं: (i) निकट दृष्टि दोष (Myopia), (ii) दीर्घ दृष्टि दोष तथा (Hyperopia) (iii) दृष्टिवैषम्य (Astigmatism)।
 
(i) निकट दृष्टि दोष
 
निकट दृष्टि दोष से ग्रस्त व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परंतु दूर रखी वस्तुएं उसे धुंधली दिखाई देती हैं।
निकट दृष्टि दोष का कारण: जब नेत्र लेंस की अपवर्तक (Refractive) क्षमता अत्यधिक हो जाती है या नेत्रगोलक ( लम्बा हो जाता है तो किसी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल पर न बनकर, दृष्टिपटल के सामने थोड़ा आगे बनता है, तथा इस प्रकार निकट दृष्टि दोष से युक्त व्यक्ति दूर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता है।
संशोधन: निकट दृष्टि दोष को अवतल लेंस (Concave Lenses) के उपयोग द्वारा संशोधन किया जा सकता है।
 
(ii) दीर्घ दृष्टि दोष
दीर्घ–दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति को दूर रखी वस्तु तो स्पष्ट देखाई देती है परंतु वो निकट रखी वस्तु को सुस्पष्ट नहीं देख पाता है। इस दोष से ग्रस्त व्यक्ति को नजदीक रखी वस्तु धुंधली दिखती है।
दीर्घ दृष्टि दोष का कारण: जब नेत्र लेंस की अपवर्तक क्षमता कम हो जाती है अथवा नेत्र गोलक छोटा हो जाता है, तो निकट रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल पर ना बनकर उससे थोड़ा पीछे बनता है। वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल से थोड़ा पीछे बनने के कारण दीर्घ दृष्टिदोष से पीड़ित व्यक्ति नजदीक रखी वस्तुओं को साफ-साफ नहीं देख पाता है।
संशोधन: इस दोष को अभिसारी लेंस या उत्तल लेंस (Convex Lenses) के उपयोग से संशोधित किया जा सकता है।
 
(iii) दृष्टिवैषम्य
यह आमतौर पर कॉर्निया (Cornea) की वक्रता सर्वत्र एक सी न होने के कारण होता है। इस दोष में जब एक व्यक्ति अलग अलग रेखाओं के पैटर्न को देखता है तो उसे केवल एक ही दिशा की रेखाएं नजर आती है, जबकि अन्य दिशाओं की रेखाएं उस व्यक्ति को धुंधली दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिये यदि इस दोष से ग्रस्त व्यक्ति समान्तर तल में दृष्टि को सामान्य पाता है तो उसे ऊर्ध्वाधर दिशा में स्पष्ट दिखाई नहीं देता है।
दृष्टिवैषम्य का कारण:
यह दोष तब होता है जब प्रकाश किरणें दृष्टिपटल पर अलग-अलग बिंदुओं पर फोकस होती हैं अर्थात सभी प्रकाश किरणें दृष्टिपटल के एकल फोकस बिंदु नही होती है। इस कारण प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल पर ना बनकर उससे थोड़ा पीछे और सामने बनता है।
संशोधन: दृष्टिवैषम्य को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंसों (Cylindrical lens) का प्रयोग होता है।
संदर्भ:
1. http://www.chm.bris.ac.uk/webprojects2002/upton/defects_of_the_eye.htm 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        