पारंपरिक कला का ही आधुनिक स्वरूप है, डिजिटल कला

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
31-10-2019 12:17 PM
पारंपरिक कला का ही आधुनिक स्वरूप है, डिजिटल कला

कला मनुष्य की एक अद्भुत रचना है। यह मनुष्य के उद्भव से लेकर वर्तमान समय तक इसके साथ रही है। कला में कई बदलाव हुए हैं शुरूआती दौर में कला गुफाओं आदि में चित्र बना कर होती थी। कालान्तर में मूर्तियाँ, ताड़पत्र, आदि आये। शुरूआती इतिहास और मध्यकाल में पत्ता, कपड़ा, कागज़ आदि पर चित्र बनना शुरू हुआ जो बड़ी संख्या में आज भी उपलब्ध हैं। समय बदला, तकनीकी बदली और दुनिया डिजिटल (Digital) होनी शुरू हुयी। डिजिटल दुनिया के होने के साथ-साथ तमाम कला के प्रकार उदित होने लगे। वैसे यदि देखा जाए तो डिजिटल कला करीब सौ वर्ष से अधिक अवधि से मौजूद है परन्तु वर्तमान ही वह समय है जब यह प्रकाश में आई।

डिजिटल कला को रचनात्मक और कलात्मक कला के रूप में जाना जाता है और यह कला प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक उपकरणों के आधार पर बनाई जाती है। डिजिटल कला एनीमेशन (Animation) और डिजिटल चित्रकारी से लेकर 3 डी मूर्तियों आदि को कहा जाता है। कई लोगों का मानना है कि डिजिटल कला पूर्ण रूप से ग्राफिक डिज़ाइन (Graphic Design) पर आधारित है परन्तु इसमें और भी क्रिया का प्रयोग होता है। डिजिटल और कंप्यूटर (Computer) कला करीब 1950 के दशक में लोकप्रिय हुयी जब इस विषय के जानकारों ने ऑसिलोस्कोप (Oscilloscope) का प्रयोग किया। ऑसिलोस्कोप के साथ वैज्ञानिकों ने विद्युत् की तरंगों को बना पाने में सफलता प्राप्त की और इसे कला का पहला नमूना माना जा सकता है। सोनी के पहले पोर्टेबल विडियो कैमरा (Portable Video Camera) के आविष्कार के साथ इस क्षेत्र में बड़े परिवर्तनों को देखा जाना संभव हो पाया। नाम जून पाइक जो कि एक कोरियाई अमेरिकी व्यक्ति थे, को वीडियो (Video) कला का प्रथम निर्माता कहा जा सकता है।

धीरे-धीरे यह कला दुनिया भर में फैलनी शुरू हुयी और टैबलेट (Tablet), कंप्यूटर, टच स्क्रीन (Touch Screen), 3 डी प्रिंटर (3D Printer) आदि जैसी असंख्य खोजों ने इस कला के क्षेत्र में बड़ी क्रांति ला दी। डिज़नी (Disney), फॉक्स (Fox) जैसी अनेकों कम्पनियाँ (Companies) हैं जो कि डिजिटल कला के आधार पर ही कार्य करती हैं। विभिन्न कंपनियों को ऐसे कलाकारों की आवश्यकता रहती है जो कि डिजिटल कला का निर्माण कर सकें। भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो यह कला भारत में काफी नयी है परन्तु इसकी मांग भारतीय बाज़ार में अत्यंत ही ज़्यादा है। पहले पारंपरिक कला विधि में आर्ट गैलरी (Art Gallery) हुआ करती थी परन्तु डिजिटल आर्ट के आजाने से ऑनलाइन (Online) गैलरी की संख्या में अभूतपूर्व इज़ाफा हुआ है।

कई ऐसी कम्पनियाँ भारत में हो गयी हैं जो कि विभिन्न डिजिटल कला के नमूनों को मोटी कीमत दे कर खरीदती हैं। डिजिटल मीडिया (Media) के आजाने से भी डिजिटल कला में बड़ी संख्या में बदलावों को देखा जा सकता है। भारत में जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि डिजिटल कलाकारों की बड़ी मांग है। मिडिया हाउस (Media House), प्रकाशक, एफएमसीजी (FMCG), खुदरा, सॉफ्टवेयर (Software) आदि कंपनियों को ऐसे कलाकारों की ज़रूरत होती है। ग्राफ़िक डिज़ाईनर या डिजिटल कलाकार बनने के लिए मनुष्य को अत्यधिक रचनात्मक होने की आवश्यकता होती है और साथ ही साथ कला की परख का भी होना अत्यंत आवश्यक होता है। भारत में ऐसे कलाकारों को 7-10 लाख रूपए सालाना वेतन आराम से मिल जाता है बशर्ते कलाकार को अपनी कला में पारंगत होने की आवश्यकता होती है।

डिजिटल कला के फायदे और नुकसान दोनों हैं, तो आइये जानते हैं इसके बारे में-
यह अत्यंत ही सुलभ होता है और मनुष्य इस विधा पर जल्द कार्य कर लेता है। इस विधा पर कोई भी वस्तु हमेशा के लिए नहीं होती अतः उसको मिटाना और पुनः बनाना अत्यंत आसान होता है। डिजिटल कला में प्रयोग करने की सम्भावनाओं में अधिकता होती है। एक ही कला को दोहराने की आसानी इस विधा में मिलती है। सामग्री में केवल कंप्यूटर या टैबलेट, सॉफ्टवेयर आदि की ही ज़रूरत होती है। अब यदि इसकी हानियों को देखें तो वे निम्नवत हैं- असीमित सम्भावनाओं के कारण मनुष्य की सोचने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। इस कला में कोई मूल प्रति नहीं होती या फिर कोई भौतिक प्रति नहीं होती।

संदर्भ:
1.
https://hhsbroadcaster.com/4399/ane/the-rise-of-digital-art/
2. https://bit.ly/333NtRk
3. https://blake-dehart.com/blog/2018/3/14/should-you-do-traditional-art-or-digital-art
4. https://bit.ly/2PiejRI
5. https://www.quora.com/Does-graphic-design-have-a-good-scope-in-India