 
                                            समय - सीमा 268
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                                            हमारा देश वनस्पतियों की विविधता से भरपूर है। जलवायु और मिट्टी के विशिष्ट प्रकार के कारण कुछ वनस्पतियां ऐसी होती हैं कि वे किसी स्थान विशेष में ही उगती हैं या पायी जाती हैं। जौनपुर भी इसी प्रकार की एक विशिष्ट वनस्पति के लिए प्रसिद्ध है और वो है नेवार मूली।
नेवार मूली जौनपुर की विशेषता है क्योंकि यह वो वनस्पति है जो शायद ही देश या विदेश के अन्य भागों में देखने को मिले। इस प्रकार इसे जौनपुरी मूली कहना अनुचित नहीं होगा। मूली की यह प्रजाति चार से छह फीट तक लंबी हो सकती है। इसका आकार बड़ा तथा स्वाद मीठा होता है जिस कारण यह अन्य मूलियों से भिन्न होती है। जौनपुर गोमती नदी के किनारे स्थित है जिस कारण इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए जल की बहुतायत होती है। इस प्रकार फसल की खेती के लिए लोगों को पर्याप्त जल उपलब्ध हो जाता है तथा मूली की खेती बहुत अच्छी होती है। इसके अतिरिक्त भौगोलिक परिस्थिति और खास किस्म की मिट्टी के चलते भी नेवार प्रजाति की मूली जौनपुर में ही हो सकती है। यह मूली उस खेत में अधिक पैदा होती है जिसमें पहले तम्बाकू बोया जाता है।
 
किंतु मूली की नेवार प्रजाति जो कभी जौनपुर की शान रही थी आज तलाशने पर भी नहीं मिल रही है। नेवार के नाम से मशहूर इस प्रजाति का अब कोई अता-पता नहीं है। इसका मुख्य कारण जौनपुर में बढ़ता शहरीकरण है। शहरीकरण के कारण जहां खेती के लिए जगह सीमित हो गयी है तो वहीं संसाधन भी कम होते जा रहे हैं। जहां मूली छह से सात फीट लंबी व ढाई फीट से भी मोटी होती थी वहां अब मूली के अस्तित्व को ढूंढ पाना मुश्किल हो गया है। इस मूली को जौनपुर की सीमा से लगे आधा दर्जन गांवों में उगाया जाता था। लेकिन बदलते जलवायु और तेज़ी से बढ़ रही जनसंख्या के चलते आज इस मूली का आकार पूर्व की अपेक्षा बहुत कम हो गया है। नगर के आस-पास के कस्बों में इसका उत्पादन चार गुना हुआ करता था। किंतु अब उन क्षेत्रों या स्थानों को कंकरीट (Concrete) के फर्श में तब्दील कर दिया गया है।
ऐसा माना जाता है कि अपने बड़े आकार के कारण इस मूली ने 1857 में देशभक्तों को नदी पार करने के लिए मदद की थी। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो नेवार प्रजाति के संरक्षण के लिए आज भी इस प्रजाती की खेती कर रहे हैं तथा इस प्रयास में सफल भी हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य प्रयास भी प्रशासन द्वारा किए जा रहे हैं। इस तरह की फसल के उगने में जलवायु तथा मिट्टी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे क्षेत्र पौधों की जड़ को विशिष्ट अंतर्निहित ऊष्मा और पानी उपलब्ध कराते हैं जिससे उनमें कोई न कोई विशिष्ट गुण उत्पन्न हो जाता है।
 
वर्तमान समय में पौधों की विभिन्न किस्मों को उगाने के लिए प्रजातियों को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है। आनुवंशिक रूप से संशोधित वनस्पतियां आनुवंशिक संशोधित फसलें कहलाती हैं। इस विधि में पौधों के डीएनए (DNA) को आनुवंशिक तकनीकों द्वारा संशोधित किया जाता है जिससे उनमें अच्छे तथा मनचाहे गुणों को प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कीट प्रतिरोधी फसल या ऐसी फसल जिसकी पैदावार अधिक हो। इसका उद्देश्य पौधे में नये लक्षणों को उत्पन्न करना है जो प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं होते हैं। सोयाबीन, मक्का, कपास आदि आनुवांशिक संशोधित फसलों के उदाहरण हैं।
संदर्भ:
1. https://www.jaunpurcity.in/2011/05/four-to-six-feet-long-jaunpuri-newar.html
2. https://www.hamarajaunpur.com/2018/11/newar.html
3. https://link.springer.com/article/10.1134/S1067413609040031
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Genetically_modified_crops
 
                                         
                                         
                                         
                                        