 
                                            समय - सीमा 268
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                                            कृषि उत्पादन के क्षेत्र में भारत दुनिया के प्रमुख देशों में से एक है, लेकिन खेती के कामों में मशीनों के उपयोग में यह विश्व के औसत आंकड़ों से भी पीछे है। उदाहरण के लिए भारत में 16 ट्रैक्टर का उपयोग 1000 हेक्टेयर जमीन पर होता है, जबकि विश्व का औसत 19 ट्रैक्टर है और विकसित देशों के आंकड़े तो बहुत ऊंचे हैं। इसलिए भारत में कृषि के क्षेत्र में मशीनों के इस्तेमाल की बहुत संभावनाएं हैं।
कृषि मशीनीकरण
कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण का मतलब है, जैविक स्रोत जैसे जानवरों और मानव श्रम की जगह ऊर्जा द्वारा चलित मशीनी उपकरणों के प्रयोग को शामिल करना जैसे ट्रैक्टर, थ्रैशर(Thresher), हार्वेस्टर(Harvester), पंप सेट(Pump Set) इत्यादि। खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर, उर्वरक मिलाने के लिए ड्रिल (Drill), कटाई के लिए हार्वेस्ट, थ्रैशर आदि का प्रयोग होता है। इस तरह मशीनीकरण खेती के कामों को तो आसान और लाभदायक बना ही रहा है, उपज के बाजार संबंधी मामलों में भी मदद करता है।
 
विकास
भारत में कृषि मशीनीकरण प्रक्रिया में उछाल हरित क्रांति के दौर के बाद आया। 1961 से प्रगति की अच्छी दर दिखनी शुरू हुई। ट्रैक्टर की संख्या 1961 में 0.31 लाख थी, यह 1980 में बढ़कर 4.73 लाख तथा 1991 में 14.50 लाख हो गई। फसल के प्रति लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ट्रैक्टर का घनत्व 1961 के 61 से बढ़कर 1991 में 710 हो गया। इसी तरह ऑयल इंजन 2.30 लाख (1961)  से बढ़कर 48 लाख हो गए। बिजली से चलने वाले नलकूप 1961 में दो लाख थे और 1991 में 91 लाख हो गए और इसी तरह इलेक्ट्रिक मोटर 1961 में 131 से 1991 में 4658 हो गए। इन सब से सिंचाई का क्षेत्र बढ़ गया, कृषि के मशीनीकरण के क्षेत्र में ऋण प्रवाह मात्र 3% है। 12वीं योजना में छोटे और सीमांत कृषि को भी इसका लाभ पहुंचाने का प्रस्ताव रखा गया।
लाभ
कृषि मशीनीकरण से सबसे बड़ा फायदा अधिक फसल उत्पादन है। एक सर्वेक्षण के अनुसार मशीनीकरण वाले कृषि क्षेत्र में उत्पादन ज्यादा होता है। कम मजदूरों के उपयोग से ज्यादा फसल होती है। मजदूर अधिक मेहनत और जोखिम उठाने से बच जाते हैं। फसल के अधिक उत्पादन से उस पर होने वाले खर्च कम हो जाते हैं। मशीनीकरण ने मजदूरों के अभाव की समस्या का भी समाधान पेश किया है। किसानों को कई फसलें एक साथ उपयुक्त ढंग से उगाने में मशीनों से सहायता मिली है। अधिक उत्पादन से अधिक कमाई करके किसान पारंपरिक खेती की जगह व्यवसाय खेती के चरण में पहुंच जाते हैं।
 
उत्तर प्रदेश में कृषि मशीनीकरण
उत्तर प्रदेश में खेती-बाड़ी के लिए बिजली की उपलब्धता 2001 में 1.75 किलोवाट प्रति हेक्टेयर थी। आबादी का घनत्व यहां बहुत ज्यादा है। फिर भी खेती के लिए आवश्यक मशीनीकरण को लागू करने के लिए जरूरी बिजली आपूर्ति सस्ती दरों पर सुनिश्चित की जानी चाहिए। इससे खेती से जुड़े काम समय से हो सकेंगे और अपेक्षित उत्पादन भी संभव हो सकेगा। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रयोग किए जा रहे महंगे निवेश का पूरा लाभ मिल सकेगा। शुद्ध रूप से जल के स्तर को ठीक करना, सिंचाई के लिए कुशल सिंचाई संसाधनों के प्रयोग से पानी की खपत को कम करना और पानी की उपलब्धता के अनुसार विभिन्न फसलों का उत्पादन क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे हैं।
1.75 किलोवाट प्रति हेक्टेयर बिजली की वर्तमान उपलब्धता 2020 तक 2 किलोवाट प्रति हेक्टेयर करके, समय से कृषि के कामकाज पूरे किए जा सकते हैं। कस्टम हायरिंग(Custom Hiring) के माध्यम से खेती का मशीनीकरण करके सीमांत और मध्यम श्रेणी के किसानों तक भी इस सुविधा को पहुंचाया जा सकता है। फसल अवशेष प्रबंधन चारा, भूसा और ऊर्जा के लिए जरूरी है। ऐसी संभावना है कि 2020 तक 70% जुताई, जमीन का समतलन, बीज रोपण, पौधारोपण, सिंचाई, सभी जरूरी फसलों की थ्रेशिंग का पूरी तरह से मशीनीकरण हो जाएगा। उत्तर प्रदेश में ट्रैक्टर की बिक्री अधिकतम है। पिछले वर्ष 73,000 ट्रैक्टर बिके थे। कस्टम हायरिंग से 50 से अधिक लेजर लैंड लेवलर(Laser Land Leveler) का प्रयोग किया गया।
 
कोविड-19 का कृषि पर प्रभाव
कोरोना वायरस महामारी ने सभी क्षेत्रों पर अपना असर डाला है। एक चुनौती भरे समय में कृषि क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा है और कैसे इसका सामना किया जा रहा है, यह विचारणीय प्रश्न है क्योंकि देश में 140 मिलियन लोग गांव में रहते हैं। कृषि उत्पादन हमारी अर्थव्यवस्था का बहुत अहम हिस्सा है। देश में लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों जिसमें जौनपुर भी शामिल था की महामारी से उत्पन्न खतरों से बचने के लिए, प्रधानमंत्री किसान योजना के अंतर्गत किसानों के खातों में ₹2000 प्रतिमाह जमा किये गए। मजदूरों की मजदूरी दरें भी बढ़ा दी गई। रिजर्व बैंक ने किसानों के तीन लाख तक के फसल ऋण पर 3% की छूट जारी की। रबी की फसल की कटाई का समय था। मजदूरों का पलायन चिंता का विषय था। डेयरी उत्पाद की बिक्री भी काफी गिर गई थी। अच्छे मॉनसून के साथ-साथ सरकार ने किसानों के पोषण, सुरक्षा और उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए योजनाएं बनाई हैं। कोविड-19 के प्रकोप के बाद बनी नई कृषि नीतियों में खाद्य प्रणाली परिवर्तन को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में ट्रेक्टर द्वारा खेत की जुताई का चित्र है। (Flickr) 
दूसरे चित्र में धान की खेती के दौरान खेत को समतल करता एक किसान। (Pikist) 
तीसरे चित्र में कृषि मशीनीकरण पर संकेंद्रित चित्र है। (Pexels) 
अंतिम चित्र में हाथ से चलाया जाने वाला मशीनी हल दिखाया गया है। (publicdomainpictures) 
सन्दर्भ:
http://www.economicsdiscussion.net/essays/india-essays/essay-on-farm-mechanisation-in-india/17643
https://farmech.dac.gov.in/FarmerGuide/UP/index1.html
https://farmech.dac.gov.in/FarmerGuide/UP/2u.htm
https://www.preventionweb.net/news/view/71330
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        