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धरती पर पक्षियों की अनेक विविधताएं मौजूद हैं तथा इन्हीं विविधताओं में से एक पीले पैर वाले हरे कबूतर या हरियाल भी हैं। हरियाल (ट्रेरोन फोनिकोप्टेरा – Treron phoenicoptera), ट्रेरोन की एक सामान्य प्रजाति है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है। ट्रेरोन, कोलंबिडी (Columbidae) परिवार से सम्बंधित है, जिसके सदस्यों को आमतौर पर हरे कबूतर कहा जाता है। इस वंश में 29 प्रजातियां शामिल हैं, जो एशिया (Asia) और अफ्रीका (Africa) के क्षेत्रों में फैली हुयी हैं। इन्हें भारत, श्रीलंका (Sri Lanka), बर्मा (Burma), पाकिस्तान (Pakistan), नेपाल (Nepal), बांग्लादेश (Bangladesh), चीन (China), थाईलैंड (Thailand), कंबोडिया (Cambodia) और इंडोचीन (Indochina) में पाया जा सकता है। शारीरिक संरचना की बात करें तो, पीले पैर वाले वयस्क हरे कबूतर का आकार 29 से 33 सेंटीमीटर के बीच होता है तथा पूंछ की लंबाई लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर के बीच होती है। पक्षियों के पंखों की लंबाई 17 से 19 सेंटीमीटर तक हो सकती है। इनके वजन की बात करें तो, वयस्क पक्षियों में यह आमतौर पर 225 से 260 ग्राम के बीच होता है। यूं तो, वयस्क मादा, नर पक्षी के समान ही होती है, लेकिन इसे अपेक्षाकृत सुस्त माना जाता है। हरियाल अपनी तेज मजबूत और अत्यधिक शोर मचाने वाली उड़ान के लिए प्रसिद्ध है। पक्षियों की इस प्रजाति में प्रजनन प्रायः मार्च से जून माह के बीच होता है तथा ये अपने सफेद और चमकदार अंडे पेड़ या झाड़ी में बनायी गयी टहनियों में देते हैं। अंडे को सेंकने या गर्म करने की अवधि 13 से 15 दिनों के बीच होती है। घरेलू कर्तव्यों को सामान्यतः मादा और नर पक्षी दोनों द्वारा साझा किया जाता है। इस अवधि के दौरान नर हरियाल भोजन का ध्यान रखता है और हमेशा घोंसले के पास रहता है। दो महीने के बाद, आमतौर पर मार्च में, चूजे बाहर निकलने लगते हैं। हरियाल को एक शर्मीला पक्षी माना जाता है। यह स्थानीय रूप से पलायन करता है लेकिन भारत में यह ज्यादातर मध्य भारतीय क्षेत्र में केंद्रित है।  हरियाल प्रायः शाकाहारी होते हैं तथा झुंड में अपना भोजन एकत्रित करना पसंद करते हैं। सुबह के समय वे अक्सर घने वन क्षेत्रों में उभरते पेड़ों के शीर्ष पर धूप सेंकते देखे जा सकते हैं। इन्हें अधिकांशतः पेड़ की शाखाओं पर जोड़े में बैठा पाया जा सकता है। हरियाल आमतौर पर सामाजिक पक्षी होते हैं तथा उन्हें जोड़े या छोटे समूहों (5 से 10) और कुछ बड़े समूहों में भी देखा जा सकता है। ये प्रजातियां मुख्य तौर पर अपने हरे रंग के लिए जानी जाती हैं, जिसका मुख्य कारण इनके शरीर में कैरोटीनॉयड वर्णक (Carotenoid pigment) की उपस्थिति है, जो उन्हें उनके आहार से प्राप्त होती है। हरे कबूतर अपने आहार में विभिन्न फलों, मेवों या बीजों को शामिल करते हैं। हरियाल महाराष्ट्र के राज्य पक्षी के रूप में भी सुशोभित है। हालांकि, यह पक्षी अधिकांश क्षेत्रों में मौजूद है, लेकिन मानव गतिविधियों के कारण इसके दर्शन दुर्लभ होते जा रहे हैं।
हरियाल प्रायः शाकाहारी होते हैं तथा झुंड में अपना भोजन एकत्रित करना पसंद करते हैं। सुबह के समय वे अक्सर घने वन क्षेत्रों में उभरते पेड़ों के शीर्ष पर धूप सेंकते देखे जा सकते हैं। इन्हें अधिकांशतः पेड़ की शाखाओं पर जोड़े में बैठा पाया जा सकता है। हरियाल आमतौर पर सामाजिक पक्षी होते हैं तथा उन्हें जोड़े या छोटे समूहों (5 से 10) और कुछ बड़े समूहों में भी देखा जा सकता है। ये प्रजातियां मुख्य तौर पर अपने हरे रंग के लिए जानी जाती हैं, जिसका मुख्य कारण इनके शरीर में कैरोटीनॉयड वर्णक (Carotenoid pigment) की उपस्थिति है, जो उन्हें उनके आहार से प्राप्त होती है। हरे कबूतर अपने आहार में विभिन्न फलों, मेवों या बीजों को शामिल करते हैं। हरियाल महाराष्ट्र के राज्य पक्षी के रूप में भी सुशोभित है। हालांकि, यह पक्षी अधिकांश क्षेत्रों में मौजूद है, लेकिन मानव गतिविधियों के कारण इसके दर्शन दुर्लभ होते जा रहे हैं। अवैध शिकार हरियाल के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जिसके कारण इनकी संख्या गिरावट पर है। पक्षी को मांस के लिए शिकार किया जाता है और बेचा जाता है। इसके अलावा, यह एक विदेशी पक्षी के रूप में नेपाल को भी निर्यात किया जाता है। हरे कबूतर के लिए अन्य खतरों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, सड़क चौड़ीकरण में फल-फूल वाले पेड़ों का विनाश और शहर में व्यापक निर्माण गतिविधि शामिल हैं, जिनके कारण इन्हें अपने आवास स्थानों और भोजन का भारी नुकसान उठाना पड़ता है। पक्षियों की संख्या में होने वाली गिरावट को कम करने के लिए इनका संरक्षण अत्यधिक आवश्यक है।
 अवैध शिकार हरियाल के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जिसके कारण इनकी संख्या गिरावट पर है। पक्षी को मांस के लिए शिकार किया जाता है और बेचा जाता है। इसके अलावा, यह एक विदेशी पक्षी के रूप में नेपाल को भी निर्यात किया जाता है। हरे कबूतर के लिए अन्य खतरों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, सड़क चौड़ीकरण में फल-फूल वाले पेड़ों का विनाश और शहर में व्यापक निर्माण गतिविधि शामिल हैं, जिनके कारण इन्हें अपने आवास स्थानों और भोजन का भारी नुकसान उठाना पड़ता है। पक्षियों की संख्या में होने वाली गिरावट को कम करने के लिए इनका संरक्षण अत्यधिक आवश्यक है।
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        