 
                                            समय - सीमा 268
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                                            रबीन्द्रनाथ टैगोर (गुरुदेव) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक, चित्रकार, जैसी अनेक उपाधियों से सुसज्जित व्यक्ति रहें हैं। वे बंगाली साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति को विश्व भर में प्रसारित करने वाले युगदृष्टा रहे हैं। वे पहले ऐसे गैर-पश्चिमी व्यक्ति भी रहे हैं जिसे नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया हो। भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन', बांग्लादेशका राष्ट्रगान  'आमार सोनार बाँग्ला' और श्रीलंका का राष्ट्रगान की रचना करने के साथ ही वे तीन  देशों के राष्ट्रगान की रचना करने वाले एकमात्र कवि रहें हैं।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की विविध रचनाओं में कविता, उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, चित्र, और संगीत शामिल हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में हजारों गीत ,उपन्यास, लघु कथाएँ, यात्रा वृतांत, और नाटक लिखे हैं। टैगोर की सभी रचनाओं में उनकी लघु कथाएँ प्रायः सबसे अधिक लोकप्रिय मानी जाती हैं। उन्हें बंगाली भाषा का शैली संस्करण के रूप में उत्पत्ति का श्रेय भी दिया जाता है।   उनका कार्य विशेष तौर पर उनकी लयबद्धता, आशावादी और गीतात्मक स्वभाव के कारण सराहा जाता है। हालांकि उनके द्वारा लिखित कहानियां बेहद सरल तथा सामान्य जनमानस और बच्चों का जीवन को इंगित करती है ।
1881 में टैगोर ने अपनी भतीजी इंदिरा देवी के साथ एक नाटक “वाल्मीकि प्रतिभा” में देवी लक्ष्मी के रूप में अभिनय किया। सोलह वर्ष की उम्र में, टैगोर ने अपने भाई ज्योतिरिंद्रनाथ के एक बंगाली नाटक का नेतृत्व किया। बीस की उम्र में उनके द्वारा अपना पहला नाट्य वाल्मीकि प्रतिभा (वाल्मीकि की प्रतिभा) लिखा गया। इस नाटक के  माध्यम से टैगोर ने नाटकीय शैलियों और भावनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला का प्रदर्शन किया। 1912 में उन्होंने एक अन्य नाटक, “डाकघर (द पोस्ट ऑफिस)” लिखा। 1890 में उन्होंने अपने बेहतरीन नाटक “विसर्जन (बलिदान)” को प्रस्तुत किया।यह उनके पहले के उपन्यास, राजर्षि का नया रूप था।  बाद में लिखे गए लगभग सभी नाटक स्वभाव से अधिक दार्शनिक और वास्तविक लगते थे। 
 “गीतांजलि” टैगोर द्वारा लिखित सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह है, जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था। गीतांजलि के अलावा उन्होंने मानसी, सोनार तोरी, बालका और अन्य उल्लेखनीय कविताएँ भी लिखी हैं। टैगोर की काव्य शैली, जो 15 वीं और 16 वीं शताब्दी  के वैष्णव कवियों द्वारा स्थापित शैली को ही आगे बढाती है। इस शैली की पहुँच शास्त्रीय औपचारिकता से लेकर हास्य, दूरदर्शी और परमानंद तक है। वे व्यास, ऋषि-उपनिषदों भक्ति-सूफी रहस्यवादी कबीर और रामप्रसाद सेन के अतिवादी रहस्यवाद से प्रभावित थे।
“गीतांजलि” टैगोर द्वारा लिखित सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह है, जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था। गीतांजलि के अलावा उन्होंने मानसी, सोनार तोरी, बालका और अन्य उल्लेखनीय कविताएँ भी लिखी हैं। टैगोर की काव्य शैली, जो 15 वीं और 16 वीं शताब्दी  के वैष्णव कवियों द्वारा स्थापित शैली को ही आगे बढाती है। इस शैली की पहुँच शास्त्रीय औपचारिकता से लेकर हास्य, दूरदर्शी और परमानंद तक है। वे व्यास, ऋषि-उपनिषदों भक्ति-सूफी रहस्यवादी कबीर और रामप्रसाद सेन के अतिवादी रहस्यवाद से प्रभावित थे।
रबीन्द्रनाथ के पिता ने शांतिनिकेतन में एक बड़ा भू-भाग खरीदा था। उन्होंने अपने पिता की संपत्ति में एक प्रयोगात्मक विद्यालय खोलने का विचार किया। इस विचार के साथ 1901 में वे शान्तिनिकेतन विस्थापित हो गए, और वहाँ एक आश्रम की स्थापना की। यहां संगमरमर के फर्श का एक प्रार्थना कक्ष था जिसे "द मंदिर" नाम दिया गया था। वहाँ की कक्षाएं पेड़ों के नीचे आयोजित की जाती थीं, और पारंपरिक गुरु-शिष्य शिक्षण पद्धति का पालन किया जाता था।
 साठ की उम्र में, टैगोर ने अपनी पहली चित्रकारी बनाई; उनके कई कामों की सफल प्रदर्शनियां भारत समेत विश्व भर के अनेकों संग्रहालयों में लगाई गयी हैं। चित्रकारी समेत लेखन, संगीत, नाटक और अभिनय का हुनर स्वाभाविक रूप से और लगभग बिना प्रशिक्षण के उन्होंने स्वयं में विकसित किया।
साठ की उम्र में, टैगोर ने अपनी पहली चित्रकारी बनाई; उनके कई कामों की सफल प्रदर्शनियां भारत समेत विश्व भर के अनेकों संग्रहालयों में लगाई गयी हैं। चित्रकारी समेत लेखन, संगीत, नाटक और अभिनय का हुनर स्वाभाविक रूप से और लगभग बिना प्रशिक्षण के उन्होंने स्वयं में विकसित किया।
 
टैगोर सिर्फ एक लेखक नहीं थे. उन्होंने  किताबें लिखी, उन्होंने गीत लिखे, नाटकों में अभिनय किया , वह एक भावुक चित्रकार रहे  8 वर्ष की आयु से ही, उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। और उपन्यास और अन्य ग्रंथों के साथ-साथ गीतों के बाद छोटी कहानियों पर चले गए। (भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका) तीन राष्ट्रीय गान लिखना अपने आप में एक उल्लेखनीय कार्य हैं। प्रायः ऐसा माना जाता है कि यदि आप मृत्यु के बाद भी जीवित रहना चाहते हैं, तो यह आपके जीवित अवस्था में किये गए कर्मों से संभव है। विचारों और पुस्तकों, लेखों और नाटकों के माध्यम से टैगोर आज हमारे बीच में अदृश्य रूप में जीवित हैं। अपने स्वर्गीय निवास पर चले जाने के बाद भी उनकी किंवदंतियां हमें अपने जीवन को पूर्ण सार्थकता तथा प्रयोग करते हुए जीने की शिक्षा देती हैं। हम प्रतिवर्ष 7 मई को उनकी जयंती मनाते हैं। उनके महान कथन, तथा अद्भुत जीवन कौशल का अनुसरण करना ही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।
संदर्भ
●	https://bit.ly/3b9RV7s
●	https://bit.ly/3b9DGiZ
●	https://bit.ly/3h7cViM
●	https://bit.ly/3xS8QoD
●	https://bit.ly/2QY7l7O
●	https://bit.ly/33iuLau
 
                                         
                                         
                                         
                                        