देवनागरी लिपि का इतिहास और विकास

ध्वनि II - भाषाएँ
15-06-2021 11:20 AM
देवनागरी लिपि का इतिहास और विकास

देवनागरी एक भारतीय लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएं तथा कई विदेशी भाषाएं लिखी जाती हैं। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है,ब्राह्मी लिपि, ब्रह्मा से जोड़ कर देखी जाती है, इस लिपि का प्रयोग वैदिक आर्यों ने शुरू किया था। देवनागरी शब्द विद्वानों के लिए रहस्य रहा है। एक परिकल्पना है कि यह दो संस्कृत शब्दों 'देव' (भगवान) और 'नागरी' (नगर) का संयोजन हो सकता है, जिसका अर्थ 'देवताओं का शहर' या 'देवताओं की लिपि' है।देवनागरी लिपि, ब्राह्मी प्रणाली के विकास का रूप है, यह एकमात्र ऐसी लिपि है जिसमें मानव ध्वनि (स्वनिम(phoneme)), ध्वन्यात्मक रूप से व्यवस्थित ध्वनियों के लिए विशिष्ट संकेत (ग्राफेम(phoneme)) हैं। और यह इतना लचीला है कि इसमें निकट के ग्रैफेम (grapheme) पर निशान लगाकर विदेशी ध्वनियां लिखी जा सकती है। देवनागरी लिपि भारत की एक महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से प्रयुक्त लिपि है।
इसका उपयोग मुख्य रूप से संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, हरियाणवी, बुंदेली भाषा, डोगरी, खस, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली भाषाएं), तमांग भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, नागपुरी, मैथिली, संताली, राजस्थानी भाषा, बघेली आदि भाषाओं में किया जाता है और स्थानीय बोलियाँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त यह पंजाबी, सिंधी और कश्मीरी जैसी अन्य भाषाओं के लिए सहायक लिपि के रूप में भी कार्य करती है। देवनागरी लिपि नंदीनागरी लिपि से निकटता से संबंधित है जो आमतौर पर दक्षिण भारत की कई प्राचीन पांडुलिपियों में पाई जाती है, और यह कई दक्षिण पूर्व एशियाई लिपियों से संबंधित है।यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरोरेखा' कहते हैं।इस लिपि में 14 स्वर और 33 व्यंजन सहित 47 प्राथमिक वर्ण हैं,जिसका उपयोग 120 से अधिक भाषाओं के लिए किया जा रहा है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन (Roman), अरबी (Arabic), चीनी (Chinese) आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है।भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं को लिखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली देवनागरी लिपि दो हजार से अधिक वर्षों की अवधि में विकसित हुई है। हालांकि भारत में लेखन की वास्तविक उत्पत्ति कब हुई यह आज्ञात है, परंतु विद्वानों का मानना ​​​​है कि इसकी शुरुआती सम्राट अशोक (300 ईसा पूर्व) के शिलालेखों में प्रयुक्त ब्राह्मी लिपि से हुई थी। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है,इसका उपयोग सामान्य लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा प्राकृत लिखने के लिए अधिक किया जाता था। भारत में कई स्थानों पर देखे गए अशोक के शिलालेख, सभी ब्राह्मी में हैं।जिससे पता चलता है कि लिपि इस काल में विकसित हो रही थी। इसके बाद जब मौजूदा संरचनाओं में को नया आकार दिया गया और नयी संरचनाओं को बनाया गया (जैसे स्तूप और विशेष स्तंभ आदि), तो दाताओं के नाम दर्ज करना एक सामान्य प्रथा बन गई। 300 ईसा पूर्व की ब्राह्मी की तुलना में इससे बाद के समय की ब्राह्मी लिपि में परिवर्तन और ध्यान देने योग्य अंतर दिखाई देने लगे। 200 ईस्वी की ब्राह्मी इन अंतरों को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। ऐसा माना जाता है कि शब्दों को तराशने या उसे अंकित करने का काम एक विशेषज्ञ को दिया गया था, लेकिन यह शब्द एक विद्वान द्वारा प्रदान किये जाते थे। नतीजतन, संयुक्त अक्षर के प्रतिपादन में देखी गई विविधताओं को शास्त्रियों द्वारा शुरू की गई त्रुटियों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।ब्राह्मी की उत्तरी धारा में गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा और देवनागरी को रखा गया है। दक्षिणी धारा में तेलुगु, कन्नड़, तमिल, कलिंग, ग्रंथ, मध्य देशी और पश्चिमी लिपि शामिल हैं। गुजरात से कुछ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनकी भाषा संस्कृत है और लिपि नागरी लिपि। ये अभिलेख पहली ईसवी से लेकर चौथी ईसवी के कालखण्ड के हैं। कहा जाता है कि नागरी लिपि (जोकि ब्राह्मी लिपि की वंशज), देवनागरी से बहुत निकट है और देवनागरी का पूर्वरूप है। अतः ये अभिलेख इस बात के साक्ष्य हैं कि प्रथम शताब्दी में भी भारत में देवनागरी का उपयोग आरम्भ हो चुका था।मध्यकाल के शिलालेखों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इस समय नागरी से सम्बन्धित लिपियों का बड़े पैमाने पर प्रसार होने लगा था। इस काल में कहीं-कहीं स्थानीय लिपि और नागरी लिपि दोनों में सूचनाएँ अंकित मिलतीं हैं। उदाहरण के लिए 8वीं शताब्दी के पट्टदकल (कर्नाटक) के स्तम्भ पर सिद्धमात्रिका और तेलुगु-कन्नड लिपि के आरम्भिक रूप - दोनों में ही सूचना लिखी हुई है। हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा के ज्वालामुखी अभिलेख में शारदा और देवनागरी दोनों में लिखा हुआ है।देवनागरी का एक प्रारंभिक संस्करण बरेली के कुटीला (Kutila) शिलालेख में दिखाई देता है, इस शिलालेख पर विक्रम संवत 1049 की तिथि अंकित है जो की जुलियन कैलंडर (Julian calendar) के हिसाब से 992 ईस्वीहोती है। इस प्रकार 300 ईसा पूर्व मौर्य राजवंश से प्रारंभिक ब्राह्मी निकली जिसने विजयनगर साम्राज्य (1500 ई.) तक का एक लम्बा सफर तय किया और कई लिपियों को जन्म दिया जिसमें से एक देवनागरी लिपि भी थी।
देवनागरी लिपि भले ही ब्राह्मी से उद्भूत हुई हो, किन्तु अपने विकासक्रम में उसने फारसी (Persian), गुजराती, रोमन आदिक लिपियों से भी तत्वों को ग्रहण किया और एक परिपूर्ण लिपि के रूप में विकसित हुई। भारत में देवनागरी लिपि का विशेष महत्व है क्योंकि भारत एक बहुभाषी देश है और भावात्मक एकता की दृष्टि से भारतीय भाषाओं के लिए एक लिपि का होना आवश्यक है और यह लिपि केवल देवनागरी ही हो सकती हैं। कोविड -19 (Covid-19) महामारी के दौरानभी लाखों लोगों तक संचार में देवनागरी लिपि का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इसके माध्यम से कोविड -19 से संबंधित जानकारी को कई भाषाओं में अनुवाद करने और प्रचार-प्रसार करने में बहुत मदद मिली।सभी सुरक्षा जागरूकता संदेशों को हर भाषा के माध्यम से भारत में प्रसारित किया जा सका। यह तक कि झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में “हो समुदाय”(Ho community) के लोगों के लिये भी कोविड -19 से संबंधित जानकारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों को देवनागरी लिपि की सहायता से अनुवादन किया गया। साथ ही हो (Ho) भाषा में अमिताभ बच्चन की आवाज में सुरक्षा जागरूकता का डेढ़ मिनट संदेश भी रिकॉर्ड (record) किया गया।

संदर्भ:
https://bit.ly/3gn1RgH
https://bit.ly/2SBGUWa
https://bit.ly/3gvYDX1
https://bit.ly/3pPYgep
https://bit.ly/3zsWbcq

चित्र संदर्भ

1. देवनागरी वर्णमाला का एक चित्रण (flickr)
2. देवनागरी आयाम का एक चित्रण (flickr)
3. 13वीं और 19वीं शताब्दी के बीच निर्मित देवनागरी पांडुलिपियों के उदाहरण का एक चित्रण (wikimedia)