बबूल एक औषधि, जौनपुर

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
24-11-2017 05:31 PM
बबूल एक औषधि, जौनपुर
बबूल को हिंदी के साहित्य में वो स्थान ना मिल पाया है जिसका यह पेड़ अधिकारी है। कबीर दास ने अपने दोहे में लिखा है- बोया पेड़ बबूल का अम कहाँ से खाय। इस शब्द के कई अर्थ निकल सकते हैं परन्तु बबूल को इसके काँटे व इसके फल ना देने के कारण इसे एक विशिष्ट स्थान साधारण समाज में नहीं मिल पाया है। वास्तविकता में बबूल का व्यवहार बिल्कुल अलग है। यह एक विशिष्ट औषधीय गुणों वाला पेड़ है। भारत में बबूल की दो प्रमुख प्रजातियाँ पायी जाती हैं, एक देशी बबूल और दूसरा मासकीट बबूल। बबूल को कीकर नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम अकासिया निलोटिका है। बबूल अफ्रीका महाद्वीप व भारतीय उपमहाद्वीप का मूल वृक्ष है। बबूल मुख्य रूप से ऊसर क्षेत्र में पाया जाता है। यह मिट्टी के कटाव को रोकने का अच्छा काम करता है। जौनपुर में सड़कों के किनारे बबूल की कतारें दिखाई दे जाती हैं जो कि सरकार द्वारा सड़कों के निर्माण के समय पर लगवाई गयी थी। बबूल का अध्यात्म में व आयुर्वेद में बड़ा महत्व है। यह अपनी छाल से लेकर अपने गोंद तक दवा के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। कई प्रकार के पूजा-पाठ में बबूल का प्रयोग किया जाता है। उत्तर भारत में एक प्रचलन है कि यदि किसी औरत को बच्चा गर्भ में अटक गया हो, तो बबूल के चारों ओर उसके पिता द्वारा धागा लपेटने से बच्चा पैदा हो जाता है। यह एक मिथक हो सकता है परन्तु लोक-साहित्य में ऐसी प्रथायें बबूल की महत्ता को प्रदर्शित करती हैं। बबूल के पत्ते, व फलियों से यौन शक्ती की दवाइयों के निर्माण की बात आयुर्वेद में मानी गयी है। बबूल की लकड़ी अत्यन्त मजबूत मानी जाती है तथा इनमें घुन लगने की सम्भावना ना के बराबर होती है। 1. https://goo.gl/iFk2b4 2. https://goo.gl/TYPkGc