 
                                            समय - सीमा 268
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1036
मानव और उनके आविष्कार 802
भूगोल 264
जीव-जंतु 306
 
                                            शर्कीकाल में जौनपुर में अनेकों भव्य भवनों, मस्जिदों तथा मकबरों का र्निमाण हुआ। साथ ही शिक्षा,
संस्कृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में जो अनूठा स्वरूप शर्कीकाल में विद्यमान रहा, वह जौनपुर के
इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण है। उनका दरबार संगीतकारों, सूफ़ी कवियों और कलाकारों से सदैव भरा रहता था।
इसी समय जौनपुर में एक महान साहित्यकार “कुतुबन सुहरावर्दी” उभरा, जिसने अपनी प्रसिद्ध रचना
'मृगावती' में फ़ारसी व भारतीय काव्य-परंपरा की अनेक रूढियों का समन्वित प्रयोग किया, इन दो भिन्न
काव्य-रूढियों के सम्मिश्रण से ही भारतीय सूफ़ी काव्य परंपरा विकसित हुई जो कि इन दोनों संस्कृतियों के
सुन्दर मिलन की उपज थी।
कुतबन हिन्दी के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि थे। वे शेख बुरहान के शिष्य थे और हुसैन शाह उनके संरक्षक थे। इनका
प्रसिद्ध ग्रंथ मृगावती है, जोकि 1505 में हिंदावी भाषा (पुरानी हिंदी) तथा उर्दू लिपि में लिखा गया था। इसमें
लौकिक प्रेम के माध्यम से कवि ने अलौकिक प्रेम को प्राप्त करने की राह बताई है। इसका एक अंग्रेजी में सुंदर
अनुवाद 2008 में आदित्य बहल (Aditya Behl) द्वारा किया गया है, जिनकी 2009 में दुखद मृत्यु हो गई।
उन्होनें अपने अनुवादन को “द मैजिक डो” (The Magic Doe) नाम दिया।
 शिष्यों के लिए सूफी शैली के रहस्यमय आध्यात्मिक अभ्यास के परिचय के रूप में 1503 में रचा गया यह
प्रसिद्ध साहित्य चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या
मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन करता है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का
निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच-बीच में सूफियों की शैली के बड़े सुन्दर
रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं।यह एक आध्यात्मिक पहेली और एक प्रेमकथा है। मृगावती सूफीवाद के लिए
एक उत्कृष्ट परिचय और पूर्व-आधुनिक भारत के सच्चे साहित्यिक रचनाओं में से एक कहानी जो भारतीय,
इस्लामी और यूरोपीय कथात्मक रूपों को आपस में जोड़ती है। इस कहानी में समुद्री यात्राएं, राक्षसी नागों के
साथ मुठभेड़, गुफाओं में उड़ते हुए राक्षस और नरभक्षी आदि को मनोरंजन के रूप में चिह्नित किया गया।पूरी
कथा प्रत्यक्ष रूप से राजकुंवर व मृगावती की प्रेम कथा पर आधारित है, परन्तु इसका गहन रूप से अध्ययन
करने पर हम पाएंगे कि यह लौकिक कथा एक आलंबन मात्र है। वास्तव में यह ईश्वरीय प्रेम को प्राप्त करने के
भिन्न स्तरों से हमें परिचित कराती है।
2009 में अपनी असामयिक मृत्यु से पहले, आदित्य बहल ने मृगावती के संस्करण को पूरा किया था, जो विश्व
और भारतीय साहित्य की एक प्रमुख परंपरा में आध्यात्मिक महत्व और इसके उपयोग के सटीक तंत्र तथा कार्य
का प्रदर्शन करता है। इनका ये अनुवाद साहित्यिक जगत में उल्लेखनीय है। "द मैजिक डो" एक ऐसी कहानी को
बताती है जो अलौकिक है और दूसरी दुनिया से हमारा परिचय कराती है, तथा इसके नायक मनुष्य, परी और
जिन्न हैं। आदित्य बहल का नया अनुवाद उस विशेष मनोरंजन को उजागर करता है जिसमें राजा के संरक्षकों
को सम्मान और सूफी अनुयायियों के लिए एक प्रतीकात्मक मार्गदर्शिका के रूप में काफी कार्य किया गया है।
इनका यह कार्य प्रेमख्यानों की पूरी शैली को नई गहराई, बनावट और संदर्भ देता है। लेकिन पद्य प्रारूप और
छंद का अनुवादन करने के मामले में यह कार्य कुछ दुर्भाग्यपूर्ण अंतराल छोड़ देता है। इसमें कुछ उद्धरण अधूरे
हैं। परंतु बहल इस पाठ की बहुवचनता को काफी अच्छे से रेखांकित करते है।
शिष्यों के लिए सूफी शैली के रहस्यमय आध्यात्मिक अभ्यास के परिचय के रूप में 1503 में रचा गया यह
प्रसिद्ध साहित्य चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या
मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन करता है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का
निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच-बीच में सूफियों की शैली के बड़े सुन्दर
रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं।यह एक आध्यात्मिक पहेली और एक प्रेमकथा है। मृगावती सूफीवाद के लिए
एक उत्कृष्ट परिचय और पूर्व-आधुनिक भारत के सच्चे साहित्यिक रचनाओं में से एक कहानी जो भारतीय,
इस्लामी और यूरोपीय कथात्मक रूपों को आपस में जोड़ती है। इस कहानी में समुद्री यात्राएं, राक्षसी नागों के
साथ मुठभेड़, गुफाओं में उड़ते हुए राक्षस और नरभक्षी आदि को मनोरंजन के रूप में चिह्नित किया गया।पूरी
कथा प्रत्यक्ष रूप से राजकुंवर व मृगावती की प्रेम कथा पर आधारित है, परन्तु इसका गहन रूप से अध्ययन
करने पर हम पाएंगे कि यह लौकिक कथा एक आलंबन मात्र है। वास्तव में यह ईश्वरीय प्रेम को प्राप्त करने के
भिन्न स्तरों से हमें परिचित कराती है।
2009 में अपनी असामयिक मृत्यु से पहले, आदित्य बहल ने मृगावती के संस्करण को पूरा किया था, जो विश्व
और भारतीय साहित्य की एक प्रमुख परंपरा में आध्यात्मिक महत्व और इसके उपयोग के सटीक तंत्र तथा कार्य
का प्रदर्शन करता है। इनका ये अनुवाद साहित्यिक जगत में उल्लेखनीय है। "द मैजिक डो" एक ऐसी कहानी को
बताती है जो अलौकिक है और दूसरी दुनिया से हमारा परिचय कराती है, तथा इसके नायक मनुष्य, परी और
जिन्न हैं। आदित्य बहल का नया अनुवाद उस विशेष मनोरंजन को उजागर करता है जिसमें राजा के संरक्षकों
को सम्मान और सूफी अनुयायियों के लिए एक प्रतीकात्मक मार्गदर्शिका के रूप में काफी कार्य किया गया है।
इनका यह कार्य प्रेमख्यानों की पूरी शैली को नई गहराई, बनावट और संदर्भ देता है। लेकिन पद्य प्रारूप और
छंद का अनुवादन करने के मामले में यह कार्य कुछ दुर्भाग्यपूर्ण अंतराल छोड़ देता है। इसमें कुछ उद्धरण अधूरे
हैं। परंतु बहल इस पाठ की बहुवचनता को काफी अच्छे से रेखांकित करते है। प्रेमाख्यान शैली के बारे में बहल का विश्लेषण और परमात्मा की खोज के रूप में आध्यात्मिक रहस्य, नायक,
नायिका और पाठक के रस का स्वाद लेने की लालसा के लिये किया गया कार्य बहुत ही उल्लेखनीय है। अंग्रेजी
में उपलब्ध स्थानीय भारतीय साहित्य के संग्रह में मृगावती का बहुमूल्य योगदान है। बहल का लेखन अभूतपूर्व
विद्वता के साथ मध्यकालीन सूफी प्रेम को अपनी जटिल फ़ारसी, संस्कृत और अवधी भाषाई विरासत के साथ
पेश करता है। उन्होंने अपने कार्यों में जिन परिष्कृत लेखकों का शब्दस्थानांतर किया, उनमें शेख बुरहान
सुहरावर्दी के शिष्य कुतुबन, मीर सैय्यद मंझन राजगीरी, और मलिक मुहम्मद जायसी शामिल हैं। सूफी शैली
और उसके सामाजिक तथा धार्मिक इतिहास में आदित्य बहल का गहरा विसर्जन, साथ ही भाषा के साथ उनकी
शानदार समझदारी उनको उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाती है। बहल ने वास्तव में सराहनीय काम किया है।
निश्चय ही 'मृगावती' का सूफ़ी प्रेमाख्यानकों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक ओर जहाँ इसने सूफी और हिंदु परंपरा
का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया है वहीं दूसरी ओर सरल व रोचक रूप में 'प्रेम-मार्ग' की महत्ता स्थापित कर
इसे ही ईश्वर तक पहुँचने का एकमात्र मार्ग बतलाया है।'मृगावती' का स्थान सूफी प्रेममार्गी काव्यों में इसीलिए
भी महत्त्वपूर्ण है, क्यूंकि यह इस धारा की शुरूआती दौर की रचनाओं में से है जिसने आगे रचे जाने वाले
प्रेमाख्यानों के लिए आधार भूमि तैयार की। इसका महत्त्व न केवल साहित्यिक क्षेत्र में है अपितु आध्यात्मिक
क्षेत्र में भी निर्विवाद है।
प्रेमाख्यान शैली के बारे में बहल का विश्लेषण और परमात्मा की खोज के रूप में आध्यात्मिक रहस्य, नायक,
नायिका और पाठक के रस का स्वाद लेने की लालसा के लिये किया गया कार्य बहुत ही उल्लेखनीय है। अंग्रेजी
में उपलब्ध स्थानीय भारतीय साहित्य के संग्रह में मृगावती का बहुमूल्य योगदान है। बहल का लेखन अभूतपूर्व
विद्वता के साथ मध्यकालीन सूफी प्रेम को अपनी जटिल फ़ारसी, संस्कृत और अवधी भाषाई विरासत के साथ
पेश करता है। उन्होंने अपने कार्यों में जिन परिष्कृत लेखकों का शब्दस्थानांतर किया, उनमें शेख बुरहान
सुहरावर्दी के शिष्य कुतुबन, मीर सैय्यद मंझन राजगीरी, और मलिक मुहम्मद जायसी शामिल हैं। सूफी शैली
और उसके सामाजिक तथा धार्मिक इतिहास में आदित्य बहल का गहरा विसर्जन, साथ ही भाषा के साथ उनकी
शानदार समझदारी उनको उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाती है। बहल ने वास्तव में सराहनीय काम किया है।
निश्चय ही 'मृगावती' का सूफ़ी प्रेमाख्यानकों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक ओर जहाँ इसने सूफी और हिंदु परंपरा
का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया है वहीं दूसरी ओर सरल व रोचक रूप में 'प्रेम-मार्ग' की महत्ता स्थापित कर
इसे ही ईश्वर तक पहुँचने का एकमात्र मार्ग बतलाया है।'मृगावती' का स्थान सूफी प्रेममार्गी काव्यों में इसीलिए
भी महत्त्वपूर्ण है, क्यूंकि यह इस धारा की शुरूआती दौर की रचनाओं में से है जिसने आगे रचे जाने वाले
प्रेमाख्यानों के लिए आधार भूमि तैयार की। इसका महत्त्व न केवल साहित्यिक क्षेत्र में है अपितु आध्यात्मिक
क्षेत्र में भी निर्विवाद है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2TddfmI
https://amzn.to/36BnDYE
https://bit.ly/36AVVuR
https://bit.ly/3idLUJq
https://bit.ly/3hEiyVs
चित्र संदर्भ 
1. सुहरावर्दी की प्रसिद्ध रचना मृगावती के कुतुबन की पुस्तक का एक चित्रण (kashipatrika)
2. भक्ति काल के प्रसिद्द कवि कुतबन का एक चित्रण (wikimedia)
3. कुतुबन की पुस्तक मृगावती के एक पृष्ठ का चित्रण (archive)
 
                                         
                                         
                                         
                                        