 
                                            समय - सीमा 268
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भूगोल 264
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                                            भारत के अधिकांश घरों की सुबह, मीठी चाय की चुस्कियों के साथ शुरू होती है। घरों में
पधारने वाले मेहमानों को भी सर्वप्रथम चाय के लिए ही पूछा जाता है। किसी विशेष अवसर
अथवा त्योहारों के उत्सव का मज़ा भी मीठे हलवे और खीर के बिना अधूरा ही रहता है,
इसलिए मिठास न केवल व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाती है, बल्कि पारिवारिक रिश्तों को भी
मजबूती देती है। चीनी अथवा शर्करा दुनियाभर में मिठास का सबसे प्रमुख श्रोत है। चीनी
हमारी संस्कृतियों में इतना अधिक घुल गई है की, लोग "मीठा अधिक हुआ है" कहने के
बजाय "चीनी अधिक हो गई " कहना पसंद करने हैं।आज यह मीठे स्वाद का पर्याय बन चुकी
है। मीठे स्वाद को न केवल बच्चे, बल्कि हर आयु वर्ग के लोग बेहद पसंद करते हैं।
जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन न्यूट्रिशन (German Institute of Human Nutrition) के
एक जीवविज्ञानी प्रोफेसर सुज़ैन क्लॉस (Susanne Klaus) के अनुसार, मीठे खाद्य पदार्थों
के प्रति हमारी तीव्र इच्छा जन्मजात होती है। चीनी का मीठा स्वाद हमारे मस्तिष्क में
न्यूरोट्रांसमीटर (neurotransmitters) को उत्प्रेरित कर देता है, जो की दिमाग की इनाम
प्रणाली (reward system) को उत्तेजित कर देता है। यह उत्तेजना हमारे दिमाग में भलाई की
भावना को बढ़ा देती है।
मानव इतिहास में चीनी का उत्पादन सर्वप्रथम भारत में किया गया, यहाँ पहली शताब्दी
ईस्वी के कुछ समय बाद चीनी को गन्ने के पोंधों से प्राप्त किया गया। चीनी शब्द की
व्युत्पत्ति संस्कृत के शब्द "शर्करा" से हुई है, जिसका अर्थ जमीन अथवा धैर्य होता है। चीनी
की खेती करने का पहला लिखित प्रमाण भी, 1500 – 500 ईसा पूर्व के एक प्राचीन भारतीय
 संस्कृत साहित्य में किया गया है, जिसमे भारतीय उपमहाद्वीप के बंगाल क्षेत्र में गन्ने की
खेती और चीनी के निर्माण का वर्णन मिलता है। 400-350 के पतंजलि के महाभाष्य में
चीनी से निमिर्त विभिन्न व्यंजनों का वर्णन है। इनमें दूध के साथ चावल का हलवा, जौ का
मीठा भोजन और अदरक के साथ किण्वित पेय शामिल हैं।
भारत में 4,000 ईसा पूर्व में पौधों को घरेलु तौर पर उगाना तथा गन्ने के पोंधे से रस का
निष्कर्षण शुरू हो गया था, और गन्ने के रस की खोज से चीनी के निर्माण की विधियां
खोजने के बाद चीनी की उत्पादन विधियों में कुछ सुधारों के साथ ही मध्यकालीन इस्लामी
क्षेत्रों में भी चीनी के गन्ने की खेती और चीनी के निर्माण का प्रसार होने लग गया। भारत से
लोकप्रिय हुई चीनी की खेती 16वीं शताब्दी में वेस्ट इंडीज और अमेरिका के उष्णकटिबंधीय
भागों में भी फैली। इसके बाद 17वीं से 19वीं शताब्दी के बीच चीनी उत्पादन प्रक्रिया में गहन
सुधार किये गए, और 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के मध्य में चीनी के उन्नत रूपों जैसे चुकंदर
चीनी, उच्च फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप (fructose corn syrup) सहित अन्य प्रकार की मिठास
का भी विकास हो गया था।
संस्कृत साहित्य में किया गया है, जिसमे भारतीय उपमहाद्वीप के बंगाल क्षेत्र में गन्ने की
खेती और चीनी के निर्माण का वर्णन मिलता है। 400-350 के पतंजलि के महाभाष्य में
चीनी से निमिर्त विभिन्न व्यंजनों का वर्णन है। इनमें दूध के साथ चावल का हलवा, जौ का
मीठा भोजन और अदरक के साथ किण्वित पेय शामिल हैं।
भारत में 4,000 ईसा पूर्व में पौधों को घरेलु तौर पर उगाना तथा गन्ने के पोंधे से रस का
निष्कर्षण शुरू हो गया था, और गन्ने के रस की खोज से चीनी के निर्माण की विधियां
खोजने के बाद चीनी की उत्पादन विधियों में कुछ सुधारों के साथ ही मध्यकालीन इस्लामी
क्षेत्रों में भी चीनी के गन्ने की खेती और चीनी के निर्माण का प्रसार होने लग गया। भारत से
लोकप्रिय हुई चीनी की खेती 16वीं शताब्दी में वेस्ट इंडीज और अमेरिका के उष्णकटिबंधीय
भागों में भी फैली। इसके बाद 17वीं से 19वीं शताब्दी के बीच चीनी उत्पादन प्रक्रिया में गहन
सुधार किये गए, और 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के मध्य में चीनी के उन्नत रूपों जैसे चुकंदर
चीनी, उच्च फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप (fructose corn syrup) सहित अन्य प्रकार की मिठास
का भी विकास हो गया था।
मध्यकालीन समय के अंत तक चीनी को दुनियाभर में पहचाना जाने लगा था, इसे शानदार
मसाला माना जाता था। किंतु उस समय चीनी बहुत महंगा सौदा माना जाता था। 1500 से
चीनी की निर्माण प्रक्रिया में कई तकनीकी सुधार किये गए, जिसके साथ ही दुनियाभर में
चीनी थोक में और बहुत सस्ते दामों में मिलने लगी। 1710 - 1770 ईस्वी में चीनी एक
अत्यंत लोकप्रिय मसाला बन गई, जो सभी यूरोपीय आयातों का 20% प्रतिनिधित्व करने
लगी। सदी के अंत तक वेस्ट इंडीज, ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेशों ने 80% चीनी का
उत्पादन किया। 1813 ईस्वीं में चार्ल्स हॉवर्ड (Charles Howard ) ने चीनी को परिष्कृत
करने की अधिक ईंधन-कुशल विधि का आविष्कार किया, जिसने गन्ने के रस को भाप से
गर्म करके और आंशिक वैक्यूम के तहत बंद केतली में उबाला जाता है। 1850 ईस्वी में
क्यूबा (Cuba) पहाड़ी इलाकों से मुक्त एकमात्र प्रमुख द्वीप था, और गन्ना उत्पादन के लिए
आदर्श था। इसलिए यह कैरिबियन (Caribbean) में सबसे अमीर क्षेत्र बन गया।
 1850 ईस्वी में
क्यूबा (Cuba) पहाड़ी इलाकों से मुक्त एकमात्र प्रमुख द्वीप था, और गन्ना उत्पादन के लिए
आदर्श था। इसलिए यह कैरिबियन (Caribbean) में सबसे अमीर क्षेत्र बन गया।
1550 से पहले बनाई गई लगभग 3,000 छोटी चीनी मिलों के निर्माण ने कच्चे लोहे से
संबंधित उद्पादों जैसे गियर, लीवर, एक्सल (Gear, Lever, Axle) और अन्य उपकरणों की
अभूतपूर्व मांग पैदा की। चीनी उत्पादन के विस्तार के कारण यूरोप में मोल्ड बनाने और लोहे
की ढलाई में विशेषज्ञ ट्रेडों का विकास हुआ। 1625 में चीनी इतना महत्वपूर्ण मसाला रही की,
लोग अक्सर चीनी के मूल्य की तुलना कस्तूरी, मोती और मसालों सहित मूल्यवान वस्तुओं
से करते थे। उद्पादन में वृद्धि के साथ ही चीनी की कीमतों में धीरे-धीरे गिरावट जहां केवल
अमीरों का भोग माने जाने वाली चीनी की खपत अब गरीबों के बीच भी आम हो गई। मुख्य
रूप से उत्तरी अमेरिकी उपनिवेशों, क्यूबा और ब्राजील (Brazil) में चीनी उत्पादन में
अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 16वीं शताब्दी के दौरान चीनी की लोकप्रियता अपने चरम पर पहुंच
गई, उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन ने 1710 की तुलना में 1770 के दौरान चीनी की पांच गुना
अधिक खपत की। 1740 से 1820 के दशक तक, चीनी ब्रिटेन का सबसे मूल्यवान आयात
था। कई यूरोपीय लोगों की खाने की आदतों में बड़े बदलाव देखे, दरअसल उन्होंने बहुत
अधिक मात्रा में जैम, कैंडी, चाय, कॉफी, कोको, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और अन्य मीठे
भोजन का सेवन करना शुरू कर दिया, जिस कारण चीनी की मांग और उत्पादन काफी हद
तक बढ़ गई। डचों के खिलाफ विद्रोह और नेपोलियन युद्धों जैसी घटनाओं के दौरान भी
चीनी उच्च मांग बनी रही, और इस बड़ी हुई मांग का फायदा कैरेबियाई द्वीपों ने उठाया और
वे अब अधिक चीनी का उत्पादन करने लगे। वे पश्चिमी यूरोपीय लोगों द्वारा उपभोग की
जाने वाली चीनी का नब्बे प्रतिशत तक उत्पादन करते थे।
 चीनी की मिठास के प्रति लोगों का अगाध प्रेम आज भी ज्यों का त्यों है। जैसा की हमने पहले
ही चर्चा की कि संतुलित मात्रा में चीनी एक लाभदायक औषधि का काम करती है।
कार्बोहाइड्रेड युक्त उत्पादों जैसे फल और सब्जियां, अनाज और डेयरी में चीनी प्राकृतिक रूप
से मौजूद होती है। प्राकृतिक चीनी युक्त संपूर्ण खाद्य पदार्थों का सेवन करना ठीक है। पादप
खाद्य पदार्थों में भी उच्च मात्रा में फाइबर, आवश्यक खनिज और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं,
और डेयरी खाद्य पदार्थों में प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं, इसमें मौजूद चीनी आपकी
कोशिकाओं को ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति प्रदान करती है। फलों, सब्जियों और साबुत अनाज
का अधिक सेवन पुरानी बीमारियों, जैसे मधुमेह, हृदय रोग और कुछ कैंसर के जोखिम को
भी कम कर सकता है। हालांकि प्रसंस्कृत चीनी का बहुत अधिक मात्रा में सेवन करने से
स्वास्थ संबंधी गंभीर खतरों का भी सामना करना पड़ सकता है। शीतल पेय, फलों के पेय,
स्वादयुक्त योगर्ट, अनाज, कुकीज़, केक, कैंडी और अधिकांश प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हैं।
राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के अनुसार, “वयस्क पुरुष प्रतिदिन औसतन 24 चम्मच अतिरिक्त
चीनी लेते हैं”, यह 384 कैलोरी के बराबर है। चीनी की इतनी अधिक मात्रा हमारे ह्रदय के
लिए बेहद हानिकारक साबित होती है, साथ ही "मोटापे और मधुमेह पर इसका असर
जानलेवा होता है। बहुत अधिक चीनी का सेवन रक्तचाप और पुरानी सूजन को बढ़ा सकता
है, चीनी की अधिक खपत भूख नियंत्रण प्रणाली को भी प्रभावित करती है, इसलिए यह
आपके दिमाग को भ्रमित करके मोटापा भी बड़ा सकती है।
चीनी की मिठास के प्रति लोगों का अगाध प्रेम आज भी ज्यों का त्यों है। जैसा की हमने पहले
ही चर्चा की कि संतुलित मात्रा में चीनी एक लाभदायक औषधि का काम करती है।
कार्बोहाइड्रेड युक्त उत्पादों जैसे फल और सब्जियां, अनाज और डेयरी में चीनी प्राकृतिक रूप
से मौजूद होती है। प्राकृतिक चीनी युक्त संपूर्ण खाद्य पदार्थों का सेवन करना ठीक है। पादप
खाद्य पदार्थों में भी उच्च मात्रा में फाइबर, आवश्यक खनिज और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं,
और डेयरी खाद्य पदार्थों में प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं, इसमें मौजूद चीनी आपकी
कोशिकाओं को ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति प्रदान करती है। फलों, सब्जियों और साबुत अनाज
का अधिक सेवन पुरानी बीमारियों, जैसे मधुमेह, हृदय रोग और कुछ कैंसर के जोखिम को
भी कम कर सकता है। हालांकि प्रसंस्कृत चीनी का बहुत अधिक मात्रा में सेवन करने से
स्वास्थ संबंधी गंभीर खतरों का भी सामना करना पड़ सकता है। शीतल पेय, फलों के पेय,
स्वादयुक्त योगर्ट, अनाज, कुकीज़, केक, कैंडी और अधिकांश प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हैं।
राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के अनुसार, “वयस्क पुरुष प्रतिदिन औसतन 24 चम्मच अतिरिक्त
चीनी लेते हैं”, यह 384 कैलोरी के बराबर है। चीनी की इतनी अधिक मात्रा हमारे ह्रदय के
लिए बेहद हानिकारक साबित होती है, साथ ही "मोटापे और मधुमेह पर इसका असर
जानलेवा होता है। बहुत अधिक चीनी का सेवन रक्तचाप और पुरानी सूजन को बढ़ा सकता
है, चीनी की अधिक खपत भूख नियंत्रण प्रणाली को भी प्रभावित करती है, इसलिए यह
आपके दिमाग को भ्रमित करके मोटापा भी बड़ा सकती है।
संदर्भ
https://bit.ly/2X9DVGW
https://bit.ly/3heTaFu
https://bit.ly/3hedw1q
https://www.sugar.org/sugar/history/
https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_sugar
चित्र संदर्भ
1. पात्र में रखी चीनी का एक चित्रण (Freerange Stock)
2. चाय और चीनी के कप का एक चित्रण (flickr)
3. पुराने जमाने की भारतीय चीनी, गन्ना प्रेस का एक चित्रण (wikimedia)
4. चीनी निर्माण के लिए की गई गन्ने की खेती का एक चित्रण (wikimedia)
 
                                         
                                         
                                         
                                        