भारत की रॉक कट वास्तुकला से निर्मित भव्य विशालकाय आकृतियां

वास्तुकला I - बाहरी इमारतें
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भारत की रॉक कट वास्तुकला से निर्मित भव्य विशालकाय आकृतियां

भारत युगों-युगों पूर्व से कई पहलुओं में अद्वितीय रहा है। हमारे पूर्वजों ने दुनियाभर को कई ऐसी अद्वितीय धरोहरें प्रदान की हैं, जिनका लोहा आज पूरा विश्व मानता है। भारत की विविध संस्कृतियां हो अथवा आकृतियां, आज भी दुनियाभर में कौतुहल का हिस्सा बनी रहती हैं। जिस प्रकार आज भारत की विविध संस्कृतियां पूरे विश्व में व्याप्त हैं, उसी प्रकार हजारों सालों भारत की रॉक-कट (Rock Cut) अथवा चट्टानों को काट कर तराशी गई वास्तुकला, आज भी धरती के कई हिस्सों में जीवंत रूपों में खड़ी हैं।
मूलतः रॉक-कट संरचनाएं किसी भी प्राकृतिक चट्टान को तराशकर किसी निश्चित आकृति में परिवर्तित करने का अभ्यास है। रॉक-कट आर्किटेक्चर के अंर्तगत प्राचीन उपकरणों और विधियों का उपयोग करते हुए, ठोस चट्टान को तराशकर करके उन्हें संरचनाओं, इमारतों और मूर्तियों में परिवर्तित कर दिया जाता है। प्राचीन उपकरणों और विधियों का उपयोग करते समय अत्यधिक श्रमसाध्य, रॉक-कट वास्तुकला को संभवतः कहीं और उपयोग के लिए चट्टान की खदान के साथ जोड़ा गया था। रॉक-कट संरचनाएं पारंपरिक रूप से निर्मित संरचनाओं की तुलना में भिन्न होती हैं। उदारहण के लिए कई रॉक-कट संरचनाएं मुखोटों के रूप में पारंपरिक वास्तुशिल्प को दर्शाने के लिए बनाई गई हैं। दुनिया के कई चट्टानों में चेहरों की उकेरी गई मूर्तियां, अक्सर गुफाओं के बाहर होती हैं।

रॉक-कट आर्किटेक्चर के तीन मुख्य उपयोग भारत में मंदिर ,समाधि और कप्पाडोसिया में गुफा आवास का निर्माण करना था। भारत में एलोरा और इथियोपिया में ज़गवे-निर्मित लालिबेला ऐसी संरचनाओं के कुछ सबसे प्रसिद्ध उदाहरण हैं। भारतीय रॉक-कट वास्तुकला दुनियाभर में किसी भी अन्य वास्तुकला की तुलना में सबसे अधिक विस्तृत अथवा प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। इस भारतीय वास्तुकला से निर्मित अधिकांश संरचनाएं धार्मिक प्रकर्ति की होती हैं। चट्टानों को काटकर आकृतियां बनाने की प्राचीन और मध्यकालीन संरचनाएं, हमारे ऐतहासिक रचनात्मकता और उत्कृष्ट इंजिनीरिंग कौशल का जीवंत उदाहरण हैं। अकेले भारत में लगभग 1500 से अधिक रॉक- कट संरचनाएं पाई जाती हैं, जिनमे से कई वैश्विक तौर पर बेहद अहम् मानी जाती हैं। इस नक्काशी की विशालता और बारीकीयां इन्हें देखने वाले आगंतुकों को चकित कर देती हैं। इन रॉक कट चट्टानों की नक्काशी का निर्माण करने के पश्चात् शेष बचे पत्थरों का उपयोग आर्थिक लाभ के लिए किया जाता था। चट्टानों पर की जाने वाली भारतीय शैली की नक्काशियो के अधिकांश उदाहरण भारत की प्राचीन गुफाओं में देखने को मिल जाते हैं। भारतीय रॉक-कट नक्काशी भी गुफाओं में पाई जाती हैं, वे या तो मानव निर्मित हैं अथवा यदि प्राकृतिक भी हैं तो उन्हें धार्मिक रूप से अहम् माना जाता है। विश्व के सबसे पुरानी रॉक-कट वास्तुकला बिहार के बराबर गुफाओं में पाई जाती है, जिन्हें संभवतः तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास बनाया गया था। इसके अलावा यह वास्तुकला पश्चिमी दक्कन के प्रारंभिक गुफा मंदिरों में भी देखी जाती है। जिनमे से अधिकांश 100 ईसा पूर्व और 170 ईस्वी के बीच निर्मित बौद्ध मदिर अथवा मठ हैं।
भारतीय रॉक-कट वस्तुकला से निर्मित कुछ अन्य सबसे पुराने गुफा मंदिरों में भाजा गुफाएं, कार्ला गुफाएं, बेडसे गुफाएं, कन्हेरी गुफाएं और कुछ अजंता गुफाएं शामिल हैं। वे उस अवधि के दौरान बनाए गए थे जब रोमन साम्राज्य और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच समुद्री व्यापार में उछाल आया था। यद्यापि पांचवी शताब्दी तक खुले में खड़े मंदिरों का निर्माण कराया जाने लगा, लेकिन इसके बाद भी रॉक-कट मंदिरों का निर्माण कार्य जारी रहा। बाद में रॉक-कट गुफा वास्तुकला एलोरा गुफाओं की तरह अधिक परिष्कृत हो गई। अखंड कैलाश मंदिर को इस शैली के निर्माण का शिखर तथा उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। यह निर्माण वास्तुकला 12वीं शताब्दी तक पूरी तरह से संरचनात्मक हो गई, अर्थात अब पहले चट्टानों को काटा जाता था, जिसके पश्चात उनमे शानदार नक्काशी करके मंदिरों का निर्माण किया जाता था। अखंड कैलाश मंदिर सबसे अंतिम रॉक-कट मंदिर था।
भारतीय वास्तुकला के इतिहास में रॉक-कट आर्किटेक्चर एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं, क्योंकि वे प्राचीन भारतीय कला नमूने का सबसे शानदार नमूना पेश करते हैं। अधिकांश रॉक-कट संरचनाओं का निर्माण विभिन्न धर्मों और धार्मिक गतिविधियों को संपन्न करने के लिए किया जाता था। मूर्तिकला के समान ही रॉक-कट वास्तुकला में भी संरचनाएं ठोस चट्टानों को काटकर बनाई गई थीं।
इस वास्तुकला को रॉक-कट गुफाओं और रॉक-कट मंदिर वास्तुकला में वर्गीकृत किया गया है। चौथी शताब्दी ईस्वी में गुप्त साम्राज्य के उदय को अक्सर "भारतीय वास्तुकला का स्वर्ण काल" कहा जाता है। मध्य प्रदेश के उदयगिरि में, गुप्त काल के दौरान 20 रॉक-कट कक्षों की खुदाई की गई थी, जिनमें से दो चंद्र गुप्त द्वितीय के शासनकाल के शिलालेख हैं। अजंता महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास वाघोरा नदी पर सह्याद्री पर्वतमाला में चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं की एक श्रृंखला है। कैलाश मंदिर की दीवार पर एक मूर्ति भी है, जिसमें रावण को कैलाश पर्वत को हिलाते हुए दर्शाया गया है। इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में चिह्नित किया जाता है।
रॉक-कट आर्किटेक्चर के शुरुआती उदाहरण बौद्ध और जैन गुफा बसदी, मंदिर और मठ हैं, बौद्धों की तपस्वी प्रकृति ने उनके अनुयायियों को शहरों से दूर पहाड़ियों में प्राकृतिक गुफाओं और कुटी में रहने के लिए प्रेरित किया। हालांकि कई मंदिरों, मठों और स्तूपों को नष्ट कर दिया गया था, लेकिन इसके विपरीत, गुफा मंदिर बहुत अच्छी तरह से संरक्षित हैं। क्योंकि वे कम प्रचलित हैं, और साथ-साथ लकड़ी और चिनाई की तुलना में अधिक टिकाऊ सामग्री से बने होते हैं। लगभग 1200 गुफा मंदिर अभी भी अस्तित्व में हैं, जिनमें से अधिकांश बौद्ध मंदिर हैं।
दुनियाभर में आज भी कई ऐसी रॉक कट संरचनाएं मौजूद है, जो देखने वाले सैलानियों को एक पल के लिए विस्मित कर सकती हैं, जिनमे से कुछ बेहद प्रमुख क्रमशः हैं।
1.सप्तपर्णी गुफा: इसे भगवान बुद्ध की शरणस्थली के रूप में भी जाना जाता है। यह संभवतः मानव द्वारा उपयोग की जाने वाली सबसे पुरानी गुफाएँ प्राकृतिक गुफाएँ थीं, जिन्हे उन्होंने तीर्थ और आश्रय के उद्द्येश्यों से अपनाया था।
भारत में दक्कन के पठार के किनारे पर स्थित भीमबेटका के रॉक शेल्टर, जिसे अब यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है। शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र में 8,००० ईसा पूर्व की प्राचीनतम कई गुफाओं और कुटी में मानव द्वारा बनाए गए, आदिम उपकरण और सजावटी शैल चित्र खोजे हैं।
2.पूर्वी भारत की कृत्रिम गुफाएं: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारतीय रॉक-कट वास्तुकला का विकास शुरू हुआ, जिसकी शुरुआत बिहार में पहले से ही अत्यधिक परिष्कृत और राज्य प्रायोजित बराबर गुफाओं से हुई।
इन गुफाओं में से एक लोमस ऋषि का प्रसिद्ध नक्काशीदार दरवाजा, लगभग 250 ईसा पूर्व से हैं।
3.बिहार के दक्षिण-पूर्व में, उदयगिरि और खंडगिरि गुफाएं: इनका उल्लेख हाथीगुम्फा शिलालेख में कुमारी पर्वत के रूप में किया गया है।
ऐसा माना जाता है कि इन गुफाओं में से अधिकांश को राजा खारवेल के शासनकाल के दौरान जैन भिक्षुओं के लिए आवासीय स्थान के रूप में उकेरा गया था।
इन सभी धरोहरों के अलावा भी अजंता-एलोरा की गुफाएं, जैन तीर्थंकर की मूर्तियाँ, तिरुमलाई गुफा मंदिर, कलुगुमलाई जैन बेदसो, मोनोलिथिक रॉक-कट मंदिर, वराह गुफा मंदिर जैसे ढेरों उदाहरण ऐसे हैं। जो प्राचीन भारतीय रॉक कट शैली की शानदार अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करती हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3tJOD2A
https://bit.ly/3luIG60
https://bit.ly/2XnZOlq

चित्र संदर्भ
1. गुफा 19, अजंता, 5वीं सदी के चैत्य हॉल का एक चित्रण (wikimedia)
2. गंगा के अवतरण का दृश्य, जिसे ममल्लापुरम में अर्जुन की तपस्या के रूप में भी जाना जाता है, एशिया में सबसे बड़ी चट्टानकी नक्काशी में से एक है और कई हिंदू मिथकों में इसकी विशेष महत्ता है, जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3. बोज्जन्नाकोंडारे में रॉक कट बुद्ध प्रतिमाओं का एक चित्रण (wikimedia)
4. अखंड कैलाश मंदिर को रॉक कट शैली के निर्माण का शिखर तथा उत्कृष्ट नमूना माना जाता है, जिसका एक चित्रण (youtube)
5. सप्तपर्णी गुफा का एक चित्रण (wikimedia)
6. पूर्वी भारत की कृत्रिम गुफाओं का एक चित्रण (wikimedia)
7. बिहार के दक्षिण-पूर्व में, उदयगिरि और खंडगिरि गुफाओं का एक चित्रण (wikimedia)