 
                                            समय - सीमा 268
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1036
मानव और उनके आविष्कार 802
भूगोल 264
जीव-जंतु 306
 
                                            मोहनदास करमचंद गांधी‚ जिन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से भी जाना
जाता है‚ एक भारतीय वकील थे। जिन्होंने सफल नेतृत्व के लिए अहिंसक प्रतिरोध
का इस्तेमाल किया। ब्रिटिश (British) शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए
अभियान तथा दुनिया भर में नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए आंदोलनों
को प्रेरित किया। महात्मा गांधी ने एक विरोध आंदोलन का आयोजन किया जो
सीधे अमृतसर के नरसंहार (‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’) तथा बाद में उनके
‘असहयोग आंदोलन’ तक ले गया। स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी‚ दो बार जौनपुर आए थे। गांधीजी जब देश को आजाद
कराने के लिए दौरा कर रहे थे‚ उस दौरान नागपुर में अधिवेशन चल रहा था‚
जिसमें जिले के तमाम सेनानी‚ स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह की अगुवाई
में वहां आए थे। उस दौरान लोगों ने गांधीजी से जौनपुर आने के लिए निवेदन
किया। 10 फरवरी 1920 को उनके आने की सूचना पाकर प्रशासन ने विद्यालयों
को बंद कर दिया‚ फिर भी लगभग बीस हजार जनता राष्ट्रपिता का भाषण सुनने
के लिए टूट पड़ी। भंडारी स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर बने मंच से ही उन्होंने जनता को
संबोधित किया। जिसमें बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की बात के साथ‚ “पलो‚
बढ़ो और पढ़ो” का नारा भी दिया था। दूसरी बार 2 अक्टूबर 1929 को जब
गांधीजी जौनपुर आए तो मानिक चौक पर राधा मोहन मेहरोत्रा के घर पर रुके थे।
अगले दिन सुबह महिला अधिवेशन में‚ उन्होंने महिलाओं को चरखा चलाने और
आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दी। 3.  उसके बाद रामलीला मैदान में सभाकर एकता की
शिक्षा दी। यहां पर उनकी दरियादिली देख लोग उनके और भी प्रशंसक हो गए।
इसी दौरान वे किसी गांव में भ्रमण पर निकले तो देखा कि महिलाओं के कपड़े
फटे और मैले थे। इस दशा पर उन्हें बड़ा दुख हुआ‚ जिसे लेकर उन्होंने चरखा
चलाने और सूत कातने की पहल भी की।
उसके बाद रामलीला मैदान में सभाकर एकता की
शिक्षा दी। यहां पर उनकी दरियादिली देख लोग उनके और भी प्रशंसक हो गए।
इसी दौरान वे किसी गांव में भ्रमण पर निकले तो देखा कि महिलाओं के कपड़े
फटे और मैले थे। इस दशा पर उन्हें बड़ा दुख हुआ‚ जिसे लेकर उन्होंने चरखा
चलाने और सूत कातने की पहल भी की।
जलियांवाला बाग हत्याकांड‚ जिसे अमृतसर का नरसंहार भी कहा जाता है, 13
अप्रैल 1919‚ की यह वह घटना है‚ जिसमें ब्रिटिश सैनिकों ने‚ पंजाब क्षेत्र के
अमृतसर में जलियांवाला बाग के रूप में पहचाने जाने वाले खुले स्थान में निहत्थे
भारतीयों की एक बड़ी भीड़ पर गोलीबारी की थी। जिसमें कई लोग मारे गए और
कई सैकड़ों लोग घायल हो गए। इस घटना को भारत के आधुनिक इतिहास में एक
महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में चिह्नित किया जाता है‚ जिसमें गांधी जी की भारतीय
राष्ट्रवाद और ब्रिटेन से स्वतंत्रता के लिए पूर्ण प्रतिबद्धता की प्रस्तावना थी। इसने
भारत-ब्रिटिश संबंधों पर एक स्थायी निशान छोड़ा था।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान‚ भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन
शक्तियों की एक श्रृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का
मुकाबला करना था। इस युद्ध में भारतीय नेताओं और जनता ने खुल कर ब्रिटिशों
का साथ दिया था। युद्ध के अंत तक‚ भारतीय जनता को उम्मीदें थीं कि उन
उपायों में ढील दी जाएगी और भारत को अधिक राजनीतिक स्वायत्तता दी जाएगी‚
लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मॉण्टेगू-चेम्सफ़ोर्ड (Montagu-Chelmsford) सुधार लागू
कर दिए जो इस भावना के विपरीत था। इसके बाद भारत प्रतिरक्षा विधान का
विस्तार कर के भारत में रॉलट एक्ट (Rowlatt Acts) लागू किया गया था‚ जो
आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक लगाने के लिए था‚ जिसने अनिवार्य
रूप से दमनकारी युद्धकालीन उपायों को बढ़ाया। 3.  इस दौरान पंजाब के क्षेत्रों में
ब्रिटिशों का विरोध कुछ अधिक बढ़ गया था। गांधीजी तब तक दक्षिण अफ़्रीका
(South Africa) से भारत आ चुके थे और धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही
थी। उन्होंने रॉलट एक्ट का विरोध करने का आह्वान किया जिसे कुचलने के लिए
ब्रिटिश सरकार ने नेताओं तथा जनता को रॉलट एक्ट के अंतर्गत गिरफ़्तार किया
तथा कड़ी सजाएँ दीं। आंदोलन अप्रैल के पहले सप्ताह में अपने चरम पर पहुँच
रहा था। अप्रैल की शुरुआत में गांधीजी ने पूरे देश में एक दिवसीय आम हड़ताल
का आह्वान किया। उस समय लाहौर और अमृतसर की सड़कें लोगों से भरी रहती
थीं। बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक
सभा रखी गई‚ जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। जहां कम से कम 10‚000
पुरुषों‚ महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हो गई‚ जो लगभग पूरी तरह से दीवारों
से घिरा हुआ था और उसमें केवल एक ही निकास था। यह स्पष्ट नहीं है कि
कितने लोग सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध की अवहेलना करने के लिए वहां आए
थे‚ और कितने लोग बसंत उत्सव बैसाखी मनाने के लिए आसपास के क्षेत्र से
शहर आए थे। जब नेता बाग में खड़े हो कर भाषण दे रहे थे‚ तभी ब्रिगेडियर
जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर (Brig. Gen. Reginald Edward Harry
Dyer) ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। और बिना कोई चेतावनी दिए
निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। जिसमें सैकड़ों राउंड फायरिंग की
गई। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में
मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए‚ पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से भर
गया। एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार‚ अनुमानित 379 लोग मारे गए‚ और
लगभग 1‚200 अन्य घायल हुए। इसके बाद भारत में आक्रोश बढ़ गया। गांधीजी
ने जल्द ही बड़े पैमाने पर तथा निरंतर अहिंसक विरोध अभियान‚ “असहयोग
आंदोलन” का आयोजन करना शुरू कर दिया‚ जिसने उन्हें भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष
में प्रमुखता के लिए प्रेरित किया।3.
इस दौरान पंजाब के क्षेत्रों में
ब्रिटिशों का विरोध कुछ अधिक बढ़ गया था। गांधीजी तब तक दक्षिण अफ़्रीका
(South Africa) से भारत आ चुके थे और धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही
थी। उन्होंने रॉलट एक्ट का विरोध करने का आह्वान किया जिसे कुचलने के लिए
ब्रिटिश सरकार ने नेताओं तथा जनता को रॉलट एक्ट के अंतर्गत गिरफ़्तार किया
तथा कड़ी सजाएँ दीं। आंदोलन अप्रैल के पहले सप्ताह में अपने चरम पर पहुँच
रहा था। अप्रैल की शुरुआत में गांधीजी ने पूरे देश में एक दिवसीय आम हड़ताल
का आह्वान किया। उस समय लाहौर और अमृतसर की सड़कें लोगों से भरी रहती
थीं। बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक
सभा रखी गई‚ जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। जहां कम से कम 10‚000
पुरुषों‚ महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हो गई‚ जो लगभग पूरी तरह से दीवारों
से घिरा हुआ था और उसमें केवल एक ही निकास था। यह स्पष्ट नहीं है कि
कितने लोग सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध की अवहेलना करने के लिए वहां आए
थे‚ और कितने लोग बसंत उत्सव बैसाखी मनाने के लिए आसपास के क्षेत्र से
शहर आए थे। जब नेता बाग में खड़े हो कर भाषण दे रहे थे‚ तभी ब्रिगेडियर
जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर (Brig. Gen. Reginald Edward Harry
Dyer) ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। और बिना कोई चेतावनी दिए
निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। जिसमें सैकड़ों राउंड फायरिंग की
गई। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में
मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए‚ पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से भर
गया। एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार‚ अनुमानित 379 लोग मारे गए‚ और
लगभग 1‚200 अन्य घायल हुए। इसके बाद भारत में आक्रोश बढ़ गया। गांधीजी
ने जल्द ही बड़े पैमाने पर तथा निरंतर अहिंसक विरोध अभियान‚ “असहयोग
आंदोलन” का आयोजन करना शुरू कर दिया‚ जिसने उन्हें भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष
में प्रमुखता के लिए प्रेरित किया।3.  असहयोग आंदोलन 4 सितंबर 1920 को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक
राजनीतिक अभियान था‚ जिसमें भारतीयों को स्वशासन और पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान
करने के लिए‚ अंग्रेजों को प्रेरित करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार से अपना
सहयोग वापस लेना था। यह आंदोलन गांधीजी के बड़े पैमाने पर सत्याग्रह के पहले
संगठित कृत्यों में से एक था। गांधीजी के असहयोग आंदोलन की योजना में सभी
भारतीयों को किसी भी गतिविधि से‚ अपने श्रम को वापस लेने के लिए राजी
करना शामिल था‚ जो “ब्रिटिश सरकार और भारत में अर्थव्यवस्था को बनाए रखती
थी”‚ जिसमें ब्रिटिश उद्योग और शैक्षणिक संस्थान शामिल थे। अहिंसा या
अहिंसक माध्यमों से‚ प्रदर्शनकारी ब्रिटिश सामान खरीदने से मना कर देते थे‚
स्थानीय हस्तशिल्प का उपयोग अपनाते थे‚ और शराब की दुकानों पर धरना देते
थे। खादी की कताई करके‚ केवल भारतीय निर्मित सामान खरीदकर और ब्रिटिश
सामानों का बहिष्कार करके “आत्मनिर्भरता” को बढ़ावा देने के अलावा‚ गांधीजी के
असहयोग आंदोलन ने तुर्की (Turkey) में खिलाफत आंदोलन की बहाली और
छुआछूत को समाप्त करने का आह्वान किया। इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक
रूप से आयोजित बैठकें और हड़तालें हुईं‚ जिसके कारण 6 दिसंबर 1921 को
नेहरूजी तथा उनके पिता‚ मोतीलाल नेहरूजी दोनों की पहली गिरफ्तारी हुई।
असहयोग आंदोलन ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता के लिए व्यापक आंदोलन
में से एक था। 4 फरवरी 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद‚ गांधीजी द्वारा
आंदोलन को बंद कर दिया गया था‚ जिसमें चौरी चौरा‚ संयुक्त प्रांत में भीड़ द्वारा
कई पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी। लेकिन‚ इस आंदोलन ने भारतीय
राष्ट्रवाद के मध्यवर्गीय आधार से जनता में संक्रमण को चिह्नित किया।
असहयोग आंदोलन 4 सितंबर 1920 को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक
राजनीतिक अभियान था‚ जिसमें भारतीयों को स्वशासन और पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान
करने के लिए‚ अंग्रेजों को प्रेरित करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार से अपना
सहयोग वापस लेना था। यह आंदोलन गांधीजी के बड़े पैमाने पर सत्याग्रह के पहले
संगठित कृत्यों में से एक था। गांधीजी के असहयोग आंदोलन की योजना में सभी
भारतीयों को किसी भी गतिविधि से‚ अपने श्रम को वापस लेने के लिए राजी
करना शामिल था‚ जो “ब्रिटिश सरकार और भारत में अर्थव्यवस्था को बनाए रखती
थी”‚ जिसमें ब्रिटिश उद्योग और शैक्षणिक संस्थान शामिल थे। अहिंसा या
अहिंसक माध्यमों से‚ प्रदर्शनकारी ब्रिटिश सामान खरीदने से मना कर देते थे‚
स्थानीय हस्तशिल्प का उपयोग अपनाते थे‚ और शराब की दुकानों पर धरना देते
थे। खादी की कताई करके‚ केवल भारतीय निर्मित सामान खरीदकर और ब्रिटिश
सामानों का बहिष्कार करके “आत्मनिर्भरता” को बढ़ावा देने के अलावा‚ गांधीजी के
असहयोग आंदोलन ने तुर्की (Turkey) में खिलाफत आंदोलन की बहाली और
छुआछूत को समाप्त करने का आह्वान किया। इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक
रूप से आयोजित बैठकें और हड़तालें हुईं‚ जिसके कारण 6 दिसंबर 1921 को
नेहरूजी तथा उनके पिता‚ मोतीलाल नेहरूजी दोनों की पहली गिरफ्तारी हुई।
असहयोग आंदोलन ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता के लिए व्यापक आंदोलन
में से एक था। 4 फरवरी 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद‚ गांधीजी द्वारा
आंदोलन को बंद कर दिया गया था‚ जिसमें चौरी चौरा‚ संयुक्त प्रांत में भीड़ द्वारा
कई पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी। लेकिन‚ इस आंदोलन ने भारतीय
राष्ट्रवाद के मध्यवर्गीय आधार से जनता में संक्रमण को चिह्नित किया।
संदर्भ:
https://bit.ly/3m86T2m
https://bit.ly/3iiB8lV
https://bit.ly/3mctV8b
चित्र संदर्भ
1. महात्मा गाँधी जी की प्रतिमा का एक चित्रण (hindi.news)
2. चरखा चलाते गांधीजी का एक चित्रण (flickr)
3. जलियांवाला बाग के बाहरी परिदृश्य का एक चित्रण (wikimedia)
4. अपने अनुयायियों को संबोधित करते गांधीजी का एक चित्रण (wikimedia)
 
                                         
                                         
                                         
                                        